satvendra madara
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सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)

satvendra madara21वीं सदी में अगर बहुजन समाज (ST, SC, OBC, Minorities) 85% आबादी होने के बाद भी भारत का हुक्मरान नहीं बन सका और दूसरी तरफ अल्पसंख्यक ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर (क्षत्रिय) सिर्फ 15% आबादी के बल पर ही सत्ता में हैं; तो इसका एक बहुत बड़ा कारण है, ‘मीडिया’।

लेकिन बहुजन समाज अपने संघर्ष के शुरुआती दौर में इसमें आगे रहा। 1848 में महात्मा जोतीराव फूले ने जब सामाजिक क्रांति की नींव रखी, तो उन्होंने 1875 में ही अपना अख़बार, ‘दीनबंधू’ शुरू कर दिया था। इसके 8 साल बाद ब्राह्मणवादियों का पहला बड़ा अख़बार ‘केसरी’ शुरू हुआ। लेकिन आगे चलकर आर्थिक ताकत बनियों के हाथों में होने के कारण, उन्होंने ब्राह्मण पत्रकारों के सहयोग से अनेकों प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के अख़बार शुरू किये। 1947 में राजनीतिक सत्ता पर ब्राह्मण काबिज़ हुए और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बन चुका ‘मीडिया’ पूरी तरह सवर्णों की मुट्ठी में आ गया।

बाबासाहब अम्बेडकर, पेरियार रामास्वामी नायकर और साहब कांशी राम ने लगातार इस ओर कोशिशें की; लेकिन कम साधनों के चलते, वो ब्राह्मणवादी मीडिया का मुकाबला नहीं कर पाए।

आगे चलकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आगाज़ हुआ और 1980 के दशक में इसकी शुरुआत दूरदर्शन से हुई। पहले इसे भारत सरकार द्वारा चलाया गया और फिर ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ ने अनेकों निजी चैनलों के साथ इस क्षेत्र पर भी धावा बोल दिया। यह माध्यम प्रिंट से कहीं ज़्यादा खर्चीला था; बहुजन समाज इसमें मुकाबला करना तो दूर रहा, अपनी मौजूदगी भी दर्ज नहीं करवा पाया। 

इसी महत्वपूर्ण दौर में पहले OBC की शासन-प्रशाषन में भागीदारी को लेकर ‘मंडल’ और इसी को दबाने की साजिश के तहत ‘कमंडल’ (बाबरी मस्जिद – राम मंदिर) आंदोलन चला। पिछड़ी जातियाँ अपने ही हित में चल रहे ‘मंडल आंदोलन’ को छोड़ ‘कमंडल’ में उलझ गयीं; उन्हें बरगलाने में मीडिया का बड़ा हाथ था।

साहब कांशी राम इस कमी को समझ चुके थे और सितम्बर 2003 में बीमार पड़ने से पहले, वो एक बड़ा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बनाने पर काम कर रहे थे। उन्होंने नॉएडा (उत्तर प्रदेश) में बहुत बड़ी ज़मीन भी खरीदी; लेकिन उनके बीमार पड़ते ही वो योजना खटाई में पड़ गयी।

media names collage

2010 के आस-पास सोशल मीडिया ने की शुरुआत हुई। इससे पहले कुछ-एक ब्लोग्स भी चले. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले यह माध्यम सस्ता और आसान था। स्मार्ट फ़ोन के आते ही हर कोई इस से जुड़ा और बहुजन समाज ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आज छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन इसमें काफी तरक्की हुई है और बहुत से YouTube Channel, बहुजन समाज की आवाज़ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पहुँचा रहे हैं। लेकिन इसकी एक अपनी समस्या है। इन Websites के मालिक तो विदेशों में हैं, लेकिन उनको भारत में चलाने वाले लोग फिर उसी ब्राह्मणवादी मानसिकता और समाज से हैं। बहुजनों की आवाज़ को दबाने की कोशिशें, यहाँ भी, लगातार जारी हैं।

मीडिया के क्षेत्र में बहुजन समाज के पिछड़े होने और दूसरी तरफ ब्राह्मणवादी कब्जे के बीच एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि ST(आदिवासी), SC(अनुसूचित जातियाँ – दलित), OBC( पिछड़ी जातियाँ) तो पीछे रह ही गए; लेकिन इन जातियों में से धर्म परिवर्तन कर बने मुसलमान, सिख, ईसाई, लिंगायत, बौद्ध, आदि भी अपना मज़बूत और आज़ाद मीडिया नहीं बना पाए। ST, SC, OBC; जो आज भी ज़्यादातर हिन्दू धर्म से जुड़े हुए हैं, उनकी दिक्कत तो समझ में आती है कि उनकी सारी धार्मिक और ज़्यादातर ताकतों पर ब्राह्मण और आर्थिक ताकत पर बनियें हावी हैं। लेकिन मुसलमानों, सिखों, ईसाईयों, लिंगायतों, बौद्धों में स्थिति ऐसी नहीं है।

इसके अलावा कुछ ऐसी और भी गैर सवर्ण जातियाँ हैं, जो सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक तौर पर काफी मज़बूत हैं। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के मराठा, उत्तरी भारत के जाट-यादव, गुजरात के पटेल, आदि।

यह सभी वर्ग अपने महापुरषों से जुड़े दिन और त्योहारों पर अपने बलबूते करोड़ों-अरबों रुपए सालाना खरचतें हैं। अगर यह इसका एक छोटा सा हिस्सा भी मीडिया पर लगा दें, तो इनकी आवाज़ भारत तो क्या – पूरी दुनिया में जाने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन 1947 के बाद तेजी से बदले हालातों में ब्राह्मण-बनियों ने जहां मीडिया की ताकत को पहचाना और इसमें दिन-दुगुनी रात चौगुनी तरक्की की, वहीं यह सभी वर्ग अपार क्षमताओं के बावजूद भी पिछड़ गए।

अगर बहुजन समाज को ज़िन्दगी के हर पहलूँ में आगे बढ़ना है, तो मीडिया में उसकी पकड़ आबादी के हिसाब से 85% होनी ही चाहिए नहीं तो वो अपनी बनती हिस्सेदारी कभी हासिल नहीं कर सकेगा।

महान अफ़्रीकी-अमरीकी नेता मैलकम-एक्स (1925-1965) ने मीडिया की ताकत को पहचानते हुए कहा था कि-

“अगर आप चौकन्ने न रहे तो मीडिया आपको उन लोगो से नफरत करना सीखा देगा, जिन पर ज़ुल्म होता है और उन लोगो से प्यार, जो ज़ुल्म करते हैं। मीडिया दुनिया की सबसे ताकतवर चीज़ है क्योंकि यह लोगो के दिमाग को नियंत्रण करती है।”

आज के समय में कोई भी समाज मीडिया के बगैर उस पंछी की तरह है, जो उड़ तो सकता है; लेकिन उसके पास पंख नहीं हैं। हमें एक ऊँची उड़ान भरनी है या ज़मीन पर ही रहना है, इसका फैसला हमारे हाथों में है।

~~~

 

सतविंदर मदारा पेशे से एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हैं, एक बहुजन विचारधारा के लेखक हैं. वह साहेब कांशी राम के भाषणों  को ऑनलाइन एक जगह संग्रहित करने का ज़रूरी काम कर रहे हैं.

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One thought on “बहुजन समाज और मीडिया

  1. सही है बहुत का भी एक प्रिन्ट मिडीया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बहुत जरूरत है जो बहुजनो को एक मार्च पर ला सके

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