दलित प्रतिरोध का गुजरात माडल और ब्राह्मणवाद के अंत की शुरुआत

संजय जोठे गुजरात के गौ भक्तों ने दलितों का जो अपमान किया है और जिस तरह से उन्हें सरे आम मारा पीटा है वह अपने आप में बहुत सूचक है. उसकी प्रतिक्रया में पूरे गुजरात के दलित समुदाय में जो एक तरह का अहिंसक आन्दोलन छिड़ गया है वह भी बहुत सूचक है. इन दो घटनाओं और इनके आतंरिक संबंधों […]

‘भारत-माता’ और ‘गऊ-माता’

डॉ. रतन लाल आखिर गुजरात में दलितों ने विद्रोह कर ही दिया: कलक्टर ऑफिस के सामने मरी हुई गायें पटकी और कहा लो अपनी माँ का अंतिम संस्कार करो. चलिए इसी बहाने गाय को ‘माँ’ बनाने वाले अपनी माँ की  इज्ज़त करना तो सीखेंगे. यह प्रतिरोध सिर्फ एक सुगबुगाहट है, आगे इंतज़ार कीजिए होता है क्या. आइये भारत में माँ की […]

आरक्षण व्यवस्था और इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाने वाले सवर्ण बुद्धिजीवियों से कुछ सवाल

टीकम सियाग   भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था को लेकर आज-कल तथाकथित सवर्ण बुद्धिजीवी वर्ग अपने अपने ढंग से इसकी पुनर्व्याख्या कर रहे हैं, और इससे संबंधित बड़े-बड़े व्याख्यान देते हुए घूम रहे हैं| इनमें कुछ लोग तो यहाँ तक कह रहे है कि आरक्षण व्यवस्था की अब भारत में जरुरत नही है इसको पूर्ण रूप से समाप्त कर […]

स्त्री गरिमा को रौंदती संस्कृति

16 दिसंबर वर्ष 2012 को दिल्ली में 23 वर्ष की युवती के साथ चलती बस में गैंगरेप की घटना से, टी.वी. चैनलों पर लम्बे समय तक, औरतों की सुरक्षा को लेकर, एक अजीब सा शोर मचा था| जिसके कारण लोगों में भयंकर रोष और गुस्से का संचार हुआ| देश के हर शहर में लोग सड़कों पर मोमबत्तियां जलाकर दोषियों को […]

डॉ. अम्बेडकर द्वारा स्थापित राजनीतिक प्रवेश प्रशिक्षण विद्यालय: एक भूली हुई दास्ताँ

बाबासाहेब अम्बेडकर (१८९१-१९५६) की १२५ वीं जयंती केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से धूमधाम से मनाई गई, यद्यपि,  इस उमंग और उत्साह से भरे माहौल में डॉ. अम्बेडकर से सम्बंधित आज तक उपेक्षित रहे ऐसे कुछ मुद्दे इस वर्ष भी नदारद दिखे, जिनकी आज के समय में अत्यन्त आवश्यकता है, […]

भारतीय कैंपसों (परिसरों) में जातिवाद और जाति की कहानी – I

टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टीआईएसएस) मुंबई में, 22 दिसंबर 2014 को हुए अम्बेडकरवादी छात्र संघ द्वारा आयोजित वार्ता पर उनका भाषण है , इस भाषण को  वल्लिंमल करुणाकरण द्वारा लिप्यंतरित किया गया है. मेरा नाम अनूप है और मैं भारतीय कैम्पसों में दलित विद्यार्थियों के मुद्दों पर लगभग 20 सालों से काम कर रहा हूँ, पहले एक विद्यार्थी के रूप में और […]

सैराट: मराठी सिनेमा की नई लहर

दिव्येश मुरबिया नागराज मंजुले, उनकी नवीनतम फिल्म सैराट के लिए मराठी फिल्म निर्देशक के तौर पर काफी मशहूर हुए हैं लेकिन उनको इस फिल्म से कहीं अधिक श्रेय जाता है. उन्होंने एक लघु फिल्म पित्सुल्या के साथ अपना कैरियर शुरू किया था जिसने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवाया. उन्होंने फैंड्री के साथ मराठी फिल्म उद्योग में शुरूआत किया था, जो व्यापक […]

एक दलित की चिट्ठी अमित शाह के नाम

डॉ ओम सुधा मेरे गावं घोरघट से महज एक किलोमीटर की दूरी पर एक गावं है मुरला मुसहरी | यह मुख्य रूप से दलित बस्ती है| एक जाति है मुसहर, जी हाँ मुसहर, जानते तो होंगे ना आप? नहीं बस इसीलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि आजकल आप दलितों के घर का भोज उड़ा रहे हैं तो सोचा पूछ लूँ | […]

रोहित वेमुला और भी है……….

कण कण से अब ये रण होगा भगवा द्वंद अब कम होगा,नीला रण तगण अब होगा,मूलतत्व जब सब होगा,जितने धोखे-मृत किये,सबका हिसाब अब होगा,न होगा भगवा राह में,जब नील क्रांति का बिगुल होगा। – माहे   “रोहित वेमुला” सिर्फ अकेला नाम नही है जो इस साम्राज्यवाद, राजनीति और जातिवाद का शिकार हुआ| आज रोहित एक ऐसे अनंत सफ़र पर जा […]

अयोति थास और तमिल बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान

दो ऐसे विद्वान हुए हैं जिनका देश-काल अलग रहा है मगर फिर भी उन्होंने जाति व्यवस्था से निपटने के लिए लगभग एक जैसा तरीका अपनाया. परंपरागत रूप से शिक्षित उन्नीसवीं सदी के तमिल विद्वान पंडित अयोति थास और बीसवीं सदी के पश्चिमी शिक्षाप्राप्त महाराष्ट्र के बुद्धिजीवी बाबासाहब अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म को ग्रहण कर यह दर्शाया कि यह जाति व्यवस्था […]