भारत में शिक्षा का इंतजाम – एक सॉफ्ट टेररिज्म

sanjay jothe

  संजय जोठे (Sanjay Jothe) पाकिस्तानी पत्रकार हसन निसार बार बार एक शब्द दोहराते हैं “सॉफ्ट टेरोरिज्म”। इस शब्द से उनका मतलब उन वहशियाना चालबाजियों से है जिनके जरिये किसी समाज या देश मे सत्ता और धर्म के ठेकेदार अपने ही गरीबों का खून चूसते हैं। हसन निसार बताते हैं कि ये साफ्ट टेरोरिज्म दूसरे रंग ढंग के किसी भी […]

बहुजन भारत के निर्माण का सबसे आसान और कारगर उपाय क्या है?

sanjay jothe

  संजय जोठे (Sanjay Jothe) क्या आपको पशु पक्षियों या पेड़ पौधों में ऐसी प्रजातियों का पता है जो अपने ही बच्चों के लिए कब्र खोदती है? या अपने ही बच्चों का खून निकालकर अपने दुश्मनों को पिलाती है? मैंने तो आजतक ऐसा कोई जानवर या पक्षी या पेड़ नहीं देखा जो अपने बच्चों के भविष्य को बर्बाद करने की […]

2 अप्रैल का ऐतिहासिक भारत बंद – बहुजन इंक़लाब की ओर बढ़ता भारत

satvendra madara

  सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)   सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST Act को कमज़ोर करने के विरोध में 2 अप्रैल को हुए ऐतिहासिक भारत बंद में जिस तरह पूरा बहुजन समाज (OBC+SC+ST+Minority) एकजुट हुआ, उसने यह साफ कर दिया है कि भारत अब बहुजनों की क्रांति की ओर बढ़ रहा है। जब 20 मार्च को यह फैसला आया तो सोशल मीडिया […]

दलित और राष्ट्रवाद/राष्ट्रीयता का सवाल (पाकिस्तान की मिटटी से)

Ganpat Rai Bheel

  लेखक: गणपत राय भील (Ganpat Rai Bheel) अनुवादक: फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) यह एक ऐसा सवाल है जो हर उस अन्तःमन में पलता है जो इस व्यवस्था और इसके सत्ताधारी साथियों के अत्याचार का शिकार है। हम इस विषय पर दलितों का नज़रिया रखने की कोशिश करेंगे। दलित पाकिस्तान में आबाद एक महत्वपूर्ण सामाजिक समूह है। दलित […]

पश्चिमी दार्शनिक और भारतीय पोंगा पंडित, एक नजर में

sanjay sharman jothe

  संजय जोठे (Sanjay Jothe) बहुजन (ओबीसी, दलित,आदिवासी, अल्पसंख्यक)  समाज को अपनी पहचान और अपना नाम खुद तय करना चाहिए। किसी अंधविश्वासी, शोषक, असभ्य और बर्बर जमात को यह अधिकार क्यो दिया जाए कि वो हमारा नाम तय करें? एक उदाहरण से सनझिये। अक्सर मांस खाने वालों को नॉन-वेजिटेरियन कहा जाता है। अब नॉन-वेजिटेरियन क्या होता है? क्या वो कभी […]

भारत का नैतिक पतन और ब्राह्मणवाद

sanjay sharman jothe

संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत का दार्शनिक और नैतिक पतन आश्चर्यचकित करता है. भारतीय दर्शन के आदिपुरुषों को देखें तो लगता है कि उन्होंने ठीक वहीं से शुरुआत की थी जहां आधुनिक पश्चिमी दर्शन ने अपनी यात्रा समाप्त की है. हालाँकि इसे पश्चिमी दर्शन की समाप्ति नहीं बल्कि अभी तक का शिखर कहना ज्यादा ठीक होगा. कपिल कणाद और पतंजली […]

शौच और शौचालय की नजर से भारतीय संस्कृति के ‘शीर्षासन माडल’ का विश्लेषण

Sanjay Jothe1

  संजय जोठे (Sanjay Jothe) “…. यहाँ जिन लोगों को ब्रह्मपुरुष के मस्तिष्क ने जन्म दिया उनका मस्तिष्क कोइ काम नहीं करता, भुजाओं से जन्मे लोगों की भुजाओं में लकवा लगा है, उन्होंने हजारों साल की गुलामी भोगी है, पेट से जन्मे वणिकों ने अपना पेट भरते भरते पूरे भारत के पेट पे ही लात मार दी और गरीबी का […]

टोपीवाला नंबर ‘2’ – अन्ना हज़ारे

एक नन्हीं कहानी – थोड़ी कविता की रंगत में  गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) वो अचानक से प्रकट हुआ कहने लगा इस देश का पेट ख़राब है भ्रष्टाचार के कीड़े हैं इसमें खोखला हो रहा है ये मेरे पास दवा है मेरे साथ आओ देश भक्त बनो देश भक्ति दिखाओ         सभी ने उसकी बात को     […]

मेरी कविता कड़वी कविता

Shailendra Ranga

  शैलेन्द्र रंगा (Shailender Ranga)   मेरी कविता कड़वी कविता  वो बात करे अधिकार की तेरी कविता मीठी कविता उसे आदत है सत्कार की    दर्द क्यों न हो  सदियों की है पीड़ा ये  हर वक़्त दिखाई देता  बस मनोरंजन और बस क्रीड़ा तुम क्यूँकर कहते धिक्कार की?

प्रिय लोकतंत्र बता अपनी भूख को हम कैसे मिटायें ?

sachin mali

जनकवि सचिन माली प्रिय लोकतंत्र बता  अपनी भूख को हम कैसे मिटायें ? भूख से बिलबिलाते एड़ियां घिसकर मरते लोगों का आक्रोश खाएँ ? या उनकी अंतिम विधि के लिए सूद से लिया कर्ज़ खाएँ ? आत्महत्या करने वाले किसानों की पेड़ों से टंगी लाशों का फ़ांस खाएँ ? या आत्महत्या करने के बाद मिलने वाला सरकारी पैकेज खाएँ ? […]