1857 की क्रांति में वाल्मीकि समाज का योगदान- पुस्तक समीक्षा

Deepak Mevati

वाल्मीकियों के अदम्य साहस की साक्षी पुस्तक – 1857 की क्रांति में वाल्मीकि समाज का योगदान दीपक मेवाती ‘वाल्मीकि’ (Deepak Mevati ‘Valmiki’) पुस्तक का नाम – 1857 की क्रांति में वाल्मीकि समाज का योगदान लेखक – डॉ.प्रवीन कुमार  कुल पृष्ठ  – 80 (अस्सी)  मूल्य – 60 (साथ रूपये)  प्रथम संस्करण  –  2019   प्रकाशक –  कदम प्रकाशन दिल्ली – 110086    जो […]

साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस: पुस्तक समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) किताब: साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस लेखक: विभूति नारायण राय प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबकैस तीसरा संस्करण: 2016, पेज: 165 मूल्य: 150₹ इस बात को साफ़-साफ़ समझ लें ‘दंगे’ साम्प्रदायिकता परिणाम होते हैं, साम्प्रदायिक मानसिकता का अंतिम फल होते हैं. सब से पहले आपके विचार हिंसक होते हैं फिर वह हिंसा आप के व्यवहार में आती है. यही […]

भारत का बहुजन आख़िर कब बोलेगा ? (गीत)

Surya Bali

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Surya Bali ‘Suraj Dhurve)   गहरी निद्रा से आँखे कब खोलेगा? भारत का बहुजन आख़िर कब बोलेगा ?   कब बोलेगा इन झूठी सरकारों पर ? कब  बोलेगा बिके हुए अख़बारों पर ? कब तक ओछी राजनीति को झेलेगा ? कब बोलेगा धरम के अत्याचारों पर ? बंद ज़ुबानो को अपनी कब खोलेगा? भारत […]

‘आर्टिकल 15’ : ‘समरसता’ के सहारे जाति के जाल में जोर-आजमाइश

arvind shesh

अरविंद शेष (Arvind Shesh) पिछले कुछ समय से लगातार यह मांग उठ रही थी कि अगर कोई सवर्ण पृष्ठभूमि का व्यक्ति जाति से अभिन्न समाज में बदलाव लाने की इच्छा रखता है तो उसे सबसे पहले ‘अपने समाज’ यानी अपने जाति-वर्ग को संबोधित करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि जाति का समूचा ढांचा न केवल उच्च कही जाने वाली […]

स्त्री ज़िन्दगी के पहलुओं की ‘तस्वीरें’- फिल्म समीक्षा

kamlesh

कमलेश (Kamlesh) तसवीरें युवा निर्देशक पावेल सिंह की पहली फिल्म है जो कि यूट्यूब पर हालही में रिलीज़ हुई है. निर्देशन के साथ ही पावेल ने फिल्म की पटकथा भी लिखी है. फिल्म की अवधि लगभग 47 मिनट की है. शुरुआती दौर में ही फिल्म इन्टरनेट दर्शकों का ध्यान खींच रही है. आईये बात करते हैं फिल्म के ज़रिये पटल […]

ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता की ‘लुक्का-छिपी’

Aarti Rani

आरती रानी प्रजापति (Aarti Rani Prajapati) माना जाता है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं, जैसा समाज वैसी फिल्म। बदलते समाज के साथ फिल्मों ने भी बदलना शुरू किया है। समाज में ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता दोनों ने रूप बदला है। इन दोनों को चुनौती देते दलित और महिला वर्ग उभरकर सामने आ रहे हैं। आज लड़कियां भी पढ़ रही […]

भारत के दलित मुसलमान- किताब समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) पुस्तक : भारत के दलित मुसलमान; खंड 1-2 लेखक : डॉक्टर अयूब राईन प्रकाशन :  खंड 1 हेरिटेज प्रकाशन, खंड-2 आखर प्रकाशन मूल्य  :  300 रु (प्रति खंड) Emai l:   draiyubrayeen@gmail.com मुस्लिम समाज में जात-पात की बात की जाती है तो इसे सिरे से नकारते हुए इक़बाल का कोई शेर सुना दिया जाता है या कुरआन […]

‘मुल्क’ फिल्म, अशराफ/सवर्ण राजनीति और पसमांदा दृष्टिकोण

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) आतंक से आतंकवाद का सफर लम्बा है. आदिकाल से मनुष्य आतंकित होता आ रहा है और आतंकित करता आ रहा है. मनुष्यों ने अपनी सत्ता को लेकर जो भी संस्था बनाई उसमे अक्सर आतंक को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया. धर्म में ईश्वर का आतंक, परिवार में पितृसत्ता का आतंक, राज्य में सर्वभौमिक्ता का आतंक […]

‘आनंदमठ’ उपन्यास, राजनीति और बहुजन

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) “पहले लोगों ने भीख मांगना शुरू किया, इसके बाद कौन भिक्षा देता है? उपवास शुरू हो गया। फिर जनता रोगाक्रांत होने लगी। गो, बैल, हल बेचे गए, बीज के लिए संचित अन्न खा गए, घर-बार बेचा, खेती-बाड़ी बेची। इसके बाद लोगों ने लड़कियां बेचना शुरू किया, फिर लड़के बेचे जाने लगे, इसके बाद गृहलक्षि्मयों का विक्रय […]

मेरे लोगों का अधिकार ही मेरा स्वार्थ है: काला

Ashok Namdev

  डॉ. अशोक नामदेव पळवेकर मानव समाज यह अनेक स्थितियों से विकसित होता आया है. विकास की इन विभिन्न अवस्थाओं में मानव के ‘भू-स्वामित्व’ का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण मायने रखता है. फिलहाल, पा. रंजित निर्देशित ‘काला’ फिल्म यह अनेकों के चर्चा का विषय है. फिल्म के शुरुवात में परदे पर जो विभिन्न पेंटिंग्स दिखाई देती हैं वे सभी मानव की […]