जहाँ कभी एक गाँव हुआ करता था…

वहीदा परवेज़ (Wahida Parveez) (1)इक ख्वाब के नक़्शे-कदम मैंने अपना पेट फुला हुआ महसूस किया ! दरअसलमैं हर चीज़ महसूस कर पा रही थी ! मैं अपने बचपन में थी नानी के गाँव वाले टूटे-फूटे रास्ते से चलते-कूदते मैंने पानी का टपकना महसूस कियामैं रोते-रोते घर पहुँचीमैंने सबसे कहा- वह बस आने वाला है !मैंने अपनी नाभि के नीचे उसे […]

मेरे हाथ में कलम है…

करुणा (Karuna) 1इतिहास हमारा छीन कर कब तक मौज मनाओगे वीर गाथा दबा कर हमारी शेर तो ना बन जाओगेधूर्त ही कहलाओगे मेरे हाथ में कलम है जो अब उसने चलना सीख लिया है इतिहास की परतें खोल रही हूँ मैंने खोजी होना सीख लिया है काफी कुछ तो ढूँढ लिया है बहुत कुछ मगर अभी है बाकि झूठी शानो-शौकत […]

भारतीय सिनेमा के पसमांदा सवाल

अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) एक लंबे दौर तक भारतीय सिनेमा जाति और जातिगत समस्याओं की न केवल अनदेखी करता रहा है बल्कि भीषण जातिगत वास्तविकताओं को अमीर बनाम गरीब (कम्युनिस्ट नज़रिये) की परत चढ़ा कर परोसता रहा है। दलित सिनेमा की कोशिशों से ये परत साल दर साल धूमिल पड़ती जा रही है और इस प्रयास में 2021 दलित सिनेमा […]

भारत के शहरी निजी क्षेत्र में जातिगत भेदभाव

प्रीति चंद्रकुमार पाटिल (Preeti Chandrakumar Patil) सुखदेव थोरात और कैथरीन न्यूमन ने अपने लेख ‘जाति और आर्थिक भेदभाव: कारण, परिणाम और उपाय’ (कास्ट एंड इकनोमिक डिस्क्रिमिनेशन: कॉसेस, काँसेकुएन्सेस एंड रेमेडीज) में सामाजिक बहिष्कार को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है जिसके द्वारा कुछ समूहों को सामाजिक सदस्यता निर्धारित करने वाली आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक संस्थाओं में प्रवेश […]

एक डी-वोटर का बेटा

(1) उनका देश है, चुपचाप रहो तुम्हारे चूल्हे पर हांडी भर भूख उबल रही हैदो चील बैठे हैं छत्त परतुम गरीब हो, तीन रुपए का चावल खाते होऔर तुम्हारा नेता तुम्हें समझाता हैउनका देश है, चुपचाप रहो उन्हें तुम नेता बनाते होजिससे वे दिल्ली जाते है, दिसपुर पहुँचते हैउन्हीं की काली गाड़ी के नीचे ख़त्म हो जाती हैतुम्हारी सस्ती जवानीतुम […]

मुझे प्यार करती, ऐ पर-जात लड़की…

(1) गैर विद्रोही कविता की तलाश मुझे गैर विद्रोहीकविता की तलाश हैताकि मुझे कोई दोस्तमिल सके।मैं अपनी सोच के नाखूनकाटना चाहता हूँताकि मुझे कोईदोस्त मिल सके।मैं और वहसदा के लिए घुलमिल जायें।पर कोई विषयगैर विद्रोही नहीं मिलताताकि मुझे कोई दोस्त मिल सके। (2) ये रास्तेधरती और मंगल के नहींजिन्हें राकेट नाप सकते हैंना ये रास्ते दिल्ली और मास्को या वाशिंगटन […]

जाति कहाँ नहीं? – एक स्त्री का परिपेक्ष्य

डॉ अमृतपाल कौर (Dr. Amritpal Kaur) परख हो यदि नज़र मेंतो कहाँ नहीं अस्त्तित्व जाति का स्त्री के पूर्ण समर्पण में,पुरुष की मर्दानगी के अंहकार में स्त्री की यौनि मेंपुरुष के लिंग में कन्या की योनिच्छद की पहरेदारी मेंकन्या के दान में बेटी पैदा होने के गम मेंबेटा पैदा होने की खुशी में लज्जित की गईं नन्ही बच्चियों कीअविकसित यौनियों […]

जातियों के झुण्ड; हिन्दू सभ्यता की ऊँची इमारत; दो कविताएँ

जातियों के झुण्ड निकल चुके हैंजातियों के झुण्डअपनी पीठ पर उठायेवर्णाश्रम का बोझजो उठाये जा रहे सदियों से बोझ जो सदियों से थोपे गयेब्राह्मणों के द्वाराखेत की पगडंडियों से लेकरगांव की गलियों तकसड़कों से लेकर हाईवे के सन्नाटों तकये चले जा रहे। इन जातियों के झुंडों ने बनाई है इमारतेंउगाई हैं फसलें, भरे हैं पेट परजीवियों के सहे हैं मार, […]

क्या ब्राह्मण हिट-एंड-रन करते हैं?!

कुफिर (Kuffir) क्या ब्राह्मण अपनी गाड़ी से किसी को उड़ा कर वहाँ से भाग जाते हैं? मतलब: क्या ब्राह्मण मोटर दुर्घटना का कारण बनते हैं और भाग जाते हैं? हालिया की दो घटनाएं कहती हैं कि वे ऐसा करते हैं। पहली घटना एक फिल्म की है, जो कि एक कल्पना की दुनिया वाला काम है; दूसरी है एक वास्तविक घटना […]

जाति आधारित हिंसा और स्वतंत्रता का अमृत

डॉ शीतल दिनकर आशा कांबले (Dr. Sheetal Dinkar Asha Kamble) मैं आज बहुत परेशान हूँ। देश में अमृत महोत्सव चल रहा है। देश को आज़ाद हुए 75 साल हो चुके हैं। लेकिन क्या जाति व्यवस्था खत्म हो गई है? यह कार्य अभी अधूरा पड़ा है। राजस्थान के जालोर जिले में स्वतंत्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर एक बर्तन से […]