फर्जी एकता की अशराफिया डुगडुगी बनाम पसमांदा सवाल

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) पिछले साल बुलंदशहर में इस्लामी धार्मिक महासम्मेलन के लिए करोड़ों मुसलमान एकत्रित हो गए. इससे एक बात तो साबित होती है कि मुस्लिम समाज पर आज भी उलेमाओं की पकड़ मज़बूत है, जिनकी तक़रीर को सुनने के लिए 1 करोड़ लोग भी आ सकते हैं पर अब दूसरा और ज़रूरी सवाल यह किया जाए कि इस […]

सर सैयद अहमद खान: रहनुमा, अपना रहनुमा न हुआ

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) कल रात अलीगढ़ से मेरी एक बहन का कॉल आया. वह अलीगढ़ से पीएचडी कर रही है. वह मुझसे बहुत नाराज़ थी कि मै ‘सर सैयद अहमद खान’ के खिलाफ क्यों लिख रहा हूँ? मैंने स्पष्ट करते हुए अपना पक्ष रखा कि मैं विरोध नहीं कर रहा बल्कि वही लिख रहा हूँ जिसे सर सैयद ने […]

कश्मीर में जातिवाद: मेरा अवलोकन एवं अनुभव

Mudassir Ali Lone

मुदासिर अली लोन (Mudasir Ali Lone) जब भी कोई कश्मीर में जातिवाद की बात करता है तो हम अक्सर “नही” में अपना सिर हिलाते हैं। अगर आप डरावनी कहानियाँ सुनने के मूड में हैं तो आप कश्मीर में ग्रिस्त (खेती बाड़ी करने वाले) जाति के लोगों से मिलें और उनसे पूछें कि मल्ला/पीर/सैयद (उच्व जाति) उनके साथ कैसा बर्ताव करतें […]

हाशिए के समाज और पहचान का संकट

faqir

जय प्रकाश फ़ाकिर (Jay Prakash Faqir) [प्रस्तुत आलेख जय प्रकाश फ़ाकिर द्वारा उपरोक्त विषय पर दिए गए व्याख्यान का हिस्सा है, जो उन्होंने DEMOcracy द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिया था. इस व्याख्यान का विडियो लिंक आखिर में दिया गया है] मैं #DEMOcracy का शुक्रगुज़ार हूँ जिसने मुझे इस विषय पर बोलने का मौक़ा दिया. किसी भी बात को रखने के दो […]

सैयदवाद ही इबलीसवाद है?

Nurun N Zia Momin

  एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) इस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पसमांदा आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्तियों, पसमांदा संगठनो के पदाधिकारियों तथा समर्थकों द्वारा इबलीसवाद, इबलीसवादी तथा इबलीसी जैसे शब्दों का प्रयोग अक्सर अपने लेखों, भाषणों, फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल साइटों पर अपनी पोस्टों तथा बहस के दौरान अपनी टिप्पणियों में किया जाता है […]

शोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?

shafi

शफ़ीउल्लाह अनीस (Shafiullah Anis) आम बातचीत में अगर आप किसी को बताएं कि आप जुलाहा या रंगरेज़ हैं, या पठान या सय्यद हैं तो इस बातचीत को रोज़मर्रा की बातों में ही शुमार किया जाता है. वहीँ दूसरी तरफ जैसे ही आप खुद को पसमांदा या सामने वाले को अशराफ कह कर मुखातिब होते हैं, आप पर एक इल्ज़ाम लगा […]

सैयद व आले रसूल शब्द – सत्यता व मिथक

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में “सैयद व आले रसूल” शब्द का प्रयोग […]

मुस्लिम समाज में ऊँच-नीच की सत्यता

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) ‘वह झूठ नंगी सड़क पर उठाते फिरता है, मैं अपने सच को छिपाऊँ ये बेबसी मेरी’ कुछ लोग बड़े दावे से कहते है कि भारतीय मुसलमानों में व्याप्त ज़ात-पात/ ऊँच-नीच की बीमारी दूसरे शब्दों में किसी को हसब-नसब (वंश) की बिनाह पर आला (श्रेष्ठ), अदना (नीच/छोटा) समझने की विचारधारा की वजह […]

सवर्ण मुसलमानों के लिए फिक्रमंद सर सयेद अहमद ख़ाँ

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Nurulain Zia Momin) इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. […]

वो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते

पसमांदा-बहुजन आन्दोलन के सिपाही मुर्तुज़ा अंसारी जी को याद करते हुए फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) बस अब गोरखपुर शहर में दाखिल हो चुकी थी. धीरे धीरे रेंगती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ रही थी. मैं मीटिंग में जल्द से जल्द पहुंचना चाह रहा था. गोरखपुर मेरे लिए अंजाना था और मैं गोरखपुर के लिए बिल्कुल नया. लेकिन मेरे […]