आज की स्त्री, कहाँ दबी कुचली है?

  मैं पत्रकारिता की छात्रा रही हूँ| कायदे से कहूँ तो डिग्रीधारी पत्रकार हूँ , जिसने कई पत्रकारिता संस्थानों में अपने डिग्री और लेखन के बल पर कार्य भी किया है | लेकिन हर जगह नौकरी छोड़नी पड़ी । कहीं पर जातिगत मान्यताओं के चलते तो कहीं अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करने के चलते, इनमें से कई जगहें ऐसी भी […]

बाबरी से दादरी तक

श्वेता यादव (Sweta Yadav) आज़ाद भारत जी हाँ आज़ाद भारत! सिर्फ आज़ाद ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश। लोकतंत्र का जश्न मानते हुए भारत के नागरिकों को लगभग 68 वर्ष गुजर चुके हैं लेकिन आज भी कुछ सवाल जस का तस हमारे सामने मुह बाए खड़े है। समानता का अधिकार देता हमारा संविधान यह सुनिश्चित करता है […]