‘कंडीशंस अप्लाई’ हिंदी काव्य संग्रह का लोकार्पण 29 सितम्बर (4:00pm – 8:00pm, Auditorium, SSS-I, JNU) को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में
गुरिंदर आज़ाद कवि और दलित एक्टिविस्ट हैं। उनके लेखे डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण, पत्रकारिता, सामाजिक विषय लेखन जैसे अन्य काम भी हैं। बठिंडा के एक मार्क्सवादी परिवार में जन्में। तज़ुर्बों की खाक़ छानते छानते अंबेडकरवादी हो गए। पिछले कई बरसों से दिल्ली में हैं और उच्च शिक्षा में दलित और आदिवासी छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़ काम करते रहे हैं।
दलित आदिवासी नौजवानों के शैक्षणिक संस्थानों में जातीय उत्पीड़न से तंग आ कर ख़ुदकुशी करने के मसले पर ‘डेथ ऑफ़ मेरिट कैंपेन’ का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे l
शब्दों से पुराना रिश्ता है। पंजाबी में अल्हड़ उम्र में लिखना शुरू किया, फिर हिंदी और अंग्रेज़ी में भी। उनकी शायरी में दलित आंदोलन के रंग और निजी ज़िन्दगी के संघर्ष को देखा जा सकता है। अच्छी बात ये है की उनकी शायरी किसी यूटोपिया को संबोधित नहीं होती बल्कि यथार्थ को संजोती हुई ज़िन्दगी ज़ेहन में ज़िन्दगी के अर्थों के साथ फ़ैल जाती है। खरा खरा लिखते हैं। कड़क और कई बार चुभने वाला
गुरिंदर उन कवियों में हैं जो विषय की तलाश नहीं करते ना ही कविता की तलाश में पन्ने ज़ाया करते हैं। ये चीज़ें खुद उनके पास चल के आती हैं।
एक कवि के रूप में उनका पहला काव्य संग्रह ‘कंडीशंस अप्लाई’ लोकार्पण के लिए तैयार है। 29 सितम्बर यानि कल सोमवार को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शाम 4 बजे ‘साहित्य संवाद और युवा छात्र संगठन ‘यू. डी. एस. एफ.’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘कंडीशंस अप्लाई’ का लोकार्पण है और साथ ही में ‘दलित कविता में आज का युवा स्वर’ विषय पर चर्चा भी है।
कंडीशंस अप्लाई का ब्लर्ब प्रख्यात कवि मंगलेश डबराल ने लिखा है। साहित्य संवाद द्वारा प्रकाशित ये पहली किताब है जिसकी कीमत मात्र 60 रुपये है।
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गुरिंदर आज़ाद युवा दलित कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका पहला ही कविता संग्रह ‘कंडीशंस अप्लाई’ अपने तीखे तेवर और अदभुत रचनात्मक मौलिकता के साथ हम सबके सामने आया है। गुरिंदर आज़ाद कवि होने के साथ एक झुझारू और सक्रिय सामाजिक कार्यकनकर्ता भी हैं। उनके झुझारूपन की छाप उनके कविता संग्रह में पूरी तरह दिखाई देती है. गुरिंदर आज़ाद का काव्य संग्रह सिद्ध करता है कि अब दलित कविता अपने दूसरे पड़ाव पर पहुँच गई है, जहाँ बेचारगी संत्रास, दुख, निराशा की जगह इस जातिवादी सामंतवादी समाज और उसके द्वारा रचे गए दुश्चक्र में हो रहे अन्याय उत्पीड़न शोषण और वंचना के खिलाफ सशक्त क्रोध है, सम्पूर्ण बदलाव करने की पीड़ा और लालसा है, संघर्ष की जीवटता है.
गुरिंदर आज़ाद की कविताएं समाज में वंचित शोषित दलित पीड़ित वर्ग के साथ हो रहे अन्याय भेदभाव के खिलाफ अपना जबर्दस्त विरोध प्रकट करते हुए संगठित रुप से आमजन दलितजन बहुजन को लामबद्ध होकर लड़ने की प्रेरणा देती है. वे अपनी कविताओं को जातीय और वर्गीय लडाई के सशक्त हथियार के रुप में इस्तेमाल करते हुए दलितों पर थोपी गई तमाम तरह की वर्जनाएं और कंडीशंस तोडने की भरपूर कोशिश करते है। गुरिंदर आज़ाद की कविताएं शोषित वंचित दलित समाज के पक्ष में खडी होकर उनके अधिकारों की लड़ाई में शामिल होना चाहती है।
~ अनिता भारती, लेखिका, कवि, आलोचक, दिल्ली
गुरिंदर आज़ाद की कविताएँ एक नई सोंधी और तीखी सी महक लिए हुए गमक रही हैं। इन कविताओं का ठेठ पंजाबीपन हिन्दी दलित कविता में एक और नया आयाम जोड़ता है। यह कविता – संग्रह दलित आंदोलन को विस्तार प्रदान करता है। और इस बात का भी पता देता है कि आज का दलित युवा क्या सोच रहा है! समाज के विविध पक्षों में व्याप्त बहुस्तरीय षडयंत्र कवि को बेचैन किए हुए है। बुद्ध, फुले, अम्बेडकर की वैचारिक त्रिशरणी के साथ भावनाओं का सांद्र तनाव कविताओं में सहज ही अनुभव किया जा सकता है। गुरिन्दर आजाद को उनके पहले काव्य संग्रह के लिए बधाई और असीम मंगल कामनाएँ !
~ प्रो़ हेमलता महिश्वर, हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
गुरिंदर आज़ाद समकालीन उस युवा कविता का प्रतिनिधि चेहरा है,जिसकी कविता के भीतर सरोकार के साथ संघर्ष की एक सशक्त आवाज बुलंद होती है. कविताएं दलित युवा के स्वप्न और हकिकत को बयाँ कर एक मुकम्मल भविश्याकांक्षी है,जो जानता है इस समाज का विद्रूप चेहरा… फिर भी उम्मीद से खड़ा है कि उसे अपने समाज की फ़िक्र है।
~ कैलाश वानखेड़े, कहानीकार, कवि
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