विद्यासागर (Vidyasagar) मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँमैं कवि हूँ अपने चमारटोली काजिसकी दुर्गन्धता में तुम्हें नरक का आभास होता हैलेकिन मुझे उसमे समानता का स्वर्ग प्रतीत होता है। मैं कवि हूँ उन लाखों लोहारों काजिनकी निहाई पर बरसते हथौड़ों की आवाज़ मुझे तुम्हारे मंदिरों में चीखते घंटों से ज्यादा मधुर लगती हैं। मैं कवि हूँ उन लाखों डोमों काजिनकी छाया […]
पानी की लड़की और नीला रंग (कविताएँ)
उमा सैनी (Uma Saini) पानी की लड़की और नीला रंग माँ !तुम्हारे आँसुओं के समन्दर से बनीमैं पानी की लड़कीजो हर छोटे दुख पर भीग जाया करती हूँ।वर्षों तक तुमने जो विष पियाउसके नीले थक्के जब तुम्हारी देह पर देखे मैंनेतब जाना की क्यों नीला होता है समन्दर !तुम्हारी देह के नीले थक्के मुझे अपनी देह परक्यों महसूस होते हैं?क्या […]
दलित स्त्रियाँ कहाँ प्यार करती हैं ?
रचना गौतम (Rachna Gautam) 1. ओ री सखी ! ओ री सखी !जब ढूँढते-ढूँढते पा जाओ शोरिले से अक्षरों में मगरूर वो चार पन्ने और पढ़कर समझ आ जाएगणित तुम्हें इस दुनिया का तो हैरान न होना बेताब न होना धीरज धरना शुन्यता के खगोल में कहीं मूक न हो जाएँतुम्हारी मास्पेशियों का बल जीवन-चालस्वप्न तुम्हारे बौद्ध तुम्हारा ! बौरा […]
जहाँ कभी एक गाँव हुआ करता था…
वहीदा परवेज़ (Wahida Parveez) (1)इक ख्वाब के नक़्शे-कदम मैंने अपना पेट फुला हुआ महसूस किया ! दरअसलमैं हर चीज़ महसूस कर पा रही थी ! मैं अपने बचपन में थी नानी के गाँव वाले टूटे-फूटे रास्ते से चलते-कूदते मैंने पानी का टपकना महसूस कियामैं रोते-रोते घर पहुँचीमैंने सबसे कहा- वह बस आने वाला है !मैंने अपनी नाभि के नीचे उसे […]
मेरे हाथ में कलम है…
करुणा (Karuna) 1इतिहास हमारा छीन कर कब तक मौज मनाओगे वीर गाथा दबा कर हमारी शेर तो ना बन जाओगेधूर्त ही कहलाओगे मेरे हाथ में कलम है जो अब उसने चलना सीख लिया है इतिहास की परतें खोल रही हूँ मैंने खोजी होना सीख लिया है काफी कुछ तो ढूँढ लिया है बहुत कुछ मगर अभी है बाकि झूठी शानो-शौकत […]
एक डी-वोटर का बेटा
(1) उनका देश है, चुपचाप रहो तुम्हारे चूल्हे पर हांडी भर भूख उबल रही हैदो चील बैठे हैं छत्त परतुम गरीब हो, तीन रुपए का चावल खाते होऔर तुम्हारा नेता तुम्हें समझाता हैउनका देश है, चुपचाप रहो उन्हें तुम नेता बनाते होजिससे वे दिल्ली जाते है, दिसपुर पहुँचते हैउन्हीं की काली गाड़ी के नीचे ख़त्म हो जाती हैतुम्हारी सस्ती जवानीतुम […]
मुझे प्यार करती, ऐ पर-जात लड़की…
(1) गैर विद्रोही कविता की तलाश मुझे गैर विद्रोहीकविता की तलाश हैताकि मुझे कोई दोस्तमिल सके।मैं अपनी सोच के नाखूनकाटना चाहता हूँताकि मुझे कोईदोस्त मिल सके।मैं और वहसदा के लिए घुलमिल जायें।पर कोई विषयगैर विद्रोही नहीं मिलताताकि मुझे कोई दोस्त मिल सके। (2) ये रास्तेधरती और मंगल के नहींजिन्हें राकेट नाप सकते हैंना ये रास्ते दिल्ली और मास्को या वाशिंगटन […]
जाति कहाँ नहीं? – एक स्त्री का परिपेक्ष्य
डॉ अमृतपाल कौर (Dr. Amritpal Kaur) परख हो यदि नज़र मेंतो कहाँ नहीं अस्त्तित्व जाति का स्त्री के पूर्ण समर्पण में,पुरुष की मर्दानगी के अंहकार में स्त्री की यौनि मेंपुरुष के लिंग में कन्या की योनिच्छद की पहरेदारी मेंकन्या के दान में बेटी पैदा होने के गम मेंबेटा पैदा होने की खुशी में लज्जित की गईं नन्ही बच्चियों कीअविकसित यौनियों […]
जातियों के झुण्ड; हिन्दू सभ्यता की ऊँची इमारत; दो कविताएँ
जातियों के झुण्ड निकल चुके हैंजातियों के झुण्डअपनी पीठ पर उठायेवर्णाश्रम का बोझजो उठाये जा रहे सदियों से बोझ जो सदियों से थोपे गयेब्राह्मणों के द्वाराखेत की पगडंडियों से लेकरगांव की गलियों तकसड़कों से लेकर हाईवे के सन्नाटों तकये चले जा रहे। इन जातियों के झुंडों ने बनाई है इमारतेंउगाई हैं फसलें, भरे हैं पेट परजीवियों के सहे हैं मार, […]
मेरे प्यारे बच्चे, हमें कभी माफ मत करना!
ऋतु ‘यायावर’ (Ritu ‘Yayawar) तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी थी कि तुमने अपनी प्यास बुझाने के लिएउनके मटके को छू लिया था खुद को ‘ऊंचा’ कहने-समझने वाले धूर्त और पाखण्डियों केमटके को छू लिया थातुम इतने मासूम थे कि नहीं समझ पाए कि यहां पानी की भी जात होती है! पर तुम्हारे असली गुनहगार तो हम हैंकि हम सब ने अपनी- […]