
(1) उनका देश है, चुपचाप रहो
तुम्हारे चूल्हे पर हांडी भर भूख उबल रही है
दो चील बैठे हैं छत्त पर
तुम गरीब हो, तीन रुपए का चावल खाते हो
और तुम्हारा नेता तुम्हें समझाता है
उनका देश है, चुपचाप रहो
उन्हें तुम नेता बनाते हो
जिससे वे दिल्ली जाते है, दिसपुर पहुँचते है
उन्हीं की काली गाड़ी के नीचे ख़त्म हो जाती है
तुम्हारी सस्ती जवानी
तुम फिर भी भड़कना मत
उनका देश है, चुपचाप रहो
घर में तुम्हारे नोटिस आया
कमर कसके कितना दौड़े कोर्ट-कचहरी
जायदाद बेच कर ही छुटकारा मिला
अब कभी ईटानगर
कभी दीमापुर
कभी सीमापुर भटकते रहते हैं
किन्हें दिखाओगे तुम अपने कागजात?
उनका देश है, चुपचाप रहो
तुम्हें फिर भी कोई शिकायत नहीं है
तुम्हारे प्रश्नों को कब्र में रखवा दिया गया है
तुम्हारे सीने पर हैं गोली के निशान
और वो कहते है इसे कटे तार का
उनका देश है, चुपचाप रहो!
(2) एक डी-वोटर का बेटा
एक डी-वोटर का बेटा
ज़्यादा से ज़्यादा एक कविता लिख सकता है
या फिर खूब गुस्से में कह सकता है
ये देश मेरा है, मैं इस देश का नहीं!
एक डी-वोटर का बेटा
ज़्यादा से ज़्यादा
आन्दोलनों में हिस्सा लेकर
गोली खाकर मर सकता है
या मरने के डर से
जूता-चप्पल छोड़ के भाग सकता है
उससे ज्यादा एक डी-वोटर का बेटा
मुक्ति पाने के अंधे नशे में
जंगलों में जा सकता है
राजभवन के सामने जाकर
चिल्ला-चिल्ला कर गला फाड़ने के अलावा
एक डी-वोटर का बेटा क्या कर सकता है?
वैधता के सारे कागज़ात
राष्ट्र के मुँह पर फेंकने के अलावा
एक डी-वोटर का बेटा
सिर्फ एक कविता लिख सकता है!
इससे ज़्यादा तो शहीदों के बेटे
देश को दो टुकड़ो में बाँट सकते है
जो एक डी-वोटर का बेटा नहीं कर सकता!
(3) कब्र खोद के
कब्र खोद के मैं अपने
पूर्वजन्म का ‘फॉसिल’ निकाल लाया
देखा दो-सौ वर्षों की गुलामी से
मेरी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई है
मेरे सीने में भीगी मिट्टी की गंध
हाथ की मुठ्ठी में हल का अवशेष
कब्र खोद के मैं ले आता हूँ
अपना अंधकार
अतीत!
देखी सबकी
एक-एक यात्रा का इतिहास है
सर झुकाए भूखे लोग जुलूस में चल रहे हैं
सबकी एक ही कहानी है
बहकर जाने की
कब्र खोदने पर मुझे एक खून की नदी मिलती है
देखा
अथाह पानी में मेरी गोलियों से भरी लाश तैर रही है
कब्र खोदने पर
आग है या कुछ और मुझे नहीं पता
बस एक लाल उत्तेजना दिखती है!
कब्र खोदकर मैं खुद अपनी लाश कंधे पे लिए
पहुँच जाता हूँ कब्रिस्तान
वे मुझे शहीद घोषित करें या न करें
यह ज़मीन बिकने से पहले
यह हवा ख़त्म होने से पहले
यह नदी ज़हरीली होने से पहले
एक बार, बस एक बार
मैं घमासान युद्ध में ध्वस्त हो जाना चाहता हूँ
(4) क्या है इस कविता में
क्या है इस कविता में
जवानों के खून के निशानों के अलावा
क्या है इस कविता में
उत्पीड़ित युवती की चीखों के अलावा
तुम आओ
कुदाल चलाओ इस कविता के सीने पर
देखो, हर वर्ण में मिलेगी जलती हुई आग
देखो, हवाओं में बारुदों की गंध है
धूल मिट्टी से अंधकारमय है आकाश
क्या है इस कविता में
गोलियों की आवाज़ के अलावा
गोपनीय इश्तिहार में मिले
नई सुबह के स्वप्न के अलावा
क्या है इस कविता में
तुम आओ
हाथ में लेकर देखो एक शब्द
पंक्ति के भीतर सोया हुआ है
एक मृत महादेश देखों
हर गाँव में ज़िन्दा लाशों के घर-बार है
क्या है इस कविता में
हर नारे में ज्वलंत राजपथ के अलावा
दो बिंदु भरोसे के अलावा
क्या है इस कविता में!
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काज़ी नील एक मिया भाषा के चर्चित कवि हैं. वे असाम के बारपेटा जिले के ज्योति गाँव से आते हैं. उनकी कविता समकालीन राजनीति से मुखातिब होती हुई मिया समुदाय की परिस्थितियों के रूबरू करवाती है.
मूलतः मिया भाषा में लिखी कविताओं का अनुवाद वहीदा परवेज़ ने किया है.