
डॉ अमृतपाल कौर (Dr. Amritpal Kaur)
परख हो यदि नज़र में
तो कहाँ नहीं अस्त्तित्व जाति का
स्त्री के पूर्ण समर्पण में,
पुरुष की मर्दानगी के अंहकार में
स्त्री की यौनि में
पुरुष के लिंग में
कन्या की योनिच्छद की पहरेदारी में
कन्या के दान में
बेटी पैदा होने के गम में
बेटा पैदा होने की खुशी में
लज्जित की गईं नन्ही बच्चियों की
अविकसित यौनियों में
मां के दूध में
कमर पर बांधे नवजात शिशु की मां के
फिर से निकले पेट में
उसके सर पर लाधे ईंटों के भार में
ठेकेदार की लल्चाई नज़रों में
अस्मिता को ढांकती आँचल की टाकियों में,
इस तुच्छता को झेलने की बेबसी में
सभ्यता के कूड़े को समेटती बोरियों में
यह बोरियां ढोते हाथ, कमर, नंगे पैरों में
सुबह सुबह सड़क से आती झाड़ू की आवाज़ में
सड़क की गन्दगी के एकत्रित किए ढेर में
मिला होता है जिसमें अक्सर
मलमूत्र जानवरों का
इस गंदगी को ढोते हाथों में
घरों की नींव रखने वाली ईंटों में
ईंट लगाने वाले हाथों में
गटर की सफ़ाई में घुटी अनगिनत सांसों में,
जिन्हें निगल गई सभ्यता की गंदी विचारधारा
पानी में, रोटी में
मटके में, कुँएं में
बर्तनों में
कुर्सी और ज़मीन के फ़र्क में
घोड़ी चढ़ने की हिम्मत में
हाथों में, हथियारों में
संगीत में, संस्कारों में
बोली में, पहरावे में
वैचारिक भ्रष्टाचार में
पुरोहित की तोंद में
उसकी तिजोरी की चाबी में
नहीं मिली जाति तो सिर्फ़
बुद्ध के विचार- व्यवहार में
जिनकी विशालता की शरण में
सम्मिलित हो कर हर विभाजन
बह निकलता है बनकर
समंदर मानवता का
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डॉ अमृतपाल कौर एक लेखक हैं व् पेशे से एक ‘ओरल और डेंटल सर्जन’ (oral and dental surgeon) हैं जो कि जालंधर (पंजाब) में प्रैक्टिस कर रही हैं.
तस्वीर साभार: इन्टरनेट दुनिया