मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ…

Vidyasagar

विद्यासागर (Vidyasagar) मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँमैं कवि हूँ अपने चमारटोली काजिसकी दुर्गन्धता में तुम्हें नरक का आभास होता हैलेकिन मुझे उसमे समानता का स्वर्ग प्रतीत होता है। मैं कवि हूँ उन लाखों लोहारों काजिनकी निहाई पर बरसते हथौड़ों की आवाज़ मुझे तुम्हारे मंदिरों में चीखते घंटों से ज्यादा मधुर लगती हैं। मैं कवि हूँ उन लाखों डोमों काजिनकी छाया […]

कवि कृष्णचंद्र रोहणा की रचनाओं में सामाजिक न्याय एवं जाति विमर्श

Deepak Mevati

डॉ. दीपक मेवाती (Dr. Deepak Mewati) सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मानव के विकास में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय की अवधारणा का अर्थ भारतीय समाज […]

पानी की लड़की और नीला रंग (कविताएँ)

उमा सैनी (Uma Saini) पानी की लड़की और नीला रंग माँ !तुम्हारे आँसुओं के समन्दर से बनीमैं पानी की लड़कीजो हर छोटे दुख पर भीग जाया करती हूँ।वर्षों तक तुमने जो विष पियाउसके नीले थक्के जब तुम्हारी देह पर देखे मैंनेतब जाना की क्यों नीला होता है समन्दर !तुम्हारी देह के नीले थक्के मुझे अपनी देह परक्यों महसूस होते हैं?क्या […]

मेरे हाथ में कलम है…

करुणा (Karuna) 1इतिहास हमारा छीन कर कब तक मौज मनाओगे वीर गाथा दबा कर हमारी शेर तो ना बन जाओगेधूर्त ही कहलाओगे मेरे हाथ में कलम है जो अब उसने चलना सीख लिया है इतिहास की परतें खोल रही हूँ मैंने खोजी होना सीख लिया है काफी कुछ तो ढूँढ लिया है बहुत कुछ मगर अभी है बाकि झूठी शानो-शौकत […]

मुझे प्यार करती, ऐ पर-जात लड़की…

(1) गैर विद्रोही कविता की तलाश मुझे गैर विद्रोहीकविता की तलाश हैताकि मुझे कोई दोस्तमिल सके।मैं अपनी सोच के नाखूनकाटना चाहता हूँताकि मुझे कोईदोस्त मिल सके।मैं और वहसदा के लिए घुलमिल जायें।पर कोई विषयगैर विद्रोही नहीं मिलताताकि मुझे कोई दोस्त मिल सके। (2) ये रास्तेधरती और मंगल के नहींजिन्हें राकेट नाप सकते हैंना ये रास्ते दिल्ली और मास्को या वाशिंगटन […]

मेरे प्यारे बच्चे, हमें कभी माफ मत करना!

ritu singh

ऋतु ‘यायावर’ (Ritu ‘Yayawar) तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी थी कि तुमने अपनी प्यास बुझाने के लिएउनके मटके को छू लिया था खुद को ‘ऊंचा’ कहने-समझने वाले धूर्त और पाखण्डियों केमटके को छू लिया थातुम इतने मासूम थे कि नहीं समझ पाए कि यहां पानी की भी जात होती है! पर तुम्हारे असली गुनहगार तो हम हैंकि हम सब ने अपनी- […]

ब्राह्मण का एकेडेमिया (कविता)

(ओम प्रकाश वाल्मीकि जी की कविता ‘चूल्हा मिटटी का’ के बहाव व् अंदाज़ से प्रेरित एक कविता)विकास कुमार (Vikash Kumar)शिक्षक यूनिवर्सिटी कायूनिवर्सिटी सरकार कीसरकार ब्राह्मण कीपढ़ाई किताब कीकिताब लेखक कीलेखक प्रकाशक काप्रकाशक ब्राह्मण काशोधार्थी ब्राह्मण कामंच ब्राह्मण काइतिहास के पन्नों में जीवनी अपनीव्याख्या ब्राह्मण कीस्कूल ब्राह्मण कायूनिवर्सिटी ब्राह्मण कीप्रोफेसर ब्राह्मण कासीट-पोस्ट-कोर्ट ब्राह्मण काफ़िर अपना क्या?विद्यालय?महाविद्यालय?विश्वविद्यालय?~~~विकास कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक […]

घेटोअ गॉस्पेल (Ghetto Gospel)

Rahul Sonpimple

राहुल सोनपिंपले (Rahul Sonpimple)   पुल की दायीं तरफ नयी रंगीन बीस मंजिला ईमारत बनी थी रात को आसमान के तारे ईमारत पे उतर आते थे बिल्डर ने पारधियों की झोंपड़ियाँ हटाके, सिर्फ ज़मीन ही थोड़ी ना खरीदी थी! हमारे बस्ती के किनारे लगे रिंग रोड पे चढ़के देखना सरकार ने बिल्डर को पूरा आसमां बेच दिया था श्याम होते […]

अछूतों की बस्ती

Rahul Sonpimple

राहुल सोनपिंपले (Rahul Sonpimple)   बीफ की दो बोटियाँ तोड़ के आधा गीला शरीर घर के उस कोने की तपी दिवार पे रख के बीड़ी के दो कश लगाना सुकून भरा तो रहा होगा हम्म हम्म करते हुए बच्चों की बस आधी बात सुनके हर रोज़ गहरी नींद में डूब जाना आदत थी? या उन् निक्कमे साइकिल रिक्शा के दो […]