
ऋतु ‘यायावर’ (Ritu ‘Yayawar)
तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी थी कि
तुमने अपनी प्यास बुझाने के लिए
उनके मटके को छू लिया था
खुद को ‘ऊंचा’ कहने-समझने वाले
धूर्त और पाखण्डियों के
मटके को छू लिया था
तुम इतने मासूम थे कि नहीं समझ पाए
कि यहां पानी की भी जात होती है!
पर तुम्हारे असली गुनहगार तो हम हैं
कि हम सब ने अपनी- अपनी अलग
दुनिया बना ली
कि इतनी सदियों बाद भी हम तुम्हें
बराबरी का समाज नहीं दे सके
कि हमने खुद गुलामी में जीना कबूल कर लिया
कि हमने मंदिरो में घंटियां बजाने में वक्त गुज़ार दिया
अपनी सुबह-शाम, खाना-पीना
और जीना भी
किसी धूर्त और बेईमान ‘श्रेष्ठ’ जात वाले के
इशारों पर तय करते रहे
और इस तरह खुद भी मानसिक गुलाम बन बैठे
कि हम उस बुद्ध को भूल गए
जिसने तुम्हारे-हमारे लिए बराबरी की पहली लड़ाई लड़ी थी
हम ज्योतिबा को भूल गए
माता सवित्रीबाई को भूल गए
बाबा साहेब, पेरियार, कांशीराम को भूल गए
उनके विचारो को भूल गए
उनकी विरासत को भूल गए
उनके संघर्षों को भूल गए
जिनके संघर्षों से हम
एक-एक कदम आगे बढ़े
उन्हीं को भूल गए
कि या तो हम बेहद अनजान निकले
या फिर हम बेहद स्वार्थी निकले
हमने याद किए बस
गूंगे-बहरे देवी देवता
और इस तरह हम फंस गए
पानी की जात तय करने वालों की चाल में
माथे टेक दिए उन्हीं गूंगे-बहरे
देवी-देवताओं के आगे
जो हमें या तुम्हें बचाने
न सदियों पहले आए थे और न आज आए
और न कभी आएंगे
इस तरह हम खुद भी
तुम्हारे हत्यारे बन बैठे
और इसीलिए न जाने कितने इंद्र मेघवाल मारे जा रहे हैं
द्रोणाचार्य बचाए जा रहे हैं!
मेरे प्यारे बच्चे
हमें कभी माफ मत करना ।
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रितु यायावर एक शिक्षिका व् लेखिका हैं.