जातियों के झुण्ड; हिन्दू सभ्यता की ऊँची इमारत; दो कविताएँ

जातियों के झुण्ड निकल चुके हैंजातियों के झुण्डअपनी पीठ पर उठायेवर्णाश्रम का बोझजो उठाये जा रहे सदियों से बोझ जो सदियों से थोपे गयेब्राह्मणों के द्वाराखेत की पगडंडियों से लेकरगांव की गलियों तकसड़कों से लेकर हाईवे के सन्नाटों तकये चले जा रहे। इन जातियों के झुंडों ने बनाई है इमारतेंउगाई हैं फसलें, भरे हैं पेट परजीवियों के सहे हैं मार, […]