0 0
Read Time:9 Minute, 14 Second

(कृष्ण की लोक लुभावन छवि का पुनर्पाठ!)

मानुषी

आखिर ये मिथकीय कहानियां किस तरह की परवरिश और शिक्षा देती हैं, जहां पुरुषों को सारे अधिकार हैं, चाहे वह स्त्री को अपमानित करे या दंडित, उसे स्त्री पलट कर कुछ नहीं कहती। फिर आज हम रोना रोते हैं कि हमारे बच्चे इतने हिंसक और कुंठित क्यों हो रहे हैं। सारा दोष हम इंटरनेट और टेलीविजन को देकर मुक्त होना चाहते हैं। जबकि स्त्री के खिलाफ भेदभाव की जो शिक्षा हमारे धर्मग्रंथों में भरी पड़ी हैं, हमारा कभी भी उस ओर ध्यान नहीं जाता है। अगर कभी जाता भी है तो हम उस पर सवाल उठाने का साहस कभी नहीं करते। हमारे यहां आदर्श उन स्त्रियों को कहा गया है जो बिना उफ्फ किए सारी दुख-तकलीफ को बर्दाश्त कर जाएं।

कृष्ण की लोक-लुभावन छवि पर पुरुष तो क्या, स्त्रियां भी कम नहीं मर मिटी हैं। लेकिन बात करते हैं कृष्ण की उस छवि की, जो कुछ और भी बयान करती है । कृष्ण के चरित्र में जो दोष दिखाई देते हैं, अगर उनको धर्म का हवाला देकर सही नहीं ठहराएं, उनके व्यक्तित्व से ईश्वरीय आभा हटा दें और फिर देंखे की यह चरित्र आखिर हमसे कहना क्या चाह रहा है!

हर पुरुष असंख्य प्रेमिकाओं की कामना करता हुआ कृष्ण होना चाहता है। लेकिन राह चलते हुए स्त्रियों से छेड़खानी करना और नदी में जब वे नहा रही हों, तो उनके कपड़े उठा ले जाना किस तरह से ‘प्रेरणा’ का मामला है और किस तरह ‘ईश्वरीय’ कृत्य है? क्या यह आरोप आगे बढ़ाया जाए कि कृष्ण की कहानी से शुरू इसी परंपरा का विस्तार शायद यह है कि गली–चौराहों पर ताने और फब्तियां कसने को लड़के अपनी शेखी समझते हैं, क्योंकि यह काम तो उनके ‘ईश्वर’ ने भी किया है, फिर वे क्यों न करें ? यह सोच कर ही मन क्षोभ से भर जाता है कि जिस समाज में स्त्री देह से परे कुछ नहीं माना जाता हो, उस  समाज में किसी नहाती हुई स्त्री को देखना और उसे बिना कपड़ों के पानी से बाहर निकलने पर मजबूर करना किस मनोग्रंथि और कुंठा की उपज होगी! यह कैसा ‘देवत्व’ है जो स्त्री को उसकी देह को लेकर ही शर्मसार करने से पीछे नहीं हटता? इसी के बरक्स वे सारे एमएमएस कांड याद आ रहे हैं, जो स्त्री को विश्वास में लेकर उसके प्रेम और विश्वास की धज्जियां उड़ाते हुए हर दिन इंटरनेट पर अपलोड कर दिए जाते हैं। वहां भी वह देह से परे कुछ नहीं है।

कृष्ण

आखिर ये मिथकीय कहानियां किस तरह की परवरिश और शिक्षा देती हैं, जहां पुरुषों को सारे अधिकार हैं, चाहे वह स्त्री को अपमानित करे या दंडित, उसे स्त्री पलट कर कुछ नहीं कहती। फिर आज हम रोना रोते हैं कि हमारे बच्चे इतने हिंसक और कुंठित क्यों हो रहे हैं। सारा दोष हम इंटरनेट और टेलीविजन को देकर मुक्त होना चाहते हैं। जबकि स्त्री के खिलाफ भेदभाव की जो शिक्षा हमारे धर्मग्रंथों में भरी पड़ी हैं, हमारा कभी भी उस ओर ध्यान नहीं जाता है। अगर कभी जाता भी है तो हम उस पर सवाल उठाने का साहस कभी नहीं करते। हमारे यहां आदर्श उन स्त्रियों को कहा गया है जो बिना उफ्फ किए सारी दुख-तकलीफ को बर्दाश्त कर जाएं।

आज के समाज और व्यवहार के आलोक में देखें तो मिथकों में मौजूद कृष्ण दरअसल एक ऐसे फ्लर्टबाज़ युवक का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने गांव की लगभग हर दूसरी लड़की को साध रखा था और उसने उन्हें ये आश्वासन दिया था कि वह उसी से शादी करेंगे। उधर हर लड़की ने मानो यह सोच कर कृष्ण को अपना तन-मन समर्पित कर दिया था कि गांव का ‘मोस्ट वांटेड बैचलर’ उसका प्रेमी है।

इतना ही नहीं, उम्र में बड़ी और परित्यक्ता राधा भी आजीवन इसी भ्रम का शिकार रहीं कि कृष्ण बस उन्हीं के हैं। लेकिन हमारे इस ‘माचोमैन’ ने विवाह के लिए राधा के बजाय चुना एक राजकुमारी (रुक्मिणी) को। इसके अलावा, राधा हो या रुक्मिणी, दोनों (स्त्री) का प्रेम में एकनिष्ठ रहना ज़रूरी है, पर अगर किसी के लिए यह शर्त नहीं है तो वह है कृष्ण(पुरुष)! यानी पत्नी और प्रेमिका के कर्तव्य निर्धारित हैं, पर पुरुष चाहे कितनी भी स्त्रियों से प्रेम करता फिरे वह उसका ‘अधिकार’ है। व्यवहार में समाज में यही रिवायत है। देश का संविधान और कानून न हो तो पता नहीं क्या हो! यह लिखते हुए मुझे अपने आसपास के कई किस्से याद आ रहे हैं उन लड़कियों के, जिनके प्रेमियों ने उनका लंबे समय तक भावनात्मक और शारीरिक शोषण करने के बाद किसी संपन्न परिवार की लड़की से शादी कर ली। अक्सर अपनी आखिरी कोशिश में आईएएस या पीसीएस बन जाने वाले लड़के आमतौर पर ऐसा ही करते हैं।

कृष्ण की पूरी जीवनगाथा दरअसल एक साधारण युवक की सुविधासंपन्न और शक्तिसंपन्न सम्राट बनने की लालसा की कहानी है। यह उस महत्त्वाकांक्षा की भी कहानी है जो साम-दाम-दंड-भेद द्वारा  सम्राट होना चाहता है। इस प्रसंग में मामा का वध करके राज्य और संपत्ति हासिल करने की कहानी हो या रुक्मिणी से विवाह का प्रसंग, यहां तक की उनकी विवाहित पत्नियों में अधिकांश संपन्न घरों की स्त्रियां ही हैं । मैं यहां गोपिकाओं  की बात नहीं कर रही हूं, जिन्हें वे विवाह के लिए नहीं चुनते हैं। कृष्ण का चरित्र दरअसल छल-कपट (अश्वथामा प्रसंग ), रिश्तों में विश्वासघात ( राधा और अन्य गोपिकाएं), अभद्र हरकतें (गोपिकाओं के कपड़े उठाने का प्रसंग और छेड़खानी) और असीम महत्त्वाकांक्षा को ग्लैमराईज़ और जस्टिफाई करता है

साहित्य में  किसी कृति की आलोचना और प्रशंसा सब होती है। लेकिन हमारे मिथकीय इतिहास से जुड़ी कहानियों,  पुराण कथाओं और उनके मनोवैज्ञानिक प्रभावों को लेकर आलोचनात्मक बातचीत करने का साहस हम नहीं जुटा पाते, क्यों? जबकि हम जानते हैं कि वे कहानियां भी मनुष्यों द्वारा ही गढ़ीं गई हैं। इन कहानियों की रचना और जनमानस में इनके रचने-बसने का एक लंबा इतिहास है। किसी भी समाज की सामूहिक चेतना को बनाने में प्राचीन धर्मग्रंथों और उससे जुड़े साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन समय-समय पर इनके प्रभावों पर आलोचनात्मक बातचीत किए जाने की जरूरत है।

~~~

मानुषी
सामाजिक सरोकार से जुड़े और खासकर स्त्री विषयक मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन.
manushiuvach@gmail.com

(इस आलेख का मकसद किसी की ‘आस्था’ को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि सामाजिक संदर्भों में साहित्यिक नजरिए से कथा का पुनर्पाठ है। -सं.)

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *