Lenin Maududi
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लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi)

मेरे शहर के बारे में एक दंत कथा मशहूर है कि यहाँ पहले नट नाम के राक्षस का राज्य था। लोग उसके आतंक से बहुत परेशान थे। तत्कालीन हुक्मरा सैय्यद शालार मसूद गाजी ने बाबा मलिक ताहिर को यहाँ इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भेजा था। बाबा ने नट को मार कर एक बोतल या ताबूत में बंद कर के दफन कर दिया। इसीलिए पहले इस शहर का नाम ‘मरा नट भंजन’ था जो बाद में मऊ नाथ भंजन हो गया।

पर जब हम इतिहास से इस कहानी की सत्यता की जाँच करते हैं तो पाते हैं कि सैय्यद शालार मसूद गाजी को महमूद ग़ज़नवी का भांजा माना जाता है। जिनके नाम से पूर्वांचल और बिहार में ‘गाज़ी मियां ‘ का मेला लगता है। वो एक काल्पनिक पुरुष है। इस विषय पर इतिहासकार ‘शाहीद अमीन’ की किताब ‘Conquest and Community: The Afterlife of Warrior Saint Ghazi Miyan’ बहुत मशहूर है। अब जब सैय्यद शालार मसूद था ही नहीं तो मालिक ताहिर बाबा की वैधता भी संदिघ् हो जाती है। कहीं वो भी तो कोई काल्पनिक व्यक्ति नहीं हैं।

ये तो रही इतिहास की वैधता की बात! अब हम इस मिथ को समझने की कोशिश करते हैं। मऊ उस वक़्त जंगल रहा होगा और नट जनजाति का यहाँ कब्ज़ा होगा। हम ये देखते आएं हैं कि आक्रमणकारी हमेशा ही वहाँ के मूल निवासियों को मार कर, खदेड़ कर, उस जगह पर कब्ज़ा करते हैं। विजेता हमेशा ही अपने हिसाब से कहानियाँ गढ़ते हैं।

मऊ की कहानी दरसल विजेताओं के ज़ुल्म की कहानी है यहाँ के मूल निवासियों पर। आज भी ‘नट’ को एक शैतान की तरह पेश किया जाता है। मालिक ताहिर बाबा की मज़ार के पास एक पत्थर है जिसके बारे में कहा जाता है कि मालिक ताहिर 

picबाबा ने नट को मार कर ज़मीन में दफन कर दिया और इस पत्थर, जिसपे बाबा के तीन एड़ी का निशान है, से उसे दफन किया। मतलब अगर बाबा का कोई वजूद था तो वो एक ज़ालिम विजेता से ज़्यादा नहीं था।

ये तो रही इतिहास की बात पर आस्था इतिहास को कहाँ मानती है। बाबा की मज़ार शिया कब्रिस्तान में है। ये इलाका रोज़ा मऊ के नाम से जाना जाता है। ये पूरा इलाका हनफ़ी और अहले-हदीस फ़िरके वालो का है। इसलिए बाबा की मज़ार में वो रौनक नज़र नहीं आती। पर 1-2 साल से यहाँ बाबा के मुरीद बढ़ गए हैं। बाबा के दरबार में मुस्लिमो से ज़्यादा हिन्दू आते है। एक नई प्रथा यहाँ शुरू हुई है बाबा के पैर दबाने की अब बाबा तो है नहीं तो हाथ धूल कर मज़ार को ही इस तरह दबाया जाता है जैसे बाबा का पैर दबा रहे हों। मुर्गा की बली भी बाबा को चढाई जाती है। जुमेरात की रात कुछ हनफ़ी और अहले-हदीस लड़के भी मज़ार पर आते है पर उनका मकसद बाबा की ज़ियारत करना नहीं बल्कि वहाँ आने वाली लड़कियों की ज़ियारत करना होता है। हमारी दुआ है कि बाबा तलाश-ए-इश्क़ में आने वाले आशिकों की मुराद पूरी कर दें। आमीन!

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लेनिन मौदूदी लेखक हैं. पसमांदा नज़रिये से समाज को देखते-समझते-परखते हैं और अपने लेखन में दर्ज करते हैं.

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