Kanshi Ram Saheb
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कांशी राम (Kanshi Ram)

[नोट: कांशी राम साहेब ने प्रस्तुत सम्पादकीय लेख, दि ओप्रेस्ड इण्डियन (जुलाई, 1979) के लिए लिखा था. राउंड टेबल इंडिया धन्यवाद् करता है अनुवादक विजेंद्र सिंह विक्रम जी का जिन्होंने प्रस्तुत लेख को अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया; और ए.आर.अकेला जी का जिन्होंने साहेब कांशी राम जी के सम्पादकीय लेखों को किताब की शक्ल दी.]

Kanshi Ram Sahebदंगे – एक न टूटने वाली कड़ी 

“अलीगढ़ में दो लोगों को चाकू मारा”, 30 जुलाई, 1979 के Statesman Daily (स्टेट्समैन डेली)” के प्रथम पृष्ठ पर रोज़ाना आने वाली ख़बरों में से एक थी. पिछले एक साल से इस प्रकार की ख़बरें रोज़मर्रा की ख़बरें बन चुकी हैं तथा शांतिप्रिय नागरिकों के लिए मुश्किल का कारण बन गई हैं.

अलीगढ़, जमशेदपुर और नादिया के ये साम्प्रदायिक दंगे एक न टूटने वाली कड़ी की तरह प्रकट हो रहे हैं. सभी ख़बरों से और प्रत्येक दृष्टि से अब यह स्पष्ट हो चुका है कि इस प्रकार के लगातार होने वाले साम्प्रदायिक दंगों में सर्वाधिक पीड़ित लोग गरीब व् निर्दोष मुस्लिम ही होते हैं.

अलीगढ़ – बड़े साम्प्रदायिक दंगों की श्रृंखला में अलीगढ़ में होने वाले दंगों की गुत्थी सबसे ज्यादा उलझी हुई है. पिछले एक साल से यह हमेशा ख़बरों में है कई बार प्रथम पृष्ठ पर. अनगिनत बेगुनाह लोगों ने अपनी जान गंवाई है. करोड़ों की सम्पति का नुक्सान हुआ है. अलीगढ़ दुनिया के शहरों में सबसे लम्बे समय तक कर्फियु में रहने वाला शहर बन चुका है. बाहर से आने वाले लोग अलीगढ़ आने से बचना चाहते हैं. कोई नहीं जानता कब कहाँ और किसे चाकू भौंक दिया जायेगा. इस तालीम के शहर के रहने वाले मुस्लिमों की ऐसी दुःखभरी दास्ताँ, देश के दुसरे हिस्से में रहने वाले मुस्लिमों के लिए भी परेशानी का सबब बन गई है.

जमशेदपुर – जब तक अलीगढ़ का मामला ठंडा होता, जमशेदपुर में निरीह और निर्दोष लोगों को मारे जाने की खबर से देश स्तब्ध रह गया. प्रख्यात पत्रकारों द्वारा जमशेदपुर की ख़बरों को कवर करना आँखें खोलने वाला है. अप्रैल, 1979 में हुए जमशेदपुर के दंगों ने 1964, 1971 में हुए साम्प्रदायिक दंगों को भी पीछे छोड़ दिया. 

यह बताया गया है कि शहर के मुस्लिम जिनकी अच्छी खासी संख्या (20 प्रतिशत) है, दूसरों से अच्छी स्थिति में हैं. वे जीवन के हर क्षेत्र में पाए जाते हैं, सिवाय सार्वजनिक सेवाओं के. जैसा कि ख़बरें मिली हैं ‘टाटा स्टील कंपनी, जो अच्छे वेतन के लिए विख्यात है, में 50 प्रतिशत रोज़गार मुस्लिमों को मिला हुआ है. यह मुस्लिमों की एक छोटी सी समृद्धि अक्सर उच्च वर्ग के हिन्दुओं की ईर्ष्या का शिकार बन जाती है. यह हाल ही में मुस्लिमों के विरुद्ध हुआ अत्याचार जमशेदपुर के मुस्लिमों के लिए सभी तरह से बर्बादी का कारण बना है तथा वे पूरी तरह निराश एवं हताश हो चुके हैं. 

नादिया – साम्प्रदायिक दंगों की इस श्रृंखला में ताज़ा नाम नादिया का है जो पश्चिमी बंगाल की सीमा पर एक संवेदनशील ज़िला है. नादिया के दंगों ने वामपंथी सरकार को हिलाकर रख दिया है; क्योंकि यह ऐसे समय पर हुआ है, जब सी.पी.एम्. सरकार पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक दंगे न होने की वाहवाही का जोरशोर से बखान कर रही थी. जान और माल की हुई तबाही इन दंगों को बड़े दंगों की श्रेणी में रखते हैं. दंगों की ग्रामीण प्रकृति तथा 10,000 मुस्लिमों का बंगला देश को पलायन करना नादिया जिले के दंगों में एक नया आयाम जोड़ता है.

आर.एस.एस. का हाथ होने का आरोप 

इन सभी तीन बड़े साम्प्रदायिक दंगों में आर.एस.एस. के हाथ होने का आक्षेप है. विशेषकर पहले दो जगहों पर. जमशेदपुर में हुए दंगों में आर.एस.एस. का हाथ साफ़ नज़र आता है. एक खुला पर्चा काफी बांटा गया तथा एक स्थानीय आर.एस.एस. समर्थक विधायक की भूमिका इसकी और इशारा करती है. जमशेदपुर दंगों से पहले बाला साहेब द्वारा देवरस का दौरा तथा अन्य प्रमुख आर.एस.एस. नेताओं का दौरा सभी के द्वारा बताया जा रहा है विशेषकर आर.एस.एस. के जमशेदपुर में आलोचकों द्वारा यह कहा जा रहा है कि एक स्थान पर आर.एस.एस. के नेता अपनी भूमिका न होने की बात पर बचाव व् क्षमा की मुद्रा में थे.

दलित भारतियो सावधान 

इन दंगों का एक विशेष पहलू यह भी देखने को मिला कि मुस्लिमों को अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के विरुद्ध खड़ा करने की कोशिश की गई. अलीगढ़ के मुस्लिमों के विरुद्ध जाटवों, (चमारों) को भिड़ाने का प्रयास किया गया. जमशेदपुर में अनुसूचित जन-जातियों को मुस्लिमों के विरुद्ध खुलकर भड़काया गया तथा नादिया में पिछड़ी जातियों के गुंडे मुस्लिमों से भिड़ गए. इस तरह की प्रवृति (Trends) दलित और शोषित भारतियों के लिए अत्यंत खतरनाक है. उनको इस प्रकार के दुष्कृत्यों तथा आत्मघाती कार्यों से सावधान रहना होगा. दुर्भाग्यवश एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. तथा अल्पसंख्यकों में ऐसा कोई नेत्रत्व नहीं है, जो इस प्रकार के आत्मघाती क़दमों से बचा सके तथा इन सभी दलित एवं शोषित भारतियों में आपस में अच्छे तथा भाईचारा के संबंध में दिशा दे सके. यह देखने वाली बात है कि नए हालातों में ऐसे नेतृतवविहीन समाज कैसा बर्ताव करते हैं.

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