Faiyaz Ahmad Fyzie
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फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी 

Faiyaz Ahmad Fyzieमुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने स्थापना  से लेके आजतक ये दावा करता आया है कि वह इस देश में बसने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समाज की एक अकेली प्रतिनिधि संस्था है, जो उनके व्यक्तिगत एवम् सामाजिक मूल्यों को, जो इस्लामी शरीयत कानून द्वारा निर्धारित किये गए हैं, देखने भालने का कार्य सम्पादित करती है। इसके अतिरिक्त बोर्ड मुस्लिमों की तरफ से देश के वाह्य एवम् आतंरिक मामलो में ना सिर्फ अपनी राय रखता है बल्कि देशव्यापी आंदोलन,सेमिनार एवम् मीटिंग के द्वारा कार्यान्वित भी करता है। अभी हाल में ही ब्राह्मणवाद के खिलाफ आंदोलन करने की बात कही गई है।

अब सवाल ये पैदा होता है कि क्या बोर्ड का ये दावा सही है?

अगर इसके संघटनात्मक ढांचे को देखे तो हमें वहीं इसका जवाब मिल जाता है। बोर्ड ने मसलको और फिर्को के भेद को स्वीकार करते हुए सारे मसलको और फिर्को के उलेमा(आलिम का बहुबचन) को बोर्ड में जगह दिया है, जो उनकी मसलक/फ़िरके की आबादी के वज़न के आधार पर है। बोर्ड का अध्यक्ष सदैव सुन्नी सम्प्रदाय के देवबंदी/नदवी फ़िरके से आता है। ज्ञात रहे कि भारत देश में सुन्नियो की संख्या सबसे अधिक है और सुन्नियो में देवबंदी/नदवी समुदायबरेलवी समुदाय से अगर संख्या में अधिक ना हो फिर भी असर एवम् प्रभाव की दृष्टि से सबसे बड़ा गुट है। बोर्ड का उपाध्यक्ष सदैव शिया सम्प्रदाय से होता है, अगरचे (य़द्यपि)शिया सप्रदाय संख्या में सुन्नी सम्प्रदाय के छोटे से छोटे फ़िरके से भी कम है, फिर भी वैचारिक आधार पर शिया, सुन्नियो के हमपल्ला माने जाते हैं।

अब सवाल ये उठता है कि क्या भारतीय मुस्लिम समाज सिर्फ मसलको/फिर्को में ही बंटा है? तो इसका जवाब नकारात्मक मिलता है। मुस्लिम समाज मसलकों और फिर्कों बंटे होने के साथ साथ नस्ली और जातिगत आधार पर भी बंटा है। जबकि सैयद, शैख़, जुलाहाधुनियाधोबीमेहतरभंगी, भटियारा और नट आदि जातियाँ मौजूद हैं, लेकिन बोर्ड अपने संगठन में उपर्युक्त विभेद को मान्यता नहीं प्रदान करता है और संगठन में किसी भी देशी पसमांदा(पिछड़े, दलित और आदिवासी) मुस्लिम जातियो को उनकी जातिगत संख्या के आधार पर किसी भी प्रकार का प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं करता है।

ऐसा नहीं है कि बोर्ड भारतीय मुस्लिमो के जातिगत भेद से अवगत नहीं है, बोर्ड स्वयं गैर कुफु (जो बराबर ना हो) में शादी ब्याह को न्यायोचित नहीं मानता है यानि एक अशराफ (शरीफ/उच्च/ विदेशी जाति के मुस्लिम) को एक पसमांदा(रज़िल(मलेछ) /निम्न/नीच/देशी जाति) के मुस्लिम से हुए विवाह को न्याय संगत नहीं मानता है और इस प्रकार के विवाह को वर्जित करार देता है।२ जबकि मुहम्मद रसूल अल्लाह ने दीनदारी(धार्मिक कर्तव्य परायणता) के आधार पर शादी विवाह करने का निर्देश दिया है।

बात साफ़ हो जाती है कि बोर्ड जातिगत विभेद से भलीभांति परिचित होने के बाद भी रज़िल(मलेछ)/ दलित या जल्फ़(असभ्य)/ पसमांदा को अपने संगठन में प्रतिनिधित्व नहीं देता है।

दूसरी महतव्पूर्ण बात ये है कि बोर्ड आधी आबादी यानि महिलाओं के प्रतिनिधित्व को भी नज़र अंदाज़ करता है। बोर्ड महिला  प्रतिनिधित्व को न्यायोचित नहीं मानता है। जबकि इस्लामी इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि ख़लीफा उमर ने एक महिला सहाबी(मुहम्मद रसूल अल्लाह का साथी), शिफ़ा बिन्त अब्दुल्लाह अलअदविया को मदीना के मार्केट का लोक वाणिज्य प्रशासनिक अधिकारी बनाया था। वह इस्लामी इतिहास की पहली शिक्षिका एवम् चिकित्सिका भी थीं। ख़लीफा उमर उनसे सरकारी कामकाज में बराबर राय मशविरा भी किया करते थे। हालांकि अब बोर्ड ने महिलाओं को शामिल तो कर लिया है लेकिन यहाँ भी उच्व अशराफ वर्ग की ही महिलाओं को ही वरीयता दिया गया।

बोर्ड में गैर आलिम की भी भागीदारी होती है जो ज़्यादातर पूंजीवादी/ आधुनिक शिक्षाविद्/ कानूनविद होते हैं, लेकिन यहाँ भी अशराफ/ उच्च/ विदेशी वर्ग का ही वर्चस्व है।

सारांश ये कि बोर्ड के अशराफ/ विदेशी/ उच्च वर्ग के उलेमा खुद को देशी पसमांदा मुस्लिम उलेमा की ओर से स्वयं प्रतिनिधित्व का दावा करते है और पसमांदा महिलाओं और पुरुषों को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधित्व के योग्य नहीं मानकर प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं प्रदान करते हैं।

इसप्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केवल मुस्लिम उच्च वर्ग/ विदेशी नस्ल के  अशराफ(शरीफ= उच्च का बहुबचन) का ही प्रतिनिधि संस्था है, जो देश के कुल मुस्लिम आबादी के लगभग 10%(लगभग 2 करोड़) ही हैं बाकी बचे 90%(लगभग 15 करोड़) देशी पसमांदा मुस्लिमो के प्रतिनिधित्व का सिर्फ दावा है हकीकत नहीं।

‘ना तुम सदमे हमें देते, ना हम फरियाद यूँ करते

ना खुलते राज़ सरे बस्ता, ना ये रुसवाईयाँ होतीं’

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संदर्भ (रेफरेन्सेज़)

(१) इंक़लाब उर्दू दैनिक,नई दिल्ली(वाराणसी) शुक्रवार, 6 नवंबर 2015 ,वॉल्यूम नं.3,इशू नं.290,फ्रंट पेज.

(२) पेज नं०-101-105,237-241, मजमूए कानूने इस्लामी, 5 वाँ एडिशन, 2011, प्रकाशक आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, 76A/1, ओखला मेन मार्किट, जामिया नगर, नई दिल्ली-110025, इंडिया.

(३) हदीस: औरत से चार आधार पे शादी किया जाता है, उसके माल(धन), उसके जाति(नसब,हसब), उसके जमाल(हुस्न, सुंदरता) और उसके दीन(धर्म, मज़हब) के लिए। तुम लोग दीनदारी(धार्मिक कर्तव्यपरायणता) को प्रार्थमिकता दो, तुम्हारे हाथ घी में होंगा*।

* फायदे में रहना (एक मुहावरा है) बुखारी हदीस नं 5090, मुस्लिम हदीस नं 1166.

(४) मिन फ़िक़्हीद्दौला फिल इस्लाम, अल्लामा युसूफ करज़ावी, पेज नं० 175-176,एडिशन 2007,दारुशशुरुक़,काहिरा,मिस्र.

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फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी लेखक हैं एवं AYUSH मंत्रालय में रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं. उनसे  faizienadira@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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