प्रज्ञा चौहान (Pragya Chouhan)
समाज का एक व्यक्ति जिसे तीसरी कक्षा की पढाई बीच ही में छोड़नी पड़ गई हो, और वह अपने जीवन में 20 किताबों को बहुजन आन्दोलन की झोली में डालकर एक साहित्यकार की उल्लेखनीय भूमिका अदा करे और 9 सम्मान चिन्हों से उसे नवाज़ा जाये, ये बात बेशक ध्यान खींचती है. यह व्यक्ति थे मध्यप्रदेश के बालाघाट इलाके में 11 अगस्त 1924 को जन्मे मुंशी नाथूलाल खोब्रागड़े. सफ़ेद धोती, सफ़ेद कुर्ता, आँखों में सामाजिक बदलाव का सपना, प्रतिबद्ध कदम और शरीर में कुछ करने का जोश और ऊर्जा, यह एक सामान्य छवि थी मुंशीजी की जो उनके संपर्क में आये लोगों के मन में बड़े सहजता से स्थान बना लेती थी।
मुंशी जी अनपढ़ इस लिए रह गए क्यूंकि घर में पैसा था ही नहीं. किल्लतों भरी ज़िन्दगी और घरेलु ज़िम्मेदारियाँ अक्सर इंसान को हालातों के सामने हार मानने को मजबूर करती है. लेकिन मुंशी जी अलग थे.मुंशी जी के पास एक बड़ा सपना था और वह था अपने समाज को जागृत करना. उनके कदम और कलम ने समाजसेवा और साहित्य सृजन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान व्यक्तियों को भी पीछे छोड़ दिया। उन्होंने जो उपलब्धियाँ प्राप्त की वो प्रशंसनीय ही नहीं उल्लेखनिय भी हैं।
मुंशीजी का विवाह 12 वर्ष की उम्र में ही हो गया था. उस वक़्त पत्नी 9 वर्ष की थी. यह उम्र किसी भी बालक के लिए खेलने-कूदने और बाल सुलभ हरकतें करने की होती है। मुंशीजी इसके विपरीत सदैव चिंतनशील और विचारों में डूबे हुये रहते थे। उन्हें धर्म के बारे जानने की जिज्ञासा हुई और कम उम्र में ही प्रेमसागर, सुखसागर, महाभारत, तुलसीकृत रामायण, भगवत गीता आदि किताबें पढ़ लीं. उनका मन सन्यास लेने का हुआ. इस के लिए उन्होंने एक कोशिश भी की.
वह एक दलित समाज से थे. जाति को लेकर हर एक व्यक्ति के जीवन में वह क्षण आता है जो व्यक्ति के पूरे वजूद और दृष्टिकोण को हमेशा के लिए प्रभावित कर जाता है. जाति अपनी पूरी असलियत के साथ मुंशीजी के अनुभव का हिस्सा तब बनी जब मुंशीजी ने स्वामी मुक्तानंद से योग और ध्यान में दीक्षित होकर सन्यास धारण करने का आग्रह किया। जब मुक्तानंद को पता चला कि यह आग्रह एक नीच कही जाने वाली जाति के लड़के की और से है तो इसे ठुकरा दिया गया।
इस बात का मुंशीजी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा. इस अनुभव ने उन्हें उम्रभर छुआ-छूत और जात-पात के खिलाफ लड़ाई के मैदान में ला खड़ा किया. समाज को जाति के रोग से मुक्त करना ही उनके जीवन का लक्ष्य बन गया. बहरहाल, आसपास माहौल में लीक से हटकर सोचने का मौका और माहौल नहीं था. मुंशीजी ने अपने समाज को जागृत करने के लिए कलम उठाई, गीत और नाटक लिखे. इसी राह पर उन्हें जोतिबा फुले और बाबा साहेब के आन्दोलन के बारे में पता चला.
1946 में उनकी भेंट ओंकार दास बोम्बर्डे से हुई और यहीं से सही मायनों में उनका सामाजिक और राजनैतिक सरोकारों का सफर शुरू हुआ। सन 1948 में ‘समाज सुधार मण्डल‘ का गठन हुआ। मुंशी जी को इसका सेक्रेटरी बनाया गया।
उन्नति की राह में ब्राह्मणवाद के चलते हमारे समाज की जड़ों में पड़ीं कुरीतियों के खिलाफ अपने समाज को जागृत करने का काम समाज सुधार मंडल के तत्वाधान में ही चलाया गया. उस वक़्त दलितों के हिस्से था – मरे हुए जानवर का मास खाना, अन्य लोगोँ के शादी-विवाह आदि कार्यों में नगारचियों के साथ मिलकर बाजा बजाना, त्योहारों में अन्य जाति के लोगो के घर से पकवान मांगना, एवं दूसरे समाज की महिलओं के लिए दाई का काम करना आदि। अपने समाज में स्वाभिमान से जीने की अलख जगाने के लिए खोब्रागड़े ने गांवो में सभाएं की एवं शादी जैसे कार्यक्रमों में भी अपने प्रेरित करने वाले गीतों से समाज को जगाया। ये गुलामी सदियों की है इसलिए लोगों की मानसिकता पर असर डाल पाना कठिन था. जीवन की तहों में घुस चुकी प्रचलित कुरीतियों को छोड़ने के लिए समाज के लोग आसानी से तैयार नहीं होते थे. इसके लिए गहरी चोट करने की ज़रुरत थी. इसलिए रात-रात भर सभाएं चलाईं गईं और नए नए प्रयोगों के माध्यम से लोगों को अपने हालातों के बारे में जागरूक किया जाने लगा.
अपने साथियों के साथ मुंशीजी ने कई यात्रायें कीं. सोये लोगों को जगाने एंव आंदोलित करने के लिए वह गाँव गाँव घुमते तो महीनों घर नहीं लौटते. परिवार की हालत बहुत नाजुक थी. पत्नी मजदूरी करती थी। घर में कभी चूल्हा जलता तो कभी पूरे परिवार को भूखा सोना पड़ता। यह स्थिति कई वर्षों तक चलती रही। बद्दतर होते हालातों को ठीक करने के ख्याल से मुंशीजी गांव छोड़ बालाघाट आ गए. यहाँ उन्हें एक वकील एम.डी. मेश्राम जी के यहाँ मुंशी का काम करने का मौका मिला. अब हालातों में थोड़ा परिवर्तन आया. अब उन्होंने परिवार को भी बालाघाट बुलवा लिया। यहीं से उनका नाम मुंशीजी के तौर पर मशहूर हुआ.
बाबा साहेब के आन्दोलन के चलते अपने समाज में सुधार के काम व्यापक पैमाने पर फ़ैल रहे थे. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में जहाँ कहीं भी महारों ने बामनों, ठाकुरों के हीन कार्य करने से मना किया वहां सवर्ण समाज द्वारा उनका सामाजिक बहिष्कार करना आम बात हो गई. ऐसे में सामान का लेन-देन, काम-धंधा सब बंद हो जाते. यहाँ तक कि खेतो में शौच जाने तक पर पाबंदी होती. इसके असर गहरे होते थे. उलंघन करने पर दलितों को पीटा जाता. एक कार्यकर्ता के रूप में मुंशीजी को भी दंगाईयों की प्रताड़ना का कई बार शिकार होना पड़ा.
मुंशीजी के गीत और लेख पत्रिकाओं में अक्सर छपते रहते थे. उनकी एक किताब ‘भारत की विकृत समाज व्यवस्था’ ब्राह्मणवादी समाज को नागवार गुजरी. प्रशासन ने किताब पर पाबन्दी लगा दी और जप्त कर लिया. लोगों को भड़काया गया और घर पर पथराव हुआ. भड़की भीड़ ने तोड़ फोड़ की. यहाँ तक कि मकान जलाने की कोशिश हुई. हालात बिगड़े तो लगभग एक वर्ष तक मुंशीजी भूमिगत रहे. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वे महीना भर जेल में रहे. माहौल को खराब करने के नाम पर उनपर बनाया केस 11 वर्षो तक चला। अंततः विजय मुंशीजी की ही हुई। इस किताब को लेकर एक हास्यास्पद बात ये है कि जहाँ प्रशासन ने इसपर बैन लगाया वहीँ केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने आगे चलकर इसी किताब को पुरस्कृत किया।
मुंशीजी के लगभग 80 लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपे. उनकी दूसरी पुस्तक ‘मध्य प्रान्त में दलित आंदोलन का इतिहास’ 425 पेज की है, दिल्ली, बिलासपुर एवं बालाघाट के छात्रों द्वारा शोधप्रबंध लिखकर डॉक्ट्रेट किया गया है।
बाबासाहब ने 13 सितम्बर 1956 में धर्म परिवर्तन की घोषणा की थी। उत्साहित मुंशीजी 2 दिन पहले ही नागपुर पहुंच गए. 14 अक्टुबर 1956 नागपुर की दीक्षा भूमि में जिन 5 लाख लोगों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया उनमें रजिस्ट्रेशन नं 62557 वाला युवक नाथूलाल खोब्रागडे भी था।
15 अक्टूबर 1956 को नागपुर ही के एक होटल ‘श्याम’ में मुंशी जी को बाबा साहेब से मिलने का मौका मिला. यह मुलाक़ात उनके लिए एक धरोहर रही. मुंशी जी के मन पर बाबा साहेब के विचारो और व्यक्तित्व की प्रेरक छाप आजीवन बनी रही।
दलित आंदोलन में और बौद्ध धर्म के प्रचार में मुंशीजी ने बहुत लम्बा सफ़र तय किया है. उनका जीवन अनेक अनुभवों से भरा हुआ है। वह शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन, रिपब्लिक पार्टी, समाज सुधार मंडल, भारतीय बौद्ध महासभा, बालाघाट जिला बौद्ध संघ, दलित साहित्य अकादमी, अल्पसंख्यक समिति, शांति समिति, एकता समिति इत्यादि अनेक संस्थाओ के विभिन्न पदों पर रहे और सामाजिक कार्यों को आगे बढाते रहे. जीवन के आखिरी पलों में भी वह सामाजिक चिंतन में डूबे रहते थे और मिलने आये लोगों से संवाद करते रहे.
16 फरवरी 2017 को 93 वर्ष की आयु में मुंशीजी कालकलवित हुये. उन्होंने समाज और दलित साहित्य की सेवा में एक सम्मानित, संतोषप्रद, प्रेरणादायी, स्वस्थ एंव दीर्घायु जीवन जिया.
वे अपने कार्यों और लेखन से हमेशा लोगों के ज़ेहन में रहेंगे. मुंशी जी एक सांस्कृतिक पूँजी के तौर पर दलित आन्दोलन के सिपाहियों को और भी उत्साही होकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देते रहेंगे.
मुंशी जी द्वारा रचित पुस्तकें
1. मध्य प्रान्त में दलित आन्दोलन का इतिहास
2. बौद्धकालीन भारत का इतिहास
3. यथार्थ का आइना (आलेख संग्रह )
4. बौद्धों के दायित्व
5. क्या यीशु मसीह बौद्ध थे (शोध ग्रन्थ )
6. ग्रेहस्थों के लिये भगवान बुद्ध का संदेश
7. तत्व ज्ञान प्रश्नोत्तरी
8. सम्राट अशोक के शिलालेख
9. भारत की विक्रत समाज व्यवस्था
10. बौद्धों की आचार संहिता
11. ऐसे थे भगवान बुद्ध
12. भारत के बौद्ध तीर्थ और सांस्कृतिक स्थल
13. भारत के विष्व प्रसिद्ध बौद्ध विश्वविध्यालय
14. भारत से बौद्ध धर्म के पतन के सडयंत्र का भांडाफोड़
15. बौद्ध धर्म के सन्दर्भ में बुद्धिजीवियो के विचार
16. विश्व का बौद्ध कालीन इतिहास
17. अछूत की बेटी (उपन्यास )
18. बौद्ध धर्म की विदेश यात्रा
19. भारत के मूलनिवासियो का प्राचीन इतिहास और की जा रही पुरातत्वीय साक्ष्य को जूठलाने की साजिश
20. भगवान बुद्ध का धम्म दर्शन कविता में
मुंशीजी को प्राप्त कुछ सम्मान एवं पुरस्कार
1. दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार 1994
2. विशिष्ठ सेवा सम्मान 1999
3. मानद फेलोशिप दलित साहित्य अकादमी उज्जैन 1997
4. प्रतिनिधि अनुशंषा पत्र दलित साहित्य अकादमी डेल्ही
5. महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप, दिल्ली 2001
6. इंडो जापान बुद्धिस्ट फ्रेंड्स एसोसिएशन दवारा सम्मान
7. जिला पत्र -लेखक संघ और ऑल इंडिया समता सैनक दल दवारा सम्मान 2002
8. इतिहास और पुरातत्व शोध संस्थान द्वारा सरस्वती साहित्य सम्मान 2005
9. केन्द्र सासन संस्कृति विभाग से उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिये आर्थिक सहायता 1995 से 2008
~~~
प्रज्ञा चौहान हैदराबाद स्थित एक आई. टी. कंपनी में आई टी प्रोफेशनल हैं।
Magbo Marketplace New Invite System
- Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
- Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
- Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
- Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
- magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK