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संजय जोठे (Sanjay Jothe)

अगर भारतीय जनता सभ्य देशों के सामाजिक व्यवहार और अनुशासन सहित वहाँ की मानव गरिमा के बारे में सुनेगी तो एक बार जरुर पूछेगी कि जिन देशों को भौतिकवादी कहकर गाली दी जाती है, उनकी सभ्यता इतनी विक्सित है तो धर्मप्राण कहलाने वाले भारत में क्या समस्या है? यहाँ छुआछूत भेदभाव जातीय हिंसा और इतनी अनैतिकता भ्रष्टाचार आदि क्यों है?
हमारी मित्र ‘सम्यक संकल्प’ ने अपने जापान दौरे के अनुभव को विस्तार से लिखा है. मैं हूबहू उनका लेखन यहाँ दे रहा हूँ. आप देख सकते हैं की जो समाज विज्ञान तकनीक या आर्थिक आयाम में सशक्त हुए हैं उनकी सभ्यता और सामाजिकता बोध, नैतिकता बोध ने भी काफी विकास किया है. वे समाज पहले सभ्य बने हैं उसके बाद तकनीकी या आर्थिक रूप से मजबूत हुए हैं. भारतीय धर्म-धूर्त और सवर्ण द्विज पाखंडी हमेशा ये समझाते हैं कि भारत का धर्म और नैतिकता सबसे ऊँची है, उसे वहीं का वहीं बनाये रखते हुए इन्हें साइंस और टेक्नोलोजी का विकास करना है. ठीक यही तर्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान सहित अन्य इस्लामिक मुल्कों में दिया गया है. नतीजा साफ़ है. ये मुल्क न तो विज्ञान तकनीक सीख पाए न ही इंसानियत सीख पाए. मोबाइल से लेकर मिसाइल तक और लोकतंत्र से लेकर प्रबंधन तक हर एक चीज यूरोप अमेरिका जापान जैसे सभ्य समाजों से उधार ले रहे हैं.
नीचे जापानी समाज की एक ख़ास विशेषता पर हमारी मित्र ‘सम्यक संकल्प’ ने विस्तार से लिखा है जापानी समाज में गर्भवती स्त्री के संबंध में वहां का सभ्य समाज और सरकारी तन्त्र कैसे काम करता है इसे गौर से पढ़ें और सोचें कि भारत इस मुद्दे पर कहाँ ठहरता है. इसी से तुलना कीजिये कि भारत का धर्म, संस्कृति और सभ्यता बोध की क्या हालत है.
“गर्भवती होते ही माता को इसकी सूचना अपनी नगरपालिका या वार्ड कार्यालय को देनी होती है और उसे माता और शिशु की देखभाल संबंधी निर्देश पुस्तिका दी जाती है। इसमें सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का विवरण होता है। इसमें गर्भवती महिला की प्रत्येक जाँच का विवरण भी अंकित किया जाता है।शिशु के जन्म के बाद के उसके पालन-पोषण के लिए अलग से अनुदानों का प्रावधान है। यदि परिवार में चार सदस्य हों और उनकी कुल वार्षिक आय 2396000 येन (लगभग १२ लाख रुपये)से कम हो तो शिशु के तीन वर्ष का होने तक, पहले और दूसरे शिशु के लिए 5 हजार येन प्रतिमाह और तीसरे बच्चे के लिए 10 हजार येन प्रतिमाह अनुदान दिया जाता है। यदि परिवार की आय इससे अधिक हो और माता या पिता में से कोई भी राज्य या व्यावसायिक प्रतिष्ठान का कर्मी हो और उसकी वार्षिक आय 4178000येन(बीस लाख रुपये) से कम हो तो उसे राज्य सरकार या प्रतिष्ठान द्वारा अलग से इतना ही पालनपोषण भत्ता अनुमन्य है।पिता की मृत्यु अथवा माता का विवाह-विच्छेद होने पर, बच्चे के लिए अठारह साल की अवस्था तक और विकलांगता की स्थिति में बीस वर्ष की अवस्था तक प्रतिमास पूर्ण भत्ता 41390 येन और आंशिक भत्ता 27690 येन अनुमन्य है। दूसरे बच्चे के लिए 5000 येन और तीसरे बच्चे के लिए 3000 प्रति येन अलग से दिया जाता है।यदि बच्चा विकलांग हो, और परिवार की कुल आय 7410000 येन से कम हो तो अधिक विकलांगता की स्थिति में 50350 येन, और कम विकलांगता की स्थिति में 33530 येन प्रतिमास अनुदान अनुमन्य है। यदि परिपालक पिता न होकर अभिभावक हो और उसकी कुल वार्षिक आय 9041000 येन से कम हो और परिवार में 6 सदस्य हों तो उसे भी यह अनुदान अनुमन्य है।घर आकर नवजात शिशुओं की जाँच करने के लिए अलग से नर्सों की नियुक्ति की गयी है। प्रत्येक मुहल्ले में एक स्वयंसेवी शिशु आयुक्त नियुक्त है जो गर्भवती माताओं और शिशुओं के बारे में जानकारी लेता रहता है और उन्हें आवश्यक निर्देश देता है। यही नहीं जिनके माता पिता देर से घर लौटते हैं उनके लिए स्कूलों में अलग से मनोरंजन, क्रीड़ा और जलपान की व्यवस्था है।जापान में गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सुविधाएँ हैं। प्रत्येक महिला को प्रसव से पूर्व आवश्यक जाँच हेतु अस्पताल आने-जाने के लिए तीस हजार येन (१५ हजार रुपये) के कूपन, प्रसव में अस्पताल के परिव्यय के लिए 6लाख येन (तीन लाख रुपये ) तथा शिशु के जन्म के बाद उसके वस्त्रादि के लिए पुनः तीस हजार येन के कूपन दिये जाते हैं।यही नहीं, यदि माता-पिता अल्प-आय वर्ग चौबीस लाख येन ( बारह लाख रुपये) प्रति वर्ष से कम आय वर्ग के हों तो शिशु के वस्त्रादि के लिए प्रतिमास अलग से अनुदान दिया जाता है। जन्म के दो सप्ताह बाद शिशु के स्वास्थ्य की जाँच के लिए अस्पताल से एक नर्स घर आती है। दस वर्ष की अवस्था का होने तक सभी बच्चों की चिकित्सकीय जाँच और औषधियाँ की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। इसमें माता-पिता की राष्ट्रीयता पर विचार नहीं किया जाता।वस्तुतः जापान के संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक नागरिक को रहन-सहन के न्यूनतम स्तर की गारंटी दी गयी है। इस अनुच्छेद के अधीन माता और शिशु के कल्याण के लिए अनेक प्राविधान किये गये हैं। इन प्राविधानों के मूल में जनसंख्या के अनवरत ह्रास को रोकने के साथ-साथ एक स्वस्थ समाज के निर्माण का संकल्प भी है। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय की सूचनाओं के अनुसार जापान में 1960 में बाल-मृत्यु दर 30.7 और जन्मना मृत शिशुओं की दर 17 प्रति हजार थी। यह 1994 में घट कर क्रमशः 4.2 और 2.3 प्रति हजार हो गयी। इसमें जापान सरकार की स्वास्थ्य-नीति के निम्नलिखित प्रावधानों का महत्वपूर्ण योगदान है।यदि कोई शिशु जन्म के समय 2.5 कि.ग्रा. से कम हो अथवा समय से पहले पैदा तो ऐसे बच्चों की नियमित जाँच के लिए बुलाने पर नर्स की सेवाएँ निःशुल्क उपलब्ध हैं। इसके अलावा माता और शिशु के लिए अलग से चिकित्सा भत्ता दिया जाता है। विकलांग अथवा क्षयग्रस्त बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं और गर्भवती माताओं की चिकित्सकीय जांच आदि के लिए विशेष अनुदान दिया जाता है”
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संजय जोठे लीड इंडिया फेलो हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं। समाज कार्य में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय हैं। ब्रिटेन की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन में परास्नातक हैं और वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी कर रहे हैं।