Read Time:5 Minute, 3 Second
संजय जोठे (Sanjay Jothe)
जर्मनी और रवांडा जैसे कुछ अफ्रीकी देशों में कई सारे होलोकॉस्ट म्यूज़ियम हैं. स्कूल कॉलेज के बच्चों को वहां दिखाया जाता है कि हिटलर के दौर में या हुतु तुत्सी जातीय हिंसा के दौर में किस नँगाई का नाच हुआ था, कैसे पढ़े लिखे समझदार लोग जानवर बन गए थे और एकदूसरे की खाल नोचने लगे थे।
मरे हुए लोगों को खोपड़ियां, कंकाल, जूते, कपड़े, उनके बर्तन, फर्नीचर इत्यादि सब सजाकर रखे गए हैं ताकि अगली पीढ़ी देख सके कि वहशीपन क्या होता है और धार्मिक नस्लीय जातीय हिंसा से क्या क्या संभव है।
भारत मे भी हर जिले में भी ऐसा ही कम से कम एक ‘दंगा, छुआछूत और बाबा म्यूजियम’ होना चाहिए जिसमें उस इलाके में हुए धार्मिक जातीय दंगों का विवरण और फोटो इत्यादि रखे गए हों। छुआछूत के आधार पर उस इलाके के पाखण्डी सवर्ण द्विजों ने सालों साल तक कैसे अपनी ही स्त्रियों और दलितों, यादवों, अहीरों, कुर्मियों, कुम्हारों, किसानों, मजदूरों, शिल्पियों को जानवर-सी जिंदगी में कैद रखा, कैसे मूर्ख बनाकर गरीबों की जमीनों और औरतों को लूटा – ये सब बताया जाना चाहिए।
कैसे यज्ञ हवन और पूजा पाठ करने वालों, ज्योतिषियों, गुणियों कान फूंकने वाले ओझाओं ने औरतों और शूद्रों दलितों को शिक्षा और रोजगार सहित पोष्टिक भोजन और जीवन के अधिकार से वंचित रखा ये दिखाया जाना चाहिए।
कितने बाबाजन, योगियों, रजिस्टर्ड भगवानों और धर्मगुरुओं ने कितने बलात्कार किये, कितने मर्डर किये, कितनी ज़मीनें दबाई कब कोर्ट ने उन्हें दबोचा, वे कितने साल जेल में रहे – ये सब विस्तार से बताना चाहिए।
अगली पीढ़ी अगर इन सब मूर्खताओं को करीब से देख समझ ले तो उसे कावड़ यात्रा, कार सेवा, देवी देवता के पंडालों, धार्मिक दंगों, बाबाओं के बलात्कार और जातीय धार्मिक दंगों सहित छुआछूत भेदभाव और अंधविश्वास से बचाया जा सकता है।
लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि ये सब बताने की बजाय भारतीय परिवार अपने बच्चों को अपने मूर्ख पारिवारिक गुरुओं, देवी देवताओं के पंडालों और आत्मा-परमात्मा की बकवास सिखाने वाले शास्त्रों की गुलामी सिखाते हैं। हर पीढ़ी बार बार उसी अंध्विश्वास, छुआछूत और कायरता में फंसती जाती है।
भारत मे व्यक्ति और समाज की चेतना का एक सीधी दिशा में रेखीय क्रमविकास नहीं होता बल्कि यहाँ सब कुछ गोलाई में घूम फिरकर वहीं का वहीं पुराने दलदली गड्ढे में वापस आ जाता है। इसीलिए ये मुल्क और इसकी सभ्यता कभी आगे बढ़ ही नहीं पाती. हर पीढ़ी उन्हीं बीमारियों में बार बार फंसती है जिन्हें यूरोप अमेरिका के समाज पीछे छोड़ चुके हैं।
भारत के धर्म और सँस्कृति को इतना सक्षम तो होना ही चाहिए कि अपने लिए नए समाधान न सही कम से कम नई समस्याएं ही पैदा कर ले। बार बार उन्हीं गड्ढों में गिरना भी कोई बात हुई?
~~~
संजय जोठे लीड इंडिया फेलो हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं। समाज कार्य में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय हैं। ब्रिटेन की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन में परास्नातक हैं और वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी कर रहे हैं।
Magbo Marketplace New Invite System
- Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
- Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
- Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
- Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
- magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK