Nurun N Zia Momin
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एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin)

Nurun N Zia Mominइस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पसमांदा आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्तियों, पसमांदा संगठनो के पदाधिकारियों तथा समर्थकों द्वारा इबलीसवाद, इबलीसवादी तथा इबलीसी जैसे शब्दों का प्रयोग अक्सर अपने लेखों, भाषणों, फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल साइटों पर अपनी पोस्टों तथा बहस के दौरान अपनी टिप्पणियों में किया जाता है जिसमें वह सैयदवाद (तथाकथित सैयदवाद) को ही इबलीसवाद कहते है तथा सैयदवाद के समर्थकों को इबलीसीवादी व इबलीसी कहते है। जिसका तथाकथित सैयद तथा सैयदवादी विचारधारा के समर्थकों द्वारा भारी विरोध किया जाता है किन्तु पसमांदा आन्दोलनकर्ता व समर्थकों द्वारा प्रस्तुत तर्को के आगे सैयदवादी निरुत्तर होते हुए अक्सर सोशल साइटों पर बहस के दौरान देखे जा सकते हैं। तथाकथित सैयदवाद को इबलीसवाद कहने वालों के दावो में कितनी सच्चाई है इसे जानने के लिए पहले हमें ये जानना होगा कि इबलीसवाद क्या है? तथा इबलीसवाद को समझने के लिए क़ुरआन में वर्णित उस घटना का अध्ययन आवश्यक है जिसमें अजाजील【1】अर्थात इबलीस द्वारा अल्लाह के आदेश के बाद भी हजरत आदम (अलैहि0) के सजदे का इनकार किया गया है, जिसका वर्णन क़ुरआन में कई स्थानों पर किया गया है जो प्रमुख रूप से निम्नवत है-

1- “हमने तुम्हारी (इन्सान की) संरचना का आरम्भ किया, फिर तुम्हारा रूप बनाया, फिर फरिश्तों से कहा आदम को सजदा करो। इस आदेश पर सबने सजदा किया मगर इबलीस सजदा करने वालो में शामिल न हुआ। पूँछा, तुझे किस चीज ने सजदा करने से रोका जबकि मैंने तुझको आदेश दिया था? बोला, मैं उससे अच्छा हूँ, तूने मुझे आग से पैदा किया है और उसे (आदम को) मिट्टी से।”【2】

2- “फिर याद करो उस अवसर को जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि, मैं सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे से एक इन्सान पैदा कर रहा हूँ। जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमे अपनी रूह से कुछ फूँक दूँ तो तुम सब उसके आगे सजदे में गिर जाना। अतएव सब फरिश्तों ने सजदा किया, सिवाए इबलीस के कि उसने सजदा करने वालो का साथ देने से इनकार कर दिया। रब ने पूँछा, ऐ इबलीस, तुझे क्या हुआ कि तूने सजदा करने वालो का साथ न दिया? उसने कहा, मेरा यह काम नहीं है कि मैं उस इन्सान को सजदा करूँ जिसे तूने सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे से पैदा किया है।”【3】

3- “और याद करो जबकि हमने फरिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो, तो सबने सजदा किया मगर इबलीस ने न किया। उसने कहा, क्या मैं उसको सजदा करूँ जिसे तूने मिट्टी से बनाया है? फिर वह (इबलीस) बोला, देखो तो सही, क्या यह (आदम) इस योग्य था कि तूने इसे मेरे मुकाबले में श्रेष्ठता दी?”【4】

4- “जब तेरे रब ने फरिश्तों से कहा, मैं मिट्टी से एक इन्सान बनाने वाला हूँ, फिर जब मैं उसे पूरी तरह बना दूँ और उसमे अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाओ। इस आदेश के अनुसार फ़रिश्ते सब के सब सजदे में गिर गए, मगर इबलीस ने अपनी बड़ाई का घमण्ड किया और वह इनकार करने वालो में-से हो गया। रब ने कहा, ऐ इबलीस, तुझे क्या चीज उसको सजदा करने में रोक बनी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया है? तूँ बड़ा बन रहा है या तूँ है ही कुछ उच्च श्रेणी की हस्तियों में-से? उसने जवाब दिया, मैं इससे  अच्छा हूँ आपने मुझको आग से पैदा किया है और इसको मिट्टी से।”【5】

क़ुरआन की उक्त आयतों के अध्यन से स्पष्ट होता है कि अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने जब फरिश्तों को आदम अलैहिस्सलाम के सजदे का हुक्म दिया तो अजाजील अर्थात इबलीस के अतिरिक्त सभी ने सजदा किया तथा इबलीस के सजदा न करने का इसके सिवा कोई कारण नहीं था कि वह जन्म (वंश) के आधार पर स्वयं को हजरत आदम अलैहि0 से श्रेष्ठ मानता था क्योंकि अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने उसे आग से बनया था और आदम को मिट्टी से वह भी सड़े हुए गारे की सूखी मिट्टी से।

इससे स्पष्ट होता है कि इबलीस ने श्रेष्ठता/प्रतिष्ठा का आधार पैदाइश (जन्म) को माना जबकि अल्लाह (इस्लाम) के नजदीक श्रेष्ठता/प्रतिष्ठा का आधार सिर्फ और सिर्फ कर्म है न कि जन्म, वंश, लिंग, रंग, स्थान आदि। जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त का इरशाद है कि- “हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है फिर तुम्हारी क़ौमें और कबीले (खानदान, बिरादरियाँ) बनाये ताकि तुम एक दूसरे को पहिचानो। वास्तव में अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे ज़्यादा प्रतिष्ठित (श्रेष्ठ, सम्मानित) वह है जो तुममे सबसे ज़्यादा परहेजगार (धर्मपरायण) है।”【6】

क़ुरआन की उक्त आयत की स्पष्ट व्यख्या हजरत मोहम्मद सल्ल0 द्वारा हज्जतुलवेदा के अवसर पर दिया गया ख़ुत्बा (भाषण) है जिसे इतिहास में आख़िरी ख़ुत्बे (अन्तिम भाषण) के नाम से भी जाना जाता है जिसका सार इस प्रकार है- “आज अहदे जाहिलियत (अज्ञानता काल) के तमाम दस्तूर (विधान) और तौर तरीके खत्म कर दिए गए। खुदा एक है और तमाम इंसान आदम (अलैहि0) की सन्तान हैं और आदम की हकीकत इसके सिवा क्या है कि वह मिट्टी से बनाये गए। किसी गोरे को न किसी काले पर और न किसी काले को किसी गोरे पर कोई श्रेष्ठता प्राप्त है, न किसी अरबी को किसी अजमी पर और न ही किसी अजमी को किसी अरबी पर कोई श्रेष्ठता प्राप्त है, तुम में वही श्रेष्ठ/प्रतिष्ठित है जो अल्लाह से अधिक डरने वाला है और जिसके कर्म श्रेष्ठ हैं।”【7】

इस प्रकार हम देखते हैं कि इस्लाम और इबलीसवाद एक दूसरे की जिद (विरोधी, शत्रु) हैं जहाँ इस्लाम में जन्म, वंश, स्थान, लिंग, रंग आदि का कोई महत्व नहीं है क्योंकि इस्लामिक सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की प्रतिष्ठा (सम्मान, श्रेष्ठता) का आधार कर्म हैं वहीं इबलीस के अनुसार प्रतिष्ठा/श्रेष्ठता का आधार जन्म (वंश) है। दूसरे शब्दों में प्रतिष्ठा/श्रेष्ठता का आधार कर्म के बजाय जन्म (वंश) को मानना इस्लाम की नहीं बल्कि इबलीस की विचारधारा को मानना है। चूंकि जन्म (वंश) के आधार पर प्रतिष्ठा/श्रेष्ठता के सिद्धांत का जनक इबलीस है इसलिए जो कोई भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा/श्रेष्ठता का आधार कर्म के स्थान पर जन्म (वंश, लिंग, स्थान, रंग आदि) को मानता है वह इबलीसवादी है दूसरे शब्दों में वह आले रसूल (रसूल सल्ल0 का पैरोकार) नहीं बल्कि आले इबलीस (इबलीस का पैरोकार) है।

निःसन्देह सैयदवाद की विचारधारा जन्म (वंश) की श्रेष्ठता पर आधारित है।【8】

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सन्दर्भ

【1】इबलीस का मूल नाम अजाजील था अल्लाह के आदेश की अवहेलना अर्थात हजरत आदम के सजदे का इनकार करने के बाद अल्लाह ने उसे इबलीस कहा जिसका शाब्दिक अर्थ “नेहायत मायूस” होता है।

【2】सूरः आराफ़ आयत 11-12

【3】सूरः हिज्र आयत 28-33

【4】बनी इसराइल आयत 61-62

【5】सूरः साद आयत 71-76

【6】सूरः हुजरात आयत 13

【7】तिरमिजी, बैहिकी

【8】सैयदवाद को विस्तार से जानने के लिए लेखक का एक अन्य आर्टिकल “सैयद व आले रसूल शब्द- सत्यता व मिथक” देखे जिसका लिंक निन्मवत है.

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नुरुल ऐन ज़िया मोमिन आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ‘ (उत्तर प्रदेश) केराष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनसे दूरभाष नंबर 9451557451, 7905660050 और nurulainzia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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