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चन्द्रशेखर आज़ाद से अभिषेक जुनेजा की बातचीत

chandrashekhar azadगत बृहस्पतिवार, 14  फरवरी को भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद एक ख़ास मुद्दे पर चर्चा के लिए प्रेस क्लब देहरादून पहुंचे. एससी, एसटी और ओबीसी छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति सरकार द्वारा रोके जाने को लेकर उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार ने 22 फरवरी तक शिक्षा शुल्क का भुगतान प्राइवेट कॉलेजों की निर्धारित फीस स्ट्रक्चर के अनुसार नहीं किया तो भीम सेना आगामी 23 फरवरी को सरकार के खिलाफ एक विशाल रैली का आयोजन करेगी. प्रदेश सरकार ने हाल ही में हुए ज़हरीली शराब कांड पर भी कोई सख्त कदम नहीं उठाया. साथ ही उन्होंने कहा कि पीएम ने मृतकों के प्रति संवेदना जताना भी उचित नहीं समझा. बिना राज्यसरकार की जानकारी के ये मिलावट करना, बेचना मुमकिन नहीं है और इस हत्याकांड की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य की भाजपा सरकार की है.  

प्रेस वार्ता के बाद समय निकालकर चंद्रशेखर ने Round Table India से बात की. 

अभिषेक : जय भीम, चन्द्रशेखर जी.

चंद्रशेखर: जय भीम 

अभिषेक : ये जो 10% गरीब सवर्ण आरक्षण का बिल निकला है, और रातों रात लोक सभा और राज्य सभा दोनों में काफ़ी तेज़ी से यह गुज़ारा गया है. ना ही सरकार के पास 10%  सवर्णो को आरक्षण देने का कोई डेटा था. उलटा जो सोषीयो-एकनामिक कास्ट सेन्सस (SECC ) का डेटा है 2011 का, वो अभी तक नहीं निकाला गया है. इससे जुड़कर क्या कार्यवाही कर सकते हैं? 

चंद्रशेखर: देखिए सरकार ने ये लागू कर दिया है, जबकि ये संविधान की हत्या है. संविधान में जो रेज़र्वेशन का बेस है, वो सामाजिक भेद-भाव व् उत्पीड़न के बरक्स प्रतिनिधित्व है. उसका बेस सामाजिक आधार है. लेकिन सरकार ने क्या किया है कि सरकार ने आर्थिक आधार पर लागू करा कर जो संविधान की हत्या की है, उस पर कुछ बहुजन नेता भी उसका समर्थन कर रहे हैं. यह बहुत ग़लत है. संविधान के ख़िलाफ़ अगर कोई जाता है तो हमें चाहिए कि हम संविधान के बचाव में सरकार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे. इस देश में ऐसा नहीं होगा. इस देश में लोग अपनी राजनीति के लिए संविधान की हत्या कराने को तैयार हैं. तो हम जो संविधान के समर्थक लोग हैं, इसका विरोध करते हैं और प्रयास करेंगे की इसके लिए अभी 2019 के बाद एक बड़ा आंदोलन हम लोग करें. तो हम इसकी तैयारी कर रहे हैं क्योंकि संविधान के खिलाफ कोई भी चीज़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

अभिषेक : सर, बाबासाहेब का और मान्यवर कांशीरामजी का आंदोलन आज कितना राजनीतिक है, और कितना इसमें सामाजिक बचा है? क्योंकि लगता है सारी ऊर्जा राजनीतिक आंदोलन में चली गई है और सामाजिक मुद्दे पर सवाल नहीं उठ रहा है. क्योंकि ऐसे 10% वाले बिल रातों रात बहुजन पार्टियों के समर्थन से पास हो जाते हैं और उस पर चूँ भी नहीं होती है, ये तो बहुत दुखद है सर.

चंद्रशेखर: सोशल मूव्मेंट तो ख़त्म हो चुकी है. अब लोगों को सिर्फ़ सत्ता चाहिए. कैसे भी मिले. चाहे वो साहेब कांशीराम और बाबासाहेब की विचारधारा के ख़िलाफ़ जाकर मिले. साहेब कांशीराम बहुजन हित और बहुजन सुख के लिए लड़ते थे. अभी तो पार्टी जो जिसको हम अपनी राष्ट्रीय पार्टी कहते हैं वो सब जगह सर्वजन सुख के लिए लड़ रही है. तो उनको सामाजिक मूवमेंट से कोई मतलब नहीं रहा. वो राजनीति कर रहे हैं और वह राजनीति करना चाहते हैं, चाहे वो राजनीति कैसी भी हो. उसके लिए चाहे विचारधारा को भी बदल दिया जाए. तो अभी हमने यह सामाजिक मूवमेंट चलाने की ज़िम्मेदारी ले रखी है. हम इस पर काम कर रहे हैं. बाबासाहेब और साहेब कांशीराम की सोशल मूव्मेंट ख़त्म हो चुकी है राजनीतिक दलों के माध्यम से. लेकिन भीम आर्मी सोशल मूव्मेंट को चला रही है. और क्योंकि सब लोग जानते हैं कि बिना सामाजिक एकता के राजनीतिक एकता हो ही नहीं सकती है. और बाबासाहेब ने भी इस पर कहा है कि बिना सामाजिक एकता के राजनीतिक एकता एक ऐसा पेड़ या पौधा है, जो एक हल्के से हवा के झोंके से ही गिर जाए. तो हम तैयार करें कि पहले बहुजन सामाज सामाजिक रूप से एक जुट हो, एक ताक़त बने. और वही ताक़त जो है, वही आने वाले समय में बहूजनो को दिल्ली की गद्दी में पहुँचाने का काम करेगी. तो सामाजिक मूवमेंट नहीं है, सिर्फ़ राजनीतिक मूवमेंट है, और राजनीतिक मूवमेंट में सारे हथकंडे इसलिए हैं कि सिर्फ़ राजनीतिक सत्ता मिल जाए. हमारा लक्ष्य सिर्फ़ राजनीतिक सत्ता पाना नहीं था. हमारा लक्ष्य था सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति का, जो आंदोलन था साहेब कांशीराम का, उसको प्राप्त करना. लेकिन अब वो उसपे कोई ध्यान नहीं दे रहा है. बहुजन संगठन जल चुका है.

अभिषेक : एक और सवाल यह है कि जो ब्रह्मणवादी ताक़तें हैं, वह सेंटर से भी ऑपरेट कर रही हैं, और स्टेट से भी ऑपरेट कर रही हैं. मतलब भाजपा को स्टेट लेवल पर चाहे वो उड़ीसा है, चाहे वह एआईडीएमके. हर जगह लोकल ब्रह्मणवादी पार्टीयों से ताक़त हासिल हो रखी है. तो क्या बहुजन आंदोलन जो है वो लोकल लेवल पर काम करेगा या फिर उसको भी एक पैन-इंडिया स्वरूप मिलना चाहिए? जैसे कि दलित पैन्थर्ज़ काम कर रहे थे 70 व् 80 के दशक में; जैसे द्रविड़ मूव्मेंट काम कर रहा था. क्या इसका एक कॉमन मूव्मेंट बनेगा देश के स्तर पर या फिर हम लोकल प्रांतीय स्तर पर, प्रांतीय  भाषाओं के लेवल पर लड़ेंगे?

चंद्रशेखर: देखिए शायद आपको जानकारी नहीं है, भीम आर्मी एक बड़ा परिवार है, जो उड़ीसा  में भी काम करता है, जो कर्नाटक में भी काम करता है, जो तेलंगाना में भी काम करता है, जो केरल में भी काम काम करता है और वेस्ट बेंगॉल में भी काम करता है. तो भीम आर्मी के माध्यम से हमें यह पता है कि हम किस आइडियोलॉजी (विचारधारा) को लेकर चल रहे हैं. यह जो साहेब कांशीराम, बाबासाहेब, तथागत बुद्ध की आइडियोलॉजी है. तो हम उसका समर्थन करते हैं. उसके अलावा हमारा लाल सलाम, या किसी और आइडियोलॉजी से कोई समर्थन या विरोध नहीं है. हम अपनी आइडियोलॉजी के साथ हैं. जो हुमारे साथ खड़ा है, जो साहेब कांशीराम और बाबासाहेब की आइडियोलॉजी के साथ हमारे साथ खड़ा है, हम उसका स्वागत करते हैं. इस बड़े परिवार में आने के लिए सबका स्वागत है. लेकिन आइडियोलॉजी वही रहेगी, साहेब कांशीराम और बाबासाहेब की. इसके अलावा किसी आइडियोलॉजी के लोग अगर इसमें समर्थन करते हैं या वह अपनी तरह अगर कहीं काम करते हैं, तो वह करते रहें. उनसे हमें कोई दिक़्क़त नहीं है.

हमारा काम है कि जो लोग बहुजन आंदोलन से प्रेरित हैं, जो लोग बहुजन मूव्मेंट से प्रेरित हैं, हम उनके साथ हैं. तो जो लोग अलग अलग सिर्फ़ ईगो फ़ैक्टर में या अपने राजनीतिक वर्चस्वों के लिए काम कर रहे हैं, तो यह उनको सोचना चाहिए क्योंकि हम तो लगातार 5 साल से इसमें बहुत मज़बूती से काम कर रहे हैं. उससे पहले जो लोग काम कर रहे थे और 70 साल में बदलाव नहीं हुआ, तो कहीं कुछ ख़ामियाँ तो रही हैं ना! तो यानि कि व्यक्तिगत ईगो जो है, इस बीच में आ रही है. वह क्यों नहीं एक जुट होना चाहते हैं? अगर भाजपा को रोकना ही अपना लक्ष्य है पूरे देश में, तो क्या सामाजिक मूवमेंट, क्या राजनीतिक मूव्मेंट या बहुजन समाज के सारे लोग एक जुट हुएँ हैं? तो ऐसा नहीं हो पा रहा है. सिर्फ़ अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकनी हैं, सिर्फ़ अपने फाएदे के लिए लोग लड़ रहे हैं. और इससे मुझे यह तो पता नहीं कि भाजपा रुकेगी या नहीं रुकेगी, लेकिन मुझे इतना पता है कि उनके राजनीतिक भले के चक्कर में समाज पिस जाएगा. जिस तरह से आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू हुआ, 13 पोईंट रॉस्टर लागू कर दिया गया है, तो हमें दिख रहा है कि फिर से मनुस्मृति को बैकडोर से लागू किया जा रहा है. और जो बहूजनों की स्वतंत्र आवाज़ बनते हैं, जो बहूजनों के लिए आवाज़ उठाने का काम करते हैं, जो मूवमेंट बहूजनों के लिए थी, वह उन्हीं की चाटुकारिता कर रही हैं, उनको मज़बूत कर रही हैं. उनके विरोध में काम नहीं कर रही है.

ग़ज़ब की बात यह है कि हमारी तरफ़ से तो राज्य सभा में भी सतीश मिश्रा जी बात रखते हैं. तो वही तो चाहते हैं कि उनकी लाइफ़ की लड़ाई भी हम लड़ें. हम तो अपनी लड़ाई लड़ने में पूरे सक्षम हैं. हम तो अपनी लड़ाई लड़ना जानते हैं. और आया में और माँ में फ़र्क़ होता है. आया पैसों के लिए काम करती है, और माँ का एक प्रेम होता है. तो हमें आया नहीं चाहिए. बहुजन समाज में बहुत लोग हैं हमारे पास बात रखने वाले. ये प्राइवेट यह जो हायर (किराये पर लिया हुआ) की हुई आया हैं इनकी ज़रूरत नहीं है. भाजपा

अभिषेक : एक आख़री सवाल कि सिर्फ़ भाजपा तो हिन्दुत्ववादी या ब्रह्मणवादी पार्टी नहीं है. कांग्रेस अपनी स्थापना से लेकर और कॉम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना से लेकर एक ब्रह्मणवादी पार्टी रही हैं. तो क्या अपनी सारी ऊर्जा भाजपा की तरफ़ केंद्रित करने से… आज जैसे रोहिथ वेमुला के मामले में लेलें या सहारनपुर या मुज्ज़फरपुर में लेलें, लेफ़्ट पार्टी जो हैं दिल्ली से गिद्द की तरह बहुजन मुद्दों पर चिपक जाती हैं, और आज जैसे पूरी कोशिश की जा रही है, कांग्रेस की प्रियंका गांधी को ठूँसा जा रहा है सपा-बसपा गठबंधन को तोड़ने के लिए. तो इस सूरत में क्या सिर्फ़ भाजपा के ख़िलाफ़ ऊर्जा केंद्रित करके हमारा मूवमेंट आगे बढ़ सकता है? 

चंद्रशेखर: देखिए मेरा काम है सिर्फ़ संविधान को सुरक्षित रखना. तो अभी संविधान की हत्या करने का काम भाजपा कर रही है, और रूलिंग पार्टी भाजपा है. तो मैं अपनी एनर्जी विरोधीयों के ख़िलाफ़ लगाने का काम कर रहा हूँ. किसी पार्टी की सोच के ख़िलाफ़ नहीं, किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं. उस नीति के ख़िलाफ़ जो इस देश के संविधान को ख़त्म करना चाहती है. तो जो रूलिंग पार्टी है अभी तो उनके ख़िलाफ़ ही. कांग्रिस तो उसमें सेंटर में सत्ता में ही नहीं है कि मैं उसके ख़िलाफ़ काम करूँ. और मैं हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ हूँ, जो बाबासाहेब के संविधान के ख़िलाफ़ है. मैं कभी भी ऐसे व्यक्ति का सहयोग नहीं करूँगा जिनको… अभी बुरी बात यह है, मैंने पिछली बार भी दोहराई थी, अगर सेक्युलर का आपको सर्टिफ़िकेट चाहिए तो आप कांग्रेस के पास चले जाइए. आपको देश-भक्ति का सर्टिफ़िकेट चाहिए तो आप आरएसएस और भाजपा के पास चले जाइए. और अगर आपको जाति का सर्टिफ़िकेट चाहिए, कि किस जाति के नेता आप हैं, तो आप मीडिया के पास चले जाइए. यहीं तक सीमित है लोकतंत्र. 

मैं ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं करता, ना ही ऐसे लोकतंत्र का समर्थन करता हूँ. मैं मानवतावादी बुद्ध की बात करता हूँ. तो हम बुद्ध का शासन चाहते हैं, जिसमें चिकित्सा, शिक्षा और न्याय फ़्री हों. तो किसी पार्टी का समर्थन या विरोध नहीं है. बस नीति का विरोध है. जो लोग बाबासाहेब की शव-यात्रा निकालते हैं, वह बाबासाहेब के हितैषी नहीं हो सकते हैं. इसका मतलब आज जो बाबासाहेब की बात करें, तो कुछ लोग जो हैं उनसे राजनीतिक फायदा  चाहतें हैं. शिकारी जाल फेंक रहा है, और हमारे लोगों को फ़साने का काम कर रहा है. तो हम ऐसे शिकारी के दाँत खट्टे करना भी अच्छी तरह जानते हैं. तो हमारा पहला लक्ष्य भाजपा को रोकना है. हम भाजपा को सत्ता से बेदख़ल करेंगे. पहले जो है बड़े दुश्मन को सत्ता से बेदख़ल करेंगे. फिर जो छोटा दुश्मन होगा उसकी भी टाँगे उखाड़ लेंगे राजनीतिक सत्ता से. ऐसा नहीं है. समय आएगा, तब सब चीज़ों में बदलाव आएगा. लेकिन पहले भाजपा को रोकना अंतिम और प्रथम लक्ष्य है.

अभिषेक : राउंड टेबल इंडिया इस बात करने के लिए आपका धन्यवाद् !

चंद्रशेखर: आपका भी!

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यह  साक्षात्कार RTI  की तरफ से अभिषेक जुनेजा द्वारा लिया गया है व इसका लिप्यंतरण रैना सिंह द्वारा किया गया है. 

अभिषेक और रैना ‘अम्बेडकर रीडिंग ग्रुप’ देहरादून के संस्थापक सदस्य हैं. 

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