Jyant Jigyasu
0 0
Read Time:28 Minute, 30 Second

 

जन्मदिन पर विशेष

जयंत जिज्ञासु (Jayant Jigyasu) 

Jyant Jigyasuछात्र-शिक्षक-शिक्षा-शोध-समाज-नुमाइंदगी-राष्ट्रनिर्माण-मानवता आदि के सरोकारों को संसद में 43 साल तक अनवरत उठाने वाले व तीन मुख़्तलिफ़ सूबों से चुनकर लोकसभा पहुंचने वाले देश के चौथे मात्र सांसद व यशस्वी सियासतदां शरद यादव का कल 73वां जन्मदिन था.

 

शरद यादव को इतिहास में विशिष्ट जगह इसलिए भी मिलेगी कि जब लोकसभा का कार्यकाल बढा कर 6 वर्ष कर दिया गया तो लोकसभा की 5 साल की तयशुदा अवधि पूरी होने पर इस्तीफा देने वाले दो ही लोग थे,एक शरद यादव और दूसरे मधु लिमये। अटल बिहारी ने तो दल के अनुशासन से बंधे होने का सुविधाजनक बहाना ढूंढ लिया, मगर अनैतिक व अवैधानिक ढंग से बाकियों की तरह साल भर ज्यादा सांसदी का सुख भोगने का लोभ संवरण नहीं कर पाए।

 

जब शरद जी ने लोकसभा से इस्तीफा दिया, तो लोकनायक जेपी ने उन्हें स्नेह भरा एक ख़त लिखा:

प्रिय शरद,

लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के संबंध में तुम्हारा पत्र बहुत पहले मिला था और मैंने उसके उत्तर में अपना मंतव्य भी तुम्हें श्री काशीनाथ त्रिवेदी के द्वारा भेजा था। वह तुम्हें समय पर मिला, यह सूचना भी मुझे मिल गई थी। तुमने लोकसभा से त्यागपत्र देकर त्याग का जो साहसपूर्ण उदाहरण प्रसतुत किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए थोडी है। देश के नौजवानों ने तुम्हारे इस क़दम का हृदय से स्वागत किया है, जो इस बात का सबूत है कि युवा वर्ग में त्याग, बलिदान के प्रति आदर की भावना कायम है। तुम्हारे इस कदम से लोकतंत्र के लिए संघर्षशील हजारों युवकों को एक नयी प्रेरणा मिली है। मेरा विश्वास है कि इस उदाहरण से उनमें वह सामूहिक विवेक जाग्रत होगा जो लोकतंत्र के ढांचे में पुनः प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए आवश्यक है।

मैं तुम्हें अपनी हार्दिक शुभेच्छाएं और आशीर्वाद भेजता हूं।

तुम्हारा सस्नेह,

जयप्रकाश

 

यूं तो शरद जी से अनेक बार सुखद भेंट हुई। पर, 2017 की जुलाई में बिहार में जनादेश अपहरण के बाद जब उनके पास हमलोग गये, तो सबकी बातें उन्होंने गौर से सुनीं। जब मेरी बारी आई और मैंने कहा, “कुछ कीजिए सर, ज़माना आपकी ओर ही उम्मीद भरी निगाहें लगाए हुए है। आपका क़द मंत्री-वंत्री से बहुत ऊंचा है। हर बड़े राजनीतिज्ञ को कुछ उल्लेखनीय ऐतिहासिक कार्य के लिए जाना जाता है, और आपको हमारी पीढ़ी मंडल कमीशन लागू कराने में अविस्मरणीय भूमिका के लिए जानती है। हम चाहते हैं कि आने वाली नस्लें शरद यादव को इस रूप में भी याद करे कि जब एक एक कर सारे लोगों ने अपनी रीढ़ की हड्डी नीलाम करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने जनादेश के साथ दुष्कर्म की मुख़ालफ़त ही नहीं की, बल्कि केंद्र सरकार में प्रस्तावित बड़े महकमे को ठुकरा दिया”, तो शरद जी गंभीर मुस्कराहट बिखेर कर बोल पड़े, “मैं हर प्रदेशाध्यक्ष से बात कर रहा हूँ और कोई भी क़ुर्बानी देने को तैयार हूँ। सवाल है कि देश बचना चाहिए और वो मेरे अकेले से नहीं होगा। तुम सबको आगे आना होगा और अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी”।

 sharad yadav

अली अनवर ने सबसे पहले ऐलानिया कहा, “अगर नीतीश कुमार की अंतरात्मा उन्हें महागठबंधन के साथ रहने से रोकती है, तो मेरा जमीर भी बीजेपी के साथ जाने से मुझे रोकता है। जिन कारणों से नीतीश कुमार के नेतृत्व में हम बीजेपी से अलग हुए थे, आज वो कारण और भी साफ़ तरीक़े से सामने पूरी उग्रता से मौजूद हैं। पार्टी ने गर मौक़ा दिया, तो मैं अपनी बात रखूंगा”।

 

अगले दिन जब उनका बयान नहीं आया और अरुण जेटली का तुग़लक़ रोड चलकर उनसे मिलने और मंत्री पद स्वीकार करने के आग्रह की ख़बर तैरने लगी तो जेएनयू-जामिया-डीयू से फिर हमलोग पहुंचे। और कहा कि आज आपसे जब तक ठोस आश्वासन नहीं मिल जाता सर, हमलोग यहाँ से नहीं जाने वाले, लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। शरद जी ने कहा, “दुनिया की कोई टकसाल मुझे नहीं खरीद सकती। मैंने दो-दो बार इस्तीफ़ा दिया है, भारत सरकार गंवाई है। 70 साल में जो नहीं हुआ, वो बिहार में धूर्तों ने कर दिया। हम सड़क पर निकलने को तैयार हैं। ऐसी बेशर्म सरकार कोई दूसरी न हुई”। और, फिर छात्र-नौजवान ज़िंदाबाद के नारे लगाने लगे। यह इसलिए महत्वपूर्ण एपिसोड है कि अली अनवर साहब,  शरद जी और केरल से जदयू सांसद वीरेन्द्र कुमार, बस तीन ही शख़्सियत ने अपने दल के अंदर तानाशाही को चुनौती दी। शरद जी के इस त्याग को जम्हूरियत की पक्षधर जनता हमेशा याद रखेगी। इस बार नैतिक रूप से वो अपने सियासी जीवन के सर्वोच्च शिखर पर मुझे दिखाई पड़े।

 

sharad yadav3

शरद जी अभिभावक की तरह पेश आते हैं और पढ़ाई के बारे में भी पूछते हैं। मुझे ध्यान नहीं आता कि छात्र हित, शिक्षक हित, शोध हित और समग्रता में शिक्षा हित के किसी सवाल को लेकर उनके पास गये हों और उन्होंने सदन में उसे न उठाया हो।

 

1989 में सदन के अंदर उनकी ज़ोरदार बहस के एक टुकड़े को सीपीएम की एमपी रहीं सुभाषिणी अली जी ने कुछ इस तरह याद किया, “शरद भाई ने सदन में कहा था कि यहां तमाम लोग हैं जो अभी दलितों पिछड़ों के लिए 15 मिनट के भाषण में खूब हाय तौबा मचाएंगे कि उन्हें सब कुछ दे देना चाहिए। फिर उसके बाद एक शब्द का इस्तेमाल करेंगे “लेकिन”। उसके बाद उनका वंचितों के लिए सारा प्रेम खत्म हो जाएगा और वे अपनी जाति के हित में लग जाएंगे”।

 

मंडल कमीशन लागू होने की दास्तान भी कोई कम दिलचस्प नहीं है। जहाँ लालू प्रसाद वीपी सिंह से एकांत में मिल कर मंडल पर अपना रुख़ साफ़ कर दिया था। वहीं, हरियाणा में मेहम कांड और कुछ अन्य बिंदुओं पर ताऊ देवीलाल से वीपी सिंह की खटपट कुछ इस कदर बढ़ गई थी कि मंत्रिमंडल से उन्हें ड्रॉप करने तक की बात हो गई। और, शरद यादव को वीपी सिंह ने फोन कर जब देवीलाल को हटाने की जानकारी दी, तो शरद जी ने कहा कि मिलकर बात करता हूँ, सुब्ह भेंट होती है। पर वीपी सिंह ने तो पहले ही राष्ट्रपति को भेज दिया था। देवीलाल अपना शक्ति-प्रदर्शन करने के लिए एक विशाल रैली करने जा रहे थे। बस यहीं पर शरद यादव ने वीपी सिंह के सामने एक शर्त रख दी कि या तो रैली से पहले मंडल लगाइए, नहीं तो हम देवीलाल जी के साथ अपनी पुरानी यारी निभाएंगे। लगातार सरकार पर मंडराते ख़तरे और मध्यावधि चुनाव की आशंका को देखते हुए जनता दल के जनाधार को और ठोस विस्तार देने की आकांक्षा पाले वी.पी. सिंह की सरकार ने अंततः 7 अगस्त 1990 को सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण लागू करने की घोषणा की।

 

जो उच्च जाति के लोग प्रसोपा (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) वाली पृष्ठभूमि से थे, वो मंडल लगने से खुश थे, वहीं सोपा (सोशलिस्ट पार्टी) वाली पृष्ठभूमि के सवर्ण नेता बहुत तिकड़म कर रहे थे। क्रीमी लेयर का बखेडा लाने में मधु लिमये, जिनके लिए मेरे मन में बहुत आदर है, अंदर ही अंदर बड़ा खेल कर रहे थे। एमजी गोरे, मधु दंडवते, एस एम जोशी जैसे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बैकग्राउंड वाले लीडर्स मंडल कमीशन की एक सिफारिश लागू होने से बहुत प्रसन्न थे। एस एम जोशी जो कैंसर से पीडित थे, ने शरद यादव को घर बुला कर कहा, “अब मैं चैन से इस संसार से विदा ले सकूंगा”।

sharad yadav5

 

10 अगस्त 1990 को आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गया। 13 अगस्त 90 को मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी हुई। 14 अगस्त को अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष उज्ज्वल सिंह ने आरक्षण व्यवस्था के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 19 सितम्बर को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह किया और एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी बुरी तरह झुलस गए।

 

जब एक बार केंद्रीय सेवाओं में पिछडों के आरक्षण की अधिसूचना जारी हो गई तो अरुण नेहरू जैसे कुछ मंत्री रोज़ उपद्रव, अशांति व तनावपूर्ण माहौल की ख़बरों से भरी अख़बारों की कतरन लेकर 7 RCR पहुंच जाते थे और वीपी सिंह का दिमाग़ चाटते थे कि अधिसूचना वापस ले लेनी चाहिए। वीपी सिंह थोडा तैयार भी हो गए थे। ऐसी ही एक कैबिनेट मीटिंग से पहले सचिव विनोद पांडेय ने जब एक सूत्री एजेंडे के बारे में बताया, तो शरद यादव बुरी तरह भड़क गए और कहा कि नोटिफिकेशन वापस करने की हिमाक़त करना भी मत। वित्त मंत्री मधु दंडवते ने शरद जी का जम कर साथ दिया।

 

प्रधानमंत्री समेत भारत सरकार के अधिकांश मंत्रियों की मौजूदगी में 8 अक्टूबर 1990 को पटना के गांधी मैदान में जनता दल की रैली में शरद जी ने कहा था, “जनता दल ने अपने वायदे के मुताबिक हजारों सालों के शोषित पिछडों को आरक्षण देकर न केवल अवसरों में भागीदारी की है, बल्कि हमने उनकी सुषुप्त चेतना और स्वाभिमान को भी जगाने का काम किया है। जो हाथ अकलियतों के खिलाफ़ उठे, उन्हें थाम लो। तुम्हारे इस आंदोलन में अकलियतों का साथ कारगर साबित होगा”।

 

पटना की रैली में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने गरजते हुए कहा था, “चाहे जमीन आसमान में लटक जाए, चाहे आसमान जमीन पर गिर जाए, मगर मंडल कमीशन लागू होकर रहेगा। इस पर कोई समझौता नहीं होगा”। 

 

वीपी सिंह का कालजयी वक्तव्य जनमानस पर आज भी अंकित है-

“हमने मंडल रूपी बच्चा माँ के पेट से बाहर निकाल दिया है, अब कोई माई का लाल इसे माँ के पेट में नहीं डाल सकता है। यह बच्चा अब प्रोग्रेस ही करेगा। मंडल से राजनीति का ग्रैमर बदल गया और एक चेतना डिप्राइव्ड सेक्शन में आई, जो पावर स्ट्रक्चर में नहीं थे, उनको एक कॉन्शसनेस आयी । हम समझते हैं, ये कॉन्शसनेस इंडिविजुअल पार्टी या इंडिविजुअल लीडर से बड़ी चीज़ आई। हो सकता है, कोई एक पिछड़े वर्ग का नेता इलेक्शन हारे या जीते, लेकिन उस पर यह आरोप नहीं लगाना चाहिए कि मंडल सफल हुआ या विफल क्योंकि पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक का सोशल कंपोजिशन देखें तो वह बदल रहा है। पार्टी कोई भी हो, डिप्राइव्ड सेक्शन के लोग ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में आ रहे हैं जिससे डिसीज़न मेकिंग बॉडीज़ का सोशल कंपोजिशन बदल गया है।”

 

शरद यादव ने मंडल कमीशन लागू होने के बाद चंद्रशेखर द्वारा पार्टी तोडे जाने के चलते राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के डांवांडोल होने पर 7 नवंबर 1990 को विश्वास मत पर ऐतिहासिक भाषण करते हुए कहा था, “पूरी दुनिया में अव्वल दर्जे के इस देश में हम किस बात पर अभिमान कर सकते हैं? क्या हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि सदियों से एक चौथाई आबादी को हमने छूने तक का काम नहीं किया है? उन्हें अछूत बनाकर रखा है। किस बात पर गर्व करें? इस बात पर कि हिन्दुस्तान में लोगों को पेशों से बांध दिया गया है। आज लकडी देखो तो बढई दिखता है, लोहा देखो तो लोहार दिखता है, पानी देखो तो मल्लाह दिखता है, गाय देखो तो यादव दिखता है, भैंस देखो तो ग्वाला दिखता है। मंडेला जी का तो हम ताली पीट कर स्वागत करते हैं। वहां तो सिर्फ़ काले-गोरे का अंतर है। लेकिन यहां हिन्दुस्तान में जहां पर यह सदन है, इक्कीसवीं शताब्दी है। और आप यहीं पर चले जाओ यमुना-पार तो वहां पर सोलहवीं शताब्दी है। जहां पर लोग गटर में बसे हुए हैं। क्या इस बात पर हम गर्व कर सकते हैं? या हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा भगवान हमारे यहां पैदा हुए हैं। यह देश गर्व कर सकता है कि यहां पर 33 करोड़ देवी-देवता हैं। 62-63 करोड़ हिन्दुओं पर 33 करोड़ देवी-देवता यानी 2 हिन्दुओं के पीछे एक भगवान है। लेकिन इसके बावजूद इस देश की जैसी दुर्गति कहीं और नहीं है”।

 

1989 के आम चुनाव में जनता दल के घोषणापत्र में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करना शामिल था। मगर जब उसके एक अंश को लागू किया गया तो सरकार को बाहर से समर्थन कर रही भाजपा के आडवाणी ने सोमनाथ से कमंडल रथ निकाल दिया। शरद यादव ने संसद में भाषण दिया था कि यह कोई राम का रथ नहीं, बल्कि भाजपा का रथ है।

 

17 जनवरी 1991 को केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्गों की सूची तैयार की। 8 अगस्त 91 को रामविलास पासवान ने केंद्र सरकार पर आयोग की सिफ़ारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने में विफलता का आरोप लगाते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया और वे गिरफ़्तार किर लिए गए। 25 सितंबर 91 को नरसिंहा राव सरकार ने सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5 प्रतिशत करने का निर्णय लिया जिसमें ऊँची जातियों के अति पिछड़ों को भी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। 1 अक्टूबर 91 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आरक्षण के आर्थिक आधार का ब्योरा माँगा।

 

जब मामला कोर्ट में अटका, तो लालू प्रसाद व शरद यादव ने सबसे आगे बढ़ कर इस लड़ाई को थामा, रामजेठमलानी जैसे तेज़तर्रार वकील को न्यायालय में मज़बूती से मंडल का पक्ष रखने के लिए मनाया और लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया। 30 अक्टूबर 91 को मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के ख़िलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया।

 

आडवाणी की रथयात्रा तो मीडिया बहुत दिखाती है, मगर मनुवादी मीडिया, जिसे तथाकथित उच्च जाति के लोग नियंत्रित-निर्देशित-संचालित करते हैं,  शरद जी की 25 अगस्त 1992 को मुरहो (मधेपुरा) से निकाली गई मंडल रथ यात्रा भूल कर भी नहीं दिखाती है। यही वह यात्रा थी जिसमें उत्तर भारत में घूम-घूम कर शरद यादव ने दार्शनिक ढंग से जाति व्यवस्था, गैरबराबरी, मजहबी दीवार, धार्मिक उन्माद, जहालत, वगैरह पर जम कर प्रहार किया। एक वक्त तो ऐसा भी आया उस संघर्ष के दौरान कि शरद जी भाषण कर रहे हैं और कांशीराम मंच के बगल में खडे होकर सुन रहे हैं। तब यह तस्वीर पर्मुखता से छपी थी। कांशीराम ऐसे ही खामोशी से काम करने वाले नेता थे। चूंकि इस मंडल रथयात्रा की जान बूझ कर चर्चा नहीं की जाती, इसलिए नई पीढी के पिछडे युवाओं के मानस पर वो हिन्दुस्तान की सियासत को बदल कर रख देने वाली ऐतिहासिक लडाई ढंग से अंकित ही नहीं हो पाई। इस कटु सत्य से भारतीय समाज का कई सिरा खुलता है। 

 

16 नवंबर 1992 को इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय ने क्रीमी लेयर की बाधा के साथ आंशिक रूप से मंडल कमीशन की सिफ़ारिश को लागू करने का निर्णय सुनाया। साथ ही, पीवी नरसिम्हा राव की तत्कालीन सरकार द्वारा आर्थिक रूप से विपन्न अगड़ी जातियों के लिए 10 % आरक्षण के नोटिफिकेशन को सिरे से खारिज़ किया, और कहा कि पिछड़ेपन का पैमाना महज आर्थिक नहीं हो सकता। इस मामले में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन सर्वप्रमुख क्राइटेरिया है। फ़ैसले में यह भी कहा गया कि एससी, एसटी और ओबीसी मिलाकर आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी के पार नहीं जानी चाहिए।

 sharad yadav4

8 सितम्बर 1993 को केंद्र सरकार ने नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की। 20 फरवरी 1994 को मंडल आयोग की रिफ़ारिशों के तहत वी. राजशेखर आरक्षण के जरिए नौकरी पाने वाले पहले अभ्यर्थी बने जिन्हें समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने नियुक्ति पत्र सौंपा। मंडल कमीशन लागू होने के बाद ओबीसी क़ोटे से पहला आईएएस बनने वाले राजशेखर चारी थे जिनका स्वागत वी. पी. सिंह और शरद यादव ने बुलाकर किया। 1 मई 94 को गुजरात में राज्य सरकार की नौकरियों में मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के तहत आरक्षण व्यवस्था लागू करने का फ़ैसला हुआ। 11 नवंबर 94 को उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार की नौकरियों में कर्नाटक सरकार द्वारा 73 फीसदी आरक्षण के निर्णय पर रोक लगाई।

 

आज तक देश में सिर्फ़ एक होम सेक्रेटरी दलित हुए, माता प्रसाद, वाल्मीकि समाज से। कभी कोई दलित समाज का आदमी कैबिनेट सेक्रेटरी नहीं हो सका। ये तो हकीक़त है 71 साल की! चले हैं हनुमान को दलित बताने। अरे साहब, सेंसस कमीशन ऑफ इंडिया द्वारा हम इंसानों का बाकायदा जातिवार जनगणना पहले करा दो, फिर अपने 33 करोड देवी-देवताओं की जात गिनते रहना बैठ के, हम कुछ नहीं कहेंगे।

 

गेल ओम्वेट कहती हैं कि 90 के मंडल आंदोलन के बाद भारत में कोई बडा आंदोलन नहीं हुआ। लोगों ने यहाँ तक जुमला मारा, “राजा साहब ठीक आदमी थे। उनको अहिरा (शरद यादव) और दुसधा (रामविलास पासवान) ने बिगाड़ दिया”। सरकार गिरने और चंद्रशेखर द्वारा जनता दल को तोड़ कर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन जाने पर मर्यादा की सारी सीमाएं तार-तार करके ज्ञानियों-ध्यानियों ने फ़ब्तियाँ कसी:

अहिरे बुद्धि ठकुरे बल

अंग विशेष में मिल गया जनता दल।

 

महिला आरक्षण बिल पर कोटे के अंदर कोटे की लड़ाई जिस तरह आपने लालू प्रसाद व मुलायम सिंह जी के साथ सदन के अंदर लड़ी, वो क़ाबिले-तारीफ़ है। आख़िर को वंचित-शोषित-पसमांदा समाज की महिलाएं भी क्यों नहीं सदन का मुंह देखें? इतना-सा बारीक फ़र्क अगर समझ में नहीं आता, और संपूर्ण आधी आबादी की नुमाइंदगी के लिए संज़ीदे सियासतदां की पहल व जिद को कोई महिला विरोधी रुख करार देता है, तो उनकी मंशा सहज समझ में आती है। वे बस विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं को सदन में देखना चाहते हैं, ग़रीब-गुरबे, हाशिये पर धकेली गई, दोहरे शोषण की मार झेल रही खवातीन उनकी चिंता, चिंतन व विमर्श के केंद्र में नहीं हैं। अगर अपने मूल रिग्रेसिव स्वरूप में महिला आरक्षण बिल पारित हो जाता, तो शोषित तबके की खवातीन टुकुर-टुकुर मुंह ताकती रह जातीं। हम चाहते हैं कि संसद की शोभा सिर्फ़ सुषमा स्वराज व स्मृति ईरानी जैसी महिलाएं ही न बढ़ाएं, बल्कि भगवती देवी, फूलन देवी व सकीना अंसारी भी सदन के अंदर सिंहगर्जन करें।

 

इसीलिए, हम चाहते हैं कि महिला आरक्षण तो लागू हो, पर मौजूदा स्वरूप में नहीं। हम संसद में सिर्फ़ राजमाता सिंधिया और मेनका गांधी को नहीं, बल्कि पत्थर तोड़ने वाली भगवती देवियों और सकीना अंसारियों को भी उसी इज़्ज़त, हक़ और गरिमा के साथ प्रवेश करते देखना चाहते हैं। इसलिए, कोटे के अंदर कोटे की शरद यादव, लालू प्रसाद और मुलायम सिंह जैसे नेताओं की वाजिब मांग का पुरज़ोर समर्थन करते हैं।

 

एक ऐसा प्रगतिशील ड्राफ्ट हो, जिसमें वंचित और अक़्लियत तबके की महिलाओं के लिए सीटें सुरक्षित हों जिसे संवैधानिक संरक्षण प्राप्त हो, जिस बात को आपने और लालू सरीखे नेता ने सदन के अंदर बारंबार दोहराया। शरद जी, आपने तब ठीक ही कहा था कि वर्तमान स्वरूप में अगर महिला आरक्षण लागू हो गया, तो सुकरात की तरह ज़हर पी लेंगे। मुलायम सिंह ने ‘रेज़र्वेशन विदिन रेज़र्वेशन’ की जमकर वकालत की। मगर, इन बेईमान बौद्धिक लंपटों ने तब क्या रिपोर्टिंग की? टाइम्स आफ इंडिया के एडिटोरियल में लिखा कि Three Yadavas opposed Women’s Reservation Bill.

 

ग़लत-सही बकवास करने वाले इन बेहया ख़बरनवीसों का क्यों न सामाजिक बहिष्कार किया जाए, जो जान-बूझ कर भ्रम परोसते हैं और जातीय विद्वेष फैलाते हैं। सच तो ये है कि लालू-शरद-मुलायम की तिकड़ी ने उस वक़्त इंटरवेन नहीं किया होता, तो पूरे रिग्रेसिव फार्म में महिला आरक्षण विधेयक लागू हो गया होता, और शोषित समाज की खवातीन टुकुर-टुकुर मुंह ताकती रह जातीं।

 

शरद जी के सवालों से सदन भरा हुआ है, एक क़िस्म का फक़्कड़पन है उनमें, संचय-संग्रह की प्रवृत्ति से कोसों दूर, योजक कड़ी की उनकी भूमिका का आज भी जोड़ नहीं। एनडीए में जाने की उनकी एक भूल नहीं होती,तो इतिहास उनके प्रति ज़्यादा उदार होता।

~~~

 

जयंत जिज्ञासु लेखक व् सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनसे jigyasu.jayant@gmail.com ईमेल पर संपर्क किया जा सकता है.

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *