
संजय जोठे (Sanjay Jothe)
गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाते हुए आप ख़ुशी मनाइए लेकिन एक सावधानी जरुर रखियेगा। गुरु पूर्णिमा मनाते समय यह देखना जरुरी है कि आप किस ढंग से और किस गुरु को अपना मार्गदर्शक समझ रहे हैं? इतिहास और धर्म-दर्शन की खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरु पूर्णिमा असल में गौतम बुद्ध के विषय में है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जिस गुरु कि वंदना हो रही है वह गुरु असल में बुद्ध ही है। गौतम बुद्ध के द्वारा इस दिन अपने शुरुआती शिष्यों को धम्म शिक्षा दी गई थी। इसीलिए यह धम्म चक्र प्रवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण दिवस है। असल में गुरु पूर्णिमा गौतम बुद्ध के द्वारा गुरु बनने का दिन है।
प्राचीन समय में सभी बौद्ध इस दिवस को इस पूर्णिमा को विशेष रूप से मनाते थे। इसी कारण अपने गुरु की स्मृति में मनाए जाने वाली इस पूर्णिमा का एक विशेष महत्व बन गया था। प्राचीन काल में जब पूरा भारत बौद्ध धर्म को मानता था तब इस पूर्णिमा का विशेष महत्व था। इसका प्रतीक भी बहुत सुंदर है। बारिश के मौसम में जब आसमान में काले घने बादल छाए हो, ऐसे में काली अंधेरी रात में प्रकाश का नजर आना एक बहुत सुंदर प्रतीक है। काले बादलों से ढकी हुई धरती पर पूर्णिमा का चांद जब बादलों की ओट से झांकता है ऐसा लगता है जैसे किसी सौभाग्य का उदय हुआ। गौतम बुद्ध जैसे गुरु का होना इसी तरह है।
गौतम बुद्ध घनी अंधेरी रात में अज्ञान और षडयंत्र के घमासान के बीच प्रेम करुना और मैत्री का नया मार्ग बनाते हैं। इन खतरनाक रास्तों से होते हुए वे खुद पहले अपना मार्ग बनते हैं और फिर जगत के लिए कल्याण मित्र की तरह सामने आते हैं। गौतम बुद्ध ने जब पहली बार अपने पांच प्रमुख शिष्यों को धम्म दीक्षा दी तब वे एक नए युग का सूत्रपात कर रहे थे। पुरानी और अज्ञान भरी जीवन व्यवस्था के बीच नए ज्ञान की रोशनी से एक नई जीवन व्यवस्था को शुरुआत देना महत्वपूर्ण बात थी। यह ऐसा ही है जैसे कि की अंधेरी रात में अचानक बादल छट जाए और पूर्णिमा का चांद विराट रोशनी लेकर प्रकट हो जाए।
ब्राह्मण धर्म की घनी अंधेरी रात में शोषण और भेदभाव के दलदल के बीच दुख भोग रहे मनुष्यों के लिए गौतम बुद्ध का प्रकट होना एक खास महत्व रखता है। इसीलिए पूरे भारत में प्राचीन समय में वर्णाश्रम धर्म द्वारा सताए गए लोगों ने बुद्ध को अपना गुरु बनाया था। उन्होंने वर्णाश्रम धर्म के अंधकार और हिंसा से मुक्त होने के लिए इस चांद को और इस पूर्णिमा को अपने दिल में बसा लिया था। इसके बाद धीरे-धीरे पूरा भारत बुद्धमयी हो गया था। पूरे भारत में गौतम बुद्ध का प्रकाश फैल गया था। बौद्ध धर्म का विराट दर्शन और गौतम बुद्ध की अपार करुणा पूरे भारत के हृदय में बस गई। इस करुणा की छाया में भारत में अपना स्वर्ण युग देखा। हम आजकल प्राचीन भारत के बारे में और भारत की उपलब्धियों के बारे में जो भी जानते हैं वह गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के कारण संभव हुआ। बौद्ध भारत ही स्वर्णिम भारत रहा है।
लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ वह भी महत्वपूर्ण है। गुरु पूर्णिमा पर हमें गौतम बुद्ध को अपना गुरु मानते हुए यह भी सीखना और देखना होगा जो हमारे लिए अब अधिक महत्वपूर्ण बन चुका है। गौतम बुद्ध ने जो ज्ञान दिया वह तत्कालीन दशकों में किन्हीं खास तरह के सामाजिक राजनीतिक परिवेश में उपयुक्त था। लेकिन आज वही ज्ञान नहीं परिस्थितियों में किस तरह काम करेगा यह हमें सोचना होगा। गौतम बुद्ध का मूल सूत्र मध्यम मार्ग का है। मध्यम मार्ग कोई बनी बनाई पद्धति नहीं देता है। बल्कि हर दौर में नई अतियों के बीच नया मध्यम मार्ग खोजना होता है। मान लीजिए किसी राज्य में किसी समय दो अतियां है। एक तरफ कुछ लोग हैं जो बहुत सारा धन संपत्ति इकट्ठा कर लेते हैं और कुछ लोग हैं जो सारा धन संपत्ति और छोड़कर वैराग्य अपना लेते हैं। ऐसे में मध्यम मार्ग क्या होगा। तब माध्यम मार्ग ये होगा कि ना तो पूरी तरह वैराग्य धारण किया जाए और ना पूरी तरह संपत्ति इकट्ठा करके धन्ना सेठ बना जाए। बल्कि इसके बीच में जीवन हेतु आवश्यक संपत्ति का संचय किया जाए।
अगर किसी दूसरे राज्य में दूसरे समय पर कुछ लोग बहुत ज्यादा खाते हैं कुछ लोग बहुत ज्यादा भूखे रहते हैं तो ऐसे में मध्यम मार्ग क्या होगा? स्वाभाविक रूप से ऐसे में है माध्यम मार्ग यह होगा कि ना तो बहुत ज्यादा और ना बहुत कम खाया जाए। शरीर के लिए जितना आवश्यक है ठीक उतना ही खाया जाए। तीसरा उदाहरण लेते हैं, कोई राज्य है जिसमें कुछ लोग दूसरों से अकारण नफरत करते हैं। और सिर्फ अपने ही जाति वर्ण के लोगों से प्रेम करते हैं। एक तरफ ये लोग अपने जाति और वर्ण के लोगों से बिना शर्त प्रेम और सहयोग करते हैं और दुसरे जाति और वर्ण के लोगों से बिना वजह नफरत और हिंसा करते है। ठीक से देखा जाए यही तीसरा समाज ही आज का भारत है, अब गौतम बुद्ध के अनुसार यहां पर मध्यम मार्ग क्या होना चाहिए?
इस गुरु पूर्णिमा पर इस प्रश्न पर विचार कीजिए। भारत का वर्तमान समाज बहुत सारी अतियों में जी रहा है। कुछ लोग जो वर्णाश्रम धर्म के ऊपर के पायदान पर हैं। सारी संपत्ति उनके पास है। धर्म की व्याख्या करने का अधिकार उनके पास है। राजनीति उनके पास है। व्यापार, मीडिया हाउसेस और इंडस्ट्रीज उनके पास है। और वे लोग वर्णाश्रम धर्म की व्यवस्था में नीचे के पायदान पर बैठे लोगों से बेइंतहा नफरत करते हैं। इसी नफरत के कारण वे आपस में भी एक दूसरे से बहुत प्रेम नहीं कर पाते है, उनके अपने वर्ण में कई कई जातियां हैं जो आपस में लडती हैं। घृणा और नफरत उनके जीवन का मूल आधार है। दूसरी तरफ इन नफरत करने वाले लोगों से डर कर जीने वाले करोड़ों लोग। वे भी एक दूसरे से प्रेम नहीं कर पाते। क्योंकि वे इन संपन्न लोगों के मंदिरों में पूजा पंडालों में जाकर नफरत का धर्म सीखते रहते हैं। तो एक तरफ संपन्न लोगों की नफरत है। और दूसरी तरफ गरीब लोगों की आपस की नफरत है। सपन्न लोगों की नफरत गरीब लोगों के प्रति है। और गरीब लोगों की नफरत आपस में एक दूसरे के प्रति है। यही भारत का वर्तमान समाज है।
इस पूरे दृश्य में, इस पूरी व्यवस्था में गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग क्या कहता है? अगर हम इसे समझ ले तो हम बुद्ध का असली संदेश समझ लेंगे।
अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग आज के भारत के लिए क्या देना चाहता है। हमने अभी देखा कि भारत में नफरत की दो अतियां हैं। और प्रेम के लिए भाईचारे के लिए बहुत ज्यादा स्थान नहीं है। प्राचीन काल से ही भारत में आर्यों के आक्रमण के साथ भारत में समाज में नफरत को धर्म बनाने कि शुरुआत हो गयी थी। ब्राह्मण धर्म के आने के बाद वर्णाश्रम धर्म की व्यवस्था आने के बाद भारत में प्रेम और भाईचारे के लिए स्थान कम होता जा रहा है। इसीलिए दो जातियों का आपस में शादी कर लेना एक दूसरे के मंदिर में चले जाना एक दूसरे के आंगन में बैठ जाना लड़ाई का कारण बन जाता। पश्चिम के सभी देशों में और समाजों में इस बात की कल्पना करना ही मुश्किल है कि कोई किसी के चर्च में चला गया तो उसे मारपीट कर भगा दिया जाएगा। मुस्लिम देशों में भी किसी की मस्जिद में चले जाना अच्छा माना जाता है वहां पर मस्जिद में घुस जाने पर किसी की पिटाई नहीं की जाती।
लेकिन भारत में ब्राह्मण धर्म के मंदिरों में शूद्र या दलित के घुस जाने पर उनकी पिटाई होती है। प्राचीन समय में भारत ऐसा नहीं था। गौतम बुद्ध के धर्म में और उनके संघ में सभी को प्रवेश मिलता था। किसी से किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता था। लेकिन आज का भारत कुछ और ही है। आज का भारत सभ्य भारत नहीं है। इस देश को सभ्य बनाना जरुरी है नहीं तो यह देश सैकड़ों साल से सिखाई जा रही इस नफरत के बोझ में दबकर आत्महत्या कर लेगा। यह देश वास्तव में सामूहिक आत्महत्या की कगार पर खड़ा हुआ है। पश्चिमी ज्ञान विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने इसे कुछ और मोहलत दे दी है। वरना अगर इस देश को अकेला छोड़ दिया जाए तो दस सालों के भीतर इसकी सभी जातियां और सभी वर्ण एक दूसरे को अपनी नफरतों से जला डालेंगे।
भारत को सभ्य बनाने के लिए और समर्थ बनाने के लिए गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग अपनाना होगा। आज की परिस्थिति में इतनी भयानक नफरतों में दबे हुए समाज को मध्यम मार्ग कैसे दिखाएंगे?
गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग हमें बताता है कि समाज में जो भी अतियां है उनके बीच में एक संतुलन ढूंढा जाए। आज के लिए वह संतुलन कहां है? इस संतुलन को सीधे-सीधे नहीं पकड़ा जा सकता। हमें समझना होगा कि आज दो अतियां कौन सी है। जैसा कि हम लोगों पर देखा भारत के वर्तमान समाज में दो अतियां है। पहली अति है अपने ही लोगों के प्रति बिना शर्त और अंधा प्रेम। दूसरी अति है अपने से भिन्न जाति और वर्ण के लोगों के प्रति अंधी और बिना शर्त नफरत। अब हमें इसके बीच में मध्यम मार्ग की तलाश करनी है। गौर से देखें तो समझ में आता है की अंधा प्रेम और अंधी नफरत की बजाए हमें जागरूक भाईचारे की जरूरत है। नफरत की जगह मित्रता की आवश्यकता है। समाज व्यवस्था के स्तर पर अपने लोगों से अकारण प्रेम भी एक अति है और अकारण नफरत भी एक अति है। इस अकारण प्रेम और अकारण नफरत को कई लोग अकारण नहीं मानते। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें धर्म शास्त्रों ने प्रेम और नफरत करने के लिए कुछ कारण दिया हुआ है।
सबसे बड़ा कारण यह दिया है की चूंकि आप वर्णाश्रम धर्म में एक ही पायदान पर खड़े हैं इसलिए आप को आपस में प्रेम करना है। यह बिना शर्त प्रेम के लिए दिया गया कारण है। नफरत के लिए भी कारण दिया गया है। धर्म सूत्रों और शास्त्र में कहा गया है क्योंकि दूसरे लोग वर्ण व्यवस्था में आप से नीचे हैं इसलिए उनसे हर हाल में नफरत की जाएगी। यह भारत की नैतिकता है। भारत में नफरत भी धर्म सम्मत है। इसलिए जब भारतीयों को कहा जाता है कि आप लोगों का शोषण करते हैं यह पाप है। तो उन्हें बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता। वे कहते हैं कि नहीं हम तो अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। और वे गलत नहीं है वे लोग बिल्कुल सही बोल रहे हैं। नफरत करना ही अगर आपका धर्म है तो नफरत करते हुए आपके अंदर कोई ग्लानि भाव नहीं आएगा। लेकिन जो लोग मनुष्यता और शिष्टाचार को समझते हैं वे को नफरत की तरह पहचान लेते हैं।
ऐसी स्थिति में जबकि अकारण प्रेम और नफरत दोनों को धर्म सम्मत बना दिया गया है तब आप समाधान कैसे खोजेंगे? ऐसी स्थिति में मध्यम मार्ग कैसे ढूंढ लेंगे। यह बात कठिन नजर आती है लेकिन असल में यह बहुत सरल है। आपको उस स्थिति की कल्पना करनी है जबकि अकारण प्रेम और अकारण नफरत का शास्त्र और धर्म बना ही नहीं था। उस समाज की कल्पना करनी है जहां पर वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था नहीं थी। ऐसा समाज ब्राह्मण धर्म के उदय के पहले भारत में था। ऐसा समाज आज भी यूरोप में है। ऐसा समाज आज भी भारत के शहरों में कुछ कुछ हिस्सों में बना हुआ है। पश्चिमी आधुनिकता ने पश्चिमी क्रांतियों से मिली शिक्षाओं ने भारत में कई स्थानों पर ऐसा समाज निर्मित कर दिया है। ऐसे समाज में झांक कर देखिए। साफ नजर आएगा की ऐसी जीवन शैली सब संभव है, जहां पर गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग पालन किया जा सकता है। अकारण नफरत और अकारण प्रेम के बीच में सकारण मित्रता ढूंढी जा सकती है।
इसीलिए गौतम बुद्ध ने सभी सद्गुणों में सबसे ऊंचा स्थान मैत्री को दिया है। एक गहरा कारण है। मैत्री या मित्रता जब भी होती है तू दोनों पक्षों को बराबर कर देती है। अक्सर लोग कहते हैं कि बराबरी के लोगों में दोस्ती होती है। यह बात थोड़ी दूर तक सच है। लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि जिन लोगों में मित्रता होती है वह लोग बराबर हो जाते हैं। बराबरी के लोगों में मित्रता वास्तविक मित्रता नहीं है। वह व्यापार या राजनीति जरूर हो सकती है लेकिन मित्रता नहीं हो सकती। लेकिन मित्रता का स्वरूप कुछ और ही है। मित्रता मित्रों को बराबर कर देती है। इसलिए आज के समय में खून के रिश्ते से और प्रेम के रिश्तो से भी ज्यादा मित्रता के रिश्ते काम आते हैं। यह आज के युग की सच्चाई है। गौतम बुद्ध के बारे में यह कहानी प्रचलित है कि उनका अगला अवतार ‘मैत्रेय’ का होगा। इस बात पर विश्वास करना या ना करना एक अलग बात है। लेकिन जिन लोगों ने भविष्य की कल्पना की है उन्होंने एक गहरी बात कही है। गौतम बुद्ध की करुणा आज अगर आएगी तो वह मित्रता के रूप में ही आएगी। गौतम बुद्ध के मैत्रेय अवतार का कुल जमा मतलब यही है।
गौतम बुद्ध के मैत्री के संदेश को ध्यान से देखिए। गौतम बुद्ध जब जीवित है तब उनका प्रमुख सिद्धांत करुणा था। कुछ लोग गलती से यह मानते हैं कि उनका प्रमुख सिद्धांत अहिंसा था। उन्हें नोट कर लेना चाहिए कि अहिंसा का सिद्धांत वर्धमान महावीर का सिद्धांत था। गौतम बुद्ध हिंसा को भी एक अति मानते हैं। गौतम बुद्ध के अनुसार आप को जीवित रहने के लिए संतुलित ढंग से हिंसा करनी ही होगी। जब आप खेती करते हैं जब आप फसल काटते हैं। जब बीमार की चिकित्सा करते हैं। तब आप पेड़ या शरीर के साथ हिंसा ही कर रहे हैं। किसी किसी मरीज का ऑपरेशन करना शरीर के प्रति हिंसा ही होती है। लेकिन यह हिंसा करनी ही होती है, अगर ऐसा नहीं करेंगे तो पूरी सभ्यता अनाज और भोजन के अभाव में मर जाएगी। अगर ऐसी हिंसा नहीं करेंगे तो मरीज इलाज के बिना मर जाएगा। अहिंसा पर जरूरत से ज्यादा जोर देंगे तो ऐसा समाज अपनी खुद की रक्षा भी नहीं कर पाएगा। इसीलिये अहिंसा पर बहुत ज्यादा जोर देने वाले जैन इसीलिए व्यापारी बन गए वे ना खेती करते आत्मरक्षा में शस्त्र उठा सकते हैं। इसलिए वे एक संस्कृति का निर्माण नहीं कर सकते। इसीलिए जैन धर्म और जैन जनसंख्या भारत में ही लगभग लुप्त हुए जा रहे हैं। इसे देखते हुए गौतम बुद्ध ने अहिंसा को भी एक अति माना है। उस समय करुणा को केन्द्रीय सूत्र बनाते हुए उन्होंने जो माध्यम मार्ग दिया था उसमे संतुलित हिंसा की बात थी।
गौतम बुद्ध अपने जीवन काल में ही वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का परिणाम देख पा रहे थे। और वे अपनी शिक्षाओं का परिणाम भी देख पा रहे थे। उन्होंने इसी लिए मध्यम मार्ग को सबसे ऊपर रखा था। गौतम बुद्ध के अनुसार मैत्री या मित्रता मनुष्य के आपसी संबंधों में का सबसे अच्छा बिंदु है। मित्रता में ना तो अकारण प्रेम का आग्रह है ना अकारण नफरत की तीव्रता है। मित्र कभी भी अमित्र हो सकते हैं और मित्र कभी भी अमित्र हो सकते हैं। यह एक फ्लैक्सिबल रिश्ता है। यह पति पत्नी की तरह बाध्यकारी और कठोर रिश्ता नहीं है। यह जानी दुश्मनों के आपसी विरोध की तरह भी नहीं है। इसीलिए गौतम बुद्ध ने मैत्री को अपने लोगों के लिए भविष्य का सबसे बड़ा सद्गुण बनाया है।
मैत्री को एक बड़ा सद्गुण बनाने के पीछे एक और कारण है। गौतम बुद्ध की व्यवस्था में सबसे बड़ी संस्था संघ है। बौद्ध धर्म का यह संघ रिश्तेदारों का और भाई बहनों का या बाप बेटों का संघ नहीं है। यह संघ सैकड़ों जातियों से और कई वर्णों से कई तरह के अमीर गरीब तबकों से आए हुए लोगों से मिलकर बना है। इसलिए यह संघ रिश्ते नातों के आधार पर नहीं बल्कि मित्रता के आधार पर ही चल सकता है। इसी ढंग के आज के कारपोरेट चलते हैं। सभ्य देशों की सरकारें चलती हैं। वर्णाश्रम धर्म की व्यवस्था में अलग-अलग वर्ण के लोगों को शादी ब्याह की आजादी नहीं है। इसी के साथ उनका व्यापार व्यवसाय भी वर्ण और जाति के कारण सीमित हो जाता है। इस कारण कुछ खास तबको में संपत्ति इकट्ठा होती है और बाकी करोड़ों लोग गरीब रहते हैं।
इस कारण ब्राह्मण धर्म की व्यवस्था में सभ्य देशों की तरह मित्रता पर आधारित स्वस्थ प्रतियोगिता जन्म ही नहीं ले सकती। इसीलिए भारत में करोड़ों लोग होने के बाद भी ज्ञान विज्ञान और तकनीक में कोई खास काम नहीं होता। फैशन से लेकर चिकित्सा और कानून, दर्शन, साहित्य और सौंदर्यशास्त्र तक यूरोप अमेरिका से सीखना पड़ता है। बड़े मजे की बात है कि यूरोप और अमेरिका से भारत विज्ञान और तकनीक तो सीखता है लेकिन सभ्यता नहीं सीखता। ऐसे विज्ञान और तकनीक को पैदा करने वाला समाज किस तरह जीता है यह भारतीयों को पता ही नहीं। यूरोप और अमेरिका में जाति और वर्ण नहीं होता इसलिए एकदूसरे से प्रेम करना मित्रता करना कंधे से कंधा मिलाकर नए ज्ञान की खोज करना बिजनेस चलाना इत्यादि उनके लिए बहुत आसान है। इसलिए वह समाज भारत जैसे असभ्य और कमजोर देशों पर राज कर सका। इसीलिए वह समाज आज भी भारत जैसे बीमार देशों से सैकड़ों साल आगे रहता है।
यूरोप और अमेरिका की सफलता गौतम बुद्ध की दृष्टि से समझाया जा सकती है। पिछली दो सदियों में यूरोप और अमेरिका ने बहुत भयानक अतियां देखी हैं। उन्होंने एक दूसरे से नफरत करते हुए दो विश्व युद्ध लड़े। पिछली शताब्दी में दो विश्व युद्ध हुए हैं और तीसरा लगभग होते होते बचा है। इसके पहले एक हजार सालों तक यूरोपीय समाज ने ईसाई धर्म की बहुत संगठित व्यवस्था में कड़े अनुशासन वाला जीवन जिया है। इस कारण समाज को संगठित रहने की और एक दूसरे से सहयोग करने की तीव्र भावना का में विकास हुआ है। यही तीव्र संगठन की भावना युद्ध के लिए आवश्यक भी होती है। यही संगठन की भावना व्यापार के लिए भी आवश्यक होती है। इसलिए वे युद्ध और व्यापार दोनों में वे अति पर चले गए। इस कारण उन्होंने सामरिक रूप से और आर्थिक रूप से पूरे विश्व को अपने अधीन कर लिया।
इस सब के परिणाम में जो व्यवस्थाएं जन्मी उनमे कई तरह की समस्याएं आई उन समस्याओं को दूर करने के लिए ही भौतिक ज्ञान और सामाजिक विज्ञान का जन्म हुआ। इसी विज्ञान ने जिस तरह की सुविधा वहां के समाज में निर्मित की उससे समाज में एक नए किस्म की मनुष्यता का जन्म हुआ है। इस नयी मनुष्यता का भारत को कोई अंदाजा ही नहीं है। भारत के लोगों को आज भी अलग-अलग जातियों में आपस में विवाह कर लेने की बात असंभव लगती है। भारत के असभ्य और बर्बर समाज में आज भी एक दलित और ब्राह्मण की शादी असंभव मानी जाती है। ऐसी शादी अगर हो जाए तो भारत का मीडिया कई महीनों तक चर्चा करता रहता है राजनीति उलट-पुलट हो जाती है। ऐसा लगता है देश के सामने और कोई मुद्दा ही नहीं बचा। यूरोप और अमेरिका के लोग ये सब देख कर हंसते हैं लेकिन भारत के लोग हैं वह इन बातों को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा मानते हैं। भारतीय लोग अपने धर्म और संस्कृति के जहर के कारण बहुत ही असभ्य और बर्बर हो चुके है।
अमेरिका और यूरोप के समाज में में नफरत की और युद्ध की अतियों के बीच मैत्री का मध्यम मार्ग विकसित हो चुका है। इसीलिए यूरोप अमेरिका के समाज में बौद्ध धर्म पर बहुत काम हो रहा है। वहां गौतम बुद्ध बहुत तेजी से प्रचलित हो रहे हैं। और यह बड़े मजे की बात है की वहां भारत के राम और कृष्ण और शिव बिल्कुल भी प्रचलित नहीं है। इन देवताओं की शिक्षा का वहां कोई प्रभाव नहीं है। इसीलिए भारत के गुरु इन देवताओं की बजाय यूरोप में गौतम बुद्ध की बात करते हैं। देश के अंदर ये गुरु और बाबा राम कृष्ण और शिव की बात करते हैं। लेकिन विदेशों में गौतम बुद्ध की ही बात करते हैं। अपने ही देश में जो लोग गौतम बुद्ध की बात करते हैं उन लोगों से यह बाबा लोग नफरत करते हैं। यह गजब की ब्रह्म लीला है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज के समाज के लिए आज के भारत के लिए हमें गौतम बुद्ध के मध्यम मार्ग को बहुत ध्यान से चुनना और समझना होगा। गौतम बुद्ध का मैत्री का प्रस्ताव हमारे लिए सबसे बड़ा और सबसे पवित्र निर्णय होना चाहिए। जिन लोगों ने बुद्ध के मैत्री अवतार की बात की है वे लोग समझदार थे। वे लोग असल में ये कह रहे थे कि भविष्य में मैत्री ही समाज को सुखी बना सकती है। इस तरह अकारण प्रेम और अगर नफरत करने वाले ब्राह्मण धर्म या वर्णाश्रम धर्म की बजाए हमें मैत्री सिखाने वाले बौद्ध धर्म से सभ्यता और शिष्टाचार सीखना होगा। मैत्री के लिए दो ही आवश्यक तत्व है एक शिष्टाचार और दूसरा सभ्यता। दो व्यक्ति मित्र तभी होते हैं वह एक दूसरे से शिष्टता का और सभ्यता से व्यवहार करते हैं। इसलिए आप देखेंगे कि सभ्य समाजों में एक दूसरे के प्रति अच्छे संबोधन का इस्तेमाल करना एक दूसरे को मुस्कुराकर अभिवादन करना अनिवार्य है। वही दूसरी तरफ भारत के गाँवों शहरों को देखिये। भारत जैसे ब्राह्मण धर्म मानने वाले देशों में एक दूसरे को जाती है नफरत से भरकर गाली देना, उनका अपमान करना, उनके हाथ से छुआ हुआ पानी नहीं पीना, उनकी परछाई भी पड़ जाए तो उस रास्ते से हट जाना इत्यादि बातें आज भी प्रचलित हैं। यूरोप अमेरिका के सभ्य समाजों में ऐसी चीजों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जो समाज मैत्री पर आधारित हैं वे लिंग, भाषा, जाति, वर्ण इत्यादि का भेदभाव नहीं कर सकते। हम सबको मिलकर भारत को भी इस दिशा में ले जाना है और इस बात की जिम्मेदारी उन लोगों के ऊपर है जो बुद्ध को प्रेम करते हैं।
आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मैं सब से यही निवेदन करना चाहता हूं कि बुद्ध के मैत्री के सन्देश को गहराई से समझा और समझाया जाए। भारत में जितने भी जातियों और वर्णों के लोग हैं और वे जिन भी आधारों पर एक दूसरे से नफरत करते हैं वे इस पर पुनर्विचार करें। वे विचार करें और देखें की उनको गुलामी के दलदल में धकेलने वाली जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म और वर्ण व्यवस्था क्या उनके बच्चों के भविष्य के लिए ठीक है? क्या भविष्य में एक दूसरे से नफरत करते हुए हम सुरक्षित रह पाएंगे? हमारे पड़ोसी देश जो जाति और धर्म के दंगों से भारत को खोखला होते हुए देख रहे हैं उनसे हम अपनी रक्षा कर पाएंगे? क्या भारत का समाज एक दूसरे से इतनी नफरत करते हुए विज्ञान तकनीक और व्यापार में आगे बढ़ सकता है? अगर एक दलित और ब्राह्मण की शादी होने से पूरे देश में आग लग जाती है और इस देश का मीडिया उछल उछल कर पूरे देश में तांडव कर सकता है तो हमें सोचना चाहिए कि हम किस की तरह के समाज में जी रहे हैं?
हमें समझना होगा कि हम सब एक सभ्य समाज नहीं हैं। हमें यह भी समझना होगा की सभ्यता ही विकास लेकर आती है। यूरोप और अमेरिका में विकास से पहले सभ्यता आई है। यही विकास के आने का ढंग है। एक असभ्य और बर्बर समाज में विकास सीधे नहीं आ सकता। पहले सभ्यता शिष्टाचार और एक दूसरे का सम्मान आता है। उस के उसके बाद ही एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की भावना जन्म लेती है। इसी सामूहिक सरकार से विज्ञान तकनीक उद्योग धंधे और अर्थव्यवस्था का विकास होता है। भारत जैसे असभ्य देश में सभी जातियों के लोग एक साथ मिलकर सामूहिक उद्देश्य के लिए कोई काम नहीं कर सकते इसीलिए भारत टूटता गया। इसीलिये इस पर अधिकार करना आक्रमणकारियों के लिए बहुत आसान रहा है।
इतिहास में ही नहीं बल्कि आज भी इस देश को जातीय और धार्मिक दंगों में फंसा कर तोड़ देना बहुत आसान। कल्पना कीजिए चीन या पाकिस्तान मिलकर अगर यह तय कर ले कि भारत में धार्मिक और जातीय दंगे भड़काने हैं। तो उनके लिए ऐसा करना बहुत आसान होगा। ऐसे दंगों में फंसा कर इस देश को बहुत आसानी से नुकसान पहुंचाया जा सकता है। जो लोग इस तरह के दंगे भड़का कर चुनाव जीत रहे हैं, उन्हें इस संभावना को जरूर देखना चाहिए। वे लोग छोटी-छोटी सफलता हासिल करने के लिए पूरे देश की सामाजिक अखंडता और व्यापार सहित अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को दांव पर लगा रहे। इस तरह से भारत को खंडित करने वाले धर्म को मानने वाले लोग जब भारत की राजनीति पर कब्जा कर लेते हैं तो भारत और ज्यादा सुरक्षित हो जाता है। दुर्भाग्य से आज हम उसी दौर में जी रहे हैं। ऐसे में गौतम बुद्ध का संदेश, मैत्री का या मित्रता का उनका प्रस्ताव न सिर्फ समाज के लिए बल्कि भारत जैसे देश के राजनीतिक और सामरिक भविष्य के लिए भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज का युग अर्थशास्त्र का युग है विज्ञान और तकनीक का युग है। जिस देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होगी वह सामाजिक और सामरिक रूप से भी कमजोर होगा। और आपके देश की अर्थव्यवस्था असल में आपके धर्म और समाज का ही प्रतिबिंब होती है। आपका समाज अगर एक साथ मिलकर काम नहीं कर सकता तो आप बहुत सफल व्यवसाय और उद्योग पैदा नहीं कर पाएंगे।
अगर आप के लोग एक दूसरे से घृणा करते हैं एक दूसरे से जन्म जाति वर्ण और धर्म के आधार पर नफरत करते हैं तो ये लोग मिलकर कभी भी कोई बड़ी चीज नहीं बना सकते। ऐसे बर्बर समाज का व्यापार मुट्ठी भर लोगों के हाथ में से सिमट जाता है। भारत के असभ्य समाज में आज यही हो रहा है। व्यापार पर एक ख़ास वर्ण के और जाति के लोगों का दबदबा है। धर्म पर दूसरे का वर्ण और जातियों के लोगों का भी दबदबा है। दुसरी तरफ गंदे और सेवा के काम करने के लिए कि दूसरी वर्ण और जाति के लोगों पर जिम्मेदारी डाली गई है। इनका आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है। ये लोग एक दूसरे के घर जाकर ना तो भोजन कर सकते हैं ना एक दूसरे से संबंध बना सकते हैं। ऐसे लोग एक समृद्ध देश एक बड़ी अर्थव्यवस्था कैसे बना सकते हैं? ऐसे लोग अपने शहर का मैनेजमेंट भी ठीक से नहीं कर पाते। यूरोप के शहरों को और भारत के शहरों कर देती है। इन शहरों की व्यवस्थाओं में इनके धर्म और संस्कृति का प्रतिबिंब साफ नजर आता है। भारत के शहरों की और बदबू में संस्कृति को साफ देखा जा सकता है। यूरोप के शहरों की साफ सफाई और व्यवस्था में यूरोप के धर्म और संस्कृति को साफ साफ देखा जा सकता है।
आज के दिन गुरु पूर्णिमा के लिए भारत के सभी निवासियों के लिए गौतम बुद्ध से मित्रता और सभ्यता की शिक्षा लेना जरूरी है। अगर भारत में गौतम बुद्ध के दर्शन को और अधिक समय तक स्थगित किया तो यह देश अपनी ही नफरत की आग में जलकर नष्ट हो जाएगा। आज के समय यूरोप और अमेरिका के सभ्य समाजों से मुकाबला करने के लिए भारत का पुराना नफरत भराज धर्म-दर्शन खतरनाक साबित हो रहा है। भारत को एक शब्द और प्रेम पूर्ण धर्म की जरूरत है जो एक दूसरे से नफरत करने की नहीं बल्कि मित्रता करने की सीख देता हूं। इसीलिए भारत को गौतम बुद्ध के संदेश की सख्त जरूरत है। जाति और वर्ण के आधार पर फैलाए गए नफरत के जहर की जगह प्रेम और मित्रता के अमृत की जरूरत है।
ठीक से कहे तो भारत को बुद्ध की जरूरत है। इसीलिए बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भारत की असभ्य और बर्बर समाज व्यवस्था को ठीक करने के लिए बुद्ध के धर्म का प्रस्ताव किया था। आज गुरु पूर्णिमा के दिन हम भारत के दो महान गुरुओं – गौतम बुद्ध और बाबा साहब को नमन करें, और उम्मीद करें के इन दो महान गुरुओं के दिखाए रास्ते पर हमारा समाज आगे बढ़ेगा और जाती है नफरत की वजह मित्रता और प्रेम के साथ जीवन जीना सीखेगा।
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संजय जोठे लीड इंडिया फेलो हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं। समाज कार्य में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय हैं। ब्रिटेन की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन में परास्नातक हैं और वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी कर रहे हैं।