Mohammad Javed
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मोहम्मद जावेद अलिग (Mohammad Javed Alig)

Mohammad Javedइन दिनों अखबारों से लेकर मीडिया तक सरकार का एक जुमला “विपक्ष भ्रम फैला रहा है” काफी चर्चित है. मोदी-शाह अपने भाषणों से लेकर मीडिया कार्यक्रमों में विपक्ष पर आरोप लगाते नहीं थक रहे हैं कि विपक्ष लोगों में भ्रम फैलाकर उनको गुमराह कर रहा है और जानबूझकर ओछी राजनीति पर उतर आया है. अब एक नज़र उनकी राजनीति पर भी डाल लेते हैं, आईये  देखते हैं कि वह इन दिनों किस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं.

उनकी स्वच्छ और साफ़ सुथरी राजनीति की एक मिसाल उनकी रविवार की दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान देखने को मिली, जब हावड़ा जिले के बेलूरमठ स्थित रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) को लेकर उनकी साफ़ सुथरी टिप्पणियों ने न जाने क्यू ऐसा माहौल पैदा कर दिया कि मिशन को उनके जाते ही उनसे खुद को यह कहकर अलग करना पड़ा कि वह एक अराजनीतिक संस्था है. आगे उन्होंने ये भी कहा कि उनके परिसर में सभी धर्मों के लोग भाईयों की तरह रहते हैं और उसमें किसी भी तरह की राजनीतिक टिप्पणियों’ के लिए कोई जगह नहीं है. मिशन के कई सदस्यों ने अलग से यह कहकर भी नाराज़गी जताई कि प्रधानमंत्री द्वारा मिशन के मंच से विवादास्पद राजनीतिक संदेश दिया जाना बहुत दुःखद है. अब इस साफ़ सुथरी राजनीति की तुलना विपक्ष की उस ओछी राजनीति से करिये जिसके बारे में प्रधानमत्री बार बार कह रहे हैं- “विपक्ष भ्रम फैला रहा है”.

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने मठ में विवेकानन्द जयंती के अवसर पर आयोजित युवा दिवस समारोह में संशोधित नागरिकता कानून को लेकर अपने  स्टैंड को सख्ती से दोहराते हुए कहा था कि उनकी सरकार उसमें किया गया संशोधन वापस नहीं लेने वाली क्योंकि उसने उसे रातोरात नहीं किया और उन्होंने जो किया उससे किसी की भी नागरिकता छिन नहीं रही बल्कि दी जा रही  है. जहां एक ओर प्रधानमंत्री जी ने अपने कदम को ऐतिहासक बताते हुए महात्मा गांधी और बाबासाहब अंबेडकर से भी जोड़ा वहीं दूसरी ओर उन्होंने विपक्ष पर जानबूझकर कुछ भी समझने को तैयार न होने, भ्रम फैलाने और युवकों को गुमराह करने के आरोप भी लगाये. 

जैसा की इस बात से पूरा देश अच्छी तरह वाक़िफ़ है कि न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि गृहमंत्री अमित शाह भी कई बार इस तरह के बयान दे चुके है फिर भी प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अराजनीतिक मंच से अपना वही पुराना घिसा-पिटा राजनीतिक बयान दे डाला. अगर प्रधानमंत्री इस अराजनीतिक मंच को बख्श देते तो भी ऐसा नहीं था कि उनका कोई संदेश युवाओं या देशवासियों तक जाने से रह जाता क्योकि वो इस बात को सैकड़ों बार कह चुके हैं 

हैरानी की बात ये है कि हालिया फैसलों के चलते बैकफुट पर आयी इस सरकार ने अभी तक अपने फासीवादी रवैय्ये में ज़र्रा बराबर भी नरमी नहीं बरती है जबकि सरकार संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर सवालों से जूझ रही है . यक़ीन मानिये इस मामले में वह बुरी तरह फंस गई है और बाहर न निकल पाने का डर उसे दिन-ब-दिन पहले से ज्यादा अलोकतांत्रिक बनाये जा रहा है.  अगर उन्होंने शालीन होना गवारा नहीं किया तो इस बात को लेकर दुःखी हुआ जा सकता है कि उन्होंने मुद्दों का बचाव करते करते खुद को गृहमंत्री अमित शाह की पांत में ला खड़ा किया. उनकी मानें तो पूरे देश का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने को लेकर ‘झूठ, झूठ और झूठ’ बोलते आ रहे हैं और अब तो वह यह कहने पर भी कोई संकोच नहीं कर रहे हैं कि विपक्ष जो भी चाहे कर ले हम संशोधित नागरिकता कानून पर एक इंच भी पीछे नहीं हटने वाले. 

ऐसे में विपक्ष द्वारा ‘गुमराह  किये जा रहे युवकों को यह भली भाँती समझ में आ रहा है कि आखिर कौन किसकी राह पर है मतलब गृहमंत्री ने प्रधानमंत्री की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री ने ही गृहमंत्री की राह पकड़ ली है. एक अहम् बात ये भी है कि विपक्ष को कुछ भी कर लेने की धमकी देने वाले गृहमंत्री अकेले नहीं हैं उनकी पार्टी से आया देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री इस कानून के विरुद्ध आन्दोलित नागरिकों को अपनी पावर का रुतवा दिखाकर उनसे भरपूर बदला ले रहा है तो पश्चिम बंगाल इकाई का अध्यक्ष कह रहा है कि उसकी सरकार ने उत्तर प्रदेश व असम के विरोधी प्रदर्शनकारियों को कुत्तों की तरह मारा. अब यह आपकी समस्या है कि आपके मन में कुछ देशद्रोहियों वाले सवाल उठने लगें कि यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें विपक्ष की भूमिका को ख़त्म किया जा रहा है और उसे लेकर मूंछें ऐंठी जा रही हो? 

एक बात तो खुले तौर पर सपष्ट है कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री जी को अपनी राजनीति, राजनीति नहीं वल्कि समाज सेवा लगती है. उसी प्रकार अपनों की अलोकतांत्रिकता भी अलोकतांत्रिकता नहीं बल्कि देशभक्ति लगती है. यह बात आपको खुद ही अपने विवेक का इस्तेमाल करके समझनी पड़ेगी वरना प्रधानमंत्री तो आपको बताने आएंगे नहीं. इस बात का सुबूत है ऐसे बयानों के खिलाफ उनकी चुप्पी!

Nidhian Shobhana Art

प्रधानमंत्री मोदी को तय कार्यक्रम के तहत पश्चिम बंगाल से पहले असम जाना था, जहां लोग प्रधानमंत्री के हालिया फैसलों के खिलाफ सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन नहीं गए क्योकि हमारे प्रधानमंत्री जी को विरोधी आवाजें सुनने की आदत नहीं है. उनका विरोध तो पश्चिम बंगाल में भी कुछ कम नहीं है, उनकी यात्रा के पहले ट्विटर पर ‘गो बैक मोदी फ्राम बंगाल’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहा था और वामपंथी दलों व कांग्रेस के साथ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस भी उनका खुला विरोध ही कर रही थी. भारी विरोध के बाद भी प्रधानमंत्री ने “सत्ता ही परम सत्य है” को सोचकर, पार्टी की खातिर एक बड़ा जोखिम अपने सर पर ले लिया चूंकि वहां उनकी पार्टी को बड़ा दांव खेलना है. फिलहाल उन्होंने वहां पूरे दो दिन बिताए और भरपूर राजनीति की. 

कोलकाता पोर्ट की 150वीं वर्षगांठ के समारोह में शामिल होकर उसका नाम डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी पोर्ट करने के बाद विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में एक गैलरी खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस, विनय बादल और दिनेश, ऋषि अरविंद और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के लिए आरक्षित करने की घोषणा कर दी . कोलकाता में 1833 में स्थापित एवं फिर से विकसित की गई करेंसी बिल्डिंग के उद्घाटन कार्यक्रम में भी साहब साफ़ सुथरी राजनीति करने पहुंच गए.  

उन्होंने कहा कि गुलामी के दौर में ही नहीं, आजादी के बाद भी देश के इतिहास लेखन में कई महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की गई. रवींद्रनाथ ठाकुर के हवाले से उन्होंने यह ‘ज्ञान’ भी दिया कि कुछ लोग बाहर से आये, उन्होंने सिंहासन की खातिर अपने ही रिश्तेदारों, भाइयों को मार डाला…!

रात बिताने बेलूर मठ पहुंचे तो उसे ‘घर आने जैसा’ और तीर्थस्थान कह डाला. वे स्वामी विवेकानंद के बारे में चर्चा करते करते स्वयम और स्वामी जी के ब्यक्तित्व में समानता खोजने लगे. फिर भी नाम में समानता ढूढ़ने में विफल रहे. पश्चिम बंगाल में उनकी और ममता बनर्जी की शिष्टाचार भेंट को लेकर भी उन्होंने सियासी गलियारों में कुछ वक़्त के लिए हलचल पैदा कर दी. फलस्वरूप प्रधानमंत्री ने ममता बनर्जी से यह कहा कि संशोधित नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे फैसलों पर उन्हें फिर से विचार करना चाहिए, ममता बनर्जी ने किसी भी तरह की मैच फिक्सिंग से साफ इनकार कर दिया जो स्वाभाविक था. लेकिन उनके समर्थकों ने प्रधानमंत्री को ऐसे सवालों के सामने करने की भरपूर कोशिश भी की कि जिस तरह वे पश्चिम बंगाल पहुंचे, असम क्यों नहीं गये? क्या विरोध करने वालों के बीच जाकर अपनी बात कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती और इसीलिए पश्चिम बंगाल में भी ‘अपने’ लोगों से ही मिले, कोई आम सभा नहीं की, क्या सबकुछ स्क्रिप्टेड था? 

बहरहाल, इस वक़्त देश के प्रधानमंत्री को सियासी आईने में देखें तो आज सत्ता की खातिर फूट डालने से भी कुछ काम बन नहीं पा रहा है. अब शाहीन बाग़ को ही ले लीजिये जिसपर सरकार की चुप्पी सरकार के बैकफुट पर होने का सबसे बड़ा सुबूत है. वहाँ की औरतें दिखा रही हैं कि आंदोलन किस प्रकार होना चाहिए। इस से पहले पूरे देश में प्रदर्शन हुए, हिंसा तक हो गयी, लेकिन पुलिस प्रशाशन के पास हर चीज़ का जवाब था और पुलिस ‘हुज़ूर’ का हुक्म पूरा करने में कोई कसर वाक़ई नहीं रख रही थी। ये सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तरह है, यहां चुपचाप अपना विरोध दर्शाया जा रहा है। शाहीन बाग़ सत्यागृह पर सरकार पूरी तरह लाजवाब है। यहां लाठियां, बंदूके, सब फेल हो गयी हैं। दरअसल ये आंदोलन जितना लम्बा चलेगा, सरकार की मुसीबतें बढ़ाता जाएगा. 

अन्ततः ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, केशवसेन और शरतचंद्र का जिक्र करते हुए उन्हें यह कहते देखना अफसोसजनक था कि इस हिंसक समय में, राष्ट्र की अंतरात्मा को जगाना जरूरी है. काश हमारे प्रधानमंत्री इतना और समझ पाते कि राष्ट्र की यह अंतरात्मा उसके संविधान में बसती है तो कोई फसाद ही ना बाकी रहता, क्योंकि देशवासियों का अब भी यह अखंड विश्वास है कि अगर संविधान की मूल भावना बची रहेगी तो हमारा भारत और उसकी संस्कृति, उसका इतिहास और दर्शन सब बच जाएंगे. काश कोई उनको संविधान और उसकी प्रस्तावना का पाठ पढ़ा पाता. 

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मोहम्मद जावेद अलिग एक शौधार्थी व् सवतंत्र पत्रकार हैं.

चित्र साभार – नीधिन शोभना

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