आप हिंदी की कोई भी गाली उठाएँ, वो या तो जाति आधारित है या लिंग आधारित। दरअसल ये वर्चस्व की संस्कृति की दरिद्रता है जो स्त्रियों और पराजित या शोषित समुदायों के नाम को गाली की तरह इस्तेमाल करती है। कोई सामान्य शब्द किस तरह अपनी सामाजिक लोकेशन (location) के कारण गाली बन जाता है या ऐसे इस्तेमाल होता है, उसके लिए ‘औरत’ शब्द पर गौर करें। औरत एक बिलकुल सामान्य शब्द है लेकिन हिंदी समाज और इसीलिए हिंदी साहित्य में ये सामान्य शब्द तब गाली बन जाता है जब किसी पुरुष को ‘औरत’ कह दिया जाए। ये शायद हिंदी-पट्टी के पुरुष के लिए सबसे बड़ी गाली होगी। इसका कॉन्टेक्स्ट मर्दवाद की वर्चस्वशाली सामाजिक संरचना से तैयार होता है।
इसीलिए ‘नाज़ी’ कविता कहती है-
‘नाज़ी मर्द होते हैं’