अंकित गौतम
ये लौ है
कई तूफ़ानों से लड़ कर
बचाया है खुद को कई आंधियों से
ब्राह्मणवाद की तेज़ाबी बारिश से
उसके आग बरसाते सूरज से
अंधेरी तूफानी रातों से
इसे बुझने न देना
इसे अपना खून-पसीना देना
पर जलाए रखना..।
हर मूलनिवासी में बारूद है
ये मुर्दा इंसान
बारूद का ढेर हैं
चिंगारी उन्हें देना इस मशाल से
जगाना मौत के आगोश से उन लोगों को
इस कारवां को आगे बढ़ाते रखना…।
मशाल बनाना इसे
हर किसी को दिखाना इसे
करेगी यह रोशन रास्ता
कदम तुम आगे बढ़ाते रहना…।
थामना हाथ एक दूसरे का
कंधे से कंधा मिलाना
कड़ी ये टूटने न देना…।
गिरेंगे कई शहीद इस मुकाम तक
बिछड़ेंगे जो साथ रहे हैं
तुम हौसला बुलंद बनाए रखना…।
रखना मंज़िल पर नज़र
मौत पर भरोसा रखना
अपने हौसलों के साथ
अपनी दुनिया को जगाने के लिए
तुम्हें सोना नहीं है मगर
दुश्मन की नींद उड़ाए रखना
अभी कुछ वक़्त है सुबह होने में
हर पहर मोर्चा संभाले रखना…।
ये लौ
ये मशाल
जलाए रखना
कारवां को आगे बढ़ाते रखना…।
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अंकित गौतम समाजशास्त्र के विद्यार्थी हैं. फिलहाल दिल्ली में रहते हैं और अम्बेडकरी विचारधारा से खुद को जोड़ते हैं.