डॉ ओम सुधा
पिछले दिनों हम सबने खबर सुनी कि एक दलित केवल इसलिए पीट-पीट कर मार दिया गया क्योंकि उसने अपने घर में निकले एक विषैले सांप को मार दिया था. पीटकर हत्या करने वालों का तर्क है कि सांप उनके लिए पूज्यनीय है. पिछले दिनों गाय और गोमांस के मुद्दे पर भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर देने की कई घटनाएँ सामने आई हैं. बनारस में मेढ़क और मेढ़की की शादी इसलिए करवाई गई क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि इससे बारिश होगी. तेजस विमान की उड़ान के पहले पण्डे द्वारा नारियल फोड़ने की तस्वीर को पूरे देश ने देखा. जिक्र किए गए तमाम घटनाओं में तेजस विमान की उड़ान के पहले नारियल फोड़ने वाली तस्वीर सबसे भयावह है. भयावह इसलिए क्योंकि इसके लिए बकायदा सरकार ने पण्डे को दक्षिणा दिया होगा, पूरा सरकारी अमला तस्वीर में पण्डे के सामने अदब की मुद्रा में खड़ा दिखता है.
ये चिंताजनक है, हम सबको चिंता करनी चाहिए और अगर हम चिंतित नहीं होते हैं तो हम भारतवासियों को खुद के बारे में चिंतन करना चाहिए. हम मंगल और चाँद पर बस्तियां बसाने के करीब गुजर रही दुनिया का हिस्सा हैं. आप सबने पढ़ा होगा जब यूरोप में पुनर्जागरण हो रहा था, नई दुनिया की तलाश हो रही थी, उस समय भारत में समंदर के पार जाने का मतलब धर्मभ्रष्ट होना था. उस समय भारत में सती प्रथा और बाल विवाह जैसी मान्यताएं थीं. जाहिर है इन सबके पीछे वैदिक ग्रन्थ थे. जब दुनिया औद्योगीकरण से गुजर रही थी उस समय भारतीय समाज वर्णव्यवस्था में बुरी तरह उलझा हुआ था. पेरियार और ज्योतिबा फुले ने बड़ी सामाजिक क्रान्ति के माध्यम से समतामूलक समाज की नींव रखी. जिसे बाद में डॉ आंबेडकर ने आगे बढ़ाया और समतामूलक समाज बनाने की लड़ाई आजतक अनवरत जारी है. वहीँ औरतों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता था, सदियों से उन्हें ज्ञान सृजन से दूर रख गया था. इस साजिश को सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने नाकाम कर दिया और स्त्रियों के क्षितिज को विस्तार दिया. बाद में डॉ आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को प्रगतिशील अधिकारों से लैस करने की कोशिश की जिसे नाकाम कर दिया गया. इसके विरोध में डॉ आंबेडकर ने क़ानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया, मगर डॉ आंबेडकर के प्रयास व्यर्थ नहीं गए बल्कि व्यापक स्तर पर नवजागरण हुआ.
धर्म की सत्ता पर सवाल उठाना भारत में हमेशा से खतरे का काम रहा है मगर ज्योतिबा फुले और पेरियार ने यह जोखिम उठाया. ज्योतिबा फुले की ‘गुलामगिरी’ हिन्दू धर्म की सत्ता को चुनौती देने वाली शानदार किताब है. ‘गुलामगिरी’ में फुले ने तार्किक तरीके से हिन्दू धर्म की कुरीतियों का खंडन किया है. बाद के दिनों में डॉ आंबेडकर ने गहन अध्ययन, तर्क और वैज्ञानिक चिंतन के आधार पर हिन्दू धर्म पर कुठाराघात किया. डॉ आंबेडकर के साहित्य ने भारतीय जनमानस की रुढ़िवादी सोच पर ज़बरदस्त चोट किए. उनकी लेखनी और उनके भाषण से स्पष्ट हो गया कि भारत में जाति और वर्णव्यवस्था की जड़ें हिन्दू धर्म में गहराई से धंसी हई हैं। डॉ आंबेडकर ना केवल इस मुद्दे पर संघर्ष करते रहे बल्कि भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों के ज़रिये इसका समाधान भी सुझाया.
भगत सिंह की ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ की चर्चा भी होनी चाहिए. फुले, पेरियार और डॉ आंबेडकर को तत्कालीन समय में चुनौतियों का सामना करना पड़ा था क्योंकि उस समय भी सत्ता धर्म और उसकी मान्यताओं के खिलाफ नहीं जा सकती थी. बाद के दिनों में जब समाज में वैज्ञानिक चेतना का विकास हुआ तो इसमें कमी आई. पर हाल के दिनों में देशभर में धार्मिक उन्माद और अंधविश्वास से जुड़ी घटनाओं को हमें अलग नजरिये से देखना पड़ेगा. अब इसको राजसत्ता से सीधे पोषण प्राप्त होने लगा है. जबसे दक्षिणपंथी भाजपा सत्ता में आई है तब से धार्मिक उन्माद या अंधविश्वास से जुड़ी घटनाओं को सत्ता का खुला समर्थन मिला रहा है. गौर करिए कि जब गौ-हत्या की वजह से उन्मादी भीड़ हत्या करती है तो उन क्रूर उन्मादियों के समर्थन में भाजपा के किसी ना किसी नेता का बयान तुरंत आ जाता है. देश भर में शोषण उत्पीड़न की घटनाओं में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है. यहां तक कि सरकार के कई नेता दलितों को लेकर अभद्र टिप्पणी कर चुके हैं. वी. के. सिंह ने दलितों की तुलना कुत्ते से की थी, महारष्ट्र के भाजपा विधायक ने सूअर से तो यूपी में भाजपा की एक महिला नेत्री मधु ने कहा की साफ़-सफाई करने वाले आज बराबरी कर रहे हैं. ना केवल दलित उत्पीड़न की घटनाओं को भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन है बल्कि देशभर में गोविन्द पंसारे समेत जितने भी लेखकों और बुद्धिजीवियों की हत्याएं हो रही है उसमे किसी न किसी प्रकार से दक्षिणपंथियों का कनेक्शन है. रोहित वेमुला का मुद्दा तो इसका ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे सत्ता दलित-बहुजनों को निगल रही है और सरकार उन शक्तियों के साथ कदमताल कर रही है. जिस बेशर्मी से स्मृति ईरानी मल्होत्रा और दत्तात्रेय, वेमुला ह्त्या की साजिश में परोक्ष रूप से भागीदार रहे उससे साफ़ पता चलता है कि किस तरह राजसत्ता जातिवादी व्यवस्था को मजबूत करना चाहती है.
असल में डॉ आंबेडकर के संविधान की वजह से समाज में बड़े परिवर्तन की गुंजाइश बनी. हाशिये का समाज कागज़ और कलम से जुड़ गया. आरक्षण की वजह से अवसर उपलब्ध होने लगे और हाशिये का पिछड़ा और दलित समाज अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ने लगा है. जातियों का यह टूटन जातिवादियों को भारी पड़ रहा है. हाशिये का समाज मुख्य या पॉपुलर स्पेस में हस्तक्षेप करने लगा है. यही बात जातिवादियों को खटक रही है. जिस गति से हस्तक्षेप बढ़ रहा है उसी गति से जातिवादी ताक़तें उन्माद फैलाने और डराने की कोशिश में लगे हैं. यह सीधे-सीधे उनकी धर्म प्रदत्त सत्ता पर चोट है. आप देखिये कि कैसे भाजपा के बड़े-बड़े नेता समय-समय पर हिंदुत्व का राग अलापते रहते हैं. भाजपा के पास हिंदुत्व के मुद्दे पर आग उगलने के लिए बकायदा एक समूह है जिसमे साध्वी प्रज्ञा, गिरिराज और आदित्यनाथ जैसे लोग शामिल हैं और यह फेहरिस्त बहुत लम्बी है. अख़लाक़ का मसला हो या तेजस की उड़ान के वक़्त नारियल फोड़ने का मुद्दा हो, चिंता की बात है. मैं पाठकों को इस सवाल के साथ छोड़ रहा हूँ कि हमें वैज्ञानिक चिंतन और तार्किकता से लैस राष्ट्र बनना है या कूपमंडूक राष्ट्र. सोचिएगा. क्योंकि मरी हुई सोच मरा हुआ नागरिक तैयार करती है. नहीं सोचिएगा तो एक दिन हमें अपने देश के दरवाजे पर यह लिख कर टांग देना पड़ेगा कि–यहां गाय और सांप मारना मना है! आदमी मारिए!
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डॉ ओम सुधा लगातार सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं. . बिहार के भागलपुर में रहकर लगातार दलित सरोकारों की लड़ाइयां सड़कों पर लड़ते रहे हैं.फिलवक्त आल इण्डिया पीपुल्स फोरम के राष्ट्रीय पार्षद और आंबेडकर फुले युवा मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं..
कार्टून : उनमती श्याम सुंदर