डॉ. रतन लाल
दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग से आने वाले सांसदों और नेताओं की आत्मा की शांति के लिए तीन मिनट का मौन देश भर में, विशेष रूप से, दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में आज यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन रखा था.
मैं भी कार्यक्रम में शामिल था. कार्यक्रम का मंच जन्तर मंतर चौराहे के पास बना हुआ था. वहां से तक़रीबन पचास मीटर की दूरी पर मायावती के विरोध में सिंह सेना और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का भी कार्यक्रम था.
सिंह सेना के तक़रीबन सौ सदस्य मार्च करते हुए बैरिकेड तक आये (वहीँ पर यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया का मंच था) और लौटते समय मायावती को गन्दी गन्दी गाली देते हुए वापस लौटे और यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया के कार्यक्रम पर अचानक हमला कर दिया. कई साथी घायल हुए.
अब सवाल उठता है कि, दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने वहां तक उन्हें जाने की इज़ाज़त क्यों दी? क्या इस तरह से हमले कराने की मंशा सरकार और प्रशासन की थी?
दूसरे, क्या सरकार जानबूझ कर इस तरह के मध्यकालीन, बर्बर जातीय संगठनों को बढ़ावा दे रही है? थोड़ा सा भी पढ़ा लिखा व्यक्ति इस बात को आसानी से समझ सकता है कि हजारों साल से दमित जातियों को संविधान की अनुसूची में डाला गया है. अर्थात वे संवैधानिक जातियां हैं और संविधान उन्हें अपने हकों और अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होने का अधिकार देता है. उनके हितों की रक्षा के लिए अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग भी बना हुआ है.
लेकिन संविधानेत्तर जातियों को जातीय संगठन बनाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. फिर भी इस तरह के कई संगठन कुकुरमुत्ते की तरह निकल आये हैं. यदि सरकार दलितों और आदिवासियों की रक्षा के लिए गंभीर है तो इस तरह के जातीय संगठनों को तत्काल प्रभाव से बैन करना चाहिए.
बहरहाल, पार्लियामेंट स्थित थाने में दोनों तरफ से शिकायत दर्ज हुई है. सबसे पहले सेना के कार्यकर्त्ता ही थाना का घेराव करने गए था. सुना है सिंह सेना वालों ने भी शिकायत किया है कि दलितों ने उन्हें पीटा है. लेकिन मैं परेशान हूँ कि समाज में यदि यह खबर फ़ैल गई कि दलितों ने सिंह सेना वालों को पीटा है तब तो बेचारों की नाक कट जायेगी. क्या कहेंगे लोग?
शायद इसीलिए मेन-स्ट्रीम मीडिया इन खबरों को नहीं दिखा रहा है, शायद देश भर में बेचारों की बेईज्ज़ती होगी. खैर पुलिस ने बिजली काट दी. कार्यक्रम बीच में ही रोकना पड़ा. लेकिन इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि दलित अत्याचार पर गूंगे बने दलित, आदिवासी और सामाजिक न्याय के अन्य सांसदों और नेताओं की आत्मा की शांति के लिए तीन मिनट का मौन रखा गया. सरकार की नाक के नीचे दलितों पर इस तरह का आक्रमण साबित करता है कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी पूरे देश में दलितों और आदिवासियों की भयावह स्थिति है.
लेकिन मैं समझाता हूँ अब दलित आन्दोलन आत्म-विश्वास के साथ सही दिशा में बढ़ रहा है. इस तरह का आक्रमण मनुवादियों के पेट में मरोड़ और उनकी बौखलाहट का सूचक है. हमें सावधान रहना चाहिए जैसे जैसे दलित आन्दोलन अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेगा, इस तरह के और हमले हो सकते हैं. खबर लिखने तक पता चला है कि संसद मार्ग थाने में यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया के दस-बारह कार्यकर्त्ता ही हैं, लेकिन सिंह सेना की तरफ से बड़े-बड़े नेता पहुँच चुके हैं, सिंह सेना वाले थाने में माफ़ी मांग रहे हैं कह रहे हैं समझौता कर लो. काहें को इतनी जल्दी निकल गई हेकड़ी, जितना आत्म-विश्वास से हमला किया था, उतने आत्म-विश्वास से मुकदमा भी लड़ो. बिना डरे, बिना झुके जिस तरह से यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया के कार्यकर्ता बने हुए रहे और बने हुए हैं, उनकी बहादुरी और साहस को जय भीम और सलाम.
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लेखक डॉ. रतन लाल , दिल्ली विश्वविद्यालय , हिन्दू कॉलेज में इतिहास पढ़ाते हैं ।
Photo credit : facebook
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