संजय जोठे (Sanjay Jothe)
भारत के दलितों आदिवासियों, ओबीसी (शूद्रों) और मुसलमानों को मानविकी, भाषा, समाजशास्त्र, दर्शन इतिहास, कानून आदि विषयों को गहराई से पढने/पढाने की जरूरत है. कोरा विज्ञान, मेडिसिन, मेनेजमेंट और तकनीक आदि सीखकर आप सिर्फ बेहतर गुलाम या धनपशु ही बन सकते हैं, अपना मालिक और अपनी कौम के भविष्य का निर्माता बनने के लिए आपको मानविकी विषयों को पढ़ना चाहिए.
अंबेडकर को पढ़िए, पेरियार को, मार्क्स को लोहिया को ज्योतिबा फूले को पढ़िए, भगत सिंह, राहुल सांस्कृत्यायन और देश दुनिया के सभी क्रांतिकारियों को पढ़िए. इन्हें पढ़े समझे बिना अगर आप पैसा कमा रहे हैं तो ये पैसा आपसे आपके ही लोगों के भविष्य की ह्त्या करवा रहा है. आप सीधे सीधे अपने ही बच्चों के भविष्य की हत्या कर रहे हैं.
दलितों आदिवासियों, ओबीसी (शूद्रों) और मुसलमानों से आने वाले जितने अधिकारी, उद्योगपति, नेता, इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, डाक्टर या धनपति हैं वे अपनी कौमों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. वे सिर्फ अपने आप को ‘ऊँचे लोगों’ के बीच स्वीकृत बनाये रखने के लिए ही मरे जा रहे हैं, ऐसे सभी लोग अपनी कौम के अपने समाज के गद्दार हैं. ये गद्दारी उनका अपना चुनाव है. उन्हें माफ़ कीजिये, आज नहीं तो कल उन्हें बुद्धि आयेगी. न भी आई तो इतिहास उनपर हंसेगा, और उनके खुद के समझदार बच्चे उनपर हसेंगे.
अभी आप एक जरुरी काम करना शुरू करें. अपने परिवारों में अपने मित्रों में और खासकर अपनी महिलाओं के साथ ऊपर गिनाये हुए लेखकों बुद्धिजीवियों क्रांतिकारियों की किताबें और विडिओ (अगर हों तो) पढ़ाएं/दिखाएँ. उनसे इन विषयों पर चर्चा करें. बच्चों और घर की औरतों को धार्मिक अंधविश्वास, त्यौहार, वृत, उपवास और कर्मकांडों से दूर ले जाते हुए उनके साथ सीधे सीधे सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर सरल भाषा में चर्चा करें. छोटी कवितायें, कहानियां, बाल साहित्य (धार्मिक नहीं) की किताबें खोजें और अपनी महिलाओं और बच्चों को बाटें, समय निकालकर उनके बीच जाकर उन्हें समझाने की कोशिश करें. और जब भी अवसर मिले खुद इन मुद्दों को समझने की कोशिश करें.
अगर आप ये कर सकते हैं तो आप बिना शोर मचाये दुनिया का सबसे बड़ा काम कर सकते हैं. इस काम को चौराहे या सड़क पर डंडा या झंडा लहराते हुए नहीं करना है. इसे आपको अपने परिवार में अपने बच्चों और स्त्रीयों के बीच और समाज के भीतर करना है. इसमें कोई सरकार, कोई कानून, कोई संगठन किसी तरह की रुकावट नहीं डाल सकता.
ये सबसे सुरक्षित और सबसे कारगर काम है, आप अगर तैयार हैं तो बस इतना ही काफी है. बहुत कम धन और बहुत कम समय में ये काम आप कर सकते हैं. आपको इसमें मदद करने के लिए हजारों लेखक, पत्रकार, टीचर, प्रोफेसर, शोधकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रगतिशील स्त्री पुरुष मिल जायेंगे. आप शुरू करें तो ये बहुत कम समय में एक आन्दोलन बन सकता है.
इसके लिए मैं एक पूरा ट्रेनिंग मोड्यूल डेवेलप करने का विचार कर रहा हूँ, इस तैयारी में कुछ महीनों का समय लग सकता है. जो मित्र उत्सुक हों उन्हें इसमें प्रशिक्षित किया जा सकता है और वे इसे एक काडर डेवेलपमेंट प्रोग्राम की तरह अपने घरों, परिवारों, मुहल्लों में लागू कर सकते हैं.
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संजय जोठे लीड इंडिया फेलो हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं। समाज कार्य में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय हैं। ब्रिटेन की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन में परास्नातक हैं और वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी कर रहे हैं।
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