Saheb Kanshi Ram Ji
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(मान्यवर कांशी राम जी का यह सम्पादकीय लेख उनके द्वारा सम्पादित अंग्रेजी में छपने वाली मासिक पत्रिका ‘दि ओप्रेस्ड इण्डियन’ के अंक फरवरी 1981 में छपा था. राउंड टेबल इंडिया आभारी है श्री विजेंद्र सिंह विक्रम जी का जिन्होंने लेख का अनुवाद किया है; और ए.आर. अकेला जी का जिन्होंने मान्यवर  के सम्पादित लेखों को किताब की शक्ल दी.)

कांशी राम 

छत्तीसगढ़-36 आदिवासी राज्यों की भूमि, जिसकी 95 प्रतिशत जनसँख्या मुट्ठी भर उच्च जाति के हिन्दुओं द्वारा शोषण से पीड़ित सामाजिक पिछड़ेपन की शिकार है. शोषित लोग इस तथ्य को जानते हैं. वास्तव में वे बगावत के मूड में थे तथा सहयोगियों की खोज में थे. एक बार उनको समान कष्ट सहने वाला भरोसा हो जाये तो मैं उनके कष्टों को दूर कर दूँगा- कांशी राम

Saheb Kanshi Ram Ji‘बामसेफ’ के द्वितीय राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान दिल्ली में आये हुए हमारे छत्तीसगढ़ के मित्रों तथा प्रतिनिधियों ने मुझे रायगढ़ जिले के छिन्द में होने वाले रामनामी मेला के अवसर पर आने के लिए सहमत कर लिया. मिस्टर टी.आर.खूंटे बामसेफ के टॉप कार्यकर्ताओं में एक, के द्वारा हमारे दौरे के साथ साथ प्रदर्शनी की सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ की गईं.

छिन्द के रामनामी मेले ने हमें वहां की ज़मीन तथा रहने वाले लोगों को करीब से समझने का मौका दिया. छत्तीसगढ़ भारत के सबसे बड़े राज्य मध्यप्रदेश के बृहत्तर क्षेत्र में फैला हुआ है. छत्तीसगढ़ नाम क्षेत्र में 36 आदिवासी राज्यों से पैदा हुआ बताया जाता है. आज भी क्षेत्र की आबादी का चालीस-पचास प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. अगली बड़ी आबादी अनुसूचित जातियों की है, जो कुल आबादी की 30 प्रतिशत है. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की मिलाकर जनसँख्या 76 प्रतिशत बैठती है. यधपि बहुत सी जनजातियाँ हैं लेकिन सबसे बड़ी जनजाति गोंड जनजाति है. अनुसूचित जाति में सबसे बड़ी जाति सतनामी जाति है. रामनामी सूर्यवंशी तथा कबीरपंथियों के साथ सतनामी जाति की आबादी कुल अनुसूचित जातियों का 90 प्रतिशत है. बाकी बची हुई 25 आबादी में 20 प्रतिशत आबादी अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) की होनी चाहिए.

यह क्षेत्र, जहाँ एस.सी., एस.टी. की आबादी 75 प्रतिशत है तथा ओ.बी.सी. की आबादी 20 प्रतिशत है, को भारत के अत्यंत पिछड़े क्षेत्रों में उचित ही माना जा सकता है. यह, आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ की गरीब जनता का कितना शोषण होता है. वास्तव में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनितिक शोषण यहाँ के क्षेत्र में चरम सीमा पर है.

एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी., जो छत्तीसगढ़ क्षेत्र की कुल जनसँख्या का 95 प्रतिशत बैठती है, परिभाषा के अनुसार सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई है. पिछले समय में इनका सामाजिक रूप से भारी शोषण हुआ है. मुट्ठी भर उच्च जातियों के हिन्दुओं द्वारा किये गए इन सीधे-सादे लोगों के शोषण की कहानियाँ दिल दहला देने वाली हैं. विगत में गुरु बाबा घासीदास व् कुछ अन्य द्वारा की गई सामाजिक सेवाएं, घोर अंधकार में उजाले की किरण की तरह देखी जा सकती है. लेकिन आज सभी सताए हुए लोगों में (दलित), कथित उच्च जातियों द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न के विरुद्ध विद्रोह की आग भड़क रही है. 

आर्थिक शोषण इस क्षेत्र की दूसरी विद्रोह करने एवं बदला लेने की प्रवृति की वजह है. भारत के खनिज सम्पदा के हिसाब से यह क्षेत्र सबसे अधिक समृद्धशाली है. बम्बई व् कलकत्ता को जोड़ने वाली मुख्य लाइन इस क्षेत्र से होकर गुजरती है. भूमि मुख्यतया उपजाऊ है. इसीलिए यह विडंबना ही है कि इस क्षेत्र में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे पंजाब में पलायन कर बंधुआ मजदूर बनकर कार्य करते हैं. स्थानीय स्तर पर भोलेभाले लोगों का शोषण होने का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है. आर्थिक शोषण के विरुद्ध विद्रोही होने का मूड आसानी से देखा जा सकता है.

राजनितिक शोषण होने का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अत्यंत सूक्ष्म (छोटी) संख्या में रहने वाली ब्राह्मण जाति में से शुक्ला परिवार ने पिछले लगभग 50 सालों से अपनी प्रधानता बनाए रखी है. संसद और विधान सभाओं में आरक्षण के कारण एस.सी., एस.टी. के लोग बड़ी संख्या में पहुँचते हैं; लेकिन ओ.बी.सी. खाली हाथ रह जाते हैं. गैर-आरक्षित सीटें ब्राह्मणों के कब्ज़े में चली जाती हैं. आरक्षित सीटों पर भी कोशिश की जाती है कि कोई कठपुतली व्यक्ति ही चुनाव जीते.

हमारे छत्तीसगढ़ के दौरे ने हमें इस बात से भलीभांति परिचित करा दिया है कि एस.सी., एस.टी. तथा ओ.बी.सी. के लोग दबाव में अत्यंत पीड़ादायक ज़िन्दगी जी रहे हैं. वे इस तथ्य से भी अवगत हो गए हैं कि चन्द लोगों द्वारा उनका सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शोषण किया जा रहा है. वास्तव में वे अपने हक के लिए बगावत पर उतारू हैं. उनको कुछ सहयोगियों की तलाश है. एक बार उनको भरोसा हो जाये कि भारत में कहीं पर भी समान कष्टों वाले लोग उनकी मदद के लिए तैयार हैं. वे अपने कष्टों का अंत करने के लिए अपनी लड़ाई लड़ने को तैयार हो जायेंगे.

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