एम्.इकबाल अंसारी (M. Iqbal Ansari)
कभी कभी ज़िन्दगी में ऐसी घटनाएँ, ऐसी बातें देखने व् सुनने को मिल जाती हैं जो दिल दिमाग में गहराई तक चोट करती हैं. ऐसी ही कभी न भूलने वाली सवर्ण मुस्लिम शिक्षक द्वारा की गई व्यंग्य पर आधारित यह प्रसंग समुन्द्र में अदहन [अदहन माने ‘खौलता हुआ पानी ‘(भोजन आदि के लिये)] वाला है. मैं तालीमी और बेदारी के लक्ष्य के साथ विभिन्न गाँवों, नगरों में बसने वाले पसमांदा मुस्लिम भाईयों से मिलजुल रहा था. उनसे पसमांदा मुस्लिम समाज की बदतर स्थितियों पर चर्चा तथा उनके कारण और उससे निजात की बात के केंद्र में रहता था. इसी क्रम में मैं गाजीपुर के व्यस्त बाज़ार के मशहूर मेडिकल प्रैक्टिशनर जो मेरे पूर्व परिचित भी थे और जाति से अंसारी भी थे, उनसे मिला. जिनकी गणना नगर के पढ़े-लिखे क्वालीफाईड एलोपैथिक चिकित्सकों में होती है. मैं जिस वक़्त उनसे मिला उस वक़्त वह अपने रोगियों को निपटाकर कुछ फुर्सत में थे. इसलिए उन्होंने हमें तुरंत अपने चैम्बर में बुला लिया. सम्बन्ध के हिसाब से उन्होंने औपचारिकता भी निभाई. बातचीत के केंद्र में मुसलमानों में जात पात, भेदभाव, छूआछूत ही था. उन्होंने बातचीत के क्रम में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी एक घटना के बारे में, नाम और छपने की शर्त पर, मुझे बताया कि
“मेरा गाँव मुस्लिम बहुल एक बड़ा गाँव है. जिसमें पठान बिरादरी की आबादी सबसे ज्यादा है. जो अपने नाम के आगे खां लिखते हैं. जिनके पास नौकरी, जगह-ज़मीन भी प्रयाप्त है. गाँव पर दबदबा भी उन्हीं लोगों का है. जबसे राजनीति और अपराध का घिनौना गठजोड़ हुआ है तो कुछ माफिया किस्म के खान भी पैदा हो गए हैं. पिछड़े और दलित हिन्दू बिरादरीयाँ भी हैं. चंद घर पसमांदा मुसलमानों के भी आबाद हैं. मेरे अब्बा गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे. जिस विद्यालय में सवर्ण मुस्लिम अध्यापक भी पढ़ाते थे. एक दिन सवर्ण मुस्लिम शिक्षक ने मेरे अब्बा से परिवार का हाल-चाल पूछते-पूछते पूछा कि
‘अरे अंसारी तुम्हारा फलाँ लड़का इस समय क्या कर रहा है?’
मेरे अब्बा ने कहा-
‘इस साल वह इंटरमीडिएट की परीक्षा विज्ञान वर्ग से पास किया है.’
सवर्ण शिक्षक ने पूछा-
‘आखिर किस श्रेणी में पास किया है? वह तो सुनते हैं कि पढ़ने में अच्छा था!’
अब्बा ने कहा-
‘हाँ खां साहेब, वह प्रथम श्रेणी में पास हुआ है.’
उस सवर्ण शिक्षक ने कहा-
‘यह तो अच्छी बात है. ऐसा करो कि उसे किसी शहर में भेज दो. कोई न कोई नौकरी उसे ज़रूर मिल जाएगी.’
सवर्ण मुस्लिम के व्यवहार से अब्बा तो पूर्व परिचित थे इसलिए उस प्रसंग को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे, लेकिन उस सवर्ण शिक्षक ने फिर जोर देकर पूछा-
‘आखिर उसके विषय में क्या सोच रहे हो?’ न चाहते हुए भी अब्बा को बताना पड़ा.
‘वह मेडिकल की तैयारी करना चाहता है. एम्.बी.बी.एस डॉक्टर बनना चाहता है.’
सवर्ण शिक्षक ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि-
‘अरे अंसारी उससे कह दो बड़ा बड़ा सपना देखना बंद करे, हमने अच्छे-अच्छे को देखा है, मेडिकल की पढ़ाई आसान नहीं है. इस वक़्त कोई न कोई नौकरी उसे ज़रूर मिल जाएगी.’
अब्बा ने गंभीर होते हुए कहा-
‘खां साहेब, मैंने उसे बहुत समझाया लेकिन वह हमेशा डॉक्टर ही बनने की बात कर रहा है और किसी छोटी नौकरी के लिए तैयार नहीं है. जब वह नहीं माना तो हमने भी सोचा कि पढ़ाई के लिए परिश्रम जब लड़के को ही करना है तो क्यों न उसे एक मौका दिया जाये. बाप होने के नाते किसी तरह पैसे की व्यवस्था करूंगा. उसका नैतिक और आर्थिक सपोर्ट करूंगा.’
अब्बा की बात सुनकर वह सवर्ण मुस्लिम शिक्षक व्यंग्य कहते हुए इतनी बड़ी बात कह दिया जो मुझे अब भी नहीं भूलता. उसने कहा-
‘अंसारी तुम पागल मत बनो. तुम तो समुंदर में अदहन देने चले हो जो कतई संभव नहीं.’
सवर्ण मुस्लिम शिक्षक की बात सुनकर अब्बा सन्न रह गए और बेहद चिंता में डूब गए. यह घटना लगभग तीस-पैंतीस साल पुरानी है.
जब शाम को अब्बा घर आये तो मैं चारपाई पर बैठकर मेडिकल संबंधी किताबें पढ़ रहा था. अब्बा सीधे घर के अन्दर चले आये. जब बाहर निकले थे तब भी मैं पढ़ ही रहा था. अब्बा मेरे चारपाई के आगे-पीछे चिंतित मुद्रा में टहलने लगे. थोड़ी देर के बाद वह मेरी चारपाई की एक तरफ बैठ गए. मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा तो वो बहुत ग़मगीन लग रहे थे. मुझसे रहा न गया. मैंने पूछा- ‘क्या बात है अब्बा?’
वे कुछ नहीं बोले. जैसे उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है. फिर हमने जोर देकर पूछा कि- ‘आखिर क्यों नहीं बोल रहे हैं? क्या किसी ने कुछ कहा है?’
मेरे जोर देने पर विद्यालय में चली चर्चा को उन्होंने भारी मन से मुझे बताया. जिसमें सवर्ण मुस्लिम शिक्षक ने बड़ी चुनौतीपूर्ण गंभीर बात कह दिया था. इसका तात्पर्य था कि जिस तरह पृथ्वी की तीन भागों में फैले हुए समुंदर के अथाह पानी को कोई गर्म नहीं कर सकता उसी तरह तुम छोटी जाति के मुसलमान कभी भी एम्.बी.बी.एस डॉक्टर नहीं बना सकते.
अब्बा की बात सुनकर मैं सिहर उठा. उस वक़्त भावुकता में उनकी आँखें डबडबा गईं थीं. मैं तो रो पड़ा था. लेकिन हमने हिचकते हुए जोर देकर अब्बा से कहा कि- ‘अब्बा एक दिन मैं एम्.बी.बी.एस डॉक्टर बनकर इन सवर्ण मुसलमानों को दिखा दूंगा.’ मेरी मेहनत और अब्बा के नैतिक-आर्थिक सहयोग से आज मैं एम्.बी.बी.एस डॉक्टर हूँ.
मेरे मित्र यह सब बताते हुए भावुक हो गए थे. मैंने भी इस चर्चा को आगे बढ़ाना मुनासिब नहीं समझा.
मैं पाठकों से पूछना चाहता हूँ कि क्या सवर्ण मुसलमानों द्वारा इस तरह की देश में पसमांदा मुसलमानों के साथ अकेली घटना हुई होगी? इस तरह की पता नहीं अनगिनत घटनाएँ हुईं होंगी. जिसमें पसमांदा मुसलमानों के बच्चों, नवजवानों, बूढों, महिलायों और बच्चियों के हौसले को तोड़ने का काम इन अभिजात्य मुसलमानों ने किया होगा. यह सिलसिला आज भी जारी है. ऊपर से मुसलमानों में सब बराबर हैं, का ढोंग भी किया जा रहा है. हम उनपर भरोसा भी कर रहे हैं.
जब शिक्षा के क्षेत्र में रहने वाले सवर्ण मुस्लिम शिक्षक की इतनी गिरी मानसिकता हो सकती है तो भला अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले सवर्ण मुसलमान, जुलाहों, कुंजड़ों, कसाइयों, पवरिया, डफाली, नाऊ, धोबी, दर्जी, हलालखोर इत्यादि को कितनी नीची निगाह से देखते होंगे और उनको समाज में आगे बढ़ते देखकर उनके मन में कितनी जलन होती होगी. हमें इन चीज़ों को समझना चाहिए. सवर्ण मुसलमानों में आज भी जातीय श्रेष्ठता की भावना मौजूद है. सवर्ण मुसलमानों के हाथ में इस्लाम एक खिलौना बन गया है जो अपने मकसद-मतलब के हिसाब से इस्लाम की व्याख्या करते रहते हैं. जो अत्यंत निंदनीय है.
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