सुमन देवठिया (Suman Devathiya)
ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच (दिल्ली) की ओर से दिनांक 19-20 दिसम्बर 2017 को सावित्री बाई फूले यूनिवर्सिटी, पूना के परिसर में एक ऐतिहासिक ‘दलित महिला स्पीक आउट कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन किया गया. इस कॉन्फ्रेंस में भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न भागों से अपने मुद्दों के साथ 450 के लगभग दलित महिलाओं ने अपनी सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया. दलित महिलाएं हर गतिविधि्यों में भाग लेकर उत्साहवान महसूस कर रही थी और एक दूसरे का हाथ पकड़कर हर संघर्ष में साथ चलने का वादा करतीं नज़र आ रही थीं.
इस पूरे कॉन्फ्रेंस में आदरणीय बाबा साहब अंबेडकर व सावित्री बाई फुले द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन व कार्यों को संगीत व कला के माध्यम से प्रदर्शित किया गया. इसी के साथ अलग-अलग क्षेत्रों के विशेष गीत व अन्य कलाओं के माध्यम से दलित इतिहास व संस्कृति को प्रदर्शित व दर्शाया गया.
जिस तरह से आयोजनकर्ताओं द्वारा पूरे कॉन्फ्रेंस का प्रारूप तैयार किया गया वो वाकई सराहनीय था. इस कॉन्फ्रेंस के दौरान दलित महिला नेतृत्वकर्ताओं ने अपनी बात को रखते हुए भारत में चल रहे विभिन्न आंदोलनों में उनकी अहम भूमिका, महत्व व सफलताओं को सभी के साथ सांझा कर एक दूसरे को ऊर्जान्वित किया. साथ ही सहभागियों हेतु 13 विभिन्न मुद्दों से जुड़ी समस्याओं, मुद्दों व हुनर से संबंधित विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जिनमें हर कार्यशाला में महिलाएँ उत्साह के साथ भागीदारी करती नजर आ रहीं थीं. इन सब कार्यों के अतिरिक्त जो दलित महिलाओं की कलाकारी को कलम, जुबान व कागजों पर उतार कर मंच, कोने व दीवारों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया, वह लाजवाब था. उन सब को सुनकर व देखकर तो ऐसा लग रहा था कि वाकई हम आज अपनी एक अलग निस्वार्थ व निष्पक्ष दुनिया के साथ खड़े हैं जो खुद को साबित करने का इतिहास रच रही हैं. सही मायनों में कहा जाये तो यह इतिहास यहाँ रचा भी गया.
मैं दिल से सभी बहिनों को हार्दिक सम्मान ओर सलाम करती हूँ जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में हर संघर्ष के बावजूद अपने आपको कभी कमज़ोर नहीं होने दिया. इन दो दिनों में यह सब गतिविधियां देखकर व् महिलाओं को सुनकर ऐसा लग रहा था कि इन बहादुर महिलाओं द्वारा अपनी शक्ति ओर ज्ञान का परिचय देकर उन सभी लोगों को करारा जवाब दिया है जिन्होंने महिलाओं की शक्ति और उनके ज्ञान को कभी महत्व ना देकर उन्हें आगे की कतार में जगह नहीं दी.
इस कॉन्फ्रेंस में राजस्थान से भाग लेने वाली ग्रामीण से राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्व करने वाली बहादुर दलित महिला नेत्रियां थीं. मैं राजस्थान की निवासी होने के कारण राजस्थान से शामिल दलित महिलाओं से हुई बातचीत व उनके दिल से निकली आवाज़ को आपके साथ सांझा करना चाहती हूँ कि जब भी राजस्थान की दलित महिलाओं को किसी सहभागी से बात करने का मोका मिला तो उन्होंने एक दूसरे राज्यों की भाषाओं व तमाम बंदिशो को तोड़ते हुए संवाद करने का मोका नहीं खोया ओर दिल से एक दूसरे को स्वीकारते हुए भविष्य में संपर्क बनाए रखने के लिए संपर्क सूत्र व संपर्क करने के माध्यमों को अपनी-अपनी डायरियों में संजोने का काम करती रहीं. ये दृश्य ओर उनके द्वारा विश्वासी चेहरा ओर उन बातों की आवाज़ आज भी मेरे आंखों के सामने ओर कानों में गूँजती रहती है ओर मेरे मन और ध्यान को अपनी ओर खींच लेती है.
इन दो दिनों के दौरान इस कॉन्फ्रेंस में भाग लेकर मैं अपने आप को गौरान्वित महसूस कर रही हूँ लेकिन यह भी सोच रही हूँ कि राजस्थान में ही दलित महिलाओं के संघर्ष की कहानी नहीं है बल्कि पूरे भारत में ही हर दलित महिला की अपनी एक संघर्षभरी दास्ताँ है और आज भी वो उन संघर्षों के बीच मजबूती से खुद को खड़ा रखके अपने वजूद को बनाए हुए अपने नेतृत्व को मजबूत कर हर क्षेत्र में न्याय हेतु आवाज उठा रही है. उनके द्वारा सांझा किए गए अनुभवों से मेरा व्यक्तिगत मनोबल एंव क्षमता का विकास हुआ है जो मुझे हमेशा मेरे कार्य को करने के दौरान मेरा मनोबल बढ़ाते रहेंगे और मार्गदर्शन के रूप में हमेशा साथ देंगे.
इस कॉन्फ्रेंस में सभी दलित महिला नेतृत्वकर्ताओं द्वारा दिए गए वक्तव्य को सुनकर साबित हो रहा था कि उन्हें भी हर क्षेत्र में ओर हर जगह संघर्ष करना पड़ा और उन्हें इस मुकाम तक पहुँचने के लिए मनुवादी सोच, जाति, पितृसत्ता, वर्ग ओर आर्थिक संघर्ष से लड़ना पड़ा व इन सभी चुनौतियों से मजबूती से लड़कर इस मुकाम तक पहुँची हैं जो हर एक दलित महिलाओं को अपने स्वाभिमान ओर सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित करने का मार्ग दिखाता है.
इस कॉन्फ्रेंस के बाद तो साफ तौर पर यह सवाल उठते हैं कि दलित महिलाओ में शक्ति, हुनर एंव ज्ञान का दायरा विशाल है, मजबूत है व इनकी हर क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी व भूमिका रही है तो फिर समाज ने इनकी क्षमताओं व नेतृत्व को उजागर क्यों नहीं किया/होने दिया? सच में, इस कॉन्फ्रेंस से तो यही समझ आया कि ऐसा जानबूझकर व षड्यंत्र के तहत हुआ. ज्योंही उन्हें स्वतंत्र व सुरक्षित मंच मिला तो उन्होंने अपनी शक्ति, हुनर व नेतृत्व के साथ हर योग्यता को प्रदर्शित किया. उन्होंने अपने लिए एक नई रौशनी व रास्ता चुनते हुए अपने स्वाभिमान, सम्मान, समानता, समता, हक़ व अधिकारों को प्राप्त करने का प्रण लिया एंव दृढ-विश्वास के साथ आगाज़ किया.
इस नई उर्जा व आगाज़ का हम सभी दलित महिलाएं सम्मान करती हैं और हमेशा एक दूसरे के साथ चलने का वादा करती हैं और हम उम्मीद करती हैं कि भविष्य में इस तरह के आयोजन कर एक दूसरे को रास्ता दिखाने, सहयोग करने, एक साथ काम करने, नेटवर्क बढ़ाने व हौंसला बढ़ाने हेतु एक दूसरे को मौका देते रहेंगे.
इस कांफ्रेंस तक राजस्थान से भाग लेने वाली दलित महिलाओं को लाने का श्रेय राजस्थान में 2016 में आयोजित दलित महिला स्वाभिमान यात्रा को भी जाता है क्योंकि इस यात्रा के माध्यम से भी बहुत सारी दलित महिलाओं को मंच के साथ जुड़ने व नेटवर्क बनाने का मौका मिला था और आज भी यह सभी दलित महिलाएं राजस्थान में मंच के साथ जुड़कर कार्य कर रही है. मंच की इस सफलता के मद्दे-नज़र मंच द्वारा राजस्थान में दलित महिलाओं को एक मंच पर आने, नेटवर्क बढ़ाने व जागरूकता लाने हेतु जल्दी ही माह मार्च-अप्रैल 2018 मे दलित महिला स्वाभिमान यात्रा करने की योजना बना रहा है और राजस्थान व मंच से जुड़ी तमाम दलित कार्यकर्ता महिलाएं इसका हिस्सा रहेंगी. उम्मीद है कि इस बार होने जा रही यात्रा का आप सब भी हिस्सा रहेंगे और दलित महिलाओं के मुद्दों को उठाने व जागरूकता लाने में मंच व दलित महिला नेतृत्व को बढ़ाने हेतु प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग व समर्थन देकर यात्रा के उद्देश्यों को प्राप्त करने व सफल बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे.
अंत में मैं इस कॉन्फ्रेंस से मिली सीख को अपने जुबान से कहूँ तो इस मुहावरा के साथ कहूँगी कि ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई’. इस लेख के साथ अंत में आप सभी को क्रान्तिकारी जय भीम व जय सावित्री बाई फूले से साथ सलाम करती हूँ और हमेशा इस दलित महिला स्वाभिमान, गरिमा, हक व अधिकारों की लड़ाई में कदम से कदम मिलाकर चलने का वादा करती हूँ.
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