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ओबेद मानवटकर (Obed Manwatkar)
लेखक ब्रज रंजन मणि जी की प्रसिद्ध कविता ‘किसकी चाय बेचता है तू?’ की तर्ज़ पर
हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?

बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू?
पकोड़े वालों को क्यों बदनाम करता है तू?
साफ़ साफ़ बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
खून लगाकर अंगूठे पे शहीद कहलाता है
और कॉर्पोरेट माफिया को मसीहा कहता है
अंबानी-अदानी की दलाली से ‘विकास’ करता है
अरे बदमाश, बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
खंड-खंड हिन्दू पाखंड करता है
वर्णाश्रम और जाति पर घमंड करता है
फुले-अंबेडकर-पेरियार से उलटे पाँव भागता है
अरे ५६ इंची ‘चौकीदार’, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
मस्जिद गिरजा गिराकर देशभक्त बनता है
दंगा-फसाद की तू दाढ़ी-मूछ उगाता है
धर्म के नाम पर बस क़त्ले-आम करता है
अरे हैवान बता तो, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
पत्नी को छोड़ कुंवारा बनता है
दोस्त की बिटिया से छेड़खानी करता है
काली टोपी और चड्डी से फिर लाज बचाता है
अरे बेशर्म, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
करतूतें करते तनिक लाज नहीं करता है
इंसानियत के नाम से दूर भागता है
पकोड़े वालों के नाम पर भद्दी राजनीति करता है
अरे मक्कार अब तो कह दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
बात-बात में नाटक क्यूँ करता है तू
पकोड़े वालों को क्यों बदनाम करता है तू?
साफ़ साफ़ बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू?
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ओबेद मानवटकर, सत्य शोधक समाज (अंतर्राष्ट्रीय) के कार्यकर्त्ता है और शुआटस इलाहबाद में पीएचडी के शोध विद्यार्थी है।