
एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin)
आतंक का मकसद और अर्थ घबराहट, डर, भय पैदा करना होता है. यदि आतंकवाद को सीधे-सीधे परिभाषित किया जाये तो हर वह व्यक्ति, संगठन निःसन्देह आतंकवादी है जिसके कृत्यों से लोगो में भय, घबराहट अथवा डर पैदा हो. एक तरफ जहाँ हमारे देश में ही कई ऐसे संगठन【2】तथा राजनैतिक दल【3】हैं जिनके कृत्यों (जैसे गोरक्षा के नाम पर हत्या, लव जिहाद के नाम पर हत्या, सार्वजनिक स्थानों पर अवैध तरीके से असलहों का प्रदर्शन करना इत्यादि) तथा उनकी टिप्पणियों (जैसे देशद्रोही, रामजादे-हरामजादे, पकिस्तान चले जाओ, भारत हिन्दू राष्ट्र है, देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जायेगा आदि) से अल्पसंख्यक समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में भय, डर तथा घबराहट का वातावरण उतपन्न होता है तथा मुस्लिम समाज आतंकित होता है. वही दूसरी तरफ विश्व में तमाम ऐसे आतंकी संगठन【4】हैं जिनका सम्बन्ध विश्व के भिन्न-भिन्न धर्मों से है और कुछ संगठन ऐसे भी हैं जो धर्म में विश्वास नही करते अर्थात नास्तिक है परन्तु भारत सहित विश्व की मीडिया का एक बड़ा वर्ग, जो इस्लाम व मुस्लिम विरोधी मानसिकता से ग्रसित शक्तियों द्वारा संचालित होता है, वह आतंकवाद को इस रूप में पेश करता है गोया मुसलमान और आतंकवाद एक दूसरे के पर्याय हैं.
जहाँ एक तरफ इस्लाम विरोधी मानसिकता से ग्रसित वर्ग इस्लामिक सिद्धांत दूसरे शब्दों में क़ुरआन को ही आतंकवाद का मूल साबित करने पर पूरा जोर लगा रहा है वहीँ दूसरी तरफ मुसलमानों द्वारा इस प्रोपैगण्डे का एक स्वर में विरोध करने के बजाय स्वयं मुसलमानों का ही एक वर्ग जो बरेलवी व सूफी विचारधारा से सम्बन्धित (सम्पूर्ण बरेलवी व सूफी नहीं) है आतंकवाद का मूल वहाबी विचारधारा को साबित करने पर पूरी मेहनत कर रहा है. इसके क्रिया कलापों का अध्ययन करने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये वर्ग उन संगठनों व राजनीतिक दलों के इशारों पर काम करता है जिनका उद्देश्य मुस्लिमों के एक मकतबे फ़िक्र (फिरके) को दूसरे मकतबे फ़िक्र (फिरके) से लड़ाकर【5】मुस्लिमों को कमजोर से कमजोरतर कर अपना सम्पूर्ण एजेण्डा (हिंदुत्व) लागू करना है. इन दोनों में कभी-कभी गजब की समानता देखने को मिलती है उदाहरणार्थ- “जहाँ एक तरफ मुस्लिम विरोधी संगठनों की तरफ से इस आशय की टिप्पणी की जाती है कि हम ये कत्तई नहीं कहते कि हर मुसलमान आतंकवादी है लेकिन ये भी सत्य है कि हर आतंकवादी मुसलमान ही होता है, वही दूसरी तरफ से उसी जूठन (थूके हुए लुकमे/निवाले) को चबाते हुए कहा जाता है कि मैं ये नहीं कहता कि हर वहाबी आतंकवादी है लेकिन मेरा चैलेन्ज है कि हर आतंकवादी वहाबी ही होता हैं.”【6】
मेरा मानना है कि इस्लाम व मुसलमानों के लिए इस्लाम विरोधी शक्तियों द्वारा मुसलमानों पर हो रहे लगातार हमलों व आतंकवाद को इस्लामिक सिद्धांत अर्थात आतंकवाद का मूल क़ुरआन की आयतों को साबित करने की साज़िशों से ज़्यादा खतरनाक मुस्लिमों के एक वर्ग द्वारा जाने-अनजाने में बोली जा रही इस्लाम विरोधी शक्तियों की भाषा है. इसलिए मैंने लेख का विषय आतंकवाद का कारण, प्रभावित क्षेत्र व उद्देश्य आदि के स्थान पर मुसलमानों के उन्हीं वर्गों व उनके विचारों तक केंद्रित रखा है जो खुद को मुसलमान कहते हुए जाने-अनजाने में इस्लाम व मुस्लिम विरोधी शक्तियों की भाषा बोल रहे हैं.
ऐसे तमाम लोगों से जो तथाकथित इस्लामिक आतंकवाद का मूल वहाबिज्म को मानते हैं तथा वहाबी विचारधारा को ही आतंकवादी विचारधारा सिद्ध करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, उनसे मैं कहीं अन्य की जगह वहाबिज्म के जन्म स्थल व बहाबिज़्म के शक्ति केंद्र “मिडिल ईस्ट” में ही सक्रिय आतंकी संगठनों के सम्बन्ध में मात्र इतना जानना चाहता हूँ कि-
1- क्या आतंकी संगठन हिजबुल्लाह (लेबनानी शिया मिलीशिया) का सरगना सैयद हसन नसरुल्लाह वहाबी है?
2- क्या सीरिया (शाम) का जालिम हुक्मरान बशर अल असद वहाबी है?
3- क्या सीरियाई शासक बशर अल असद की मदद करने वाले दीनी शिया रहनुमा इमाम सैयद खामनाई वहाबी हैं?
4- क्या यमन के हौती विद्रोही, जिनकी वजह से यमन के निर्वाचित शासक को सउदिया अरबिया में पनाह लेनी पड़ी, वहाबी हैं?
5- क्या मेंहदी ब्रिगेड का इराकी संस्थापक मुक़तदा अलसदर वहाबी है?
6- क्या इराकी हिमायत याफ्ता शीया मिलीशिया अल हश्द अस्शाबी जो सुन्नियों का क़त्ल कर रहा है वहाबी है?
7- क्या अल हश्द अस्शाबी में शामिल 67 गिरोहों【7】में-से किसी गिरोह का सम्बन्ध वहाबी विचारधारा से है?
सत्यता तो ये है कि उक्त (बिंदु 1-7 में वर्णित) किसी भी संगठन का सम्बन्ध वहाबी विचारधारा से न होकर शिया विचारधारा से है जो सूफी विचारधारा की जननी है एवं तथाकथित सैयदवाद अर्थात इबलीसवाद (जन्म आधारित श्रेष्ठता के सिद्धांत) पर आधारित है. इसी इबलीसवादी विचारधारा अर्थात वंशीय श्रेष्ठता के सिद्धांत के फलस्वरूप उक्त (बिंदु 1 से 7 में वर्णित) समस्त आतंकी संगठनो के प्रमुख तथाकथित सैयद ज़ाति के ही है. मिडिल ईस्ट में सक्रिय तमाम प्रमुख संगठनों में एक मात्र संगठन इस्लामिक स्टेट (दाइश) अर्थात आई0इस0आई0एस0 का सम्बन्ध वहाबी विचारधारा से अवश्य है किन्तु ये भी विचारणीय विषय है कि इस्लामिक स्टेट प्रमुख अबू बक्र अलबगदादी का सम्बन्ध भी तथाकथित सैयद ज़ाति से ही है. जिसे सम्भवतः अमेरिका भलीभांति समझ रहा है जिसका असर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आव्रजन सम्बंधित आदेश में दिखता है.【8】
इसी प्रकार चौथी सदी हिजरी तक बनू उमैया व बनू अब्बास से लगभग 65 खुरूज (खलीफा/ शासक के विरुद्ध युद्ध/ गृह युद्ध) जो भी हुए वह अधिकांशतः ईरानियों (विशेषकर शियों) की मदद से हुए और इनमे से कोई भी बगावत किसी सिद्धान्त या सियासी प्रोग्राम से न होकर हसबो नसब की ताल्लियाँ (तथाकथित सैयदवाद/वंश की श्रेष्ठता) इनका दारो मदार व आधार था.
इस्लामिक इतिहास व वर्तमान समय का निष्पक्ष अध्ययन करने से ये बात आईने की तरह साफ़ हो जाती है कि तथाकथित इस्लामिक आतंकवाद का सम्बन्ध सदैव (तथाकथित) सैयदवाद अर्थात इबलीसवाद (वंशीय श्रेष्ठता) से ही रहा है जो शिया विचारधारा (फिरका) के जन्म का कारण है और यही वंश की श्रेष्ठता शियाइयत का स्तम्भ व मूल आधार है, लेकिन नाकाम होने पर हुकूमत के खिलाफ अपनी बगावतों को छिपाने के लिए इनके द्वारा खुद को पीड़ित दर्शाकर हमेशा आम लोगों को भावनात्मक रूप से बरगलाने का प्रयास किया गया जैसे- बनू उमैया व बनू अब्बास का दौरे खिलाफत/शासन काल और जब कामयाब हुए तो जनता पर बेइन्तिहा जुल्म किया और जब जनता ने तंग आकर विद्रोह किया तो जनता के विद्रोह को आतंकवाद का नाम देकर रुख मोड़ दिया गया- जैसे वर्तमान सीरियाई शासक बशर अल असद ने किया.
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नुरुल ऐन ज़िया मोमिन ‘आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ‘ (उत्तर प्रदेश) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनसे दूरभाष नंबर 9451557451, 7905660050 और nurulainzia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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