bahujan sahitya sangh
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सामाजिक न्याय जिंदाबाद, लैंगिक न्याय जिंदाबाद, बहुजन एकता जिंदाबाद, बहुजन साहित्यिक क्रांति ज़िंदाबाद 

आरती यादव, विश्वम्भर नाथ प्रजापति, प्रियंका कुमारी

bahujan sahitya sanghसाहित्य एवं संस्कृति के माध्यम से वैश्विक चेतना के निर्माण हेतु जे.एन.यू के बहुजन (आदिवासी, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अति पिछडा वर्ग और पसमांदा) शोध छात्रों ने 11 अप्रैल 2018 को  जे.एन.यू के कन्वेंशन सेंटर में बहुजन साहित्य संघ की स्थापना की है. इस स्थापना दिवस पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस बहुजन साहित्य विमर्श में “बहुजन साहित्य की अवधारणा और सौन्दर्यबोध” पर अपनी बात रखते हुए बहुजन चिंतक हरिराम मीणा जी का कहना है कि ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ जीने का सूत्र है. सवाल बहुजन और अल्पजन का नहीं है बल्कि मनुष्य विरोधी ताकतों ने जो वर्चस्व की वैचारिकी पैदा की उसके खिलाफ एक समतावादी दर्शन का है. बहुजन साहित्य में विविधतापूर्ण संस्कृति सम्भव है जबकि वर्चस्ववादी संस्कृति में नहीं. विविधता कृषक, शिल्पियों और मजदूरों के श्रम संस्कृति में है. बहुजन साहित्य के माध्यम से हमें अन्तत: राजनीतिक चेतना में जाना पड़ेगा. बहुजन साहित्य बहुजन राजनीति की मशाल है.

बहुजन चिंतक नाज़ खैर ने बहुजन साहित्य की जरूरत पर जोर  देते हुए कहा कि पसमांदा का मतलब है शोषित. सच्चर कमिटी और मंडल कमिटी के हवाले से मुस्लिम समाज में स्तरीकरण के तीन वर्ग हैं- अशराफ ,अजलाफ़ और अरजाल. नाज़ खैर जी ने मुस्लिम समाज में फैली जातिवादी सच्चाई पर अपना तर्कपूर्ण वक्तव्य रखते हुए कहा कि किस तरह से हिन्दू समाज की तरह मुस्लिम समाज में भी स्तरीकरण की समस्या है जिसे मुस्लिम समाज का वर्चस्वशाली वर्ग तरह-तरह के दलीलों द्वारा मानने से इंकार करते हैं. जाहिर है कि इसमें उनका  राजनीतिक हित उभरकर सामने आता है. उन्होंने साहित्य के माध्यम से भी यह दिखाने की कोशिश की कि मुस्लिम समाज में भी ऊँच- नीच की भावना फैली हुई है. पासमंदा और अशराफ के हित एक- दूसरे से टकराते हैं. हमारे आधिकार बहुजन एकता और संघर्ष से ही मिल सकते हैं. 

बहुजन चिंतक उषा आत्राम जी ने बहुजन साहित्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारतीय समाज में फैली ऊँच-नीच और वर्णव्यवस्था का भारत में आगमन आर्यों के आने के बाद से है. उनका मानना है कि आर्यों ने यहाँ के मूल निवासियों का शोषण किया, ब्राह्मणवादी रीति – रिवाजों और मूल्यों के माध्यम से एक वर्चस्वशाली वर्ग के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया. उनका मानना है कि बाबा साहेब के विचारों के द्वारा ही हम बहुजन साहित्य की वैचारिकी को खड़ा कर सकते हैं. 

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बहुजन चिंतक डॉ. जय प्रकाश कर्दम जी ने बहुजन वैचारिकी की अवधारणा और सौन्दर्यबोध पर अपना विचार रखते हुए कहा कि आज के समय में बहुजन साहित्य की अहमियत और इसका स्रोत क्या है ? क्या यह 85% जातियों के समूह से आ रहा है या फिर बुद्ध के बहुजन से आ रहा है. बहुजन साहित्य और बहुजन राजनीति दोनों अलग-अलग हैं. बहुजन साहित्य की वैचारिकी के आधार पर हमें बहुजन समाज बनाना चाहिए. साहित्य का राजनीतिकरण न हो इसलिए बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि यह बहुजन राजनीति और बहुजन  साहित्य दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है.

मशहूर बहुजन चिंतक व लेखक प्रो. चौथीराम यादव जी के अनुसार बहुजन साहित्य  की  वैचारिकी बुद्ध, कबीर, रविदास, फुले, पेरियार, अम्बेडकर और भगत सिंह की वैचारिकी है. एक तरफ वैदिक, पौराणिक एवं ब्राह्मणवादी दर्शन है तो दूसरी तरफ बुद्ध का दर्शन है जो वैज्ञानिक और तार्किक है. जाति से मुक्त हुए बिना हम जातिवाद को चुनौती नहीं दे सकते हैं. अत: हमें जातिवादी अतिरेकों से मुक्त होने की जरुरत है. 21वीं सदी अम्बेडकर की शताब्दी है और यह बहुजन नवजागरण का दौर है. बहुजन सामज को एकत्रित करने के लिये बहुजन साहित्य की ज़रूरत है. बहुजन साहित्य संघ हर जगह खुलना चाहिये.

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कार्यक्रम का संचालन बहुजन साहित्य संघ की महासचिव नीतिशा खालखो ने किया. अपनी बात रखते हुये उन्होंने कहा कि- “देश जिस संक्रांति काल से गुजर रहा है वहां हर हाशिये के समाज को एकजुट होकर “हम एक हैं” जैसे नारों को अपने लेखन में स्पेस दिए जाने की आवश्यकता है. समानता पर आधारित तार्किक लेखन ही बहुजन साहित्य का सौंदर्य होगा. आदिवासी, दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, पासमंदा आदि घेरों को तोड़कर एक बहुजन की अवधारणा के साथ खड़े होने का सही समय बस अभी ही है. अब और आज नहीं तो फिर कभी नहीं. 

2 अप्रैल को भारतीय समाज ने जो अपनी जातीय हिंसा हमारे लोगों के प्रति दर्शायी है वह देश के लोकतंत्र पर बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा करती है.” 

दिवंगत रजनी तिलक और अन्य बहुजन साहित्याकारों को याद  करते हुए  शोक सन्देश अभिषेक सौरभ ने पढ़ा. धन्यवाद ज्ञापन जुबैर आलम ने किया. 

स्वागत  वक्तव्य देते हुये बहुजन साहित्य संघ के अध्यक्ष बालगंगाधर बागी ने कहा- “बहुजन साहित्य का सौंदर्य असमानता के खिलाफ समानता क सौंदर्य है. जो समता, न्याय, बंधुता और एकता पर आधारित है. साहित्यिक आंदोलन सांस्कृतिक आंदोलन को सक्रिय करता है, सांस्कृतिक आंदोलन सामाजिक गतिविधियों को गति प्रदान करता है. यही गतिविधियां राजनीति को जन्म देती हैं जहाँ से सत्ता व सम्मान में समान भागीदारी की लड़ाई शुरु हो जाती है. बहुजन साहित्य बहुजन समाज को एकत्रित कर सत्ता व भागीदारी के लिये सामजिक न्याय का साहित्यिक आंदोलन है

बुद्ध प्रचीन भारत में, रविदास, कबीर मध्य भारत में और फुले, साहू, बिरसा, बाबा साहब, पेरियार, कय्यूम अंसारी, ललई सिंह यादव, चंद्रिका प्रसाद, रामस्वरूप वर्मा, कर्पूरी ठाकुर, बी.पी. मंडल और कांशीराम जी ने आधुनिक भारत में बहुजन आंदोलन बढाया. अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस आंदोलन को आगे बढायें. बहुजन साहित्य इस आंदोलन गति प्रदान करेगा. आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा, अतिपिछड़ा और पसमांदा 85% बहुजन हैं. बहुजन साहित्य के प्रतिमान के आधार पर बहुजन समाज के द्वारा लिखा गया साहित्य ही बहुजन साहित्य होगा. बहुजन साहित्यिक, क्रांति के बिना सामाजिक न्याय का आंदोलन सफल नहीं हो सकता. दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, पिछडा और पसमांदा विमर्श ने एक मुहिम के माध्यम से विमर्शों को जन्म दिया है. लेकिन सब अलग-अलग हैं अब जरुरत बहुजन साहित्य की है कि सबको एक में समाहित करते हुये बिखरे हुये बहुजन में एकता स्थापित करे. 

बहुजन साहित्य सामाजिक न्याय के आंदोलन की रीढ़ है. बहुजन साहित्य बहुजन राष्ट्र की संकल्पना को आत्मार्पित करता है.

बहुजन समाज के द्वारा, बहुजन समाज के लिये बहुजन साहित्य के प्रतिमानों के आधार पर लिखा गया साहित्य ही बहुजन साहित्य है

दलित दुर्दशा का नाम है और बहुजन सशक्तिकरण का नाम है. जब तक आपके अंदर का बहुजन सशक्त नहीं होगा आप आपने अधिकारों को नहीं प्राप्त कर सकते” 

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बहुजन साहित्य संघ की उपाध्यक्ष कनकलता यादव, शोधार्थी,दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र,जेएनयू के विचार – 

“बहुजन साहित्य संघ के परिकल्पना का आधार दक्षिण एशिया की बहुजन चेतना, मांगों, साझा भेदभावों, प्रतिनिधित्व न मिलाना आदि से सम्बंधित और प्रेरित है. दक्षिण एशिया के बहुजनों; दलित आदिवासी पिछड़े, अतिपिछडे पसमांदा दलित इसाई भाषाई सांस्कृतिक धार्मिक अल्पसंख्यक  समुदायों का दर्द एक जैसा है. उनकी पहचानों का सामाजिक निर्माण, संसाधनों में कम हिस्सेदारी, आवासीय ढाचों की समस्या, उच्च शिक्षा में भेदभाव, व्यवसाय की शुद्धता-अशुधता का मामला जैसे तमाम चीजों में इन जातियों का अनुभव लगभग एक जैसा है. इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी मिलकर साझा दर्द बांटे और साझा लक्ष्यों की ओर बढ़कर सामाजिक न्याय की वार्ता को स्थापित करें. 

लीना कुमारी मीणा (संयुक्त सचिव) शोधार्थी, पी एच. डी. हिंदी साहित्य,भारतीय भाषा केंद्र,जवाहर लाल नेहरू विश्ववि्यालय,नई दिल्ली बहुजन साहित्य पर विचार- “मुख्यधारा की स्त्रियों के बरक्स बहुजन स्त्रियां इतिहास में जितनी स्वतंत्र रही है उतना ही अधिक शोषण हुआ है. आदिवासी समाज जब गैर आदिवासी समाज की धार्मिक – सामाजिक कुरीतियों से अनभिज्ञ था तब तक आदिवासी स्त्रियां सामाजिक – धार्मिक रूप से अधिक स्वतंत्र थीं. जैसे ही बाहरी समाजों के साथ आदिवासी समाज का जुड़ाव हुआ वैसे ही आदिवासी समाज की अन्य परम्पराओं की तरह ही आदिवासी स्त्रियों की स्वतंत्रता वा समानता भी मिथक बनकर रह गई है. बहुजन स्त्रियों की स्वतन्त्रता, समानता एवं स्वाभिमान शिक्षा के साथ जुड़ा हुआ है.”

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बहुजन साहित्य संघ की कोषाध्यक्ष कविता पासवान के विचार- “ बहुजन दर्शन में बहुजन नारीवाद का दर्शन अंतर्निहित है. बहुजन साहित्य ने थेरी गाथाओं और बुद्ध के सम्यक दर्शन के माध्यम से हजारों साल पहले जिस बहुजन नारीवाद को जन्म दिया उसी परम्परा को आगे बढ़ाने का कार्य बहुजन साहित्य करेगा.”  

बहुजन साहित्य संघ  कार्यकारणी सदस्य –शिव कुमार रविदास (बहुजन साहित्य संघ, संविधान सभा एवं केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य) शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र, जेएनयू. के विचार- “ब्राह्मणवादी उत्पादन प्रक्रिया और जाति व्यवस्था से उत्पीड़ित एवं प्रताड़ित समाज की आवाज को बहुजन साहित्य संघ बुलंद करता है. बहुजन साहित्य समतावादी श्रमशील समाज की सांस्कृतिक एवं वैचारिक अभिव्यक्ति है.”

पूनम गुप्ता, बहुजन साहित्य संघ संविधान सभा एवं केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य, शोध छात्रा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के विचार- “बहुजन साहित्य आदिवासी, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग,अति पिछड़ा वर्ग, महिलाएं, ट्रांसजेंडर और पसमांदा आदि शोषित समूह का साहित्य है. बहुजन साहित्य सभी उत्पीड़ित अस्मिताओं को संगठित कर वर्चस्ववादी सत्ता के खिलाफ एक साथ आने का प्लेटफॉर्म तैयार करता है.

आरती यादव बहुजन साहित्य संघ संविधान सभा एवं केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य शोधार्थी भारतीय भाषा केंद्र जेएनयू के विचार- बहुजन साहित्य संघ एक ऐसा मंच है जो जातिवादी, ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक मूल्यों और रीति रिवाजों से प्रताड़ित और शोषित बहुजन लोगों की वाणी को आवाज देने के प्रति कटिबद्ध रहेगा. यह मंच विशेष रूप से जेंडर और जातिवादी और असमानता की शिकार महिलाओं को एक समतावादी मंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा. मुझे उम्मीद है कि यह संघ महिलाओं की पहचान को राजनीतिक सांप्रदायिक और जातिवादी हित के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा और महिलाओं को स्पेस देने के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहेगा. ”

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बहुजन साहित्य संघ के कार्यकारणी के सदस्य मुलायम सिंह यादव के विचार- 

“बहुजन शब्द भारतीय भूभाग पर सामाजिक और सांस्कृतिक गौरव एवं विरासत का प्रतीक है. ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की महान परंपरा को आगे बढ़ाने में बहुजन साहित्य संघ एक निमित्त है. बहुजन क्रांतिकारियों एवं दार्शनिकों का चिंतन ही बहुजन साहित्य संघ का आधार है.

बहुजन साहित्य संघ के प्रतिमान को विश्वम्भर नाथ प्रजापति पढ़ते हुये अपनी बात रखे “बहुजन दर्शन बहुजनों की मुक्ति का दर्शन है बहुजनो के दुखों का उनमूलन असमानता से मुक्ति का मार्ग ही बहुजन दर्शन का मूल आधार है. मैत्री, करुणा  और लोकायत ही मौलिक विचार है जो बहुजन दर्शन को आगे ले जा सकता है.”   

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बहुजन साहित्य संघ के प्रतिमान:- निम्नलिखित हैं  

  • बहुजन साहित्य संघ साहित्य में मौलिकता और सृजनात्मकता को बढ़ावा देगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ यथार्थ और वैज्ञानिक चिंतन को आगे बढायेगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ समस्त प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता तथा संजीदगी का भाव रखेगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ साहित्य के माध्यम से समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, एकता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देगा.   
  • बहुजन साहित्य संघ साहित्य के माध्यम से प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, करुणा और सह अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ  पुरखा-पूर्वजों,  बुज़ुर्गों के ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल और इंसानी बेहतरी के प्रति आभारी रहेगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ समता, सामूहिकता, सहजीविता, सहभागिता, सामूहिक अनुभूति को अपना आधार मानते हुये रचाव- बसाव तथा नवनिर्माण में यकीन रखता है. 
  • बहुजन साहित्य संघ साहित्य के माध्यम से झूठ, पाखण्ड और अवैज्ञानिकता को बढ़ावा नहीं देगा.   
  • बहुजन साहित्य संघ अवतारवाद, ईश्वरवाद, अंधविश्वास और पारलौकिक सत्ता को स्थापित करने वाले साहित्य को बढ़ावा नहीं देगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ लिंग, वर्ण, जाति, धर्म, नस्ल, रंग, वर्ग़, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा आदि के आधार पर असमानता, भेदभाव, और शोषण का विरोध करते हुये समाज में हर तरह की समानता को स्थापित करने वाले साहित्य को बढ़ावा देगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ छुआछूत , स्त्री विरोधी प्रवृति तथा असमानता पर आधारित ब्राह्मणवादी साहित्य का विरोध करेगा. 
  • बहुजन साहित्य संघ सामंतवादी, जातिवादी, पितृसत्तात्मक वर्चस्व को स्थापित करने वाले साहित्य को बढ़ावा नहीं देगा.  
  • बहुजन साहित्य संघ असमानता के खिलाफ समानता और अमानवता के खिलाफ मानवता का साहित्य है . 

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बहुजन साहित्य संघ के संविधान की प्रस्तावना के कुछ अंश – 

“बहुजन साहित्य संघ बहुजन की अवधारणा के भीतर आने वाले भारत के आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, पासमंदा, भाषायी एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यक,धार्मिक अल्पसंख्यक, महिलाएं एवं ट्रांसजेंडर और वर्णवादी उत्पादन प्रक्रिया एवं जाति  व्यवस्था से उत्पीड़ित तथा प्रताड़ित समाज के लोगों का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक संघ है.”

बहुजन साहित्य संघ का उद्देश्य:-

बहुजन वैचारिकी का उतरोत्तर विकास करते हुये समतावादी विचारों के आधार पर बहुजन समाज का मार्ग दर्शन करना असमानता एवं भेदभावपरक साहित्य, विचार और संस्कृति के विरुद्ध समानता, बंधुत्व, प्रेम, मैत्री पर आधारित साहित्य, विचार और संस्कृति का प्रचार- प्रसार, विकास एवं संवर्धन करना ही बहुजन साहित्य संघ का उद्देश्य है. जिसे क्रमशः बहुजन साहित्य, बहुजन वैचारिकी और बहुजन संस्कृति के रूप में जाना एवं पहचाना जा सकता है.   

बहुजन साहित्य संघ की संविधान सभा के सदस्य एवं कार्यकारणी – 

जुबैर आलम ,कल्याणी प्रजापति ,गिरीश दहिया, ह्रदय भानु प्रताप, भरत मणि चौधरी,नरेन्द्र कुमार, वृत्तान्त, जितेन्द्र कुमार, मुकेश कबीर, बाल गंगाधर बागी, लीना कुमारी मीणा, आरती यादव, मनमीत रंधावा, संध्या, प्रियंका कुमारी, कविता पासवान, मुलायम सिंह यादव, विश्वम्भर नाथ प्रजापति, पूनम गुप्ता, अनिल कुमार बहुजन, कृतिका मंडल, शिव कुमार रविदास, सतरुद्र प्रकाश, अभिषेक सौरभ, सुमित चौधरी ,कमल किशोर, थालापल्ली प्रवीण, संध्या, दीपक कुमार, सचिन निसर्गन, नीतिशा खलखो, गौरव भारती, राजकुमार, कनकलता यादव, धर्मराज कुमार, आकाश कुमार रावत, धनराज सोनटाके

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बहुजन साहित्य संघ के पदाधिकारी-

अध्यक्ष्य – बाल गंगाधर बागी, उपाध्यक्ष- कनकलता यादव, ज़ुबैर आलम, महासचिव- नीतिशा खलखो, सन्युक्त सचिव लीना कुमारी मीना, धर्मराज कुमार , कोषाध्यक्ष- कविता पासवान, सह कोषाध्यक्ष अभिषेक सौरभ.

बहुजन साहित्य संघ की स्थापना में शरीक हुये सभी लोगों का बहुजन साहित्यि संघ शुक्रिया अदा करता है. बहुजन साहित्य संघ से जुडने के लिये सम्पर्क करें –

Email- bahujansahityasangh@gmail.com, 9718976402, 9205645207, 8588972641,9717808405, 9013280232, 

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