दलित आदिवासी महिला स्वाभिमान यात्रा
23 अप्रैल 2018 से 2 मई 2018 तक
अपील
साथियों जय भीम !
दलित -आदिवासी महिला स्वाभिमान यात्रा ऐसा एक प्रयास है जो मानवाधिकारों के विभिन्न मुद्दों को सामने लाना चाहती है और सरकार व् समाज के सामने एक हकीकत के आईने में दलित, आदिवासी और वंचित समुदाय को दर्शाना व् समाज में जागरूकता लाकर सामूहिक रूप से मुद्दों की पैरवी करना इस यात्रा का उद्देश्य है. इस यात्रा के पहले चरण की शुरुआत 2012 में हुई जो दलित महिला स्वाभिमान यात्रा के रूप में दलित व् आदिवासी महिलाओं के नेतृत्व में हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान के विभिन्न गाँव, तहसील, जिला स्तर पर सार्वजनिक रूप से, कालेज, हॉस्टल, विभिन्न समूह व् समुदायों के साथ मीटिंग, सेमिनार, सभा, पत्रवार्ता, बैठक, रैली व् प्रदर्शन कर स्थानीय पुलिस, प्रशासन व् सरकार के प्रतिनिधियों से मिलकर क्षेत्र से सम्बंधित मुद्दों को उठाकर पैरवी की गई.
राजस्थान की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए आल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच की ओर से फिर से राजस्थान के विभिन्न जिलों में यात्रा दुसरे चरण दलित-आदिवासी महिला स्वाभिमान यात्रा के रूप में दलित, आदिवासी व् वंचित समुदाय की महिलाओं के नेतृत्व के साथ स्वास्थ्य, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शिक्षा और सर्कार के विकास के आईने को दिखाने के लिए ज़मीनिं स्तर की हकीक़त को उजागर करने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही है जिसकी शुरुआत दिनाक 23 अप्रैल 2018 से मध्यप्रदेश सीमा क्षेत्र से सटा राजस्थान के जिला प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक के विभिन्न क्षेत्रों से आगमन करती हुई दिनांक 2 मई 2018 को जयपुर में समापन किया जायेगा. जिसमें सभा, बैठक, सेमिनार, मीटिंग, प्रेसवार्ता, रैली व् प्रदर्शन के माध्यम से वार्तालाप कर स्थानीय मुद्दों को उजागर कर सरकार, पुलिस, प्रशासन, मीडिया व् अन्य न्याय प्रणाली के साथ बैठक व् मीटिंग कर पैरवी की जाएगी. इसी के साथ यात्रा के दौरान हम अपने समुदाय के नेताओं के दृष्टिकोण या नज़रिए को जिसमें डॉ बी.आर. आंबेडकर भी शामिल हैं, सबके सामने रखेंगे. जातिवादी-हिन्दू अत्याचारियों की हिंसा के खिलाफ समुदाय को संगठित करना एवं अपराधियों को बहिष्करण करना यात्रा की प्रमुखता रहेगी. यात्रा निर्धारित दिनाक और समय पर आपके जिले व् क्षेत्र में पहुंचेगी. अतः आपसे अनुरोध है कि आप अधिक से अधिक संख्या में रैली में शामिल होकर, इसे सफल बनाने में सहयोग प्रदान करें.
राजस्थान में आज ज़रुरत है एक साथ आकर आवाज़ उठाने की क्योंकि हज़ारों सदियों से दलित, आदिवासी, व् वंचित समुदाय भारत में व्याप्त व् मौजूद वर्ण व्यवस्था, पितृसत्ता व् सामंतशाही सोच की ज़हरीली आग के शिकार हो रहे हैं. इसी ज़हरीली आग के शिकार हो रहे हैं. इसी ज़हरीली आग से बचने के लिए हमारे देश का संविधान सरंक्षण देता है लेकिन मनुवादी सोच के लोगों ने संविधान को दरकिनार करते हुए आज भी मनुस्मृति के आधार इस देश को चला रहे हैं. जिसके चलते वर्तमान समय में हर तरह से इन समुदायों को वंचित किया जा रहा है और इनके सरंक्षण हेतु बनाये गए कानून को भी निष्क्रिय बनाने में सफल होते जा रहे हैं. अगर कोई भी संविधान विरोधी ताकतों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं तो उनको दबाने व् चुप करने के लिए हर तरह से हथकंडे अपनाये जाते हैं जिसका उदहारण हम वर्तमान में अनुसूचित जाति/अनु. जनजाति अत्याचार निवारण संशोधित अधिनियम के समबन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले को देख सकते हैं. इसके विरोध में हाल में भारत के 10 से ज्यादा राज्यों में सफल भारत बंद जन आन्दोलन किया गया.
भारत में भी राजस्थान की बात करें तो यहाँ पर राजशाही व् सामंती सोच होने की वजह से जाति, पितृसत्ता व् गरीबी ने इन समुदायों के मानवाधिकारों की कमर को पूरी तरह तोड़ रखी है. राजस्थान में दलित, आदिवासी व् वंचित समुदाय की बात करें तो यहाँ सरकार लुभावने वादों के मध्यम से कागजों में कानून, नि:शुल्क इलाज, विभिन्न योजनाओं को चहुमुखी विकास का रूप देती है लेकिन हकीकत की तस्वीर कुछ अलग ही नज़र आती है.
सरकार के दिखावी वादे और विकास का पर्दाफाश करने के लिए दलित समुदाय में आज भी जागरूकता की कमी और नेतृत्व बहुत ही कम है, अगर इनमें भी महिलाओं के नेतृत्व व् निर्णय भूमिका की बात करें तो राजनीतिक व् सामाजिक नेतृत्व सिर्फ कागजों का कोरम पूरा करता नज़र आता है. हम इस बात को साफ़ तौर पर कह सकते हैं कि जो भी इन महिलाओं का नेतृत्व एक या दो प्रतिशत सक्रिय है, वो पंचायतीराज में मिले आरक्षण की वजह से हुआ है उसे भी शिक्षा के पैमाने से बांधकर रोकने का प्रयास किया गया और जिस्म सामना पिछले पंचायतीराज चुनावों में करना पड़ा.
राजस्थान में दलित के पास आज भी आवासीय भूमि व् कृषि भूमि नाम मात्र की भी नहीं है. जो भी ज़मीन है उसे ज़मीन को भी हड़पने के लिए भूमाफिया व् प्रभावशाली लोग आये दिन अत्याचार कर उन्हें बेदखल करने में सफल हो रहे हैं और पुलिस, प्रशासन व् सरकार इनके हक़ में बनाये कानूनों की भी पालन नहीं करती है. राजस्थान में आज भी सरकार के पास प्रयाप्त ज़मीन है और अगर उस ज़मीन को दलित व् आदिवासी के लोगों में बाँट दें तो उनके निश्चित तौर पर विकास के रस्ते खुलते हैं. आदिवासी महिलाओं व् बालिकाओं की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, स्वास्थ्य, शिक्षा व् विकास की दशा पर प्रकाश डालें तो राजस्थान के हर कोने व् क्षेत्र में इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों की दशा एक जैसी ही बदतर दिखाई देती है.
अगर हम दलित व् आदिवासी महिलाओं व् बालिकाओं के स्वास्थ्य की बात करें तो पाएंगे कि आज भी राजस्थान में ज़्यादातर दलित महिलाएं गंभीर बिमारियों की शिकार हो जाती हैं और दलित महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं को सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पास कोई प्रावधान नहीं है. स्वास्थ्य के साथ ही दलित और आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति भी बहुत बदतर है. आज भी विभिन्न सुविधाओं व् सुरक्षा के अभाव में बालिकाएं उछ शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रही हैं.
आल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच दिल्ली पिछले कई सालों से महिला सशक्तिकर्ण हेतु राष्ट्रीय स्तर पर 7 राज्यों में दलित, आदिवासी व् वंचित समुदाय महिलाओं के संरक्षण व् सवर्द्धन हेतु कार्य कर रहा है, जो दलित व् आदिवासी महिलाओं को जाति, वर्ग व् लिंग आधारित भेदभाव व् अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष कर उन्हें समाज में समान अवसर, गरिमा एंव न्याय दिलाने हेतु सतत प्रयत्नशील है. मंच पीड़ित दलित व् आदिवासी बालिकाओं व् महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा, न्याय दिलाने व् नेतृत्व को उभारने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण व् जागरूक शिविरों का आयोजन करता रहता है.
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