भट्टा राम (Bhatta Ram)
बाड़मेर जिले (राजस्थान) के पुलिस थाना बालोतरा के अंतर्गत कालूड़ी गांव के मेघवाल जाति जो कि एक अनुसूचित जाति है, के 70 परिवारों को बहिष्कृत कर दिया गया है। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर कालूड़ी गांव के सवर्ण वर्ग के राजपुरोहितों ने दलितों को ढेढ़, नीच बोलकर पोस्ट लिखा था जिसके विरोध में रावता राम बायतु ने बालोतरा पुलिस थाने में अनुसूचित जाति जनजाति अत्यचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दायर की थी।उन युवकों पर एफआईआर दर्ज होने के कारण सवर्ण मनुवादी लोगों ने गांव में पंचायत बुलाकर दलितों का बहिष्कार कर दिया। कुछ युवकों के साथ मारपीट की, मेघवाल जाति के 70 परिवारों को गांव से बहिष्कृत कर जीना दुश्वार कर दिया है. उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया, दुकानदारों ने राशन सामग्री देना बंद कर दिया है। गांव के सार्वजनिक टांके से पानी भरना बंद कर दिया है. कालूड़ी गांव में मजदूरी करने पर रोक लगा दी गयी है. दिनांक 16.08.2018 को 8वीं से 10वीं कक्षा तक पढ़ने वाले 9 विद्यार्थियों का रास्ता रोक कर उन्हें तृमासिक टेस्ट/परीक्षा देने से वंचित कर दिया. दिनांक 16.08.2018 को बालोतरा पुलिस थाना में प्र.सू.रि. सं. 323 दर्ज हुआ किन्तु 14 दिन व्यतीत होने पर भी पुलिस प्रशासन ने उचित कार्रवाई नहीं की है. अनुसूचित जाति के मेघवाल जाति के लोगों का कहना है कि कालूड़ी गांव में जीवन यापन करना मुश्किल है और हम सामुहिक रूप से गांव छोड़ना चाहते हैं सरकार हमें सुरक्षित स्थान पर बसाने की व्यवस्था करदे.
मुख्यमंत्री के नाम उपखंड अधिकारी को ज्ञापन सौंपकर मेघवाल समाज कालूड़ी के समस्त परिवारों का कालूड़ी गांव से अन्यत्र पुनर्वास कराने की मांग की है। इस मामले पर 17 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है लेकिन अभी तक एक भी आरोपी गिरफ्तार नहीं हुआ है.
इससे गुस्साए लोगों ने दिनांक 28.08.2018 (मंगलवार) को आक्रोश रैली निकाल कर आरोपियों एंव फ़ेसबुक पर कमेंट करने वालों तथा दलितों का हुक्का- पानी बंद करने का हुक्म सुनाने वाली पंचायत के खिलाफ गिरफ्तारी की मांग की है.
इस रैली में बालोतरा उपखंड के निकटवर्ती गाँवों के साथ-साथ दूरदराज इलाकों से भी दलित समाज के लोगों ने हिस्सा लिया. आक्रोश रैली में महिलाओं ने भी बड़ी तादाद में भाग लेकर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की है परन्तु अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
कालूड़ी गांव में देश आजाद होने के बाद भी दलित गुलामी में जिंदगी जी रहे है। कालूड़ी गांव में सामन्तवाद चलता है. गांव की गलियों से दलित नहीं गुजर सकते है. संविधान में प्रदत स्वतन्त्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19 ) के बावजूद भी दलित सार्वजनिक जगह पर नहीं जा सकते हैं. हमारे संविधान का अनुच्छेद 17 छुआछूत को समाप्त करता है लेकिन इन मनुवादी लोगों द्वारा आज भी दलितों के ऊपर अत्याचार किया जाता है. विधालय में दलित लड़कों के लिए अलग से पानी की व्यवस्था की जाती है जो कि मानवताविरोधी है.
भारतीय संविधान में प्रदत समानता का अधिकार (अनुच्छेद 15 ) जो कि सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है लेकिन इन मनुवादी सवर्ण समुदाय के लोगों द्वारा जाति आधारित भेदभाव किया जाता है. दलितों को सार्वजनिक पानी के स्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जा रहा है. अनुच्छेद 21A 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ने का अधिकार देता है लेकिन मनुवादी लोगों द्वारा इनको विधालय जाने से रोका जा रहा है.
ऐसे ही अन्य प्रकरण जैसे मई 2015 में हुआ डांगावास हत्याकांड जिसमें 3 दलितों को मार दिया गया था और 15 दलितों को पीट पीट कर घायल कर दिया था (ये मामला भी सवर्णों की पंचायत से शुरू हुआ था), डेल्टा मेघवाल हत्याकांड जो मार्च 2016 को हुआ और इसकी चर्चा देश विदेश में भी हुई, बोरानाडा जोधपुर घटना 12 मई, 2018 की घटना जिसमें दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने पर पीटा गया, राजस्थान में कानून व्यवस्था और मनुवाद के पसारे की पोल खोलते हैं. ऐसे कई प्रकरण हैं जो कभी सामने ही नहीं आते. मनुवादी मीडिया उन्हें कभी रिपोर्ट नहीं करता या सही ढंग से नहीं दर्शाता.
इस प्रकार की मानवताविरोधी एंव संविधान विरोधी घटनाओं का ज़िम्मेदार सवर्ण समाज है. सविंधान के द्वारा दिये गए अधिकारों से भी सवर्ण लोगों की मानसिक (मनुवादी) सोच को नहीं बदला जा सकता है. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम लागू होने के बाद भी प्रशासन द्वारा कार्यवाही नहीं करना निंदनीय है. प्रशासन में सवर्ण लोगों का प्रभाव होने के कारण कार्यवाही नहीं हो रही है. इस अधिनियम अनुसार मुजरिम की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश होता है लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं. प्रशासन द्वारा तुरंत या देर से भी कार्यवाही नहीं करना ये साबित करता है कि आज भी दलित आज़ाद नहीं है और व्यवस्था को चलाने वाले लोग पूरी तरह से ब्राह्मणवाद में लिप्त हैं. सबूतों ओर गवाहों के बावजूद भी कालूड़ी घटना के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं. फिर कैसे कहे कि हम आज़ाद हैं! दलित वंचित समाज को मुक्ति के अन्य रास्ते खोजने होंगे.
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भट्टा राम, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (मुंबई) में वॉटर पॉलिसी एंड गवर्नेन्स में एम् ए कर रहे हैं. उनसे bhattaramtapra999@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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