विकास वर्मा (Vikas Verma)
हमारे और आपके प्यार में अंतर है, बहुत अंतर है। आप लोग प्यार करते हो तो आपकी शादी हो जाया करती है। हम लोग प्यार करते हैं, तो हमें मार तक दिया जाता है… आपके द्वारा. आप फिर भी चौड़े होकर कहते हैं- कहाँ है जातिवाद?
दरअसल आप, बस ऐसा बोलकर (अपने खुद के, अपने परिवार के, अपने समाज के) अपने अंदर घुसे जातिवाद से पल्ला झाड़ लेते हो, इसके सिवा और कुछ नहीं. और ऐसा करके ऐसी हत्याओं को केवल बढ़ावा देते हो और खुद को सभ्यक दिखाने की कोशिश करते हो.
कुछ महीने पहले की ही बात है. एक लड़का और एक लड़की जो कि मेरे दोस्त हैं, कि शादी का मामला था. दोनों, अरसे से एक दूसरे से प्यार करते हैं। किस्सा वही, लड़की ऊँची जाति की और लड़का अनुसूचित जाति से। उन दोनों के मन में जब भी ऐसा कोई डर आया कि घर वाले कुछ बुरा कर देंगे तो हमने हमेशा उन्हें भरोसा दिलाया कि “कोई कुछ नही करेगा। इतनी आसानी से थोड़े न कोई ऐसा काम कर देगा? और किसी ने कुछ किया भी तो उसे हम आसानी से छोड़ देंगे क्या? डर तो होगा ही उन्हें भी कि उनके कुछ करने के बाद उनका क्या होगा?” दोनों अभी भी उसी डर में जी रहे हैं। उनको समझाते समझाते कभी-कभी हमको भी लगने लगता है कि हम कोई विधि का विधान तो हैं नहीं, कि जो कह रहे हैं, वही होगा। इस जाहिल ब्राह्मणवादी समाज के जातिवादी अमानवों का क्या भरोसा? ये तो अक्सर अपनी बेटी का गला घोंट देते हैं और उसके पति का गला रेत देते हैं, जात-बिरादरी के चक्कर में!
भय की धुंध और कानून से उठता भरोसा उनके मन पे अभी भी तारी है.
हमारे जैसे लड़कों का तो ज़्यादातर ये है कि जो लड़की मन को अच्छी लगे और वो इत्तिफ़ाक़ से सवर्ण हो तो उसे प्रोपोज़ करने से पहले ही ‘अंजाम’ आँखों में तैरने लगते हैं. सपना बुनना भी ठीक से शुरू नहीं होता और टूटकर बिखर जाता है। कभी ऐसा भी होता है कि ये सोचकर थोड़ा ठीकठाक करियर बना कर शायद लड़की के माँ-बाप मान जाएँ. लेकिन कभी फिर प्रेमिका के मुख से ये सुनने को मिलता है- करियर के सामने जातिवाद कहाँ मिट पाया है, बाबू!?
वक़्त आने पर समझ आ जाता है कि लड़की के घर वाले मानेंगे नहीं। फिर सपनों के गुच्छे जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ते हैं।
सालों उन तन्हा यादों में गुज़ारने के बाद फिर से कोई मिलता है। इस बार कोई वैसा जिसे देखकर लगता है कि समाज से लड़ने की नौबत आने पर वो लड़ेगी साथ… समाज से भी, जातिवाद से भी, जाति के अहंकार में धसे अपने माँ बाप से भी। हिम्मत करके फिर से बढ़ने की कोशिश होती है। प्यार पनपता है, बढ़ता है, हिस्सा बन जाता है, खुद का। लेकिन फिर कुछ अमृता-प्रणय जैसा दिख जाता है। ऐसे में उसके घर वालों से मिलने वाली धमकियां (“अगर तू उस लड़के से फिर मिलीं तो दोनों को जान से मार देंगे” जैसी) जो शायद कोरी लग सकती थीं, वो सच लगने लगती हैं। लड़की डरने लगती है। ऐसे में वो क्यों चाहेगी कि जिसे वो चाहती है, उसे पाने के लिए उस लड़के को जान से हाथ धोना पड़े! वो उसे कभी देख भी न पाए? मन के अंतर्द्वन्द से लड़ते-लड़ते कभी रिश्ते कड़वे हो जाते हैं, तो कभी भावनाओं की लहर हकीक़त के पत्थर से बार बार टकरा कर ख़त्म हो जाती हैं लेकिन उसे साहिल नहीं मिलता.
दरअसल जाति अभिमान ने आपमें से इंसान होने के आंतरिक सबूत आपसे छीन लिए हैं. आप ऊपर से ही इंसान लगते हो. आप ने ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत शै “प्यार” पर भी कब्ज़ा कर रखा है.
आप ही की बिरादरी के कुछ लिबरल हो सकता है ये बोल के पल्ला झाड़ लो कि “तुम्हारा प्यार, असली वाला प्यार होता तो आप दोनों नहीं होते?”। मतलब साबित हमें ही करना है सब कुछ! तुम्हारा प्यार फूलों की सेज पर सज कर आये, तो भी वो सच्चे वाला प्यार और हमारे प्यार को साबित होने के लिए अंगारों पर चलना पड़ेगा या फिर किसी जातिवादी तलवार से गर्दन कटवानी पड़ेगी या फिर उस कॉन्ट्रैक्ट किलर से बड़ा गुंडा बनना पड़ेगा जिसने प्रणय को ख़त्म कर दिया.
मतलब, प्यार को मंजिल तो तभी मिल पाएगी, जब आप अपने संभावित हत्यारे से ज्यादा बड़े हत्यारे हों, जिसकी सुपारी मिलते ही, संभावित कॉन्ट्रैक्ट किलर उल्टा उसी के कनपटी पर बन्दूक तान दे जो सुपारी लेकर आया हो।
दुसरे, कोई आप ही में से कोई सेकुलर लिबरल ये ताना मार सकता है हमें कि शादियाँ तो आपके समाज में भी जाति देख के होती है. लेकिन ये कचरा आया कहाँ से है उसकी ज़िम्मेदारी ये लोग नहीं लेंगे. केवल प्रवचन ठोकेंगे.
जिन जातिआधारित मानसिक प्रताड़नाओं में हम जीते हैं, वो तो आप लोगों को समझ आने से रहा। क़म से क़म “कहाँ है जातिवाद?” बोलने से पहले अपने भीतर झाँक लीजिये. थोड़ी इमानदारी बरतिए.
आप भीतर झांकते नहीं है और हमारी जाति के खिलाफ चल रही लड़ाई को भटकाने का काम अलग से करते हैं। ऐसे में लाज़मी है, हमारा आप ही के खिलाफ खड़े हो जाना, चाहे आप कितने भी डिप्लोमेट बनकर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हों।
अगर आप को ये हत्याएं नहीं चाहियें तो अपने समाज से लड़िये. सख्ती से मना करिए उनको. कुछ कर गुज़रिये उनके खिलाफ़ जो आपके ब्राह्मणवादी समाज को झंक्झोरे.
आप सभ्य बनिए. प्रणयों की हत्याएं बन्द करिये और अमृताओं की ज़िंदगियों को कोरा बनाना भी।
~~~
विकास वर्मा पेशे से एक इंजिनियर हैं एवं सामाजिक न्याय के पक्ष में लिखते हैं.
चित्र साभार: स्यामसुन्दर वुन्नामती
Magbo Marketplace New Invite System
- Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
- Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
- Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
- Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
- magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK