सुरेश जोगेश (Suresh Jogesh)
मीडिया विजिल,
आज से तक़रीबन दो साल पहले जब मैं डेल्टा मेघवाल मामले में स्थानीय मीडिया की भूमिका पर लिख रहा था तब आपके संपर्क में आया था. मुझे अच्छा लगा जब आपने मेरी वाल से मेरा लेख कॉपी करके MediaVigil में जगह दी और यह भी कि आपने मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी. लगातार दो साल मैं आपके संपर्क में रहा आपको और MediaVigil को पढ़ता रहा, अपने लेख भी भेजता रहा.
आप पर भरोसा बनता गया. उस भरोसे का कारण यह था कि मैं उस तबके से आता हूँ जिसकी बात आसानी से सुनी ही नहीं जाती. इसलिए कोई सुनता है तो अच्छा लगता है. अपनी बात का महत्व बढ़ता महसूस होता है और सामने वाले पर एक भरोसा बन जाता है.
शोषित तबकों से आने वाले व्यक्ति की यह व्यथा ही कहिये कि उनमें भरोसा करने की अपार क्षमता होती है. अपने शोषक से नफरत करने की बजाय वो उसकी क्षणिक दयालुता पर और भी ज्यादा भरोसा कर लेता है. यही वजह होती है कि वो फिर लुटा जाता है.
कुछ 3-4 बार यह मेरे साथ भी हुआ. अब मैं इस बात पर लगभग भरोसा करने लगा हूँ कि प्रोग्रेसिव ब्राह्मण/सवर्ण एक मिथ है.
और मैं समझता हूं कि जो सच में प्रोग्रेसिव हैं उन्हें यह बात बुरी नहीं लगनी चाहिए. हो सकता है आपने खुद शोषण न किया हो, लेकिन आपके पूर्वजों ने जो किया उसकी भरपाई भी तो नहीं की.
पश्चाताप तो कम से कम होना चाहिए इस बात का कि आप उस शोषक वर्ग से आते हैं.
यह एक मानक तो नहीं लेकिन फिर भी मैंने कुछ समय पहले नवभारत टाइम्स के एडिटर रहे नीरेंद्र जी नागर का लेख पढ़ा. उनकी लेखनी में एक गिल्ट था सवर्ण/ब्राह्मण होने का. और उनके उस लेख से मेरी सोच को, मेरी लेखनी को भी वजन मिला.
उनका वह लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.
खैर, मैं अपनी मूल बात पर आना चाहूंगा. बात तब की है जब लालू प्रसाद यादव को सजा हुई थी. आपकी वेबसाइट पर कुछ लेख छपे थे जिनका इशारा ये था कि भ्रष्टाचार का बचाव करना ठीक है. जिस तरह से अम्बेडकरवादी लोग लालू प्रसाद यादव का बचाव कर रहे थे, आपको वो बात अखरी थी. यह बात आप भी जानते हैं और मैं भी कि अगर लालू यादव ने भ्रष्टाचार किया भी हो तो भी उनसे ज्यादा भ्रष्टाचार करने वाले सवर्ण बाहर हैं. लालू प्रसाद यादव के जेल जाने में उनकी जाति का रोल भी अहम था.
खैर… फिर स्थिति को थोड़ा बैलेंस करने के लिए आपकी वेबसाइट ने कुछ पक्ष में लेख छापे.
लेकिन आप अपनी बात पर रहे. पैमाना सख्त रखा.
फिर उसके कुछ दिन बाद राहुल गांधी गुजरात के मंदिरों के दर्शन के लिए निकले. हिंदुत्व का टैग लेकर वोट पाने के लिए. वो बहुत से मंदिर घूमे. मीडिया में छपा, फ़ोटो/वीडियो भी वायरल हुआ.
लेकिन यहां आप राहुल गांधी के बचाव में यह छापने लगे कि उनके मंदिर भ्रमण की बातें झूठ हैं. न ही आपको यह बेहूदा लगा न ही इसमें ब्राह्मणवाद दिखाई दिया.
यहां मैंने आपको आगाह किया कि आपका पैमाना बदल रहा है लेकिन आपका कोई ठोस जवाब नहीं मिला.
पिछले कुछ दिनों से जब से आपने राहुल गांधी के लिए अभियान शुरू किया है, आप मायावती की बराबर बुराईयाँ करते हैं. बल्कि बढ़-चढ़कर बुराईयाँ करते हैं. आप यह भी सवाल उठाते हैं कि मायावती ब्राह्मण समाज के पक्ष में जो बयां दे रही हैं वो गलत है. लेकिन वहीँ आप चाहते हैं कि भ्रष्टाचार की जननी और ब्राह्मणवाद की सबसे बड़ी पोषक कांग्रेस सत्ता में लौट आये और राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनें. इससे पहले आपने यह भी लिखा था कि कैसे मायावती की कमाई उनके मुख्यमंत्री रहते दोगुनी हो गई. पिछली कांग्रेस सरकार में, उनके भ्रिष्ठाचारी होने पर कितना हाहाकार मचा था, वह आपको पर्याप्त नहीं लगा शायद.
हालही में मायावती ने कांग्रेस द्वारा पर्याप्त सीटें नहीं देने के कारण उसके साथ गठबंधन से इनकार कर दिया, यह बात भी आपको बहुत अखरी.
मैं आपका दुःख समझ सकता हूँ लेकिन जिस तरह आप चाहते हैं कि सत्ता सवर्णों/ब्राह्मणों के कब्जे में ही रहे ठीक वैसे हर जागरूक बहुजन चाहता है कि यह ब्राह्मणवाद का किला टूटकर ढहे और हम बहुजनों को इससे अब आजादी मिले.
बेशक मायावती में बुराईयाँ हो सकती हैं लेकिन हम बहुजनों के लिए बीजेपी या कांग्रेस से हर हाल में बेहतर होंगी, 100 गुना बेहतर.
अंग्रेज़ों से आज़ादी के बाद देश पर सवर्णों का ही राज रहा है, उसमें भी विशेषकर ब्राह्मणों का. शोषण कितना कम हुआ यह शायद आप नहीं जानते तभी इलेक्शन आते ही आपकी ख्वाहिश जगी कि वापस कांग्रेस सरकार में आये.
आपके हिसाब से लालू प्रसाद यादव ने गांधी परिवार/कांग्रेस से ज्यादा भ्रष्टाचार किया और मायावती गांधी परिवार से ज्यादा ब्राह्मणवादी हैं.
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सुरेश जोगेश आई.आई.टी में एक विद्यार्थी होने के साथ साथ एक फ्रीलान्स लेखक व् सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
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