Nurun N Zia Momin Edited
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एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin)

Nurun N Zia Momin Editedजबसे पसमांदा मूवमेन्ट से जुड़े कार्यकर्ताओं ने अपने सामाजिक अधिकारों के लिए आवाज़ बुलन्द करना शुरू की है तबसे ही पसमांदा आन्दोलन को दबाने व उससे जुड़े लोगों को हतोत्साहित करने के लिए तथाकथित अशराफों द्वारा निरन्तर नित नए निराधार आरोप पसमांदा आन्दोलन व उससे जुड़े लोगों पर लगाये जाते रहे हैं. कार्यकर्ताओं को कभी संघ का एजेण्ट कहा जाता है, कभी पसमांदा आन्दोलन को ही संघ का कार्यक्रम घोषित कर दिया जाता है, तो कभी पसमांदा आन्दोलन को मुस्लिम समाज को बाँटने वाली तहरीक बताई जाती है. हालाँकि ये गिरोह कभी किसी भी आरोप का न तो साक्ष्य देता है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर बात करता है.

ये गिरोह आज कल पसमांदा आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का मोरल डाउन करने के लिए एक नया शुगुफ़ा फैलाने का प्रयास कर रहा है जिसके तहत ये पूरी नीति रणनीति के साथ भारत विभाजन अर्थात पाकिस्तान आन्दोलन को पसमांदा मुस्लिमों का आन्दोलन व उसके शीर्ष नेताओं सहित जिन्ना साहब तक को पसमांदा प्रचारित कर रहा है.

ये गिरोह जिस पकिस्तान आन्दोलन को पसमांदा मुस्लिमों का आन्दोलन बता रहा है उस पाकिस्तान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली मुस्लिम लीग का शीर्ष नेतृत्व तो दूर की बात है सम्पूर्ण भारत में उस मुस्लिम लीग में दस-बीस जिला अध्यक्ष व जिला महासचिव मुश्किल से पसमांदा रहे होंगे. पाकिस्तान आन्दोलन को तो किसी भी तरह से पसमांदा मुसलमानों का आन्दोलन कहा ही नहीं जा सकता. बल्कि अब्दुल कय्यूम अन्सारी साहब के साथ नवाब हसन साहब के घर में घटित घटना व मोमिन कांफ्रेंस (पसमांदा मुस्लिमों का तत्कालिक सबसे बड़ा संगठन) के नेताओं के भाषण, वक्तव्य तथा उसकी पत्रिका मोमिन गजट (जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है) के अंको को देखकर ऐसा आभास होता है कि ये आन्दोलन इस्लाम व मुसलमन नाम पर पसमांदा मुसलमानों को तथाकथित अशराफों का गुलाम बनाये रखने का बेहतरीन हथियार था.

इनके झूठ व बेशर्मी का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि ये उस मुस्लिम लीग को पसमांदा मुस्लिमों की पार्टी तथा उसके द्वारा चलाये जा रहे भारत विभाजन अर्थात पाकिस्तान आन्दोलन को पसमांदा मुस्लिमों का आन्दोलन कहने से भी नही शरमाते. नीचे लिखे बिन्दुओं पर गौर फरमाएं.

1. जिस मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेताओं/पदाधिकारियों ने अब्दुल क़य्यूम अन्सारी साहब द्वारा 1938 के उपचुनाव में पटना सिटी सीट से टिकट मांगने पर नवाब हसन साहब के घर में बैठकर कहकहा लगाते हुए कहा था ‘अब जोलाहे भी विधायक बनने का सपना देखने लगे हैं.”(अली अनवर की पुस्तक मसावात की जंग)

2. जिस मुस्लिम लीग के विरोध में पसमांदा मुस्लिमों का तत्कालिक सबसे बड़ा संगठन ‘मोमिन कांफ्रेंस’ (जमीयतुल मोमिनीन) और उसकी साप्ताहिक पत्रिका ‘मोमिन गैज़ेट’ के मुस्लिम लीग विरोध का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पत्रिका के संपादक मौलाना अबु उमर भागलपुरी ने अपने सम्पादकीय (1937ई०) में मुस्लिम लीग को परिभाषित करते हुए लिखा ‘लीग एक ऐसा बलिगृह (क़ुर्बान गाह) है जहां हवस और स्वार्थ पर गरीबों की बलि दी जाती है. लीग संगे तराज़ू है जो सौदे के वक़्त किसी पलड़े पर झुक पड़ेगी. मुस्लिम लीग एक सियासी डिक्शनरी है जिसमें हर किस्म के कमज़ोर शब्दों का भण्डार है.”(प्रो0 अहमद सज्ज़ाद की पुस्तक बन्द-ए-मोमिन का हाथ)

3. जिस मुस्लिम लीग को मोमिन गजट पत्रिका के संपादक मौलाना अबु उमर भागलपुरी अपने संपादकीय में ‘पूंजीवादी और उच्च वर्ग का स्टेज़’ कहते हैं. 

4. जिस मुस्लिम लीग द्वारा जब 24 मार्च 1940 को लाहौर में हुए अपने अधिवेशन में ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव  पारित किया जाता है तब उसके विरोध में सबसे संगठित, तार्किक सधा और गरजदार आवाज़ मोमिन नौजवान कांफ्रेंस ने अपने 19 अप्रैल 1940 को पटना में हुए अधिवेशन में उठाई. उसके बाद की तिथियों में भी विभिन्न अधिवेशनों में मोमिन कांफ्रेंस अपने आखिरी साँस तक भारत के बंटवारे के विरोध में मज़बूती से आवाज़ उठाती रही. 

5. जिस मुस्लिम लीग द्वारा जब 1940 में लाहौर अधिवेशन में “पकिस्तान का प्रस्ताव” पारित किया गया तब “पकिस्तान” प्रस्ताव/मांग का विरोध करने हेतु सन 1940 में ही मोमिन कांफ्रेस के झण्डे के नीचे अब्दुल क़य्यूम अन्सारी साहब के नेतृत्व में लगभग चालीस हज़ार लोगों ने  दिल्ली में इकट्ठा होकर विरोध दर्ज कराया था और बंटवारे को किसी भी कीमत पर स्वीकार करने से इनकार किया था.

6. जिस मुस्लिम लीग के सम्बन्ध में जमीयतुल मोमिनीन (मोमिन कांफ्रेंस) के अध्यक्ष मौलवी मुहम्मद ज़हीरुद्दीन एडवोकेट ने 26 अप्रैल 1943 को दिल्ली में हुई वर्किंग कमेटी की मीटिंग में स्पष्ट शब्दों में कहा था ‘मुस्लिम लीग सत्ता और शक्ति की उतनी ही पूजा करती है जितनी की कांग्रेस! वह पूंजीवाद व ठेकेदारी का वैसा ही प्रतिनिधित्व करती है तथा ये सब के सब अधिनायकवाद और व्यक्तिवाद के प्रेमी और सेवक है.”(प्रो0 अहमद सज्ज़ाद की पुस्तक बन्द-ए-मोमिन का हाथ)

इस गिरोह का जिन्ना साहब के पसमांदा होने का दावा भी स्वयं इनकी व इनके अन्य दावों व आरोपों की तरह झूठा ही है. निःसन्देह मुस्लिम लीग के अन्य नेताओं की भांति मोहम्मद अली जिन्ना साहब भी अशराफ ही थे उनसे व उनके परिवार से सम्बंधित जितनी भी जानकारियां (साक्ष्य) अब तक सामने आयी हैं वह सब की सब चीख-चीख कर उनको अशराफ/सवर्ण साबित कर रही हैं जिसमें कुछ साक्ष्य निम्नवत हैं-

1. जिन्ना साहब के एक जीवनीकार अज़ीज़ बेग साहब अपनी पुस्तक ‘जिन्नाह एण्ड हिज़ टाइम्स’ में लिखते हैं कि- “एक बार जिन्नाह ने ही बताया था कि उनके पूर्वज पंजाब के शाहीवाल राजपूत थे जिन्होंने इस्माइली खोजा परिवार में विवाह कर लिया था, हालाँकि उनकी बहन अपने पूर्वजों का मूल ईरान में बताती हैं.”

2. जिन्ना साहब के प्रथम जीवनीकार हेक्टर बोलिथो, जिन्हें जिन्ना की जीवनी लिखने के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था, ने जिन्ना की चचेरी भाभी के हवाले से, दस्तावेजों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि जिन्ना के पूर्वज मूलतः मुल्तान के हिंदू थे और काठियावाड़ में आकर बस गए थे. जिन्ना के पूर्वज मूलतः लोहाना (ठक्कर ) जाति के थे और वैश्य समाज के अन्तर्गत आते थे. ये वैश्य समाज में स्थापित पदानुक्रम में महात्मा गांधी की जाति से ऊँचे थे.”

बोलिथो साहब की प्रसिद्ध पुस्तक ‘जिन्नाह क्रिएटर ऑफ पकिस्तान’ के अनुसार “उनके (जिन्ना के) पूर्वज मुल्तान के हिन्दू थे वह वैश्य ज़ाति से थे, इतिहास बताता है कि इस ज़ाति का एक बड़ा हिस्सा 17वीं सदी के अन्त में और 18वीं सदी के आरम्भ में सिन्ध से काठियावाड़ आ बसा था उनमें से कई परिवारों ने 18वीं सदी से पहले या दूसरे दशक में इस्लाम क़ुबूल कर लिया था. जिन्नाह के दादा पुंजाभाई का परिवार भी उनमे से एक था.”

3. वीरेंद्र कुमार बरनवाल साहब अपनी पुस्तक ‘जिन्नाह एक पुनर्दृष्टि’ में लिखते हैं- “उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी के पूर्वज भी काठियावाड़ के लोहाना (वैश्य) ज़ाति के हिन्दू ही थे और ठीक उसी दौरान उनके पुरखे भी मुसलमान बन गए थे…….जिन्ना के पिता का नाम जिन्ना भाई पुंजा भाई था. ये नाम गुजराती हिन्दुओं में खूब प्रचलित है.”

4. अकबर एस. अहमद साहब की पुस्तक ‘जिन्ना, पकिस्तान एण्ड इस्लामिक आइडेन्टिटी’ में दी गई जानकारी के अनुसार “जिन्ना साहब के दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. वह काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. प्रेमजी भाई मछली का कारोबार करते थे लोहना जाति से ताल्लुक रखने वालों को उनका ये बिजनेस नापसंद था क्योंकि लोहना कट्टर तौर पर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज ही नहीं करते थे बल्कि उससे दूर रहते थे. लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं. लिहाजा जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया तो उनकी जाति से इसका विरोध होना शुरू हो गया. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने इस बिजनेस से हाथ नहीं खींचे तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास भी किया लेकिन बात नहीं बनी और उनका बहिष्कार निरन्तर जारी रहा. 

इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिंदू बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि वह गुस्से में पत्नी व चारों पुत्रों सहित मुस्लिम बन गए. हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे हिंदू धर्म में ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालाल के रास्ते अपने भाईयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. फलस्वरूप वह काठियावाड़ से कराची चले गए.

जिन्ना साहब के परिवार से सम्बंधित इतनी स्पष्ट दलीलों व साक्ष्यों के बाद बाद भी क्या किसी को उनके सवर्ण/अशराफ होने पर सन्देह करने का कोई कारण बनता है? यदि इतने साक्ष्यों के बाद भी कोई जिन्ना साहब को पसमांदा मानता है तो वह मेरे निम्न प्रश्नों के उत्तर दे दे-

1. क्या जिन्ना साहब के पिता द्वारा इस्लाम स्वीकार करने से पूर्व जिन्ना साहब के पूर्वजों का सम्बन्ध जिस ज़ाति से था क्या वह ज़ाति 1931 की ज़ाति आधारित जनगणना में हिन्दुओं में घोषित शूद्र या अछूत जातियों में मानी गई थी?

2. क्या जिन्ना साहब के पिता द्वारा इस्लाम स्वीकार करने के उपरान्त जिन्ना साहब का सम्बन्ध मुस्लिम समाज की जिस ज़ाति/वर्ग से रहा क्या वह ज़ाति/वर्ग 1931 की ज़ाति आधारित जनगणना में अजलाफ या अरज़ाल (मुस्लिम समाज में घोषित पिछड़ी, नीच, निकृष्ट, कमीन जातियों) में मानी गई थी?

3. मण्डल, सच्चर, रंगनाथन मिश्रा आदि आयोगों द्वारा हिन्दओं में विद्यमान जिन जातियों/वर्गो की तुलना व उन जातियों से धर्म परिवर्तित वर्ग को मुस्लिमों में अजलाफ व अरज़ाल (नीच, कमीन, निकृष्ट अर्थात पसमांदा/पिछडा) में माना गया है क्या जिन्ना साहब के पिता द्वारा इस्लाम स्वीकार करने से पूर्व जिन्ना साहब के पूर्वजों का सम्बन्ध हिन्दू धर्म की उन जातियों/वर्गो में-से किसी ज़ाति/वर्ग से था?

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नोट:  प्रोफ० अहमद सज्जाद द्वारा लिखित बंदये मोमिन का हाथ से लिया गया है. उद्धरण का उर्दू से हिन्दी मे अनुवाद फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी द्वारा किया गया है.

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नुरुल ऐन ज़िया मोमिन ‘आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ‘ (उत्तर प्रदेश) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनसे  nurulainzia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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