तेजेंद्र प्रताप गौतम (Tejendra Partap Gautam)
पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कश्मीर में सीमा के आर-पार गर्मी का माहौल बन गया है। उससे यह प्रतीत होता है कि संपूर्ण राष्ट्र में एक अजीब से राष्ट्रवाद की गर्म लहर फैल रही है। मैं भारतीय हूँ इसका प्रमाण अब कभी भी कहीं भी, किसी से भी, मांगा जा सकता है, खासतौर पर जो इस सिस्टम के सताए लोग हैं… उनसे. मकसद साफ है। सत्ता पे आसीन, नशे में चूर, कैसे भी ‘गोदी’ मीडिया के दम पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व को मजबूत करना.
इस लेख को लिखने का आधार 2 मार्च को ABP न्यूज़ चैनल द्वारा “2019 के जोशीले” कार्यक्रम है जिसका आयोजन भारत के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग अनुसंधान केंद्र इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे में किया गया था। इसमें कांग्रेस की एक राष्ट्रीय प्रवक्ता और भारतीय जनता पार्टी की और से भी किसी ने इस वाद-विवाद की प्रतिष्पर्धा में भाग लिया था। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। जहाँ पर मुझे देश की दो तथाकथित प्रतिष्ठित पार्टियों के विचारों को सुनने का अवसर मिला था।
खैर, यह कार्यक्रम युवाओं का रुझान समझने के लिए था। आज का युवा किस पार्टी को आगामी चुनाव में वोट देगा। इस बात को लेकर हर किसी से उसका रुझान लिया गया। यही बात सामने आई कि नरेंद्र मोदी का प्रभाव लोगों की सोच पर अभी भी बरक़रार है। जो कि इस आयोजन में आये लोगों के रुझान से पता चलता है। मेरे अनुसार इस आयोजन में सम्मिलित होने वाले शायद सभी लोग आई आई टी से नहीं थे।
एक छात्र का मत यह था कि उनके पापा जो कहेंगे वहीं पर वह अपना मत डालेंगे। मुझे शायद ही किसी युवा में व्यापक तौर पर सजगता दिखाई दी. पिछले पांच साल में आखिर क्या कर दिया मौजूदा प्रधानमंत्री ने जो वह अभी भी एक सजग और ईमानदार नागरिक के लिए अच्छा प्रभाव रखें?
क्या आज के लोकतंत्र में वाकई कोई लोकतंत्र बचा भी है? इस तरह के कार्यक्रमों या रायों की क्या ठोस भूमिका हो सकती है इस देश को उन हालातों से निकालने में जिनमें आज ये नाक तक डूबा हुआ है. दरअसल, यह सब आसानी से हैंडल कर लिया जाता है, सब तरफ हवा या माहौल बनाकर. हम भारतीयों के लिए लोकतंत्र सिर्फ एक व्यक्ति विशेष मात्र बन जाता है। जहाँ पर वह व्यक्ति राजा और बाकि प्रजा हैं। बहुत सस्ते में युवा या देश को बहकाया जा सकता है. कार्यक्रम में जिस तरह से लोगों के विचार सामने आ रहे थे उससे यह तो साफ प्रतीत हो रहा था कि हमारा भाग्य विधाता हमारा निर्वाचित सदस्य होता है, लेकिन हकीक़त में हमारा चुना हुआ व्यक्ति राजा बन जाता है. आज के परिदृश्य में, या तो हमारी खुद की कोई चेतना बची ही नहीं और ज़्यादातर लोग सिर्फ किसी की वाचन शैली से मंत्र मुग्ध होकर, उस व्यक्ति विशेष को अपना भगवान् मान रहे हैं। क्या ऐसे कार्यक्रम प्रोजेक्टेड होते हैं, एक बड़ी अनपढ़ आबादी की वोट को किसी ख़ास व्यक्ति या पार्टी के हित में कर लेने के लिए?
आज सच के कई रूप और रंग होते है। सही सही चीज़ों को पहचान पाने के मौके धुंधले हैं. कोई कहीं बैठा हो, सच का खुलासा करता नज़र आता है बिना किसी गहन छानबीन के. ऐसी शिक्षा समाज में कई विसंगतिया पैदा करती है। उदहारण के लिए आप व्हाट्सप यूनिवर्सिटी के द्वारा कहीं पर भी दंगा फसाद करा सकते है। हिन्दू को मुसलमान के खिलाफ, और कथित उच्च कही जाने वाली जाति के लोगों को कथित तौर पर नीची कही जाने वाली जाति के लोगो के खिलाफ, बहुत ही आसानी से बहका सकते है। तो इस तरह के माहौल में क्या लोकतंत्र बच सकेगा या उसके बने रहने की सम्भावना बच सकेगी? या सवाल आज हमारे दरवाज़े पर खड़ा है इन घटनाओं और लोकतंत्र के स्तंभों के लगभग बिक जाने पर हम अपने देश का भविष्य कैसे तय करेंगे और आखिर ये सब होगा कैसे? क्या सब कुछ चुनाव और लोगों के विवेक पर छोड़ देना काफी है?
भारत में आज भी आधी से ज्यादा जनसँख्या अपनी आधार-भूत जरूरतों के लिए लगातर संघर्ष कर रही है। वहाँ पर उनके लिए इन सब बातों का कोई औचित्य नहीं रह जाता. उन्हें पेट की जंग में उलझा दिया गया है. खाली पेट क्रांति कैसे करें वे लोग? अशिक्षित समाज का जागरूक होना अतिश्योक्ति लगता है।
लोकतंत्र का तात्पर्य लोगों की सरकार लोगों के द्वारा लोगों के लिए से है. लोकतंत्र सिर्फ एक मानव मात्र या ख़ास समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि यह सभी के लिए होता है, पंक्ति में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति के लिए भी. मगर यह, कम से कम, यहाँ का सच नहीं है. यहाँ वर्चस्व वाले समुदाय या उन्हीं के हित साधने वाला कोई व्यक्ति द्विज-रक्षक राष्ट्रवाद ले आये तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है. आने वाले चुनाव में इस देश के बहुजन या कुल भारतीय क्या करते है शायद यह इस वातावरण को साफ़ कर दे कि आगे का भारत कैसा होगा.
कोई भी देश लोगों से बनता है. यहाँ की विविधता को ब्राह्मण-सवर्ण ने अपने हित में तोड़ा-मरोड़ा है. यहाँ का बहुजन और उनका अपना देश कंटे-छंटे लोकतंत्र में कसमसा रहा है. अगर हमें एक स्वस्थ भारत चाहिए तो सम्पूर्ण चेतना के साथ इसबार के चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करना होगा। यह एक मौका हो सकता है.
बाकि, हमें यह जान लेना चाहिए कि मीडिया इस तरह के प्रोग्राम क्यूँ रखता है वह भी आई आई टी जैसे संस्थानों में?
~~~
तेजेंद्र प्रताप गौतम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे में एक शोधकर्ता हैं। आप उनसे tejendrapratapgautam@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
Magbo Marketplace New Invite System
- Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
- Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
- Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
- Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
- magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK