डॉ. मनीषा बांगर (Dr. Manisha Bangar)
हमें ये जानकारी मिली थी कि 5 मार्च भारत बंद के कार्यक्रम में CPI- ML और अन्य कई विश्वविद्यालय समेत कम्युनिस्ट छात्र संघठन और इंडिपेंडेंट कम्युनिस्ट लीडर शामिल हो होंगे. इतिहास हमें बार बार चेताता रहा है कि बहुजनों का अपना एक रास्ता है और उसके लिए किसी सहारे की ज़रुरत नहीं. यह आन्दोलन की थाली में छेद करने वाली बात होगी.
हमारा मानना है कि कम्युनिस्ट लोगों का, कम्युनिस्ट संघठनों का, कम्युनिस्ट छात्रों का, कम्युनिस्ट प्रोफेसरों का #5MarchBharatBand में शामिल होने का कोई भी औचित्य नहीं रहा.
बल्कि बहुजनों को ये पुरजोर कोशिश करनी चाहिए कि वो कम्युनिस्ट लोगों का अपने आंदोलन में समावेश न करें. क्योंकि वे उसी सामाजिक वर्ग का भाग है जिन्होंने ब्राह्मणवाद का ये व्यापक षड़यंत्र रचा है. उनकी सहूलियतें बहुजनों के हक मार के बनी हैं.
उनका roster सिस्टम के आंदोलन में आने का पहला मक़सद ये है कि 200 point roster में जो 10 (दसवीं) जगह पर सवर्णो के 10% आरक्षित सीट का प्रावधान है वे उसके समर्थन में है.
इसका मतलब ये कि अगर हम कम्युनिस्ट संघठन या पार्टी (CPI ML, जो कि द्विज-सवर्णो की ही शाखा है) को अपने साथ लेते है तो हम जाने अनजाने में 10%EWS आरक्षण का समर्थन करते हैं. ये स्थिति बहुजन आंदोलन के लिए भयावह है. ये विरोधाभासी/कंट्राडिक्टरी है.
इनका दूसरा मक़सद ये है कि इनकी आदत/परंपरा रही है बने बनाये आंदोलनों में घुसपैठ करके उसे नियंत्रित करना, उसकी दिशा भूल करना और फिर अंत में उसे खत्म कर देना और साथ ही उसे बहुजनों के बीच जगह बनाने के लिए पहिये की तरह इस्तेमाल करना. किसी न किसी वजह से #5MarchBharatBand के माध्यम से इन्हें ready made बहुजनों का platform मिल गया है और ये अवसरवादी (जो कि अब तक आरक्षण विरोधी रहे हैं) लोग इस मौके पर लपक पड़े है.
ये सिर्फ अवसरवादी ही नहीं तो ये लोग घोर बहुजन विरोधी है.
JNU ही नहीं संपूर्ण भारत में अलग अलग समय इन्होंने आरक्षण का विरोध किया है, यहाँ तक की Sitaram Yechuri का हैदराबाद के निज़ाम ग्राउंड Convention में दिया हुआ स्टेटमेंट है जो बहुजनों के अकादमिक आरक्षण के खिलाफ है.
ये छात्रों, शिक्षकों, फैकल्टी और एक्टिविस्ट वही फ़ौज है जिसने United OBC Forum के JNU में चलते हुए लंबे संघर्ष को टुच्चा समझ था, जिन्होंने Nafey Committee से सम्बंधित आंदोलन से अपने आपको अलग रखा.
ये वही लोग है जिनके Freedom square के भाषण सीरिज़ में आज़ादी का मतलब सभी का प्रतिनिधित्व यानि आरक्षण को छोड़ सब पर भाषण हुए.
ये वही लोग हैं जो केजरीवाल के युथ फॉर इक्वलिटी की फौज बने हुए थे और आज भी है.
सवर्ण आरक्षण के मामले में एक PIL youth for equality वालों की भी है. ये पीठ पीछे से जानलेवा वार करने वाले लोग है.
इनके बहुजन समर्थक जिग्नेश मेवानी टाइप के लोग है जो आज भी सिर्फ AAP का सपोर्टर ही नहीं है बल्कि जिसने बाबासाहब को गरिया के ये कहा था कि जरुरी नहीं कि उन्हें सभी कुछ समझता हो. उसके कम्युनिस्टों के ‘साथ’ होने पर किसी को शक नहीं होना चाहिए और वह अपने राष्ट्र निर्माता बहुजनों के महानायक को कटघरे में खड़ा रखने में आगे पीछे नहीं देखता है.
बहुजनों की सिर्फ तादाद ही बड़ी नहीं है, हमारी बौद्धिक क्षमता और हमारी ईमानदारी भी है कि हमारे समाज के साथ. हमारी एकता बढ़ रही है और जब इतना सब कुछ है तब फिर इन ‘मुँह में मार्क्स और बगल में गोली ‘ रखने वाले कम्युनिस्ट अवसरवादी, बहुजान विरोधी, आंदोलन को चुराने वालों की हमें क्या और क्यूँ ज़रूरत है??
ओबीसी, SC ST पसमांदा लोगों ने इन्हें लेकर बहुत सतर्क रहने की जरुरत है. वर्ना जीत मुश्किल है. आगे के आंदोलनों में यह ज़रुरत विशेष ध्यान की मांग करती है.
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डॉ मनीषा बांगर एक सामाजिक राजनितिक चिंतक, विश्लेषक एवं चिकित्सक के साथ ही पीपल पार्टी ऑफ़ इंडिया-डी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं व् बामसेफ की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रही हैं.
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