मुख्त्यार सिंह (Mukhtyar Singh)
बिहार में महागठबंधन ने कन्हैया कुमार के लिएबेगूसराय सीट नहीं छोड़ी तो वामपंथी धड़ा इससे एकदम क्रुद्ध हो गया. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) ने तुरंत अपनी मीटिंग बुलाई और बेगूसराय से कन्हैया कुमार को अपना प्रत्याशी घोषित किया. एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और दूसरी तरफ, कन्हैया कुमार का गुट इनका आपस में राजनीतिक संघर्ष इनकी भाजपा के साथ खुली लड़ाई से अधिक मुश्किल, दुरूह और खतरनाक है. राजद और कन्हैया कुमार दोनों कह रहे हैं कि हम संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. सेक्युलर और सामजिक न्याय के मुद्दों की पैरवी का दोनों दावा करते हैं.
कन्हैया कुमार राजद के सहारे से संसद में जाना चाहते है. राजद नेता तेजस्वी यादव ऐसा क्यों चाहेंगे. राजनीति के हवाले से देखें तो यदि बिहार में सीपीआई बढ़ता है, तो इसका मतलब है राजद का नुकसान. और कोई भी पार्टी अपना नुकसान क्यों करेगी? सेक्युलर धड़े का वोट वही है, सीपीआई का कोई नेता उभरता है, तो वह देर सबेर तेजस्वी यादव को चुनौती दे सकता है. तेजस्वी यादव की राजनीतिक कुशलता इसी में होगी कि सेक्युलर धड़े के एकमात्र वरिष्ठ नेता रहे.
दुसरे, कन्हैया कुमार की पार्टी सीपीआई बिहार में राजद के मुकाबले बहुत कमजोर है. उसका जनाधार राजद के मुकाबले बहुत कम है. तो इसलिए वामपंथी धड़े की ओर से यह बात कही जा रही है कि हमारा संघर्ष भाजपा से है. हकीकत तो वामपंथी धड़ा भी जानता है और तेजस्वी यादव भी.
2016 में JNU में देशद्रोह के आरोप में भाजपा ने कन्हैया कुमार गिरफ्तार करा दिया था,उस समय वे JNUSU के प्रेसीडेंट थे. देश-दुनिया ने भाजपा के इस कदम की निंदा की. बहुजनों को यह बात समझ में आती है कि भाजपा ने रोहित वेमुला की शहादत से ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था के खिलाफ मुखर हुए आन्दोलन को भटका के JNU में ला पटका मारा है. राष्टवाद में तब्दील हुए इस ‘आन्दोलन’ के हीरो कन्हैया कुमार बने देश में लोकप्रिय हो गए. मीडिया ने उन्हें हाथो हाथ ले लिया. कन्हैया कुमार पूरे देश में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर बोले, तो मोदी से परेशान जनता ने उनको सिर आखों पर बैठा लिया.
यदि बिहार में सेकुलर या भाजपा विरोधी पॉलिटिक्स की बात की जाये तो भाजपा विरोधी राजनीति का दावा तो राजद का भी बहुत मजबूत है. पिछले 30 सालो में भाजपा को टक्कर देने वाली पार्टी वही है. 1990 में जब भाजपा के सिरमौर नेता लालकृष्ण आडवाणी रथ लेकर निकले थे, उस समय उस साम्प्रदायिकता के रथ को लालू प्रसाद यादव ने ही रोका था और उन्हें गिरफ्तार कराया था. अभी भी भाजपा से लड़ने की सजा लालू प्रसाद यादव भुगत रहे हैं. वह चारा घोटाले में जेल में हैं. लेकिन लोगों में यह स्पष्ट सन्देश है कि भाजपा ने अपनी सत्ता का दुरूपयोग करके लालू प्रसाद यादव को जेल भिजवाया है.
तेजस्वी यादव
राजनीति जो है, वह सीधे संघर्ष में उतनी नहीं होती है, जितनी उस संघर्ष में होती है जहाँ दो प्रतिद्वंदी आपस में मित्र भी हैं, और राजनीतिक विरोधी भी. वे ऊपर से दिखने पर समान बात बोलते हैं किंतु उनमे आपस में एक तीखा संघर्ष भी होता है. वामपंथी धड़ा संसद में अपनी एक मजबूत आवाज़ चाहता है. और इस समय वह कन्हैया कुमार है. इस के सहारे से वह तेजस्वी पर अपना दबाब बनाये रख सकते हैं.
भाजपा भी बिहार में तेजस्वी यादव के बजाय अपने विरोधी के रूप में कन्हैया को ही पसंद करेगी. क्योकि कन्हैया भी उसी समुदाय से आता है जो भाजपा का वोट बैंक है यानि भूमिहार. तेजस्वी यादव खुद भी पिछड़े वर्ग सेआते हैं और उन्होंने जाति समस्या को खासे खुलकर प्रश्न उठाये हैं, साथ ही, उनका वोटर उन पर विश्वास भी करता है. वहीँ पिछड़ा वर्ग कन्हैया पर उतना ही विश्वास कर सके, ऐसा कह पाना मुश्किल है जबकि वाम का जातीय चरित्र आज किसी से छुपा नहीं रह गया.
तेजवसी यादव जाति समस्या को मुखर होकर उठाते हैं. जब 2015 में बिहार विधान सभा चुनाव के समय आरएसएस नेता ने रिजर्वेशन की समीक्षा करने की बात की, लालू प्रसाद यादव ने तीखा विरोध किया. पिछले साल जब SC ST PoA के मुद्दे पर 2 अप्रैल को देश व्यापी प्रदर्शन हुए, तेजस्वी यादव अपने 80 विधायकों के साथ सड़क पर उतरे. अभी सवर्ण रिजर्वेशन पर उनकी पार्टी ने संसद में इसका विरोध किया. उनकी पार्टी राजद को माना जाता है कि यह पिछड़े-दलित और अल्पसंख्यको की आवाज है. 2015 में जब बिहार विधान सभा चुनाव हुए, उनकी पार्टी ने किसी भी भूमिहार को टिकट नहीं दिया था .
यह जाति डिस्कोर्स ही है, क्योकि कन्हैया कुमार बेगूसराय सीट ही चाहते हैं. क्योकि वहां उनका स्वजातीय भूमिहार वोट काफी मात्रा में है. वे इस सीट को अपने लिए सुरक्षित दुर्ग के रूप में महसूस कर रहे हैं. वैसे इस सीट पर पिछले लोक सभा चुनाव में राजद प्रत्याशी तनवीर हसन दूसरे स्थान पर रहे थे. और वामपंथी पार्टी का प्रत्याशी तीसरे स्थान पर था. इसको पैमाना माना जाये तो राजद का दावा ज्यादा मजबूत है.
यहाँ जाति एक मुद्दा है, वह सब कुछ नहीं है, मतलब निर्धारक नहीं है. अपनी-अपनी पार्टी की विचारधारा बड़ा मुद्दा है. राजद में अपर कास्ट के भी बहुत लोग हैं, तेजस्वी यादव को उनसे कोई समस्या नहीं है. किन्तु कन्हैया कुमार उनके राजनीतिक कद के लिए समस्या बन सकता है. कन्हैया दूसरी पार्टी का सदस्य है. यहाँ दो पार्टी के बीच भी संघर्ष है.
वैसे सीटों के बंटवारे की बात की जाये , तो राजद ने अपनी सहयोगियों को काफी सीटें दी हैं. उसने एक सीट तो CPI(ML ) को अपने हिस्से में से भी दी है. भाजपा विरोधी मोर्चा-महागठबंधन में उसका व्यवहार काफी समझदारी भरा रहा है. वह सबको लेके चलने में भरोसा रखते हैं. किन्तु जहाँ अपने हितों की बात आये, तो उसके साथ कोई भी समझौता करना नहीं चाहेगा. राजद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ( RLSP ), हिंदुस्तान अवाम पार्टी (HAM) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) VIP के साथ भी सहज है किन्तु कन्हैया कुमार के साथ नहीं. क्योकि RLSP, HAM, VIP बिहार की पार्टियां हैं, राजद से छोटी पार्टीयाँ हैं. ये राजद पर आश्रित रहेंगी. बाकी आगे देखते हैं, क्या होता है!
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डॉ. मुख्त्यार सिंह जवाहरलाल नेहरु विश्वविध्यालय से पी.एच.डी हैं व् दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक के पद पर रह चुके हैं.
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