राउंड टेबल इंडिया
कुछ ही दिन दूर रह गए लोक सभा चुनाव में नागपुर संसदीय क्षेत्र से पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया की प्रत्याशी डॉ. मनीषा बांगर अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रही हैं लेकिन उनके प्रति लोगों का उत्साह देखते बनता है. 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव के मद्देनजर मनीषा इन दिनों जोरदार चुनाव अभियान में जुटी हैं. मुसलमान, सिख, ओबीसी और अनुसूचित जातियों के मतदाताओं से मिल रहे साकारात्मक रिस्पांस से मनीषा बांगर खासी उत्साहित हैं. इसी क्षेत्र से भाजपा के नितिन गडकरी के बरक्स ब्राह्मणवाद को चुनौती देतीं मनीषा को अल्पसंख्यक समुदायों का जोरदार समर्थन मिल रहा है. मनीषा बांगर सम्पूर्ण बहुजन समाज के साथ अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों और सिखों में मजबूत पकड़ रखती हैं. मनीषा नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज की छात्र रही हैं.
डॉ. मनीषा के लिए ऐसा आखिर कैसे संभव हो पाया?
सावित्री बाई फुले ने फातिमा शेख के सहयोग से देश का पहला बालिका विद्यालय शुरू करके जिस बहुजन शिक्षा आंदोलन की परम्परा की शुरुआत की थी उसी परम्परा को डॉ. मनीषा बांगर आगे बढा रही हैं. मनीषा कहती हैं “उस दौर में अक्षर ज्ञान ही पहली ज़रुरत थी. तब सावित्री बाई फुले ने फातिमा शेख के साथ मिल कर बच्चियों के लिए पहला स्कूल खोला था. तब से अब तक डेढ़ सदी का फासला हमने तय कर लिया है. अब हमें अक्षर ज्ञान के आगे का सफर तय करना है. बहुजन समाज में अब सामाजिक-राजनीतिक शिक्षा की चेतना जगाने का समय है. इसलिए हम यह काम राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे हैं”.
मनीषा ने अपने इस प्रयास के कारण अनुसूचित जाति, जनजाति, मुस्लिम और सिख समुदाय में बड़ी स्वीकार्यता प्राप्त की है. मनीषा मुस्लिम महिलाओं पर भाजपा सरकार द्वारा जबरन तलाक बिल थोपने के विरुद्ध मुखर आवाज बन कर उभरीं थीं. उन्होंने देश भर में अल्पसंख्यकों के सम्मेलनों में जा कर उन्हें, उनके धार्मिक अधिकारों के प्रति सचेत किया और मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ शोषणकारी तलाक बिल के प्रति शिक्षित और आगाह करने का अभियान छेड़ा. मनीषा के इस अभियान ने उन्हें मुस्लिम समाज में काफी लोकप्रियता दिलाई. बामसेफ व मूलनिवासी संघ सरीखे विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक संगठनों के प्रयास का नतीजा ही है कि केंद्र की भाजपा सरकार तलाक बिल को संसद से पारित करवा पाने में नाकाम रही.
मनीषा ने, न सिर्फ खुद को अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी और मुस्लिमों के लिए संघर्षशील अभियान छेड़ रखा है बल्कि वह सिखों की सामाजिक, सांस्कृतिक वा आर्थिक गुलामी के मोर्चे पर भी पूरी शक्ति के साथ लड़ाईयां लड़ती रही हैं. उनके इन प्रयासों की स्वीकार्यता की ही बानगी है कि उन्हें 2018 में कनाडा के ब्राम्पटन गुरुद्वारे से हजारों सिख श्रृद्धालुओं को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया. इतना ही नहीं, उनके ऐसे ही संघर्षों को सम्मान देने के लिए नवम्बर 2017 में अमेरिका के कैलिफोर्निया के मैनटेसा सिटी के मेयर ने ग्लोबल बहुजन अवार्ड से सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया.
विशेष बातचीत में मनीषा कहती हैं, “समाज का चौतरफा विकास जाति प्रथा से तंग आये बहुजन जो दुसरे धर्मों में चले गए, उनको संग लेकर चलने से है, बल्कि कतार में सबसे पीछे रह गए व्यक्ति को भी सोच के केंद्र में लाने से है. ब्राह्मणवादी पार्टियों ने उनके साथ क्या किया उनको पता चल चुका है. उन्हें बार बार बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता. हम यथास्थिति की राजनीति नहीं बल्कि सम्पूरण बदलाव के लिए यहाँ आये हैं. मुझे हर धर्म के लोगों का स्नेह व् सहयोग मिल रहा है. वह परिवर्तन चाहते हैं और हमपर भरोसा कर रहे हैं. यह सबक सिखाने की बार ही, विपक्षियों को.”
समाज को बदलने का जुनून और चुनौतियों से टकराने की प्रेरणा सावित्री बाई फुले से हासिल करने वाली डॉ. Manisha Bangar अकसर अपने साहसिक फैसलों से लोगों को अचरज में डाल देती हैं.
संघ के गढ़ में घुस कर मनीषा बांगर ने ब्रह्मणवाद को चुनावी एजेंडा बना दिया है
नागपुर लोकसभा क्षेत्र से पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया की उम्मीदवार डॉ. मनीषा बांगर ने ब्रह्मणवादी शोषण को चुनावी एजेंडा बना कर भाजपा के नितिन गडकरी के सामने मजबूत चुनौती पेश कर दी है.
ब्रह्मणवादी शोषण को चुनावी मुद्दा बना कर मनीषा ने नागपुर लोकसभा क्षेत्र के बहुजनों को उद्वेलित कर दिया है. जबकि आम तौर पर ब्रह्मणवाद बहुजनों के बौद्धिक वर्ग के सामाजिक आंदोलनों का मुद्दा रहा है. 1980 के दशक में कुछ ऐसा ही प्रयोग कांशी राम ने उत्तरप्रदेश में किया था. कांशी राम के इस राजनीतिक प्रयोग ने तब उत्तरप्रदेश की राजनीति में उथलपुथल मचा दिया था. उनके इसी प्रयोग का परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में ब्रह्मणवाद के राजनीतिक किला को ध्वस्त कर मायावती ने वहां की सत्ता पर कब्जा कर लिया था.
ब्रह्मणवाद के खिलाफ उत्तरप्रदेश में कांशीराम के राजनीतिक आंदोलन के तीन दशक बीत जाने के बाद ऐसी मान्यता प्रचलित होती जा रही थी कि राष्ट्रवाद के मुखैटे में छिपी साम्प्रदायिक राजनीति ने ब्रह्मणवाद के खिलाफ चलने वाले आंदोलनों को छिन्न-भिन्न कर दिया है. लेकिन मनीषा बांगर ने इस मान्यता को ध्वस्त करने में जुटी हैं. दिलचस्प बात यह है कि मनीषा ने इस मान्यता को उस सरजमीन पर ध्वस्त कर रही हैं जहां राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सिद्धांत गढ़े जाते हैं. जहां सावरकर और गोलवलकर के हिंदुत्व के प्रयोग को राष्ट्रीय फलक पर अवतरित किया जाता है. मनीषा ने ‘बंच ऑफ थॉट’ के नफरती सिद्धांतों को उसके गढ़ में चुनौती दे कर एक ऐसी नजीर पेश की है जो भारतीय राजनीति को नयी दिशा देने वाली साबित हो सकती है. इस संबंध में मनीषा कहती हैं, “बहुजनों की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं की जड़ ब्रह्मणवाद में निहित है.जब तक ब्रह्मणवादी मानसिकता को समाप्त नहीं किया जाता तबतक बहुजनों को गुलामी से मुक्त नहीं कराया जा सकता”.
यह पूछे जाने पर कि भाजपा के कद्दावर नेता नितिन गड़करी जो खुद ब्राह्मण हैं, के खिलाफ चुनाव लड़ने का उनका क्या उद्देश्य है? इस सवाल के जवाब में मनीषा कहती हैं, “मैं स्पष्ट कर दूं कि हमारी लड़ाई किसी ब्राह्मण के खिलाफ नहीं, बल्कि ब्रह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ है. नितिन गडकरी का ब्राह्मण होना मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता. मैं उस सोच के खिलाफ मैदान ए जंग में हूं जो हिंदुत्व के मुखौटे में छिप कर बहुजनों का शोषण करती है”.
मनीषा बांगर विगत 20 वर्षों से बामसेफ के सामाजिक आंदोलनों का प्रमुख किरदार रही हैं. उन्होंने मूलनिवासी बहुजन आंदोलन को न सिर्फ नया आयाम दिया है बल्कि नयी पीढ़ी के कैडरों की लम्बी फौज खड़ी करके इस आंदोलन को मजबूती प्रदान की है.
फिलवक्त मनीषा नागपुर के चुनावी मैदान में अपने प्रतिद्वंदी नितिन गड़करी को ललकार कर वहां की राजनीति में उथलपुथल मचा रही हैं.
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