धम्म दर्शन निगम (Dhamma Darshan Nigam)
अगर कुछ अनजान लोग उनके चार-पांच लठेतों के साथ आपके घर में आकर रहने लगें और आपके जीने के सारे नियम-कायदे-कानून, रोज़ की दिनचर्या, आपकी पहचान तक को बदल दें, आपकी संपत्ति पर उनका हक़ जमाएं, आपको आपके ही घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दें या आपके आने-जाने का एक समय निर्धारित कर दें, आपको सवाल करने तक का हक़ न हो कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, आपको ये बोला जाए कि यह सब आपके भले के लिए ही किया जा रहा है, और आपके मोहल्ले-पड़ोस में बोला जाए कि आपके घर में सब अच्छा है, एकदम शांति है, तो आपको कैसा लगेगा? क्या आप ऐसा किसी भी हालत में ख़ुद के साथ होने देंगे? बेशक नहीं होने देंगे! यह आपकी स्वायत्तता, आपकी आज़ादी पर हमला है। और अगर आपके पड़ोस में भी ऐसा किसी के घर में हो रहा है तो शायद आप आपके पड़ोसी का ही साथ देंगे न कि घुसपैठियों का।
धारा 370 जम्मू और कश्मीर से हटाने के बाद कश्मीरियों के साथ आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है और दलितों-बहुजनों की काफ़ी बड़ी संख्या बोल रही है कि यह अच्छा हुआ — यह देशहित में है। जैसा “मुख्यधारा” के समाचार पत्र और टेलीविज़न में दिखाया जा रहा है आप वैसा ही विश्वास कर रहे हैं और वैसा ही बोल भी रहे हैं, बिना उसे बारीकी और गंभीर रूप से सोचे-समझे। यह कुछ वैसा ही है जब आपको सार्वजनिक पानी के नलों से पानी नहीं लेने दिया जाता, ब्राह्मण-बनिया-भूमिहार/राजपूत के आने पर आपको पानी के नल से दूर खड़े हो जाना पड़ता है, उनके सड़क पर आने पर आपको सड़क से नीचे की तरफ़ खड़े हो जाना होता है, किराना की दुकान पर आपको सामान दूर रख कर दिया जाता है, आपसे जबरदस्ती मैला साफ़ कराया जाता है, मरे जानवर उठवाए जाते हैं, बेगार कराया जाता है (हां, यह सब कुछ आज भी होता है)। मतलब कि तथाकथित उंची जाति वालों द्वारा उनके फैंसले आप पर थोपना और आपको आपकी इच्छा के अनुसार काम नहीं करने देना।
आप जानते हैं कि यह सब आपके अधिकारों का हनन है, आपकी आज़ादी, आपकी स्वायत्तता पर हमला है। आप इसे काफी अच्छे से समझते भी हैं और इसका विरोध भी करते हैं। इसी तरह से भारत सरकार का जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाना और कश्मीरियों के साथ रवैया उनके अधिकारों का हनन है और उनकी आज़ादी पर हमला है। कश्मीर में लिखने-बोलने वालों पर प्रतिबन्ध है1, उनके विरोध को बलपूर्वक रोका जा रहा है – लोग मर रहे हैं2, वहां के विद्यार्थी स्कूल/कॉलेज नहीं जा पा रहे हैं, कश्मीर के लोग बोल रहे हैं कि वो ख़ुश नहीं हैं। इन्टरनेट सेवाएं ठप हैं3, कश्मीर में लोगों के बोलने के अधिकार का गला घोंट दिया गया है। कश्मीरी विरोध कर रहे हैं, उनके विरोध करने पर उन्हें जेल में डाला जा रहा है4, लेकिन आपको न्यूज़ चैनल पर लगभग हर दूसरे दिन बोला जा रहा है कि कश्मीर में शांति है, लोग ख़ुश हैं, स्थिति ठीक-ठाक है।
कश्मीर में तो बेशक लोग अभी दुखी हैं, लेकिन ख़ुशी के मामले में यह देश वैसे भी बहुत पिछड़ा हुआ है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट की 2012 से 2019 तक की रिपोर्ट के अनुसार भारत बहुत ज्यादा पिछड़ा हुआ देश है। 150 से 160 देशों की जानकारी इकट्ठी कर बनाई गई इन रिपोर्ट में भारत का स्थान लगातार पिछड़ता जा रहा है। बीजेपी की सरकार बनने के बाद भारत लगभग 30 देशों से और पिछड़ गया है। और पाकिस्तान जिस से भारत सरकार और अभी की ख़ासकर बीजेपी सरकार जो हमेशा युद्ध करने के लिए तैयार रहती है वह भारत की तुलना में काफी खुशहाल देश है। 2012 में जब ये रिपोर्ट पहली बार बनी तब पाकिस्तान का स्थान 85वां था और 2019 की आख़िरी रिपोर्ट में पाकिस्तान 67वे स्थान पर पहुंच गया है। पाकिस्तान लगातार खुशहाल देश बनता जा रहा है। अगर हम 2019 की रिपोर्ट देखें तो पाकिस्तान हमसे 73 देश ऊपर है। लेकिन हमारी सरकार को अपने देश की जनता के हित के लिए, कश्मीरियों की ख़ुशी के लिए, युद्ध पाकिस्तान से करना है। पाकिस्तान से युद्ध करने के बजाए हमें वहां के लोगों से सीखना चाहिए कि ख़ुश कैसे रहा जाता है।
साल – वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट |
भारत का स्थान |
2012 |
94 |
2013 |
111 |
2015 |
117 |
2016 |
118 |
2017 |
122 |
2018 |
133 |
2019 |
140 |
कुछ और बेतुकी बातें सुनने में आती हैं कि कश्मीर से धारा 370 हटाना देशहित में है, हिंदू खतरे में है तो देशहित में बीजेपी को वोट दो, देशहित के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों का रिजर्वेशन ख़तम करो और सरकार से मतभेद भी देशहित में मत करो। समाजशास्त्र, राजनीतिकशास्त्र या मनोविज्ञान का कौन सा सिद्धांत कहता है कि अपने ही देश के अल्पसंख्यक या सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों पर अत्त्याचार करने, उन्हें आपस में लड़ाने, उनके बोलने का हक़ और संविधान से प्राप्त उनके अधिकार छीनने से देशहित होता है। जातिवादी, नफ़रत फ़ैलाने वाली, दंगे और युद्ध की राजनीति से फ़ायदा सिर्फ ब्राह्मणवादी और सामंतवादी राजनीति का होता है, न कि दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, और अल्पसंख्यकों का। हाशिये पर रह रहे लोगों को अगर अपनी ख़ुशी और सलामती देखनी है तो उन्हें ब्राह्मणवादी और सामंतवादी राजनीति को समझना होगा और उस से दूर रहना होगा। हाशिये के लोगों को यह भी समझना होगा कि जब वो ख़ुश और सलामत रहेंगे, तब ही वो उनके जीवन में तरक्की भी कर पाएंगे, तब ही देशहित भी होगा, और तब ही देश खुशहाल भी बनेगा।
फैज़ान मुस्तफ़ा जो NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ, हैदराबाद के वाईस चांसलर हैं और क़ानून के वरिष्ठ अध्यापक हैं कहते हैं कि “My take is that it was a question of the autonomy (of Jammu and Kashmir) rather than the integration of Kashmir with India, because integration of the state has already happened. The Constitution of Jammu and Kashmir clearly says that the integration is complete”5 (मेरा मत है कि यह जम्मू और कश्मीर की स्वायत्तता का सवाल था, न कि कश्मीर को भारत के साथ जोड़ने का, क्योंकि जम्मू और कश्मीर भारत के साथ पहले ही जुड़ चूका है। जम्मू और कश्मीर का संविधान यह साफ़-साफ़ कहता है कि यह संगठन पूरा है)।
फैज़ान मुस्तफ़ा के अनुसार कश्मीर भारत के साथ पहले से ही जुड़ा हुआ है और कश्मीर का असली मुद्दा कश्मीर के लोगों की स्वायत्तता का है। जिसका भारत सरकार ने सरेआम क़त्ल कर दिया है। रही बात कश्मीर में ज़मीन खरीदने की तो गांव देहात में दलितों की ज़मीन भी कोई तथाकथित उंची जाति वाला भी नहीं खरीद सकता6। हिमाचल प्रदेश में भी खेतीबाड़ी वाली ज़मीन वहीं का खेतीबाड़ी न करने वाला निवासी नहीं खरीद सकता। इसी तरह के कुछ कानून दूसरे राज्यों में भी हैं। आदिवासी भी जंगलों में खदान की खुदाई का विरोध यूंही नहीं करते। उनके लिए भी यह स्वायत्तता का मामला है। अतः अब गैर कश्मीरी भी कश्मीर में ज़मीन खरीद लेंगे असल मुद्दे से भटकाने वाली बात है।
दलितों-बहुजनों के अधिकारों को सबसे बड़ा खतरा बीजेपी सरकार से है. इससे पहले कांग्रेस का सलूक भी राजनीतिक रोटियां सेंकने तक सीमित रहा है. फिलहाल, कश्मीरियों के अधिकारों पर भी बीजेपी सरकार जो हमला कर रही है, बहुजन और कश्मीरी दोनों ही इस स्थिति में पीड़ित हो। और जब एक पीड़ित ही दूसरे पीड़ित का दर्द नहीं समझता, वो आपस में एक दूसरे का साथ नहीं देते, तो यह अत्त्याचारी के पक्ष में जाता है।
मुसलमानों में भी जाति-बिरादरी है. शायद वहां भी पसमांदा की स्थिति हिन्दू धर्म को मानने वाले दलितों से अलग न हो. लेकिन यहाँ मामला हिन्दू मुस्लिम का नहीं बल्कि कश्मीर के फ़ेडरल सिस्टम के केंद्र यानि सेंटर सरकार द्वारा निचोड़ देने का है. यह बात किसी से छुपी नहीं रह गई कि आज केंद्र ने राज्यों के साथ तालमेल बिठाने के मामले में लगभग सभी अधिकार अपने पास रख लिए हैं. इससे राज्य को भाषाई, सांस्कृतिक, शैक्षणिक से लेकर बजट तक में केंद्र का मुंह ताकना पड़ता है. केंद्र जो चाहती है वही होता है. राज्य की आवाज़ दब गई है या यूं कहिये कि दबा दी गई है. जहाँ तक कश्मीर में बहुजनों की परिस्थिति है वह कश्मीर के बहुजन खुद देख लेंगे. जम्मू-कश्मीर में जातिवादी की लडाई की असली ज़मीन जम्मू-कश्मीर ही है. लेकिन यह ज़मीन भी छिन जाएगी अगर कश्मीर पर केंद्र अपनी मनमानी करेगा.
दूसरी और, जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर बीजेपी सरकार दलितों और बहुजनों को बाबासाहेब अंबेडकर का नाम लेकर, कि बाबासाहेब ने धारा 370 हटाने का समर्थन किया था, गुमराह कर रही है। बाबा साहेब के फर्जी कोट्स वायरल किये जा रहे हैं जिसका शिकार बहुजन भी हुआ है. शायद कुछ बहुजनों को समझ में नहीं आ रहा कि जो बीजेपी बाबासाहेब के संविधान का ही विरोध करती है, कश्मीर के मामले में वह बार-बार बाबासाहेब का नाम क्यों ले रही है?
डॉ. रत्नेश कुमार इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट में सोशल साइंटिस्ट हैं, लिखते हैं कि,
“He (Ambedkar) is of the opinion that if the people of Kashmir wanted to join India, they are welcome; but if they do not want to join India, their feelings and opinion should be respected. Ambedkar wanted that India should not make an unnecessary claim over it. Instead, let the people of Kashmir decide which way they wanted to go” … “He said that the Buddhists and Hindus have close cultural links with India, therefore, the regions of these communities should be merged with India. However, the Muslim dominated region of Kashmir which is unwilling to be a part of India, should be given liberty to choose her nationality” .
(अंबेडकर के मत के अनुसार अगर कश्मीर के लोग भारत के साथ जुड़ना चाहते हैं तो उनका सवागत है, लेकिन अगर वो भारत के साथ नहीं जुड़ना चाहते तो, उनकी भावना और उनके मत का सम्मान किया जाना चाहिए। अंबेडकर चाहते थे कि भारत को कश्मीर पर अनावश्यक दावा नहीं करना चाहिए। इसके बजाए, कश्मीर के लोगों को खुद से फैंसला लेने दिया जाए कि वो किस तरफ़ जाना चाहते हैं। … अंबेडकर ने कहा था कि बौद्ध और हिंदुओं के भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध हैं, इसलिए, इन समुदाय वाले क्षेत्र को भारत के साथ जोड़ना चाहिए। जबकि, कश्मीर का मुस्लिम बहुल क्षेत्र जो भारत का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं है, को उसकी राष्ट्रीयता चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।) (बाबासाहेब का मत और गहराई में जानने के लिए डॉ. रत्नेश का पूरा आर्टिकल पढ़े)।
बाबासाहेब चाहते थे कि कश्मीर के लोग खुद से फैंसला लें कि वो भारत के साथ आना चाहते हैं या पाकिस्तान के साथ। लेकिन वो हिंदू और बौद्ध बहुल क्षेत्र ज़रूर चाहते थे कि वो भारत के साथ रहें।
बाबा साहेब की कथन के नाम पर फैलाया गया झूठ
अतः यह कहा जा सकता है कि बीजेपी सरकार कश्मीर मुद्दे पर बाबासाहेब की आधी-अधूरी बात ही बता रही है और भारत के देशवासियों, ख़ासकर दलितों-बहुजनों को गुमराह कर रही है। बाबासाहेब की बातों को बीजेपी शुरू से ही तोड़-मरोड़ कर पेश करती आई है। वह यह सिद्ध करना चाहती है कि बाबासाहेब हिंदुओं के साथ सहानुभूति रखते थे। वह यह नहीं बताती कि बाबासाहेब हिंदुओं की राजनीति और उनके धर्म शास्त्रों के कितने घोर विरोधी थे। बीजेपी/आरएसएस इस तरह से बाबासाहेब का धीरे-धीरे हिंदुकरण करना चाह रही है।
दरअसल, जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाना बीजेपी का भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के एजेंडे की तरफ़ एक और बड़ा कदम है। बीजेपी जब-जब बाबासाहेब को हिंदू समर्थक बताती है या जब-जब उनके किसी भी काम के लिए बाबासाहेब के नाम इस्तेमाल करती है, और अगर इसका साथ हमारे नेता भी दे देते हैं, तो हम भी बिना तथ्य देखे बीजेपी की बातों पर विश्वास कर लेते हैं। बीजेपी की राजनीति में विश्वास करना, मतलब इस देश को हिंदू राष्ट्र की तरफ़ धकेलना, और खुद का हिंदुकरण करना है। यह बीजेपी की राजनीति की जीत और हमारी दलित राजनीति, हमारे दलित आंदोलन की हार की तरफ़ एक और कदम होता है। यह दिख भी रहा है। हमारे काफी लोग बोल रहें हैं कि बाबासाहेब ने भी जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटने का विरोध किया था।
बीजेपी के लिए भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ी रुकावट बाबासाहेब का संविधान और बाबासाहेब के अनुयायी हैं। लेकिन अगर बहुजन तबका, खासतौर पर दलित भी बीजेपी की राजनीति पर इसी तरह से आंखे बंद करके विश्वास करते रहे, तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब यह देश पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। बीजेपी/आरएसएस के बहुत सारे नेता खुलेआम बोलते हैं कि वे मनुस्मृति को लागू करना चाहते हैं। मनुस्मृति वाले हिंदू राष्ट्र में आपके क्या अधिकार होंगे यह आप खुद से सोच सकते हैं।
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धम्म दर्शन निगम ‘सफाई कर्मचारी आन्दोलन’ के नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं, लेखक हैं व् The Ambedkar Library के फाउंडर हैं. उनसे ddnigam@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
तस्वीर : इन्टरनेट दुनिया से साभार.
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