
पम्मी लालोमज़ारा (Pammi Lalomazara)
बंगा- नवांशहर (पम्मी लालोमज़ारा) ‘संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले के साथ सबसे बड़ी गद्दारी ‘जरनल केटेगरी’ के लोगों ने की. मेरे समाज के लोगों को तो पता ही नहीं कि गद्दारी होती क्या है और कैसे करते हैं.’
उपरोक्त शब्द साहेब कांशी राम ने कहे थे. ये खुलासा एक ऐसे शख्स (नाम गुप्त) ने क्या था जो जो बहुजन नायक साहेब कांशी राम और संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले की कई मुलाकातों का चश्मदीद गवाह रहा. पहले पहल यह मुलाकातें चौक-मेहता (अमृतसर) पर होती रहीं और बाद में इन मुलाकातों का स्थान रामदास सराय रहा.
साहेब कांशी राम और संत जी की पहली मुलाकात 1977 में गुरुद्वारा रीठा-मीठा साहेब (जिला चम्पावत, उत्तराखंड) में मुल्क राज नाम के एक आई.ए.एस अफसर ने करवाई थी. जिसमें चंद लोग ही शामिल थे और यह मुलाकात लगभग डेढ़ घंटे तक चली. इसके पश्चात् जब अमृतसर में ‘निरंकारी काण्ड’ (1978 के अकाली-निरंकारी कांड में 13 सिख मारे गए थे) हुआ, उस वक़्त साहेब और संत एक दुसरे के और भी नज़दीक आ गए. संत जी ने साहेब के साथ शुरुआती दिनों में ही यह वादा किया था कि,‘जिस मूवमेंट को लेकर आप चल रहे हो, अगर आप इतनी ही ईमानदारी, आस्था और दृढ़ता से इस मूवमेंट को आगे भी लेकर चलते रहे तो हमारी तरफ से आपको आर्थिक सहयोग भी मिलेगा और पंजाब में आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी हमारे साथी करेंगे, और आपको जरा सी भी आँच नहीं आने देंगे.’ यह वादा संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले अपनी शहादत तक निभाते रहे.
हालाँकि संत भिंडरांवाले द्वारा ये वादा किया गया था लेकिन इसके बावजूद साहेब ने अपनी मूवमेंट को कदम दर कदम लोकतान्त्रिक तरीके से ही चलाया और आगे बढ़ाया. एक दो-बार साहेब की गाड़ी को भूले से संत भिंडरांवाले के साथियों द्वारा घेर कर रोका भी गया. लेकिन साहेब कार से बाहर निकलकर जब यह कहते थे कि मैं कांशी राम हूँ तब साहेब का यह जवाब सुनकर उन सिख नौजवानों का जवाब होता था-‘साहेब जी, जाओ. आपको कोई भी नहीं रोकेगा. हम आगे अपने साथियों को संपर्क करके कह देंगे कि अम्बेसडर कार में आप जा रहे हो. कोई न रोके!’
दरअसल उन दिनों, दिन के वक़्त पुलिस का राज था और रात को सिख आन्दोलनकारियों का. साहेब ने इस बात का भी खुलासा किया था कि- आप दुनिया भर का इतिहास टटोलकर देख लो आपको कोई एक भी उदाहरण ऐसी नहीं मिलेगी कि जब नर्म और गर्म तरीके से चल रहे आन्दोलन एक दुसरे का सहयोग लेकर आगे न बढ़ें हों. लेकिन एक मेरी और दुसरे भिंडरांवाले की मूवमेंट ऐसी है जो अलग-अलग ट्रैक पर चलते हुए भी हमारे बीच गजब की केमिस्ट्री रही, ताकि हम अपनी-अपनी विचारधारा के आने वाली पीढ़ियों के लिए साझे वारिस पैदा कर सकें. हम ज्यादा से ज्यादा अपने लोगों को जोड़ने में जितने सफल होंगे, उतने ही विचारधारा के ज्यादा से ज्यादा वारिस पैदा होंगे.
साहेब के मुताबिक,‘मेरी और भिंडरांवाले की मुलाकातों की भनक उस वक़्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री को लग गई थी जिसके चलते उसने बहुत ही जल्द फैसला लेकर ऑपरेशन‘ब्लू स्टार’ को अंजाम दे दिया जो खुद उसके लिए भी बेहद घातक सिद्ध हुआ. अगर ब्लू स्टार ऑपरेशन का फैसला इंदिरा गाँधी दो साल के बाद लेतीं तो हम उसके खिलाफ पूरे भारत में इतनी बड़ी मूवमेंट खड़ी कर देते कि उसकी आने वाली कई पीढियां याद रखतीं. लेकिन अफ़सोस कि जून 1984 तक न तो मेरा ही समाज तैयार था और न ही बड़े स्तर पर संत भिंडरांवाले का. जब कि मुझे तो उस वक़्त पार्टी की स्थापना किये ही महज दो महीने हुए थे. हमारा कोई राजनीतिक वजूद भी नहीं था.’
साहेब ने एक और बात भी पते की कही थी, ‘भिंडरांवाले की मूवमेंट से जितने लोग जुड़ते उनमें से 80% लोग मेरे ही समाज के होते. संत भिंडरांवाले के साथ, दरअसल, सबसे बड़ी गद्दारी जनरल वर्ग के लोगों ने ही की थी. मेरे समाज के ईमानदार लोग तो उस वक़्त यह भी नहीं जानते थे कि गद्दारी क्या होती है और कैसे की जाती है.’
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★ केवल प्राणों का निकल जाना ही मौत नहीं होती, अपने हकों/अधिकारों को मूकदर्शक बनके मरते देखना भी मौत से कम नहीं होता- साहेब कांशी राम
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पम्मी लालोमज़ारा द्वारा लिखित किताब ‘मैं कांशी राम बोल रहा हूँ’ में से. पम्मी लालोमज़ारा एक बहुजन लेखक हैं जिनसे फोन नंबर 9501143755 पर संपर्क किया जा सकता है.
अनुवाद- गुरिंदर आज़ाद