NEP 2019
0 0
Read Time:59 Minute, 20 Second
NEP 2019
 
 
शिक्षण संघर्ष समन्वय समिति 
(A Co-ordination Committee on Draft NEP2019)
Contact Info.: Address- c/o Harishchandra Sukhdeve, C-4, Mulik Complex, 
Somalwada, Wardha Road, Nagpur – 440 025
Phone: 7276979763
 
नागपुर, 
5 सितम्बर, 2019
मान. सांसद, 
नई दिल्ली
 
आदरणीय महोदया / महोदय,

विषय: जनविरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का मसौदा सिरे से ख़ारिज कर लेना चाहिए

भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा निति 2019 से सम्बंधित बिल शीघ्र ही लोकसभा और राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है. सरकार ने जून 2019 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय शिक्षा निति 2019 का मसौदा जनता की हरकतों के लिए खुला किया था. पूरा मसौदा केवल दो भाषाओँ, अंग्रेजी और हिन्दी, में उपलब्ध था. अन्य भाषाओँ में केवल करीब पचास पृष्ठ का सारांश दिया गया था. उपरोक्त मसौदे का विस्तार से अभ्यास करने के बाद हमें यह विश्वास हो गया है कि किसी भी प्रकार के दुरुस्ती सुझाव से उसे राष्ट्र के लिए स्वीकार्य नहीं बनाया जा सकता है. इस मसौदा निति से उसीके ‘विज़न’ को किसी भी तरह प्राप्त नहीं किया जा सकता.

मसौदा निति का विज़न कहता है “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 एक भारत केन्द्रित शिक्षा प्रणाली की कल्पना करती है जो सभी को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करके, हमारे राष्ट्र को एक न्यायसंगत और जीवंत ज्ञान समाज में लगातार बदलने में योगदान देती है.” (पृष्ठ 55) मसौदा निति इसे प्राप्त करने के लिए “शिक्षा के स्वरुप, इसके विनियमन और गवर्नेंस के सभी पहलुओं में संशोधन का प्रस्ताव” देती है. (पृष्ठ 32)

शिक्षण व्यवस्था के ‘सभी पहलुओं में संशोधन का प्रस्ताव’ बड़ा ही व्यापक है. लेकिन उसके लिए किसी प्रकार की कोई अनुभवजन्य या संशोधन पूर्ण जानकारी मसौदे में कहीं नजर नहीं आती है. समिति के माननीय अध्यक्ष पद्म विभूषण डॉ. कस्तूरीरंगन समिति के इन प्रस्तावों को ‘आउट-ऑफ़-दि-बॉक्स’ सोच वाले प्रस्ताव कहते जरुर है. लेकिन समिति के इन संशोधन प्रस्तावों में कुछ छिपे मकसद है ऐसा मानने के लिए पर्याप्त कारण है. ऐसा प्रतीत होता है की समिति अपने उद्देश्य को लेकर प्रामाणिक नहीं है इसलिए उसके प्रस्ताव भी प्रामाणिक नहीं है. उदहारण के  लिए –  

1. संशोधन का प्रस्ताव: आर्थिक स्वायत्तता – क्या निजीकरण और नफा खोरी के लिए? 

मसौदा निति जोर देकर इस बात की शिफारस करती है कि सभी स्तरों के शिक्षा व्यवस्थापन को पूरी स्वायत्तता दी जानी चाहिए. वह कहती है – “एक ज्ञानवान समाज (Knowledge Society) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें एक उत्तरदायी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है जो तभी हो सकता है जब हमारे शिक्षा संस्थान, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय आदि इस निति में दर्शाये गए लक्ष्य को पूरा करेने के लिए सक्षम और स्वतंत्र हों.” (पृष्ठ 41) बहुत अच्छा. उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) के बारे में कहा गया है कि “पर्याप्त वित्त, अकादमिक और प्रशासनिक स्वायत्तता और विधायी सक्षमता प्रदान करने के दौरान, संस्थानों को उन समुदायों के साथ जुड़ने के लिए सामाजिक और वित्तीय  प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिए जहां वे स्थित  है.” (पृष्ठ 436). अंग्रेजी मसौदा (पृष्ठ 312) की तुलना में यह उद्धरण भिन्न है जहां ‘पर्याप्त’ के बजाय ‘पूर्ण’ स्वायत्तता की बात कही गई है. यह ‘पूर्ण’ स्वायत्तता की बात केवल HEIs को ही नहीं तो प्री-प्राइमरी स्कूल से भी देने की बात कही गई है.

मसौदे के परिशिष्ट A1 के ‘समावेश को सुनिश्चित करने के लिए एक उच्च गुणवत्ता पूर्ण फिलन्थ्रोपिक संस्थान मे मदद करना’ इस भाग में कहते है –

“साथ ही साथ इन संस्थानों को पूर्ण वित्तीय एवं पाठचर्यात्मक स्वायत्तता होनी चाहिए, जैसा कि ‘सक्षम शासन और प्रभावी नेतृत्व’ के अंतगर्त सेक्शन 17.1 में  दिया गया है ( देखें P17.1.20 एंड पेज नंबर पी17.1.21). इस तरह के नए उच्च गुणवत्ता वाले संस्थानों के प्रोत्साहन  को प्राथमिकता के क्षेत्रो पर केन्द्रित  किया जाएगा  जैसे कि पिछड़े क्षेत्र और वर्ग के बच्चों के लिए विद्यालय पूर्व शिक्षा, उच्च  शिक्षा में ऐसे कोर्स जो लिबरल अंडर ग्रेजुएट कोर्स के रूप में  आए, शिक्षक शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा। तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए उद्योगों को शामिल किए जाने को प्रोत्साहित किया जाएगा।“ (पृष्ठ 576). 

क्या पिछड़े क्षेत्र और पिछड़े वर्ग के बच्चों को फिलन्थ्रोपिक संस्थान के भरोसे यूं छोड़ देना समान उच्च शिक्षा देने की गारंटी देगा? क्या यह निजीकरण नहीं है? और क्या यह फिलन्थ्रोपिक संस्थान हर समय और हर एक के लिए वित्तीय बोझ उठाने में सक्षम रहेंगे जैसा की इस मसौदे में सोचा गया है? देखे उपरी पैरा में पृष्ठ 436 का उद्धरण. क्या यह नफ़ाखोरी को बढ़ावा नहीं देगा? 

हमारी मांग है कि शिक्षा पर लगनेवाले सारे खर्च / लागत की सरकार स्वयं जिम्मेदारी लें और जैसा की पूर्व की सभी शिक्षा नीतियों में जीडीपी के 6% निधि शिक्षा पर खर्च करने की शिफारस थी उसे स्वीकार करें. सरकार चाहे तो फिलन्थ्रोपिस्ट से दान स्वीकारें लेकिन उन्हें किसी शैक्षणिक संस्थान के सर्वाधिक अधिकार या किसी प्रकार की स्वायत्तता नहीं दी जाए. 

2. संशोधन का प्रस्ताव: पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्दति में स्वायत्तता –  भेदभाव करने की खुली छुट?

मसौदा निति में शिक्षकों को शिक्षण-शास्त्र, उसकी पद्दति और पाठ्यक्रम के सूक्ष्म पहलुओं के चयन में स्वायत्तता देने की जोरदार शिफारिस की गई है. अपने इस सुझाव को पुख्ता करने के लिए समिति हमारे प्राचीन गुरुओं की शिक्षण पद्धति का आदर्श प्रस्तुत करती है. यह भी दावा किया जाता है कि 

“सिर्फ  सबसे अच्छे और विद्वान ही शिक्षक बनते थे. विद्यार्थियों को निर्धारित ज्ञान, कौशल और नैतिक मूल्य प्रदान करने के लिए समाज शिक्षकों /गुरुओं को उनकी जरूरतों की सारी चीज़े प्रदान करता था. गुरुओं को रचनात्मक  प्रक्रियाएं अपनाने की पूर्ण स्वायत्तता दी गयी थी. इसके परिणाम स्वरुप शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, शिक्षण करने का पूर्ण प्रयास करते थे, जिससे प्रत्येक विद्यार्थी अपने सामर्थ्य को प्राप्त कर सके”. (पृष्ठ १५७)

हमें नहीं लगता, कोई इस बात से सहमत होगा कि हमारे प्राचीन काल के उन “गुरुओं” ने हमारे राष्ट्र में किसी प्रकार की न्यायोचित चैतन्यमय ज्ञान समाज की निर्मिती की हो. हमारा देश कई सदियों तक आक्रमणकारियों का घर बन गया था क्योंकि उन प्राचीन गुरुओं की भेदभावपूर्ण दृष्टी के कारण आधे से जादा समाज अप्रासंगिक बना दिया गया था. यदि फिर से उन्ही गुरुओं का आदर्श सामने रखकर हम शिक्षकों को और प्रस्तावित समान्तर ढांचे के ‘समाज सेवकों और सलाहकारों’ को स्वायत्तता देते है, जैसा कि मसौदा निति में प्रस्तावित है, तो निश्चित रूप से हमारा समाज फिर एक बार उसी प्राचीन भयावह श्रेणीबद्ध भेदभाव में पूरी तरह से झोंक दिया जाएगा. 

हमारे प्राचीन गुरुओं की वह तथाकथित व्यक्तिविशेष शिक्षण योजनायें कुछ नहीं बल्कि कुछ गिनेचुने लोगोंकी की प्रभुसत्ता को मजबूत रखने के लिए वर्ण व्यवस्था के अनुसार जातिगत कौशल्यों को कायम बनाये रखने की साजिश मात्र थी. मसौदा निति में ८ वी कक्षा से ही ‘एक्स्ट्रा-करीकुलर, को-करीकुलर’ विषयों को मूल पाठ्यक्रम के रूप में बदलने की शिफारस की गई है; साथ ही शिक्षकों, समाज सेवकों और सलाहकारों को स्वायत्तता देने की बात कही गई है. यह अल्प- प्रतिनिधित्व वाले समूहों (URGs) के छात्रों को हमेशा के लिए उच्च शिक्षा से वंचित करने की लम्बी साजिश है, ऐसा हम मानते है. 

मसौदा नीति ‘शिक्षा का अधिकार एक्ट’ (RTE) में केवल इसलिए संशोधन करना चाहती है क्योंकि उसकी धारा12(1)(c) समिति के ‘स्वायत्तता’ के मूलमंत्र से मेल नहीं खाती है. 

अपने मूल अर्थ में, 12(1)(c) निजी स्कूलों में  सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों को शामिल करने के अच्छे इरादे को समाहित किए हूए है । लेकिन यह क्लॉज, नीति में  वर्णित संस्थानों को  स्वायतत्ता के उन सिद्धांतों (विद्यार्थियों के प्रवेश सहित) के अनुरुप नही है जो स्कूलों को सशक्त करता है और सही कदम उठाने के लिए उनमें विश्वास करता है । (पृष्ठ २६८)

स्कूलों को स्वायत्तता दें और वह सही कदम उठाएंगे ऐसा उनपर विश्वास करें? ऐसा कोई प्रयोग सफल हुआ हो इस बात की कोई मिसाल? कोई नहीं. जहाँ नियमों का पालन नहीं किया जाता वहां इस बात की आशा रखें की छुट देनेपर वह सही काम करेंगे.

समिति इस बात की भी शिफारिस करती है कि “पूर्ण रूप से अकादमिक और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ उच्चशिक्षा संस्थान स्वतंत्र  बोर्डों  द्वारा शासित होंगे.” (पृष्ठ २८९) इं संस्थानों को पाठ्यक्रम निर्धारण में स्वायत्तता होगी, शिक्षण-पद्धति में स्वायत्तता होगी, मूल्यांकन में स्वायत्तता होगी, नियुक्तियां और फी निर्धारण में भी स्वायत्तता होगी. “शैक्षिक संस्थानों को अपने तरीके से काम करने के लिए स्वायत्तता दिए जाने की भावना से तारतम्य रखते हुए, फीस तय करने की जिम्मेदारी भी शैक्षिक संस्थानों, चाहे वे सरकारी हो या निजी, उनके प्रबंधन पर छोड़ दी जानी चाहिए.” (पृष्ठ ४१८)

क्या इस तरह की पूर्ण स्वायत्तता न्यासंगत शिक्षण व्यवस्था और समाज की रचना कर सकेगी? मसौदा समिति तो कुछ ऐसेही उम्मीद करती है – “लेकिन उनके लिए अपनी सामाजिक जवाबदेही को पूरा करने की अनिवायर्ता होगी और उन्हें समाज के सामाजिक-आर्थिक रुप से कमजोर तबके के लिए छात्रवृत्ति मुहयैा करानी होगी”. (पृष्ठ ४१८-४१९)

मसौदा नीति में प्रस्तावित पूर्ण स्वायत्तता के सिद्धांत से सभी प्रकार का शिक्षण समाज के एक बड़े तबके की पहुँच से बाहर हो जाएगा, पैसे से और अंतर-दूरी से भी. ऐसा नहीं कि मसौदा समिति इं बातों से अवगत नहीं है. वह जानती है इसीलिए तो अल्प-प्रतिनिधित्व वाले समूह (URGs) की संकल्पना करती है. लेकिन उनकी शिक्षण व्यवस्था को लेकर जो सुझाव है वह प्रमाणिक नहीं है. 

साथ ही URGs की व्याख्या में वह “सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर” की संकल्पना लाती है जब की संविधान “सामाजिक – शैक्षणिक रूप से पिछड़े” यह संकल्पना के साथ ऐसे समूहों की व्याख्या करता है. यदि समिति यह सोचती है कि देश में अब शैक्षणिक पिछड़ापन है नहीं तो फिर शिक्षण व्यवस्था में इतने आमूलाग्र बदल करने की आवश्यकता क्यों आ पड़ी है?    

शिक्षण व्यवस्था में आमूलाग्र बदल के नाम पर स्वायत्तता और परोपकार के नाम पर निजीकरण करके 

यह मसौदा नीति किसका सशक्तिकरण करना चाहती है, किस उद्देश्य से? सशक्त शिक्षक, सशक्त समाजसेवक, सशक्त सलाहकार, सशक्त संस्थान यह सब मिलकर बच्चे और उनके अभिभावकों का शोषण करेंगे, और कमजोर तबके के लोग इसके सबसे जादा शिकार होंगे.

हमारी मांग है कि सरकार स्वयं सभी क्षेत्रों में समान सुविधायें और समान शिक्षा की व्यवस्था करें. शिक्षण व्यवस्था में किसी भी प्रकार स्तर-विन्यास नहीं हो. यदि संशोधन की कोई आवश्यकता है तो वह है शिक्षण क्षेत्र में अराजकता से फैले अलग-अलग शिक्षण के मॉडल्स, निजी और सरकारी भी, को हटाने की. सभी शिक्षण संस्थान सरकार की हो और किसी को भी कोई स्वायत्तता न हो, ताकि सभी को एक समान, मुफ्त शिक्षण दिया जा सके. शिक्षण शास्त्र में अच्छे संशोधन से ऐसी शिक्षण प्रणाली अपनाने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए.    

3. संशोधन का प्रस्ताव: शिक्षण क्षेत्र परोपकारी संस्थाओं के सुपुर्द – ‘परोपकार’ जैसे मोहक नाम के पीछे अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना – सरकार की साजिश

मसौदा नीति शिफारिस करती है कि एक नया शीर्ष निकाय “राष्ट्रीय शिक्षा आयोग” (RSA) की स्थापना की जाए. यह निकाय प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सदस्यतावाला होगा. यह निकाय देश में निजी उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) के निर्माण के बारे में कानून बनाने के लिए सामान्य दिशानिर्देश जारी करेगा. यह दिशानिर्देश अच्छा प्रशासन, वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा, शैक्षिक निर्मिती, पारदर्शितापूर्ण प्रकटन (disclosure) इत्यादि के बारे रहेंगे. इन दिशानिर्देशों से पुरे देश में एकरूपता आएगी जिससे राज्यों के कानून “HEIs चार्टर” और “मॉडल एक्ट” के अनुसार बनाए जा सकेंगे. 

मसौदा नीति में समिति को विश्वास है कि “इस तरह की कायर्वाही यह सुनिश्चित करेगी कि इस प्रकार के निजी एचईआई (HEIs) को स्थापना और कामकाज गैर-लाभकारी जनहित उद्देशों के लिए है नाकि व्यवसायिक उद्देशों के लिए. (पृष्ठ ४६७-४६८). मसौदा नीति इस बात पर विशेष जोर देती है कि शिक्षा के सभी क्षेत्रों में परोपकारी फंड्स को बढ़ावा दिया जाए और उन संस्थानों को / दानदाताओं को पूर्ण रूप से स्वायत्तता दी जाए.  

RTE संशोधन के लिए समिति सुझाव देती है कि सही कदम उठाने के लिए स्कूलों पर विश्वास कर लेना चाहिए. HEI शंशोधन को लेकर समिति विश्वास व्यक्त करती है कि वह निजी (HEIs) संस्थान नॉट-फॉर-प्रॉफिट जनहित उद्देशों के लिए काम करेंगे और व्यवसायिक गतिविधियों में नहीं उलझेंगे. एक तरफ समिति स्कूल काम्प्लेक्स के बारे में यह भी सुझाव देती है कि अव्यवहारिक स्कूल बंद किये जाए. यह कैसे माना जाए कि निजी संस्थान इस तरह की व्यवहारिक सोच नहीं रखेंगे?

समिति यह बखानने से नहीं थकती कि किसतरह निजी संस्थानों ने शिक्षा को व्यवसाय बनाकर नफ़ाखोरी का जरिया बना डाला है जिससे शिक्षण महंगा और दुर्लभ हो गया है. फिर भी समिति अब जोर देकर शिफारिस करती है कि परोपकार के लुभावने नाम पर उन्ही निजी संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता के साथ शिक्षण क्षेत्र सौंप दिया जाए.

कैसी विडम्बना है कि समिति एक तरफ “संक्षेप में, शिक्षा पर निवेश संभवत: राष्ट्र के लिए सबसे अच्छा निवेश हो सकता है” (पृष्ठ ५६४), और “यह नीति बिना किसी संदेह के शिक्षा में जरुरी निवेश लाने के लिए प्रतिबद्ध है – जिसमें पर्याप्त  मात्रा में शासकीय निवेश तथा नागरिकों द्वारा लोकहित में किए गए निवेश में पर्याप्त बढ़ोतरी शामिल है” (पृष्ठ ५६०) ऐसी धारणा रखती है लेकिन दूसरी तरफ निजी फिलानथ्रोपिक संस्थाओं को पूर्व-प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी क्षेत्र पूर्ण स्वायत्तता के साथ सौंपने के सुझाव भी देती है.

“इस नीति के अनुसार ऐसे URGs बाहूल्य वाले क्षेत्रों को विशिष्ट शिक्षा क्षेत्र (स्पेशल एजुकेशन ज़ोन – SEZs) का दर्जा दिया जाए  जहाँ उपरोक्त सभी नीतियों और योजनाओं को समग्र रूप से, केंद्र  एवं राज्य सरकारों के अतितिक्त बज़ट प्रावधान और सम्मिलित प्रयासों द्वारा लागू किया जाये जिससे इन क्षेत्रों के शैक्षिक परिदृश्य में  वास्तविक बदलाव आ सके” (पृष्ठ १९५) यह सुझाव तो अच्छा है. परन्तु, जैसे कि ऊपर हमारे बिंदु एक में बताया है  पृष्ठ ५६७ पर यही समिति URGs बाहूल्य वाले क्षेत्रों में शिक्षण की सारी जिम्मेदारी फिलान्थ्रोपिक संस्थाओं पर डालने की बात करती है और ऐसे क्षेत्रों मे लिबरल आर्ट्स की शिक्षा पर ही जोर देने की बात करती है. पिछड़े क्षेत्रों के साथ यह दुर्भावनापूर्ण अन्याय है.

फिलान्थ्रोपिक संस्थाओं को पूर्ण स्वायत्तता देकर उनपर वह अच्छा ही करेंगे ऐसा विश्वास करने का सुझाव यह मसौदा नीति देती तो है, परन्तु इसके लिए वह किसी संशोधन के कोई सबुत नहीं देती है. 

शायद मसौदा समिति ऐसा सोचती है कि सभी फिलान्थ्रोपिक संस्थाएं कोई निहित स्वार्थ नहीं रखती है. लेकिन विकसनशील देशों में संशोधन इसके विपरीत है. व्यापक संशोधन और विविध सन्दर्भ देकर प्रकाशित किये गए एक रिसर्च पेपर “Institutional Voids and the Philanthropization of CSR Practices: Insights from Developing Economies” (https://www.mdpi.com/2071-1050/10/7/2400) के अनुसार “फिलान्थ्रोपिक दान कोई संरचनात्मक बदलाव तो लाता नहीं है लेकिन संतुष्टि, भ्रष्टाचार, परावलंबन को न्योता देती है, दिखावे के प्रोजेक्ट, कपटवेश शोषण के साथ ही वह अपने कॉर्पोरेट शक्ति का उपयोग अपना मुनाफ़ा बढाने के लिए करते है. इस संशोधन के परिणाम व्यापक निहितार्थ रखतें है और उन सभी परिस्थियों में लागु होते है जहां संस्थायें कमजोर होती है. इस प्रकार से, यह कमजोर संस्थाएं ही ऐसा नियामक, राजनितिक और शासन वातारण निर्माण करती है जो नित्यता से शोषण और नैतिक-हिंसा को जारी रखते है जिसे फिर ‘परोपकार’ का मुखौटा पहना दिया जाता है.”    

कमजोर संस्थाओं के मामले में हमारा देश भी अन्य किसी देश से पीछे नहीं है. ऐसे में फिलान्थ्रोपि के नाम पर स्वायत्तता देना मतलब शिक्षण क्षेत्र में शोषण की परंपरा कायम रखना है.  

यदि, समिति यह मानती है कि शिक्षण क्षेत्र में निजीकरण गलत है तो वह परोपकारी नाम के पैसे से भी गलत ही है. परोपकार करनेवाली संस्थाएं दान ही देना चाहती है तो उन्हें पूर्ण स्वायत्तता की क्या जरुरत है? ऐसी कोई भी व्यवस्था मसौदा निति के विज़न को ही पराभूत कर लेगी. 

URGs बाहूल्य वाले क्षेत्रों में शिक्षण की सारी जिम्मेदारी फिलान्थ्रोपिक संस्थाओं पर डालने की बात (पृष्ठ ५६७) का मतलब ही संशयास्पद है.  

हमारी मांग है कि सरकार देश के सभी लोगों के शिक्षण की जिम्मेदारी स्वयं उठायें और URGs के लिए भी उच्च दर्जे की शिक्षण सुविधाएं निर्माण करें. अपनी जिम्मेदारी झटककर उन्हें किसी भी हालत में परोपकार के नाम पर बाहरी लोगों को ना सौंपे. 

4. संशोधन का प्रस्ताव: स्कूल काम्प्लेक्स / एसईझेड – संशयास्पद विकृत मॉडल 

मसौदा नीति एक और आउट-ऑफ़-दी-बॉक्स मॉडल प्रस्तुत करती है. वह है स्कूल काम्प्लेक्स और URGs के लिए एसईझेड (विशिष्ट शिक्षा क्षेत्र). स्कूल काम्प्लेक्स का मॉडल पुरानी नीतियों से लिया गया है लेकिन वह अब तक क्यों नहीं लागु किया जा सका इसका कोई कारण नहीं दिया गया है. मसौदा नीति कहती है “बहुत से सावर्जनिक क्षेत्र के स्कूलों को साथ लाकर एक सांस्थानिक और प्रशासनिक इकाई का गठन किया जायेगा जिसे स्कूल काम्प्लेक्स  कहा जायेगा.  इसमें भौतिक रुप से स्कूल का स्थानपरिवतर्न नही होगा और प्रशासनिक रुप से स्कूल काम्प्लेक्स  का भाग होने के बावजूद हर स्कूल का संचालन जारी रहगेा.  स्कूल काम्प्लेक्स सावर्जनिक शिक्षा व्यवस्था के शैक्षिक प्रशासन का बुनियादी इकाई होगी और इस रुप में ही उसका विकास किया जायेगा. (पृष्ठ २२१). 

मसौदे के पैरा 7.1.1 में अंग्रेजी मसूदे के “that is viable in size will continue to function” इन शब्दों का अर्थ हिंदी अनुवाद में आया नहीं है. कोई स्कूल साइज़ में व्यवहारिक होने के क्या मायने होते है?  वह कौनसे स्कूल है जो अव्यवहारिक होने के कारण सुरु नहीं रह सकेंगे? यदि सरकार ही “अव्यवहारिक” सार्वजनिक स्कूल बंद करने की नीति बनाती है तो फिर बाहरी निजी संस्थानों से यह आशा कैसे कर सकते है कि वह “परोपकार” की भावना से अपना निधि शिक्षण क्षेत्र में लगायेंगे? 

समिति यदि यह मानती है कि शिक्षण राष्ट्र की जरुरत है, और उसे लोगों के द्वार तक ले जाना चाहिए, तो फिर वह अपने सुझावों में कल्पकता लाने में पूरी तरह से विफल हो जाती है. स्कूल काम्प्लेक्स का मॉडल यदि बच्चों के लिए शिक्षण की आवश्यकता के बजाय स्कूल की व्यवहारिकता से सम्बन्ध रखता हो तो वह मॉडल गलत ही कहा जाएगा. इसी प्रकार URGs के लिए एसईझेड भी इसलिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि दानकर्ता पार्टी पिछड़े समुदाय के लोगों को लिबरल आर्ट तक सिमित कर के उन्हें उच्च शिक्षा से वंचित रखेंगे और कौशल विकास के नाम पर उन्हें अपने ‘बंधक मजदुर’ के रूप में प्रशिक्षित करेंगे. मसौदा नीति की यह एक विकृत संकल्पना है जिसे कदापि स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.

हमारी मांग है कि किसी भी स्कूल के, चाहे सरकारी हो या नीजी, व्यवहारिकता का पैमाना बच्चों की आयु के अनुसार उनके घर से स्कूल की नजदीकी और पहुँचने की सुविधा पर निर्भर हो. स्कूल काम्प्लेक्स प्रशासनिक इकाई के रूप में ठीक है लेकिन किसी स्कूल को अव्यवहारिक घोषित कर के उसे बंद या स्थानांतरित कदापि नहीं किया जाए. URGs के लिए एसईझेड (विशिष्ट शिक्षा क्षेत्र) यह संकल्पना यह भेदभाव पूर्ण और पूरी तरह से संशयास्पद मॉडल है, इसे कदापि नहीं लगाया जाए.

5. संशोधन का प्रस्ताव: समान्तर पदाधिकारीयों की भ्रामक व्यवस्था 

मसौदा नीति सुझाव देती है कि “स्कूल काम्प्लेक्स में उस भौगोलिक क्षेत्र में विद्यार्थियों एवं प्रौढ़ शिक्षार्थियों की संख्या के आधार पर पर्याप्त संख्या में सामाजिक कार्यकर्त्ता नियुक्त किये जायेंगे.” (पृष्ठ २२४) “हालाँकि विद्यार्थियों की देखभाल और खुशहाली में शिक्षकों की केन्द्रीय  भूमिका होगी, हर स्कूल काम्प्लेक्स में एक या अधिक योग्य सलाहकार उपलब्ध होंगे.” (पृष्ठ २२५)

सामाजिक कार्यकर्त्ता और सलाहकारों की नियुक्ति यह एक बड़ी ही अजीबोगरीब समान्तर व्यवस्था है जो शिक्षकों और पालको में भी भ्रम उत्पन्न करेगी. स्कूल मैनेजमेंट कमिटी में इनको दिए गए महत्व से स्थिति और भी अराजक हो सकती है. इन सब बातों के परे यह पदाधिकारी समाज में पहले से व्याप्त गैरबराबरी, विषमता और भेदभाव को बढ़ावा देंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.  

हाल ही में तमिलनाडु के कुछ स्कूलों में बच्चों की जात के अनुसार उनके हाथ पर अलग-अलग रंग के धागे बांधे जाने का मामला सामने आया है. इस मामले की जाँच करके स्कूल एजुकेशन निदेशक, चेन्नई ने यह टिपण्णी की है कि “कथित रूप से, ऐसी प्रथा स्वयं विद्यार्थी ही लागु करते है और उच्च जाती के प्रभावशाली लोग और शिक्षक उसका समर्थन करते है.” स्कूलों में भेदभाव के ऐसे अनेक किस्से देश के हर कोने से प्रायः सुनने को मिलते है. इन सभी मामलों में स्थानीय प्रभावशाली लोगों का हाथ होता है. शिक्षण क्षेत्र में इस प्रकार से सामाजिक कार्यकर्त्ता और सलाहकारों की नियुक्ति से यह प्रथा संस्थानिकृत हो जाएगी जो एकनिष्ठ समाज निर्माण में घातक साबित होगी. मसौदा नीति में ९ वीं से १२ वीं के चार वर्षो के लिए प्रस्तावित मोडुलर शिक्षण पद्धति को लागु करने में इसका सबसे जादा दुरुपयोग किया जाएगा इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.

हमारी मांग है कि शिक्षण क्षेत्र में किसी प्रकार के बिचौलिए और समान्तर पदाधिकारी ना हो और यदि जरुरी होते है तो उनके कार्य क्षेत्र और जबाबदारियां निश्चित किये गए हो, और वह प्रोफेशनल शिक्षा प्राप्त किये हुए हो.  

6. संशोधन का प्रस्ताव: मोडुलर सेकेंडरी शिक्षा – तुच्छ और भ्रान्तिजनक शिक्षाक्रम जो उच्च शिक्षण के द्वार बंद कर देगा

मसौदा नीति सुझाव देती है “उच्च अवस्था चार वर्षीय बहू-अनुशासनिक अध्ययन होगा. यहाँ माध्यमिक अवस्था में इस्तेमाल की जाने वाली विषय-केन्द्रित शिक्षण और शिक्षाक्रम को ही इस्तेमाल किया जाएगा पर एक गहरी और व्यापक समझ के साथ. यह सब विद्यार्थियों की जीवन-अभिलाषाओं को ध्यान में रखते हुए और उन्हें अधिक से अधिक विकल्प चुनाव के अवसर मुहयैा के उद्देश्य के साथ किया जाना है.  उच्च माध्यमिक अवस्था में प्रत्येक वर्ष को 2 समेस्टर में बांटा जाएगा. इस तरह 4 वर्ष में कुल 8 समेस्टर होंगे. प्रत्येक विद्यार्थी हर समेस्टर में 5 से 6 विषय लेगा. यहाँ कुछ ऐसे विषय होंगे जो सबके लिए कॉमन होंगे; लेकिन साथ-ही-साथ यहाँ कई विकल्प भी उपलब्ध होंगे जिनके अंतगर्त विद्यार्थी विभिन्न ऐच्छिक विषयों (कला, व्यवसायिक विषय, और शारीरिक शिक्षा जिनमे शामिल होगी) में से अपनी रूचि, रुझान और प्रतिभा के मुताबिक चुन सकेंगे और इनमे पारंगतता हांसिल कर पाएंगे”. (पृष्ठ १००)  

समिति आगे यह भी शिफारिस करती है कि “करीकुलर, एक्स्ट्रा-करीकुलर, या को-करीकुलर के नाम पर विषय-वस्तू का कोई कड़ा विभाजन नही: स्कूल के सभी विषय शिक्षाक्रम का हिस्सा समझे जायेंगे. जिस तरह आमतौर पर खेल, योग, नृत्य, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, शिल्प, मिट्टी के बतर्न बनाना, लकड़ी का काम, बागवानी, बिजली का काम आदि तमाम कौशलों और विषयों को एक्स्ट्रा-करीकुलर, को-करीकुलर आदि नामों से पुकारा जाता है; यह अब नही होगा.” (पृष्ठ १०४)

समिति को लगता है कि “इसके चलते विद्यार्थियों को ख़ुद अपने अध्ययन क्षेत्र को चुनने और अपने जीवन की दिशा को तय करने में मदद मिलेगी.”

यह बड़ी ही दूर की सोच है कि आठवीं-नौवीं में पढनेवाले बच्चे अपने जीवन की दिशा तय करनेवाले निर्णय ले सकेंगे. इस स्तर पर बहु-अनुशासनिक शिक्षाक्रम प्रदान करना अपने आप में भ्रामक है. उस पर कौशल्यों पर आधारित विषयों के पर्याय देना मतलब सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा के द्वार हमेशा के लिए बंद कर देना है. गैर-सरकारी, निजी स्कूलों में उनके पढ़े-लिखे पालक और शिक्षक स्वयं भी यह प्रयास करेंगे कि बच्चे उच्च शिक्षा को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण विषय ही चुने. लेकिन URGs और अशिक्षित पालकों के बच्चों के बारे में यह संभावना बनी रहेगी की उनपर तुच्छ और जातिगत लिबरल आर्ट के विषय लादे जायेंगे. शिक्षण व्यवस्था का उपयोग जातिव्यवस्था कमजोर और नष्ट करने में आना चाहिए, न कि उसे और सुदृढ़ बनाने में.

हमारी मांग है कि एक्स्ट्रा-करीकुलर या को-करीकुलर विषयोंको करीकुलर में कदापि ना बदला जाए क्योंकि इससे विद्यार्थी शिक्षा के मूल विषयों से भटककर उच्च शिक्षा से वंचित रह जायेंगे. URGs के लिए प्रस्तावित SEZ के अंतर्गत जिस तरह से लिबरल आर्ट पर जोर दिया गया है वह परेशान करनेवाली बात है. सरकार ने यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी क्षेत्र के बच्चोंको एक समान उच्च दर्जे की स्कूली शिक्षा मिले और उसके बाद ही उनकी इच्छा के व्यवसायिक कोर्स उन्हें पढाये जाए.

7. संशोधन का प्रस्ताव: आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करना?

मसौदा नीति का प्रस्ताव है कि “सभी निजी एचईआई (HEIs) को सावर्जनिक संस्थान के समान मानदंडो के साथ नियंत्रित और विनियमित किया जाएगा, जबतक कि अन्यथा निर्दिष्ट न हो । निजी एचईआई (HEIs) को इस नीति और राज्य के स्थानीय विद्यार्थियों के संबंध में उनके नीतिगत अधिनियमो के अलावा अन्य आरक्षण दिशानिर्देश का पालन करने के लिए बाध्य नही किया जाएगा. (पृष्ठ ४६७)

उपर लिखित “इस नीति के अलावा अन्य आरक्षण दिशानिर्देश” यह जो उल्लेख आता है यही बड़ा भ्रामक है. क्योंकि, मसौदा नीति के पुरे ६५० पृष्ठ के दस्तावेज में “आरक्षण” यह शब्द केवल एक ही बार आता है. पुरे मसौदे में आरक्षण से सम्बंधित और कोई दिशानिर्देश है ही नहीं. 

सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिए जाने के इरादे से शिक्षा में आरक्षण की संविधानिक व्यवस्था देश में स्थापित है. परन्तु इस मसौदा नीति में आमूलाग्र संशोधन के नाम पर आरक्षण व्यवस्था को ही समाप्त करने की चालाक साजिश रची जा रही है. अपनी इस साजिश को अंजाम देने के लिए आरआरएस प्रमुख भी “आरक्षण पर चर्चा की जानी चाहिए” ऐसा सुझाव देकर जनमत तयार करने में लगे है.

निजी एचईआई (HEIs) भी सरकार से अनेक प्रकार की छुट और सुविधांए लेती है. उनपर नियंत्रण के नियम भी सार्वजनिक संस्थाओं के बराबर रहनेवाले है. ऐसे में, उन पर भी आरक्षण के नियम लागु होने चाहिए. वैसे भी हमारे देश में उच्च शिक्षा संस्थान भेदभाव और एक्सक्लूशन के लिए बदनाम है. इस मसौदा नीति के विज़न के अनुसार यदि न्यायसंगत और जीवंत ज्ञान समाज का निर्माण करना है तो शीक्षा के सभी स्तर पर समावेशक शिक्षण व्यवस्था हो जो बिना आरक्षण के संभव नहीं है. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समाज को ज्ञान-समाज की मुख्य धरा में लाने के लिए यह नितांत आवश्यक है.  

हमारी मांग है कि आरक्षण से सम्बंधित संविधानिक प्रावधानों का शिक्षा क्षेत्र में भी सरकार कड़ाई से पालन करवाएं ताकि प्रशासन में समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए पर्याप्त शिक्षित युवा उपलब्ध हो. सरकार की यह संविधानिक सोच राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योग्य रूप से परिलक्षित भी होनी चाहिए. आरक्षण के प्रावधान उसके सही परिप्रेक्ष्य में लागु किये जाने चाहिए. किसी परीक्षा में प्राप्त केवल मार्क ही किसी के मेरिट का पैमाना ना बनाया जाए क्योंकि सभी बच्चे समान परिवेश से नहीं आते है.    

8. संशोधन का प्रस्ताव: छात्रवृत्ति को समाप्त करना?

मसौदा नीति का प्रस्ताव है कि “एक विशेष राष्ट्रीय कोष” URG छात्रों के लिए छात्रवृतियां देने और संसाधनों और सुविधाओं के विकास के लिए स्थापित किया जायेगा ।  एक ही राष्ट्रीय एजेंसी या ‘एकल खिड़की’ (single window) व्यवस्था के द्वारा, छात्र, एक सरलीकृत रुप में वित्तीय सहायता के लिए आवेदन भी कर पाएंगे और सहायता या सुविधाएँ प्राप्त न होने की स्थिति में शिकायत भी दर्ज करा  पाएंगे”. (पृष्ठ १९९)

चाहे आरक्षण हो, या छात्रवृत्ति का विषय या पिछड़े समुदाय के बच्चों की शिक्षा का मामला, इस समिति की आउट-ऑफ़-दी-बॉक्स सोच बड़ी ही गैरजिम्मेदार और साजिशपूर्ण लगती है. जिस पिछड़े समुदाय को इस समिति ने URG ऐसा नया नाम दिया है वह करीब ९०% है इस बात से ही यह समिति अनभिज्ञ दिखती है.  

‘आरक्षण’ की ही तरह, छात्रवृत्ति के लिए “एक विशेष राष्ट्रीय कोष” यह शब्द भी पूरी ६५० पृष्ठ की नीति दस्तावेज में केवल एक बार ही आता है. इस ‘एकल खिड़की’ योजना का क्या स्वरुप रहेगा, किस तरह वह करोड़ों बच्चों की छात्रवृत्ति का वितरण करेगी इस बात का कहीं कोई खुलासा नहीं है. क्या पिछड़े वर्ग के बच्चों ने छात्रवृत्ति पाने में ही अपनी शक्ति खर्च करनी होगी? सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़े समुदाय की शिक्षा को लेकर यह मसौदा नीति सीधे-सीधे कपटपूर्ण है. उस समुदाय के लिए सामाजिक-आर्थिक रूपसे कमजोर ‘अल्प-प्रतिनिधित्व’वाला समुदाय (URG) यह सज्ञा भी असंवैधानिक है.   

हमारी मांग है कि सभी जरूरतमंद बच्चों को उनकी सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ापन और अन्य मानकों के अनुसार सीधे उनके बैंक खातों में छात्रवृत्ति मिलनी चाहीये. उसके लिए  उन्हें अलग से प्रयास ना करने पड़े. यह व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योग्य रूप से परिलक्षित भी होनी चाहिए. 

9. संशोधन का प्रस्ताव: वंचितों के लिए ‘घेट्टो’ का निर्माण?

कोई आश्चर्य नहीं कि सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़े समुदाय की शिक्षा को लेकर यह मसौदा नीति सीधे-सीधे कपटपूर्ण है. पृष्ठ २०६ पर समिति नोट करती है कि “वंचित समुदायों के सशक्तिकरण के लिए उच्च शिक्षा में उठाये गए कदमों के कारण हाशिये पर जी रहे समुदायों के काफी सदस्यों ने शिक्षण डिग्री हासिल की है. फिर भी उनसे जुड़ी कई समस्याओं के चलते उन्हें नौकरी हासिल करने में मुश्कील होती है”. (पृष्ठ २०६) इस अनुवाद में अंग्रेजी वाक्य “due to the various disadvantages they carry forward” का अनुवाद “उनसे जुड़ी कई समस्याओं के चलते” इस प्रकार किया है. लेकिन वह disadvantages क्या है इसका कोई स्पष्टीकरण और निराकरण के उपाय नहीं बताये गए है. इस तरह सभी वंचित समुदायों के शिक्षकों बारे में समिति का यह अवलोकन दुर्भावनापूर्ण है.  

और जो “उपाय” सुझाए गए है वह उससे भी जादा छलपूर्ण है. समिति का सुझाव है कि “इस सन्दर्भ में  सम्बंधित मंत्रालयों और विभागों को उनकी क्षमता वृवृद्धि हतेु विशेष पहल लेने की जरुरत है जिससे उन्हें स्कूलों में, विशेषकर अपने गृह क्षेत्रों में जहाँ वे श्रेष्ठ रोल मॉडल बन सके, शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया जा सके. ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में जहाँ SC और OBC शिक्षक अपेक्षाकृत कम संख्या में हो, SC और OBC समुदायों से सर्वश्रेष्ठ छात्रों और IAs को उत्कृष्ट शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों से जुड़ने और शिक्षक बनने हतेु छात्रवृतियां प्रदान की जाएँगी. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें इन्ही क्षेत्रों में नियुक्त करने को प्राथमिकता दी जायेगी”. (पृष्ठ २०६) 

मसौदा नीति वंचित समुदाय बहुल क्षेत्रों के लिए पहले “विशिष्ठ शिक्षा क्षेत्र” SEZ का सुझाव देती है जिसमे लिबरल आर्ट्स के शिक्षण पर जोर दिया जाएगा, स्कूल काम्प्लेक्स भी SEZ का हिस्सा बन सकेंगे, यह SEZ परोपकारी संस्थाओं को चलाने के लिए दिए जायेंगे, और इनमे शिक्षक भी उन्ही समुदायों के रहेंगे. ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदा NEP2019 एससी, एसटी, ओबीसी, और अन्य URG समुदायोंको एक घेट्टो में बंदिस्त करना चाहती है जहाँ ‘परोपकार’ के नाम पर उद्योगपति अपने लिए बंधुआ मजदूर तैयार करेंगे. इन समुदायों के बच्चों के उच्च शिक्षा के द्वार अपने आप ही बंद हो जायेंगे. आरक्षण के माध्यम से इन समुदायों के लोग जो प्रतिनिधित्व पाते है और अवसर मिलने पर अपनी क्षमता सिद्ध करने से नहीं चुकते यह बात प्रस्थापित वर्गों को नागवार होती है. वह आरक्षण का विरोध करते ही है. और अब इस प्रस्तावित शिक्षण नीति २०१९ के माध्यम से छल-कपट के साथ उसे समाप्त करने या निष्क्रिय करने की साजिश रचते दीखते है.

हमारी मांग है कि मसौदा शिक्षा नीति का  “विशिष्ठ शिक्षा क्षेत्र” SEZ का प्रस्ताव पूरी तरह से ख़ारिज किया जाए. यह सुझाव शिक्षा क्षेत्र में स्तरीकरण का सबसे घटिया उदहारण है जिसके माध्यम से वंचित समुदायों के बच्चों लिबरल आर्ट्स की शिक्षा तक सिमित रखकर बंधुआ मजदुर बनाने की और उन्हें उच्च शिक्षा से वंचित रखने की छलपूर्ण साजिश है.    

10. संशोधन का प्रस्ताव: महिलाओं को दुयमत्व, पितृसत्ताक व्यवस्था को बढ़ावा?

महिलाओं की शिक्षा को लेकर यह मसौदा नीति बड़ी ही भ्रामक है. इस समिति की दृष्टी से सभी महिलाएं ‘सामाजिक-आर्थिक’ रूप से कमजोर होती है और इसलिए उन्हें URG के अंतर्गत रखा गया है. उनकी शिक्षा के महत्त्व को लेकर जगह-जगह अलंकारयुक्त भाषा में लिखा गया है, जिसका सार ‘महिलाओं का आदर’ करना सिखाया जाना है, महिलाओं की प्रत्यक्ष शिक्षा नहीं. महिलाओं की शिक्षा को लेकर ६५० पृष्ठ के इस दस्तावेज में पृष्ठ 201 से तिन चार पन्ने लिखे गए है. इसमें मुख्यतः शिक्षा के स्थान पर महिलाओं की सुरक्षा और भेदभाव-मुक्त वातावरण की कल्पना की गई है. इसमें महिलाओं के शिक्षण के लिए एक ‘जेंडर समावेश कोष’ के स्थापना की बात भी की गई है जो महिलाओं के लिए उच्च और समान शिक्षण को सुनिश्चित करने के लिए पांच स्तम्भ का आधार लेगी. 

लेकिन पुरे दस्तावेज में ‘महिलाओं का आदर’ और हमारी कुटम्ब प्रधान व्यवस्था में महिलओं के स्थान को लेकर जो अपेक्षाएं व्यक्त की गई है ऊससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस मसौदा नीति के अनुसार ‘महिला’ कोई सामान्य आम व्यक्ति ना हो. उपर से उन्हें URGs के अंतर्गत SEZ में लिबरल आर्ट्स ककी पढाई को जोर देकर यही सुनिश्चित हो पायेगा कि उनके सशक्तिकरण के बजाय उनका जीवन ही और अधिक अस्पष्ट और अंधकारमय होगा. 

हमारी मांग है कि महिलाओं की शिक्षण व्यवस्था पर गंभीर रूप से विचार हो उसे विस्तार से स्पष्ट किया जाए. उनके उच्च स्तरीय शिक्षण के लिए और सर्व-व्यापक सशक्तिकरण के लिए विशेष संस्थागत ढांचा निर्माण किया जाए. केवल ‘महिलाओं का आदर’ किया जाना चाहिए यह कहने से बात नहीं बनेगी.

महोदया – महोदय, उपर लिखित दस मुद्दे किसी भी प्रगतिशील देशक की शिक्षा व्यवस्था के लिए अहम है. यह और भी अहम हो जाते है जब उस देश की जनसंख्या विश्व में सबसे युवा हो. इस मानवी संसाधनों के सर्वांगीं विकास के लिए शिक्षा नीति बिना किसी छलकपट के प्रमाणिक होनी चाहिए जो इस मसौदा नीति २०१९ के बारे में नहीं कहा जा सकता. उसके पर्याप्त उदहारण हमने उपर दिए हुए है.

हमारे देश का जनसांख्यिकीय लाभांश वर्तमान में सर्वोत्तम है जिसका फायदा देश को तभी हो सकता है जब हमारी शिक्षा नीति प्रतिभाशाली वैज्ञानिक और मानववादी विद्वान निर्माण कर सकेगी, जो लिबरल आर्ट्स की शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करने से कदापि संभव नहीं. इस मायने में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०१९ पूरी तरह से असफल है. वह अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए दूरदर्शी उपाय नहीं सुझा सकी क्योंकि समिति का रवैय्या भेदभाव पूर्ण था. उसकी सोच “हम” और “वह” के भेद में उलझी रही, और वह “हम भारत के लोग” के लिए एकसमान व्यापक शिक्षा नीति बनने में विफल हो गई.

इसलिए, यह मसौदा नीति-२०१९ संविधान के मूल्यों के विपरीत है और उसे सिरे से ख़ारिज कर लेना चाहिए.

१. यह मसौदा नीति संविधान के कलम १५ और १६ का उल्लंघन करती है क्योंकि वह सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़े लोगों के लिए कोई प्रावधान नहीं करती. उसके विपरीत जब वह एक नई संज्ञा URG बनती है तो उसका आधार सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय बताती है. बड़े आश्चर्य की बात है कि शिक्षा नीति में शैक्षणिक पिछड़ेपन के ना तो कोई आंकड़े है ना ही कोई चर्चा. यदि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था से समाज में शैक्षणिक पिछड़ापन बचा है नहीं तो शिक्षा व्यवस्था में इतने व्यापक संशोधन की क्या आवश्यकता है?

२. यह मसौदा नीति बच्चों के शिक्षा के मुलभुत अधिकारों का हनन करती है. वह इस बात से अनभिज्ञ दिखती है कि सभी बच्चों को समान, मुफ्त और सक्ती से शिक्षण देना सरकार का कर्त्तव्य है. इसलिए वह शिक्षण व्यवस्था के पूर्ण निजीकरण (स्वायत्तता) का सुझाव देती है और शिक्षा में सभी स्तर पर स्तरीकरण को और मजबूत करती है. URGs के लिए लिबरल आर्ट्स का पुरस्कार करना स्तरीकरण की सबसे घटिया सोच है. 

३. स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर स्तरीकरण की इस शिक्षा नीति से समानता के मुलभुत अधिकारोंका हनन होता है, जिससे विषमता को बढ़ावा मिलेगा, शिक्षा में भेदभाव बढेगा, रोजगार की संधियों में भेदभाव बढेगा और स्व-विकास में बाधा उत्पन्न होगी.

४. यह मसौदा नीति वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की ना तो कोई समीक्षा प्रस्तुत करती है, ना ही कोई विश्लेषण. इससे राष्ट्रीय नीति निर्धारण में तर्कपूर्ण वैज्ञानिक सोच के संविधानिक मूल्यों का हनन होता है.

५. यह मसौदा नीति शिक्षा व्यवस्था के इतने भीषण संशोधन के लिए वित्तीय आंवटन को लेकर भ्रम में दिखती है. एक तरफ तो वह जीडीपी के ६% शिक्षा पर व्यय होना चाहिए ऐसा स्वीकार करती है और दूसरी तरफ सरकारी खर्च के १०% के हिसाब से आंवटन निर्धारित करती है. शिक्षण व्यवस्था में बड़े पैमाने पर फिलान्त्रोपिस्ट याने परोपकारी संस्थाओं से धन लेने की शिफारिस यह नीति करती है लेकिन इस शर्त पर कि उन दानदाता संस्थाओं को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाए. यह और कुछ नहीं बल्कि एक भ्रामक नाम से शिक्षण व्यवस्था का निजीकरण और मुनाफाखोरी मात्र है.

६. यह मसौदा नीति हमारे बहुभाषीय विविधतापूर्ण राष्ट्र की भाषा विषयक संवेदनशील मुद्दे को ठीक से समझ नहीं पाई. इसलिए वह सभी स्तर पर अप्रासंगिक, मृतप्राय संस्कृत भाषा को पढ़ाये जाने पर जोर देती है. यह नीति सरकारी स्कूलों के गरीब बच्चों पर संस्कृत भाषा लाद भी देगी  जिससे उनकी व्यकिगत प्रगति के लिए आवश्यक भाषा के चयन का अधिकार छीन जाएगा और उच्च शिक्षा के उनके द्वार भी बंद हो जायेंगे.

इस मसौदा नीति को कितने ही सुझाव देने से भी दुरुस्त नहीं किया जा सकता है. इसे सिरे से ख़ारिज करना ही बेहतर होगा. 

हमारी मांग है कि एक नया शिक्षा आयोग स्थापित किया जाए जो समावेशकता और विविधता के संवैधानिक मूल्यों का जतन करते हुए एक ऐसी सर्व समावेशक शिक्षा नीति बनाएगा जो हमारे देश के विविध समुदायों के उपयुक्त होगी और भारत के सभी लोगों के प्रगति के द्वार खोलेगी.

महोदया – महोदय, कृपया इस मुद्दे को संसद में और आपको उपलब्ध अन्य फोरम में भी जरुर उठायें. हम आपको आश्वस्त करना चाहते है कि हम किसी भी राजकीय पार्टी या किसी एक विचारधारा से संबंध नहीं रखते है. उपर लिखित विचार यह हम विविध क्षेत्र से सम्बंधित सामान्य भारतीय नागरिकों के है. कृपया, आपको कोई अतिरिक्त जानकारी की जब भी आवश्यकता हो तो जरुर हमें बताएं.  

सविनय सादर.

आपके

शिक्षण संघर्ष समन्वय समिति

~~~

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *