Kundan
0 0
Read Time:19 Minute, 13 Second

कुंदन मकवाना (Kundan Makwana)

Kundanबहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम, एक व्यक्ति जिनकी आर्थिक स्थिति अन्य दलितों से काफी ठीक थी. श्रेणी एक की सरकारी नौकरी पर रहे, लेकिन आम्बेडकवादी विचारधारा को जन जन तक, घर घर तक फ़ैलाने के लिए पैदल व् साईकिल पर यात्राएँ कीं. वे अपना घर-परिवार, अपनी नौकरी सब छोड़ कर निकल पड़े थे. 

पुणे में ही नौकरी करते हुए वहीँ के दर्जा चार के एक अधिकारी दीनाभाना जी के द्वारा जातिय भेदभाव के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई में शामिल हुए और बहुजन समाज को पहचाना. डी. के. खार्पड़े साहब द्वारा दी गई और बाबासाहब डॉ आम्बेडकर लिखित किताब “जातिभेद का उच्छेद” कई मर्तबा पढ़ा और दिमाग में आकार लेने दिया. बहुजन आन्दोलन में काम करते हुए उन्होंने बहुत से प्रयोग किये व् बहुजन आन्दोलन को एक नए मुकाम पर ले गए. यह बात लिखना या कहना जितना आसान है उतना ही कांशी राम जी द्वारा किये गए कार्यों को निभाना कठिन है, या शायद नामुमकिन भी. 

मान्यवर साहब का कहना था कि, हमारा आन्दोलन “सामाजिक जागृति के माध्यम से राजकीय सत्ता प्राप्त कर व्यवस्था परिवर्तन” का है. और, इस लक्ष्य की प्राप्ति की और पहला कदम था, सामाजिक और धार्मिक गुलामी से दबे, कुचले, पीड़ित, शोषित, वंचित समाज का 6000 से अथिक जातियो में बंटे समाज को एक समूह में जोड़ कर “बहुजन समाज” की रचना करना. व्यवस्था परिवर्तन के इस लक्ष्य को पूरा करने के दुसरे कदम के रूप में मान्यवर ने बहुजन नायको और बाबासाहेब के जीवन और उनके आंदोलनों से प्रेरणा लेकर अलग अलग संगठनो की रचना की.

बाबासाहब डॉ आम्बेडकर का अंग्रेजी में एक सन्देश है, Educate, Agitate, Organize; जिसका अर्थ है, “शिक्षित बनो, आन्दोलन करो, संगठित बनो” जिसको समग्र बहुजन इतिहास में सिर्फ और सिर्फ एक ही व्यक्ति ने चरितार्थ किया और वो है मान्यवर कांशीराम. 

सबसे पहले मान्यवर ने बामसेफ की स्थापना की, जो अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े एंव अल्पसंख्यक (SC, ST, OBC and Minorities) समाज के सरकारी कर्मचारियों का बिनराजकीय बिन-रजिस्टर्ड संगठन था, जिसका उदेश्य बहुजन समाज को अपने इतिहास के प्रति शिक्षित कर सामाजिक जागृति लाना था, जो बाबासाहब के पहले सूत्र “शिक्षित करो” को चरितार्थ करता था. उसके बाद मान्यवर ने डीएसफॉर यानि ‘दलित शोषित समाज संघर्ष समिति’ की रचना की, जिसका उदेश्य बहुजन समाज को आंदोलित करना था. और अंत में मान्यवर साहब ने बहुजन समाज पार्टी की रचना की, जो बहुजनों का राजनीतिक संगठन था, और जिसका नाम ही बाबासाहब के तीसरे सूत्र “संगठित करो” को चरितार्थ करता है. बहुजन समाज यानि की हज़ारों वर्षों से धर्म और जाति के नाम सताई और दबाई गईं 6000 से ज्यादा जातियो में बंटा हुआ समाज.

इस तरह मान्यवर ने बहुजन समाज को जागृत करके राजकीय सत्ता प्राप्त करने की और अग्रसर किया. उन्होंने समाज को स्वावलंबी बनाने की राह चलाया. उन्होंने कहा हमें मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला समाज बनना है. उनका मानना था कि इन सवर्ण जातियों की सत्ता में बहुजनों को न कोई अधिकार ही मिलना है न ही मान-सम्मान, सो उन्होंने सत्ता पर काबिज़ होने की राह की और प्रेरित किया. 

उत्तर प्रदेश में जब बसपा की बहुमत वाली सरकार बनी तो बहुजन समाज के नायकों एंव नायिकाओं के नाम पर अनेक शैक्षणिक संसथान खुले, अस्पताल और यूनिवर्सिटीयां बनीं. गौतम बुद्धा यूनिवर्सिटी भारत की दुसरे नम्बर की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है. इसके अलावा भी डॉ आम्बेडकर पार्क लखनऊ, दलित स्मारक स्थल जैसे अनेक स्मारकों का निर्माण हुआ जिसने बहुजन आन्दोलन और महापुरुषों को एक नई पहचान दी. जिस समाज के लोगों को पुणे में एक यूनिवर्सिटी का नाम बदलवाने के लिए लगभग दो दशकों तक आन्दोलन करना पड़ा, उसी समाज के महापुरुषों के नाम पर उत्तर प्रदेश में कई मनमोहक स्मारकें बन गई. साहेब के आन्दोलन ने यह कर दिखाया था. यह सब सत्ता के माध्यम से ही संभव हुआ था. बाबासाहब की यह बात कि “राजनितिक सत्ता मास्टर चाबी है” उत्तर प्रदेश में पहली बार चरितार्थ हुई. 

मान्यवर का यह व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य बहुजनों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक मुक्ति के लिए था. लेकिन कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों ने मान्यवर साहब को सिर्फ राजनिति तक ही सीमित कर दिया है. बहुजन समाज की यह कमनसीबी है कि, आज भी बुद्ध, फुले, शाहू, आम्बेडकर की विचारधारा को आत्मसात और फ़ैलाने वाले लोग बहुजन राजनीति में सक्रीय लोगों के प्रति बौधिक भेदभाव रखते है और शीघ्र ही किसी के प्रति निर्णय बनाने लगते हैं.

इन बुद्धिजीवओं को मान्यवर के बनाए हुए सामाजिक और राजनीतिक संगठन बामसेफ, डीएसफॉर और बसपा तो दिखते हैं, लेकिन मान्यवर ने बौद्ध धम्म के प्रचार प्रसार के लिए बनाया हुआ संगठन “बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर – BRC” याद नहीं है.  मान्यवर ने बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर की एक बुलेटिन भी प्रकाशित करना शुरू किया था, जिसमे बौद्ध धम्म और धम्म के सिद्धांतों को फ़ैलाने के लिए होने वाले कैडरों से लोगों को अवगत कराया जाता था. 

मान्यवर साहब कहते थे कि, मैंने सम्राट अशोक के भारत का सपना देखा है. सम्राट अशोक का भारत मतलब जातिविहीन बौध्मय भारत, जहाँ बहुजन समाज शासक हो. और इस सन्दर्भ में मान्यवर साहब ने अलग अलग जगह अपने भाषणों में इस बात का जिक्र भी किया. भारत देश को बौध्मय बनाने के लिए और बौद्ध धम्म को फ़ैलाने के लिए बौद्ध समाज के लोगों को क्या करना चाहिए इस बारे में मान्यवर ने कुछ सुझाव दिए थे.  

गुरु गोबिंद सिंह जी का जिक्र करते हुए मान्यवर ने नागपुर में कहा था कि, “गुरु साहेबान ने कहा है कि, धर्म के बिना राज और राज के बिना धर्म आगे नहीं बढ़ शकते.” 

आगे भारत वर्ष के महान सम्राट अशोक, कनिष्क और हर्षवर्धन को याद करके मान्यवर ने कहा था कि, जब यह तीनों राजा बौद्ध बने और बौद्ध धम्म को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हुआ तब बौद्ध धम्म फला-फुला. (26 मई से 2 जून, 2002)

वर्ष 2001 को 9 मई के रोज बुद्ध जयंती के अवसर पर मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित तुलसीनगर इलाके में डॉ आम्बेडकर जयंती मैदान में मान्यवर साहब ने अपने भाषण में कहा था कि, “अगर बौद्ध धम्म को आगे बढ़ाना है तो जाति को बौद्ध धम्म से दूर रखना जरुरी है. पहले जाति का बीजनाश हो, तभी बौद्ध धम्म को आगे बढ़ाया जा सकेगा. अगर जाति जीवन से निकल जाती है तो मनुवादी समाज व्यवस्था का अपने आप ही अंत हो जाएगा, यह बाबासाहब की सोच थी.” 

भारत देश के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए मान्यवर ने कहा था कि, बौद्ध लोगो को यह समझना जरुरी है कि देश और दुनिया में कोई भी धर्म अगर आगे बढ़ा है और फला-फुला है तो वह सिर्फ और सिर्फ हुकुमत के आधार पर. जिसकी सम्राट अशोक, कनिष्क और हर्षवर्धन के राज में बुद्धिज़्म फैला; अंग्रेजो के राज में क्रिश्चियन धर्म फैला, मुस्लिम शासकों के राज में इस्लाम फैला और आज़ादी के बाद मनुवादीओं के राज में मनुवाद फैला. इस तरह मान्यवर का साफ मानना था कि, जो राजा का धर्म होता है वही प्रजा का धर्म बनता है. मान्यवर के यह शब्द धर्म और राजनीति के बीच के सम्बन्ध को बखूबी बयान करते है कि किसी भी धर्म के फैलाव में राजनीति कितना अहम योगदान देती है. 

अगर इतिहास की और नजर डाली जाए तो पता चलता है कि, मौर्य राजाओं के समय में बौद्ध धम्म भारत से लेकर अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, चीन तक फैला. लेकिन दसवे मौर्य राजा ब्रुह्दत्त के समय में उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र श्रुंग ने धोखे से उसकी हत्या कर दी और सत्ता अपने कब्जे में कर ली. उसके बाद बौद्धों की क्रांति के जवाब में उसने प्रतिक्रांति के रूप में बौद्ध भिखुओं की हत्या करवा दी. बौद्ध ग्रंथो को जला दिया. और कुछ इस तरह सत्ता के जोर से उसने मनुवाद को फिरसे स्थापित किया. 

मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में हुए प्रथम विश्व दलित सम्मलेन में साहब ने कहा था कि, “जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए हमें शासक जमात बनना पड़ेगा. क्योंकि शासक ही एक नए समाज का निर्माण कर सकते है.” इस तरह मान्यवर का स्पष्ट मानना था की, भारत में बौद्ध धम्म के प्रचार प्रसार के लिए जाती को बौद्ध धम्म से दूर रखना जरुरी है और जातिविहीन समाज की रचना के लिए बहुजनो का शासक बनना जरुरी है. 

मान्यवर अक्सर कहा करते थे कि-

जो लोग नया इतिहास बनाना चाहते हैं उन्हें पुराने इतिहास से सबक लेना जरुरी है. और मैं बौद्ध धम्म की बात को राजनीती से इसलिए जोड़ रहा हूँ क्योंकि यह बात राजनीती से जुड़ी हुई है. मैंने पुराने इतिहास से सबक लिया है. 

14 अक्तूबर 2002 के रोज अशोक विजय दशमी के दिन नागपुर में मान्यवर साहब ने खुद को बाबासाहब के सच्चे अनुयायी बताते हुए लोगों पर व्यंग करते हुआ कहा था कि, “जिस महार शब्द से बाबासाहब पीछा छुड़ाना चाहते थे, उसी महार समाज के लोगों के सामने भाजपा सरकार ने आरक्षण रख दिया और प्रस्ताव दिया कि, अगर आपको आरक्षण चाहिए तो हम देने के लिए तैयार है लेकिन आप लोग अपने नाम के साथ लिखो कि ‘हम असली महार और नकली बौद्ध हैं.’ 

यह हमारा प्रमाणपत्र है कि हम असली महार है. बाबासाहब जिस जाति का बीजनाश करना चाहते थे वही लोग आज जाति का प्रमाणपत्र लेकर घूम रहे है. बाबासाहब के बौद्ध धम्म अपनाने के पीछे बहुत से कारण हो सकते है, लेकिन “जाति का नाश” करना यह सबसे बड़ी वजह थी. 

इस तरह से मान्यवर ने बताया कि कैसे सत्ता के माध्यम से आरक्षण का लालच देकर बौद्ध धम्म में जाति को घुसाया गया. किस तरह उनके प्रमाणपत्रों में उनको बौद्ध से महार बौद्ध लिखने को मजबूर किया गया. इसलिए मान्यवर अक्सर कहा करते थे कि, हमें आरक्षण लेने वाला नहीं बल्कि देने वाला समाज बनाना है. और देने वाले समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब सत्ता की वह मास्टर चाबी बहुजनो के अपने हाथ में हो.

मान्यवर ने अपने एक भाषण में, बाबासाहब के बौद्ध धम्म दीक्षा लेने के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर चार करोड़ लोगों के साथ बौद्ध धम्म अंगीकार करने की इच्छा जताई थी. लेकिन अफ़सोस कि उससे कुछ दिन पहले ही साहब का परिनिर्वाण हो गया और वह इच्छा अधूरी ही रह गई; वरना आज भारत वर्ष का माहौल कुछ और होता. बौद्ध समाज अल्पसंख्यक के टैग से निकलकर आगे बढ़ता. 

अपनी नौकरी छोड़ने और सगाई तोड़ने के बाद मान्यवर ने अपनी माता बिशन कौर को लिखे ख़त में कुछ संकल्प किये थे, जिसे उन्होंने अपने एक संबोधन में भी दोहराया और इसका आजीवन निष्ठा से पालन किया. उन्होंने लिखा/कहा था कि- 

आज से ये बहुजन समाज ही मेरा घर है, में आजीवन अविवाहित रहूँगा और अपने नाम पर कोई संपत्ति अर्जित नहीं करूँगा. मैं शादी और मृत्यु भोज में कभी शामिल नहीं होऊंगा. इन प्रतिज्ञओं को उन्होंने जीवन की आखरी साँस तक निभाया, यहाँ तक कि अपने पिता के मृत्यु के समय भी वह घर नहीं गए, और ना ही उनकी अंतिम रस्मों में शामिल ही हुए.  

बाबासाहब ने बौद्ध भिक्खुओ की व्याख्या करते हुआ कहा था कि, एक भिक्खु सतत विचरणशील-गतिमान होना चाहिए, उसे समाज के बीच में रहना चाहिए; उसकी आँखे हमेशा खुली रहनी चाहिए जो अपने समाज के दुःख दर्द को देख सके. 

बाबा साहेब के इन वचनों को मान्यवर ने संसार में रहते हुए बहुत बाखूबी से चरितार्थ किया था. अपने जीवन की आखिरी साँस तक बहुजन समाज के बीच रहकर, बहुजन समाज के दुःख दर्द को देखकर, भारत वर्ष के कोने कोने में विचरण कर मान्यवर ने बाबासाहब को घर घर तक जन जन तक पहुँचाया और बहुजन समाज को अपने बच्चे की तरह संभाला. बुद्धिसम के जिन पांच शील, आठ मार्ग और दश पारमिताओं को अपनाकर और उसपे चलकर एक व्यक्ति बोधिसत्व के पद की प्राप्ति करता है, उसे मान्यवर ने संसार में रहते हुए भी बखूबी निभाया. बाबासाहब के बाद मान्यवर साहब सच्चे अर्थ में “बोधिसत्व” थे. 

भारत के महान भाषा वैज्ञानिक डॉ राजेन्द्र प्रसाद लिखते है कि, बुद्ध के “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” के सिद्धांत को सिर्फ सम्राट अशोक ने लोक कल्याण के क्षेत्र में और साहब कांशीराम ने राजनीती के क्षेत्र में चरितार्थ किया. 

जो लोग सच में मान्यवर के बौद्ध धम्म के प्रति झुकाव को समझना चाहते है उन्हें “मान्यवर की असली इच्छा, चार करोड़ की होगी दीक्षा” किताब पढ़नी चाहिए. शायद यह पढ़ने के बाद आपका बौधिक भेदभाव दूर हो, और “एकच साहब बाबासाहब” के साथ ही आप ये भी नारा लगाये कि, “बाबासाहब का दूसरा नाम, कांशीराम, कांशीराम”. 

और अंत में तो सिर्फ इतना ही कि-

फुले, शाहू, भीम के बाद बहुजनों के वाली

बहुजन हित की करते देखो भारत में रखवाली

इस काम का किसी से भी वो मांगते न दाम

वाह जी वाह धन्य कांशी राम

वाह जी वाह धन्य कांशी राम

~~~

 

 कुंदन मकवाना कनाडा में रहते हैं. हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र में कार्यरत हैं व् बहुजन मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं.

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “कांशी राम जी और बुद्धिज़्म के प्रति उनका लगाव

  1. शानदार लेख,,,
    नमो बुद्धाय जय भीम जय मान्यवर साहब

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *